स्वामी दयानंद सरस्वती ने भारत की विराट संस्कृति से भारतीयों के आत्मविश्वास को जगाया

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Mahak Singh

स्वामी दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती के अवसर पर अखिल भारतीय साहित्य परिषद सीकर इकाई द्वारा सीकर के सीएलसी सभागार में ‘आर्य समाज का साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक योगदान’ विषय पर एक भव्य प्रांतीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। उद्घाटन सत्र में विषय प्रवर्तन करते हुए प्रांत अध्यक्ष डॉ. ओमप्रकाश भार्गव ने आर्य समाज का योगदान बताते हुए वर्तमान को अतीत से जोड़ने एवं राष्ट्रीयता का बोध कराने का आह्वान करते हुए कहा, ‘‘स्वामी जी ने बहुत पहले ही देश में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए जन मानस में जागृति का कार्य आरंभ कर दिया था।”

‘वेदों की और लौटो’ का नारा देकर भारतीयों में भारत की विशाल संस्कृति और साहित्य के माध्यम से स्वाभिमान और आत्मविश्वास जागृत किया गया। वेदों को सरल एवं सहज भाषा में प्रस्तुत कर उन्हें लोकप्रिय बनाने में स्वामी जी का सबसे बड़ा योगदान था। वर्तमान समय में सभी भारतीयों को स्वामी जी से प्रेरित होकर भारत के प्रति जागरूक होना चाहिए।

बीज वक्ता डॉ. अशोक महला ने स्वामी दयानंद के विचारों को भारतीय पुनर्जागरण और सामाजिक उत्थान के लिए प्रेरणादायक बताया और कहा कि स्वामी जी ने न केवल आध्यात्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में बल्कि मानव कल्याण के लिए भी समर्पण भाव से काम किए। उन्होंने कहा कि स्वामी जी के विचारों को क्रियान्वित करके भारत आज भी विश्व गुरु बन सकता है।

अध्यक्षीय भाषण में क्षेत्रीय अध्यक्ष डॉ. अन्नाराम शर्मा ने साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय चिंतन में स्वामी दयानंद के योगदान पर प्रकाश डालते हुए कहा, स्वामी दयानंद भारतीय एकता के लिए समर्पित गौरवशाली व्यक्तित्व थे। उनकी मनमोहक एवं सरल भाषा शैली ने करोड़ों लोगों को आकर्षित किया। स्वामी जी कुरीतियों और आडंबरों पर व्यंग्यात्मक ढंग से प्रभावी प्रहार करते थे। गांधी जी के नमक आंदोलन का प्रवर्तन वे 50 वर्ष पूर्व सत्यार्थ प्रकाश में कर चुके थे। गांधीजी ने स्वीकार किया था कि आर्य समाज ने जहां भी काम किया, उन्हें वहां एक पृष्ठभूमि मिल गई। स्वदेशी, स्वराज, स्वभाषा एवम जातिभेद आदि समस्याओं के समाधान की अपार संभावनाएं है। नए भारत के निर्माण में इन्हें प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

श्री करणी माता मंदिर, पालवास के महंत चंद्रमादासजी ने आशीर्वचन देते हुए कहा कि भारत की संस्कृति के रक्षण व उसके विस्तार में स्वामी दयानंद की बहुत ही भूमिका महत्पूर्ण थी। उन्होंने जीवन भर भारत के सांस्कृतिक और सामाजिक उत्थान के लिए काम किया।
समापन सत्र में संबोधन करते हुए क्षेत्रीय संगठन मंत्री डॉ.विपिन बिहारी पाठक ने औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति के लिए स्वामीजी के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा, ”उन्होंने भारतीय जनमानस का दृष्टिकोण बदलने के लिए कई डीएवी संस्थानों की स्थापना की। यह उनका महान सांस्कृतिक जागरूकता का अभियान था। उन्होंने अपने जीवन का प्रत्येक क्षण और अपने शरीर का प्रत्येक कण राष्ट्र की एकता और भारतीय समाज की सेवा के लिए समर्पित कर दिया। वर्तमान में भारतीयों को स्वामी दयानंद से प्रेरणा लेकर अपने ‘स्व’ के प्रति जागरूक होना चाहिए।

अतिथियों के स्वागत उद्बोधन में साहित्य परिषद के जिला संरक्षक के प्रतिनिधि श्रवण चौधरी एवं सीएलसी के सीओओ समर चौधरी ने विद्वानों का स्वागत करते हुए सेमिनार के आयोजन को संस्थान का सौभाग्य बताया।

संगोष्ठी में दो तकनीकी सत्र सहित कुल चार सत्रों का आयोजन किया गया। प्रथम तकनीकी सत्र में डॉ. साधना जोशी ने महिला सशक्तिकरण, विधवा पुनर्विवाह, बहुविवाह, बाल विवाह आदि पर स्वामी जी के विचार प्रस्तुत किए। प्रांत महामंत्री श्री राजेंद्र शर्मा ‘मुसाफिर’ द्वारा ‘सत्यार्थ प्रकाश’ की लोकप्रियता एवम स्वामी जी के हिंदी भाषा के लिए किए गए प्रयासों पर व्यापक प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सत्यार्थ प्रकाश का हिंदी में लेखन उनके राष्ट्रभाषा प्रेम का महत्वपूर्ण उदाहरण है।

डॉ. संजय यादव ने स्वामी जी द्वारा सामाजिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में किए गए कार्यों पर अपना सम्बोधन दिया। श्री बजरंग सिंह चारण ने स्वामीजी के राष्ट्रीय चेतना के विचारों के संबंध में उद्बोधन दिया।दूसरे तकनीकी सत्र में क्षेत्रीय महासचिव डॉ. केशव शर्मा ने स्वामीजी के वेदों के अध्ययन से भारतीय संस्कृति के पुनरुद्धार पर वक्तव्य दिया। डॉ. रवीन्द्र उपाध्याय ने कहा कि वेदों का सत्य अर्थ समझाना ही सत्यार्थ प्रकाश का निहितार्थ है। श्री कर्ण सिंह बेनीवाल ने स्वामी दयानंद एवम आर्य समाज के द्वारा समाज, साहित्य, संस्कृति व राष्ट्रीय जागरण में समग्र योगदान पर विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया। श्री दीपक कुमार ने विशिष्ट व सरल विधि से स्वामी दयानंद के भारतीय समाज के लिए किए गए योगदान को प्रस्तुत किया। श्री आलोक जांगिड़ ने तत्कालीन आडंबरों के निराकरण एवं सत्यार्थ प्रकाश की उपयोगिता पर प्रकाश डाला।

संगठनात्मक सत्र में क्षेत्रीय संगठन मंत्री डॉ विपिन बिहारी पाठक, डॉ. अन्नाराम शर्मा एवं डॉ. ओमप्रकाश भार्गव का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। जिला अध्यक्ष श्री सज्जन सिंह ने सभी का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में प्रांत संगठन मंत्री श्री जगदीश माली, उमराव लाल वर्मा, हेमेंद्र खीचड़ बलवीर सिंह, योगी लाल शर्मा, पवन शर्मा, व नरेश कुमावत सहित प्रांत भर से सैंकड़ों विद्वान उपस्थित रहे। श्री शशि चिंतन शर्मा, विजय सोनी संतोष भार्गव व प्रांत महामंत्री राजेंद्र शर्मा ‘मुसाफिर’ ने सत्रों का संचालन किया। संगोष्ठी में जयपुर प्रांत के 154 साहित्यकारों ने भाग लिया।

इस अवसर पर अखिल भारतीय साहित्य परिषद की मुख्य पत्रिका ‘हमारी परीक्षा’ के जयपुर प्रदेश अध्यक्ष डॉ. ओम प्रकाश भार्गव द्वारा संपादित आर्य समाज पर विशेषांक का विमोचन किया गया। विभाग संयोजक श्री जियाराम सारण ने सेमिनार आयोजन की व्यवस्थाओं के बारे में विशेष जानकारी प्रदान की।

 

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