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देश का सबसे बड़ा भूभाग और महज एक प्रतिशत पानी

विश्व जल दिवस (22 मार्च) पर विशेष: कभी सरस्वती नदी के किनारे रंगमहल सभ्यता की बसावट थी। वोल्गा, नील और सिंधु घाटी से भी पुरानी इस सभ्यता में कुएं, नालियां और कुदरत से तालमेल वाले रहन-सहन के भी प्रमाण हैं।

WEB DESK by WEB DESK
Mar 18, 2023, 10:36 pm IST
in भारत, राजस्थान
राजस्थान के ज्यादातर हिस्से में रेगिस्तान है, मगर पहाड़ भी हैं, जंगल भी, और बांध, नहर, तालाब और अगल-बगल से बहकर आती नदियां भी

राजस्थान के ज्यादातर हिस्से में रेगिस्तान है, मगर पहाड़ भी हैं, जंगल भी, और बांध, नहर, तालाब और अगल-बगल से बहकर आती नदियां भी

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भूभाग के लिहाज से देश के सबसे बड़े क्षेत्र राजस्थान के हिस्से देश में मौजूद कुल पानी का सिर्फ एक प्रतिशत ही है। और इसमें भी साफ पानी का संकट है। पानी के परम्परागत स्रोतों की अनदेखी का खामियाजा यह है कि ऐसे सैकड़ों शहर, कस्बे और गांव हैं जहां पीने का पानी नहीं बचा है। जल-आन्दोलन की जरूरत सबको महसूस हो रही है

राजस्थान के ज्यादातर हिस्से में रेगिस्तान है, मगर पहाड़ भी हैं, जंगल भी, और बांध, नहर, तालाब और अगल-बगल से बहकर आती नदियां भी। यहां के इलाके में कभी सरस्वती नदी के किनारे रंगमहल सभ्यता की बसावट थी। वोल्गा, नील और सिंधु घाटी से भी पुरानी इस सभ्यता में कुएं, नालियां और कुदरत से तालमेल वाले रहन-सहन के भी प्रमाण हैं। मगर सूखे का जो अभिशाप राजस्थान के हिस्से आया, उसने पानी को सहेजने के लिए उन्नत अभियांत्रिकी और परम्परागत जानकारी के मेल से बरसात से अपनी प्यास को बुझाना सिखाया। वास्तु और विज्ञान की छाप वाली जो जल-संरचनाएं समाज की सूझ-बूझ से उपजीं, उन्हें राजा-महाराजाओं, जमींदारों, सेठों और धनाढ्य वर्ग ने स्थापत्य से और सजाया।

जिस जल प्रबंधन की झलक हड़प्पा की खुदाई तक में मिलती है, उसे आधुनिक दौर में और पनपने का मौका मिला। पानी से भरपूर इलाकों ने कमी वाले इलाकों में बांध और नहरों से उसकी भरपाई की। राजस्थान में सबसे पहले गंगा नहर बनी और बाद में इंदिरा गांधी कैनाल ने पानी को सूखे इलाकों के ओर मोड़ा। इस नहर के पानी घर और खेतों तक पहुंचने से पश्चिमी राजस्थान में तब्दीली तो हुई है। खेती और पशुपालन को सहारा मिलने से पलायन थमा है फिर भी असल दुश्वारियां कायम हैं। धरती पर मौजूद कुल पानी का सिर्फ तीन प्रतिशत ही है जो साफ है, पीने लायक है, बाकी जमा हुआ है। राजस्थान, जो भू-भाग के लिहाज से देश का सबसे बड़ा इलाका है, उसके हिस्से तो देश में मौजूद कुल पानी का सिर्फ एक प्रतिशत ही है। और इसमें भी साफ पानी का संकट है। यूं देश की करीब सवा दो लाख आबादी को साफ पानी नसीब नहीं है। हाल ही में केन्द्रीय पेयजल स्वच्छता मंत्रालय की रिपोर्ट में सामने आया कि देश की कुल 70,340 बस्तियों को पीने का साफ पानी नहीं मिल रहा। इनमें से सबसे ज्यादा यानी 19,573 बस्तियां अकेले राजस्थान में हैं। यहां के पानी में फ्लोराइड है, नाइट्रेट है, खारापन है। बारिश कम होने, बांध सूखने और जमीन की नमी खत्म होने से किल्लत तो है ही। मगर पानी के परम्परागत स्रोतों की अनदेखी का खामियाजा यह है कि ऐसे सैकड़ों शहर, कस्बे और गांव हैं जहां पीने का पानी बिल्कुल नहीं बचा है।

जल जीवन की रफ़्तार

जल जीवन मिशन की रफ्तार जिस प्रदेश में सबसे तेज होनी चाहिए, वहां वह राजनीति और भ्रष्टाचार की शिकार है। पानी के काम में देश के 33 राज्यों में 32वें पायदान पर खिसके प्रदेश में महज 24 प्रतिशत घरों में नल हैं। राजस्थान में और गांवों में बसी बड़ी आबादी आज भी कई किलोमीटर पैदल चलकर पानी लाती है या टैंकरों के भरोसे गुजर-बसर करती है। हर साल जब गर्मी चरम पर होती है तो नहर की मरम्मत का काम शुरू होता है और पानी की सप्लाई बन्द होने से टैंकरों की चांदी हो जाती है। यानी पानी तो जैसे-तैसे मुहैया हो जाता है लेकिन जेब हल्की करने के बाद।

Topics: जल संरक्षणWater Conservationworld water dayविश्व जल दिवसराजस्थान में पानीराजस्थान जल संरक्षणजल पर लेख
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