भारत की प्राकृतिक शोभा को बसंत ऋतु सुहावनी, अद्भुत और ज्यादा आकर्षक बना देती है। जिसके कारण इस ऋतु को ऋतु राज भी कहा जाता है। मन में उमंग भर देने वाली इस ऋतु में पौधों , वृक्षों पर नए-नए पत्ते निकलते हैं और सुंदर-सुंदर फूलों से वाटिकाओं में नव जीवन आ जाता हैं। रंग बिरंगी तितलियां फूलों पर चहकती नजर आती हैं। चम्पा, चमेली, गुलाब और अन्य फूल वातावरण में अपनी महक से यौवन भर देती हैं। बसंत का आगमन प्राणियों में स्फूर्ति ला देता है और मौसम भी सर्दी के जाने की सूचना देता है। इसीलिए कहते है “आई बसंत पाला उड़नत”। हर ओर नवीनता, उत्साह और स्फूर्ति दिखाई देती है। इस ऋतु में नए रक्त का संचार होता है और इन दिनों में सुबह सैर करने का स्वास्थ्य को सबसे ज्यादा लाभ मिलता है, जिस कारण ही महिलाएं सीतला माता के दर्शनों और पूजा के लिए शहर से बाहर बने मंदिरों में लगातार 40 दिनों तक जाती हैं।
बाल हकीकत राय
इसी बसंत पंचमी के दिन मुगल शासकों ने धर्म की रक्षा के लिए छोटे बाल हकीकत राय को बलिदान कर दिया था। जिसकी याद में कई जगहों पर इस दिन मेले लगते हैं। अपना बलिदान देकर देश को धन्य करने वाले इस बालक का जन्म 1719 में पंजाब के सियालकोट के संम्पन्न परिवार में पिता भागमल के घर माता गौरां की पवित्र कोख से हुआ था। मां के धार्मिक विचारों की छाप हकीकत के जीवन पर पड़ी जिसने छोटी आयु में ही धर्म की रक्षा के लिए अपना शीश कटवा दिया लेकिन हिन्दू धर्म नहीं छोड़ा। पिता चाहते थे कि बेटा पढ़ लिखकर अच्छी सरकारी नौकरी करे परंतु फारसी सीखे बिना ऐसा संभव नहीं था। इसलिए पिता ने हकीकत को फारसी सीखने के लिए मदरसे में भेज दिया था। जहां हकीकत अपनी तेज बुद्धि से सब कुछ ग्रहणकर प्रथम आने लगा। जिससे मुस्लिम बच्चे हकीकत से ईर्ष्या करने लगे थे।
इसी दौरान हकीकत के माता-पिता ने गुरदासपुर जिले के बटालानगर के कृष्ण सिंह और भागवती की सुंदर, सुशील और दयावान लड़की से उसकी शादी कर दी और पूरा परिवार खुशी से रहने लगा।
मदरसे में एक दिन मौलवी नहीं थे तो मुस्लिम बच्चों ने मां भगवति को हकीकत के सामने अपशब्द कहे जिसे सहन करना असंभव था तो हकीकत ने भी कह दिया कि ऐसा ही मैं यदि बीबी फातिमा को कहूं तो ? सहपाठियों ने मौलवी के आने पर यह बात उन्हें बतादी जिससे मौलवी आग बबूला हो गए और इस बात को स्यालकोट के मिर्जा बेग की अदालत में ले गए। वहां भी हकीकत ने वही बात बताई जिससे मिर्जा भी नाराज हो गए और उसने शाही मुफ्ती काजी सुलेमान का मशवरा लिया जिसने हकीकत को जान बचाने के लिए मुसलमान होने को कहा परंतु हकीकत के “ऐसा नहीं होगा” कहने पर केस को लाहौर भेज दिया गया। वहां भी उन्होंने कहा “इस्लामी शरह अनुसार इसकी सजा केवल मौत है या इस्लाम कबूल करना”। इस पर बाल हकीकत ने कहा “मुझे है धर्म प्यारा, हंस के मैं बलिदान हो जाऊं, मुसलमान होने से बेहतर है कि मैं कुर्बान हो जाऊं”। हकीकत ने शासक से कहा कि यदि मरना ही है तो हिन्दू ही क्यों न मरा जाएं, जिससे आग बबूला हो उसे मौत की सजा सुना दी गई। 4 फरवरी 1734 को बसंत पंचमी के दिन जल्लाद ने बाल वीर हकीकत राय का तलवार से सिर धड़ से अलग कर बलिदान कर दिया। लाहौर के हिंदुओं ने शालीमार बाग के पास उनका अंतिम संस्कार कर दिया और समाधि बना दी। वीर हकीकत के बलिदान का पंजाब के हिंदुओं पर बहुत असर पड़ा। हिन्दू जग उठा और उन्होंने मुगल शासन की ईंट से ईंट बजा दी। पंजाब में हर वर्ष बसंत पंचमी को वीर हकीकत का बलिदान दिवस मनाया जाता है। उधर पति के बलिदान को सुनते ही उनकी पत्नी लक्ष्मी जो उस समय अपने मायके बटाला में थीं ने खुद को सती कर लिया। बटाला में उनकी समाधि पर हर वर्ष भारी मेला लगता है।
मां सरस्वती जी का जन्म दिवस
बसंत पंचमी को ही विद्या और कला की देवी मां सरस्वती का प्राक्टय दिवस भी मनाया जाता है। मां सरस्वती के बारे में कहते हैं कि जब भगवान ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु जी से आज्ञा पाकर सृष्टि की रचना करते समय मनुष्य और जीव-जंतु योनि की रचना की तो सामने बिल्कुल सन्नाटा पाया तो उन्होंने अपने कमण्डल में से कुछ जल लेकर कमल के फूल पर छिड़का जिससे श्वेत वस्त्र धारण किये 4 हाथों वाली एक सुंदर स्त्री, जिसके एक हाथ में वीणा थी तथा दूसरे हाथ में वरमुद्रा थी तथा अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी, लिए हुए अति सुंदरी प्रकट हुईं तो ब्रह्मा जी ने उसे वीणा बजाकर इस सृष्टि की चुप्पी और सन्नाटे को तोड़ने को कहा। ब्रह्मा जी की आज्ञा पाकर उस देवी ने इस सृष्टि में वीणा का मधुर नाद किया। जिस पर संसार के समस्त जीव-जंतुओं में वाणी व जल धारा कोलाहल करने लगी तथा हवा सरसराहट करने लगी। तब ब्रह्माजी ने उस देवी को ‘वाणी की देवी सरस्वती’ का नाम दिया।
मां सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादिनी और वाग्देवी आदि कई नामों से भी जाना जाता है। ब्रह्माजी ने माता सरस्वती की उत्पत्ति बसंत पंचमी के दिन की थी, यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष बसंत पंचमी के दिन ही देवी सरस्वती का जन्मदिन मानकर पूजा-अर्चना की जाती है।
सतगुरु राम सिंह
स्वतंत्रता संग्राम की अलख जगाकर नई शक्ति और स्फूर्ति का संचार कर स्वतंत्रता के लिए लड़ने को प्रेरित करने वाले नामधारी सतगुरु राम सिंह जी का जन्मदिन भी बसंत पंचमी को ही मनाया जाता है। इस महान आत्मा का जन्म 3 फरवरी 1816 को बसंत पंचमी को पंजाब के लुधियाना के पास गांव भैणी में हुआ था। इन्होंने बड़े होकर अपने तप, संयम और विश्वास से घर-घर, गांव-गांव जाकर स्वतंत्रता का बीज बोया था। अंग्रेजों के डर और अत्याचार से घरों में दुबककर बैठे हिन्दू समाज में जागृति और स्फूर्ति पैदा कर आजादी का बिगुल बजाया और देश की आजादी के लिए लड़ने वाले नौजवान तैयार किए।
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म बसंत पंचमी को ही मनाया जाता है। बंगाल की महिषादल रियासत जिला मेदिनीपुर में 21 फरवरी, सन् 1899 में मंगलवार को हुआ था। बसंत पंचमी पर उनका जन्मदिन मनाने की परंपरा 1930 में प्रारंभ हुई थी। उनके पिता पंडित रामसहाय तिवारी उन्नाव (बैसवाड़ा) के रहने वाले थे और महिषादल में सिपाही की नौकरी करते थे। वे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़ाकोला नामक गांव के निवासी थे।
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