राजस्थान और मध्यप्रदेश दो राज्यों में, दो निर्णय शासन के एक साथ देखने में आए हैं। मध्यप्रदेश में गाय का अंतिम संस्कार किया जाना आवश्यक कर दिया गया तो दूसरे राज्य राजस्थान में भाजपा की सत्ता आने का प्रभाव यह हुआ कि जिन दो छोटे गांव में हर दिन 600 से ज्यादा गायों को मौत के घाट उतार दिया जाता था, उनमें अब गोकशी बंद हो गई है। सिर्फ बंद ही नहीं हुई, अपराधी घर छोड़कर भाग खड़े हुए हैं। वस्तुत: अलवर के खैरथल तिजारा जिले के किशनगढ़बास इलाके में स्थित बीफ मंडी में खुलेआम गोकशी के कई साक्ष्य लम्बे समय से मौजूद थे, हर दिन यहां सैकड़ों गायों को मारा जा रहा था, लेकिन पुलिस तत्कालीन कांग्रेस शासन में मौन थी।
राजस्थान में राजस्थान बोविन ऐनिमल ऐक्ट 1995 के तहत गौहत्या और गौमांस रखने पर 3 से 10 साल की जेल और 10,000 रुपये के जुर्माने का भी प्रावधान है। इस संदर्भ में वर्ष 2017 में एक महत्वपूर्ण संशोधन राज्य के स्तर पर भी लाया गया। साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत कुछ ऐसे प्रावधान भी किए गए हैं, जिसके अंतर्गत पशुओं पर अत्याचार करने या उन्हें जान से मारने पर 5 साल तक की जेल का प्रावधान है। लेकिन हिन्दुओं की आस्था से जुड़े होने वाले पशु को बेरहमी से मारा जा रहा था।
इस अपराध का खुलापन देखिए कि बड़ी संख्या में आस-पास बल्कि दूसरे राज्यों के लोग यहां मांस खरीदने पहुंचते थे। हरियाणा के मेवात के करीब 50 गांवों में होम डिलीवरी की भी सुविधा यहां से दी जा रही थी। इलाके में बीफ की बिरयानी खुलेआम बेची जाती थी। अनेक लोग तो मांस और खाल बेचकर महीने की 4 लाख रुपये से अधिक की कमाई कर रहे थे।
इतिहास में कई बार हमारे बुजुर्गों ने जो बातें समय सापेक्ष भाव से कहीं, हम उनके अर्थ भी अपने हिसाब से लगा लेते हैं। वस्तुत: जो लोग गोकशी का समर्थन करते हैं, अक्सर उन्हें 1958 उच्चतम न्यायालय का निर्णय और महात्मा गांधी याद आते हैं। तत्कालीन समय में सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने फैसला दिया था कि सभी उम्र की गायों (बछड़ों को छोड़कर) जो दूध देने या वजन उठाने में सक्षम नहीं हैं, उनका वध किया जा सकता है। अदालत ने ऐसे मवेशियों को “बेकार” के रूप में वर्गीकृत किया था। किंतु चार दशक बाद, 2005 में, शीर्ष अदालत ने पशु वध पर पूर्ण प्रतिबंध सर्वमान्य किया, भले ही गोवंश अनुपयोगी या उपयोगी क्यों न हो। इस निर्णय में दिलचस्प बात यह है कि अन्य बातों के अलावा, न्यायालय ने अपनी बात सिद्ध करने के लिए महात्मा गांधी, विनोबा, महावीर, बुद्ध, नानक और अन्य महापुरुषों की यह भारत भूमि है, हमें यह याद दिलाया और कहा कि कमज़ोर को अधिक सुरक्षा और करुणा की आवश्यकता है, इसलिए हमें गाय का वध नहीं जीवन में उसका अधिकतम उपयोग करना चाहिए।
महात्मा गांधी ने समय-समय पर गाय की वकालत की है। गांधी कहते हैं, वह (गाय) अपनी आंखों की भाषा में हमसे यह कहती प्रतीत होती है : ईश्वर ने तुम्हें हमारा स्वामी इसलिए नहीं बनाया है कि तुम हमें मार डालो, हमारा मांस खाओ अथवा किसी अन्य प्रकार से हमारे साथ दुर्वव्यहार करो, बल्कि इसलिए बनाया है कि तुम हमारे मित्र तथा संरक्षक बन कर रहो।” ( यंग इंडिया, 26.06.1924)। गांधीजी का मानना था कि गौ हत्या का कलंक सिर्फ भारत से ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया से बंद होना चाहिए। इसके लिए भारत से यह कार्य शुरू हो, यह वह चाहते थे। उन्होंने लिखा है – ”मेरी आकांक्षा है कि गौ रक्षा के सिद्धांत की मान्यता संपूर्ण विश्व में हो। पर इसके लिए यह आवश्यक है पहले भारत में गौवंश की दुर्गति समाप्त हो और उसे उचित स्थान मिले” – (यंग इंडिया, 29-1-1925)।
इस तरह से महात्मा गांधी कई अवसरों पर सीधे तौर पर गाय की वकालत करते नजर आते हैं। वह गौ सेवा को भारत की अर्थव्यस्था के लिए महत्व दिया करते थे। निश्चित ही गौवंश भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक व्यवस्था से सीधे जुड़े हुए हैं।
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