हल्द्वानी । बनभूलपुरा क्षेत्र में कट्टरपंथी दंगाइयों ने जो उपद्रव किया वह कोई अप्रत्याशित घटना नहीं थी। दंगाइयों ने इसकी बहुत पहले से तैयारी की हुई थी। दंगाइयों द्वारा मचाए गए उपद्रव में पुलिस, हिंदू पत्रकार, और नगर पालिका के कर्मचारी व स्थानीय हिंदू नागरिक घायल हो गए। जिनमे से कईयों की हालत गंभीर है।
इसी घटना में घायल हुए स्थानीय पत्रकार पंकज ने पाञ्चजन्य से बात करते हुए बताया कि उच्च न्यायालय के आदेश के बाद ही नगर निगम की टीम सरकारी भूमि पर बने अवैध निर्माण को तोड़ने गई थी। इसी क्रम में मैं भी समाचार कवरेज की दृष्टी से वहां पहुंचा। शुरुआत में कुछ लोगों ने हो हल्ला मचाना शुरू किया लेकिन प्रशासन और नगर निगम की टीम अपना काम करती रही। सुनियोजित ढंग से जिस जगह को कब्जा कर अवैध निर्माण किया गया था उसको ध्वस्त कर दिया गया।
इसके बाद पहले से तैयारी कर बैठे हुए लोगों ने पथराव करना शुरू कर दिया। हम जब तक कुछ समझ पाते तब तक पथराव इतनी तेज हो गया जैसे असमान से ही पत्थरों की बरसात हो रहीं हो। थोड़ी देर बाद जिन बोतलों को हम पानी पीकर फेंक देते हैं उन बोतलों में पैट्रोल भरकर ये लोग उसे पैट्रोल बम की तरह उपयोग कर रहे थे और हमारे ऊपर फेंक रहे थे।
अचानक भीड़ के हाथ में हमें अवैध तमंचे और कट्टे और धारदार हथियार दिखाई दिए। वह लोग लगातार अंधाधुंध फायर कर रहे थे। वाहनों को आग लगा लगा कर भागने के सभी रास्ते बंद कर रहे थे। इन दंगाइयों में बच्चें बुजुर्ग युवा और महिलाएं शामिल थीं, अधिकत्तर महिलाओं ने बुर्का पहन रखा था। वह इस तरह से पथराव कर रहीं थीं मानो की कहीं से ट्रेनिंग ले रखी हो।
पत्रकार पंकज से आगे कहा कि “अपनी जान बचाकर भाग रहा मैं उस समय अधिक अचंभित रह गया जब दंगाइयों को पत्रकारों, और अन्य लोगों का नाम पूछते देखा और उनका आईकार्ड चेक करते देखा। वे लोग जो मुस्लिम होता उसे छोड़ देते और हिन्दुओं को निशाना बना रहे थे। इस दौरान दंगाई भीड़ लगातार अल्लाह हू अकबर… सर तन से जुदा जैसे कई मजहबी नारे लगा रही थी”.
खून की प्यासी दंगाई भीड़ ने कई हिंदू पत्रकारों को तो जान से मारने में कोई कसर नहीं छोड़ी, 2 लोगों को तो सटाकर गोली मारने का परयसा रहा लेकिन हथियरों के वैध होने से उससे गोली नहीं चल पाई. आज हल्द्वानी के अस्पतालों को जाकर देखेंगे तो आपको एक भी मुस्लिम पत्रकार घायल नहीं दिखेगा सब जगह हिंदू पत्रकार ही गंभीर घायल भर्ती दिखेंगे।
अगर उस समय वहां गांधी नगर के हिंदू नहीं होते तो वहां से किसी का भी जिंदा निकलना नामुमकिन था। दंगे के वक्त गाँधीनगर निवासी हिंदू ही देवदूत बनकर सामने खड़े हुए तब जाकर सभी जान बच पाई।
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