आम चुनाव से ठीक पहले, मोदी सरकार द्वारा प्रस्तुत अंतरिम बजट तेजी से बढ़ते भारत की तस्वीर पेश करता है। सरकार ने जहां प्रौद्योगिकी में लंबी छलांग का खाका खींचा है वहीं गरीबों, नौजवानों, किसानों और महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान किए हैं। जरूरी चीजों की कीमतों को बढ़ने नहीं दिया है
वक्त बदल रहा है। और देखते-देखते बहुत कुछ बदल गया है। जो उस बदलाव को भांप रहा है, वह आगे जा रहा है। पिछले कुछ सालों में भुगतान करने के तौर-तरीके बदल चुके हैं। आनलाइन भुगतान किया जा रहा है। ‘क्यूआर कोड’ के जरिये भुगतान हो रहा है। ऐसे बहुत से नौजवान मिल जाएंगे, जो अब जेब में नकद लेकर चलते ही नहीं। जेब में मोबाइल हो, तो हर तरह का भुगतान हो जाता है। प्राइस वाटर हाऊस नामक संस्था के आकलन के अनुसार, 2026-27 तक रोज करीब 100 करोड़ यूपीआई (यूनिफाईड पेमेंट्स इंटरफेस) लेन-देन होंगे। तकनीक पर निवेश अब अर्थव्यवस्था में ही निवेश है।
एक फरवरी को प्रस्तुत केन्द्र सरकार के अंतरिम बजट 2024-25 में एक लाख करोड़ रुपये तकनीकी उद्यमियों के लिए प्रस्तावित किए गए हैं। यानी एक लाख करोड़ रुपये के कोष से नौजवानों की बहुत रियायती दर पर मदद की जायेगी, ताकि वे नये-नये विचारों को उद्यमों में बदल सकें। स्टार्ट अप से जुड़े कारोबारी जानते हैं कि उन्हें धन जुटाने में बहुत दिक्कत आती है। अगर सरकार की तरफ से सस्ती दर पर संसाधन उपलब्ध कराए जाएं, तो मदद की एक नयी राह खुल सकती थी। गौरतलब है कि 2023 में स्टार्ट अप कारोबारों के लिए संसाधनों का संकट खड़ा होता दिखाई दिया था।
2023 में स्टार्ट अप कारोबारों के लिए कोष उपलब्धता में करीब 60 फीसदी की कमी दर्ज की गई। भारत में तकनीकी उद्यमियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, अगस्त 2022 में देश में करीब 3000 ऐसे स्टार्ट अप्स थे, जो उच्च स्तरीय तकनीक के क्षेत्र में काम कर रहे थे। इन सारे उद्यमों को एक महत्वपूर्ण सहारा मिलेगा।
स्टार्ट अप्स को लंबे समय के लिए अगर सस्ता कर्ज मिल जाए, तो स्थितियों में बुनियादी बदलाव संभव है। अभी कई स्टार्ट अप्स कारोबारों को संसाधन मिलते हैं, तो साथ में उन संसाधन प्रदाताओं का नियंत्रण भी आता है, जो किसी भी वित्तीय मदद के साथ आता है। फिर ऐसी मदद देने वाले बहुत जल्दी ही मुनाफे की आशा करते हैं, जिसे नयी तकनीक के क्षेत्र में कई बार हासिल करना संभव नहीं होता। ऐसी सूरत में कई बार संभावना वाले स्टार्ट अप कारोबारों के लिए संकट पैदा हो जाता है।
अर्थव्यवस्था जैसे-जैसे विकास के पथ पर अग्रसर होती है, वैसे-वैसे उसकी तकनीकी जरूरतें बदलती जाती हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था के नीति निर्धारकों को यह बात समझ में आ गयी है कि अब ठोस अनुसंधान पर काम जरूरी है। देश के एक प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने नारा दिय़ा था-जय जवान, जय किसान। एक और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसमें जय विज्ञान को जोड़ा। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसमें जय अनुसंधान को जोड़ा है। ठोस अनुसंधान पर आधारित उत्पादों का निर्यात आसानी से हो सकता है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में हाल तक ठोस अनुसंधान की बड़ी भूमिका रही है। अब अमेरिका तमाम वजहों से शोध वगैरह के मामले में उतना गतिशील नहीं रहा। भारत के पास मौका है कि वह शोध के मामले में आगे बढ़कर कुछ नया हासिल करे।
गौर करने की बात यह है कि अमेरिका ने विश्व में जो अगुआ भूमिका हासिल की, उसमें तकनीकी विकास की महत्वपूर्ण भूमिका थी। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और एप्पल जैसे बड़े अमेरिकी ब्रांडों के पीछे एक तकनीकी मजबूती है। वह तकनीकी मजबूती भारतीय अर्थव्यवस्था में क्यों नहीं हो सकती? क्यों भारत सिर्फ इस बात पर ही गर्व करता रहे कि एप्पल, गूगल वगैरह के मुख्य अधिकारी भारतीय हैं? असल मुद्दा यह है कि गूगल, एप्पल, माइक्रोसॉफ्ट जैसे संगठन भारतीय क्यों नहीं हैं।
यह सब एक झटके में नहीं होता। लंबी तैयारी करनी होती है। नाकाम होने की तैयारी भी करनी होती है। नौजवानों को रियायती दर पर संसाधन उपलब्ध कराने होते हैं। अगर यह हो पाए, तो देर-सवेर महत्वपूर्ण तकनीकी संगठनों की जन्मभूमि भारत में भी बन सकती है। भारत सिर्फ ऊंची नौकरी करने वालों का देश ही क्यों रहे, कुछ बुनियादी महत्व का ऐसा काम भी हो यहां, जिसके आधार पर वैसे दुनिया चले, जैसे गूगल वगैरह के आधार पर चलती है।
पुराने शब्द, नये आशय
केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अंतरिम बजट पेश करते हुए कहा कि एफडीआई का मतलब है ‘फर्स्ट डेवलप इंडिया’ यानी पहले भारत का विकास करो। एफडीआई का सामान्य मतलब होता है-‘फॉरेन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट’ यानी ऐसा निवेश जो विदेश से आता है तमाम फैक्ट्रियों, संयंत्रों में। अब इसमें यह आयाम जुड़ा है कि पहले भारत का विकास करो यानी भारतीय उद्यमों और ग्राहकों की जरूरत के हिसाब से काम हो। विदेशी निवेश करने वाले सिर्फ अपने ही हितों का ख्याल ना करें, बल्कि भारतीय हितों का ख्याल भी करें, ऐसा नजरिया सामने आया है। मतलब हर विदेशी निवेश का नहीं, सिर्फउस विदेशी निवेश का स्वागत होगा, जो भारतीय हितों के अनुरूप होगा।
जीडीपी से आशय होता है-‘ग्रास डोमेस्टिक प्रोडक्ट’। अब जीडीपी से नया आशय है-‘गर्वनेंस, डेवलपमेंट एंड परफॉरमेंस’। पुराने शब्द नये आशय ग्रहण कर रहे हैं। सही प्रशासन न हो, सही परिणाम न हों, तो अर्थव्यवस्था पर विमर्श निरर्थक है। लक्ष्य और परिणाम पर बात सिर्फ निजी कॉर्पोरेट सेक्टर की चिंता का ही विषय नहीं है, बल्कि लक्ष्य और परिणाम की चिंता सरकार के स्तर पर भी होनी चाहिए और जब यह होती है तो स्थिति में बदलाव साफ दिखता है।
ज्ञान यानी ‘गरीब, यूथ,अन्नदाता और नारी’ का नया विमर्श चल रहा है। कुल मिलाकर पुराने ही शब्दों के नये आशय सामने आ रहे हैं। विश्व की अर्थव्यवस्थाओं में 5वें नंबर पर आकर भारतीय अर्थव्यवस्था ने अपनी क्षमताओं को साबित किया है। पर सच बात यह है कि संभावनाएं बहुत हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था 5वें नंबर से बहुत आगे जा सकती है। उसे जाना भी है। प्रधानमंत्री ने कई अवसरों पर इसकी गारंटी दी है। इसलिए इसकी नींव लगातार मजबूत होना जरूरी है। जिस तरह से तकनीकी अर्थव्यवस्था को नई गति देने की बात इस अंतरिम बजट में की गई है, उससे साफ होता है कि जल्दी ही भारत तीसरे नंबर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा, फिर देर-सवेर नंबर एक पर जाना ही है। यही भारतीय अर्थव्यवस्था की सही जगह है। जनसंख्या के मामले में नंबर एक देश होने के बाद अंर्थव्यवस्था में नंबर एक की जगह हासिल करना उसके लिये चुनौती भी है, और दायित्व भी।
राजकोषीय घाटा हो रहा संतुलित
अंतरिम बजट के अनुसार, 2023-24 में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 5.8 प्रतिशत रहेगा। 2024-25 में यह राजकोषीय घाटा 5.1 प्रतिशत रहने के अनुमान हैं। 2025-26 में राजकोषीय घाटा 4.5 प्रतिशत रहने के अनुमान हैं। राजकोषीय घाटा अब संतुलन की ओर जा रहा है। कोविड के बाद दुनिया भर के तमाम देशों की अर्थव्यवस्थाओं का हाल खराब हो गया था। पर यह महत्वपूर्ण तथ्य है कि आम चुनाव से ठीक पहले पेश इस बजट में सरकार ने यह संयम बरता है। अनुशासन में रहकर बजट पेश किया है।
भारत और मालदीव के बीच हाल में एक विवाद खड़ा हो गया था। मालदीव सरकार के कुछ महत्वपूर्ण लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी के लक्षद्वीप दौरे पर आपत्ति जताई थी। अब अंतरिम बजट में पर्यटन विकास की बात कही गयी है। पर्यटन अपने आप में महत्वपूर्ण क्षेत्र है, उस पर जल्द से जल्द काम होना चाहिए, पर यह सिर्फ केंद्र सरकार की इच्छा का विषय नहीं है। राज्य सरकारों का सहयोग भी इसमें जरूरी है। भारतीय पर्यटन के क्षेत्र में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
प्रति व्यक्ति आय करीब 9 साल में दोगुनी होकर 1 लाख 97 हजार रुपये हो गई है। बीते 9 साल में अर्थव्यवस्था विश्व में 10वें नंबर से उठकर 5वें नम्बर पर आ गई है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत 11.7 करोड़ शौचालय निर्मित हुए हैं। अर्थव्यवस्था में विनिर्माण कहीं भी हो, उससे एक सकारात्मक चक्र पैदा होता है। सीमेंट, सरिये से लेकर तमाम चीजों की बिक्री बढ़ती है। कोई भी विनिर्माण एक तरह से अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक ही होता है। उज्ज्वला योजना में करीब 9.6 करोड़ गैस कनेक्शन दिये गए हैं। 47.8 करोड़ पीएम जनधन बैंक खाते खोले गए हैं। 11 करोड़ 40 लाख किसानों को 2.2 लाख करोड़ रुपये पीएम किसान सम्मान निधि के तहत दिए गए हैं।
विनिर्माण का सकारात्मक असर
इस बजट में एक महत्वपूर्ण घोषणा यह है कि पूंजीगत व्यय में उल्लेखनीय बढ़ोतरी की जाएगी, इसे 16.8 प्रतिशत बढ़ाकर 11,11,111 करोड़ रुपये किया गया है, जो जीडीपी का 3.4 प्रतिशत है। यह निश्चित ही बहुत बड़ी बढ़ोतरी है। 2023-24 के संशोधित अनुमानों के अनुसार पूंजीगत व्यय 9 लाख 50 हजार करोड़ रु. है। 3 साल पहले यानी 2021-22 के आम बजट में कुल 5.9 लाख करोड़ रुपये के पूंजीगत व्यय की बात की गई थी। यानी 3 साल के अंदर यह रकम करीब दोगुनी हो गई।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि यह बजट विकसित भारत के 4 स्तंभों- युवा, गरीब, महिला और किसान-को सशक्त करेगा। बिहार के जाति सर्वेक्षण के बाद जाति की राजनीति पर नये सिरे से चर्चा शुरू हो गयी थी। इसके जवाब में प्रधानमंत्री का आशय है कि जातियां चार हैं-युवा, गरीब, महिला और किसान, इन्हें ताकत दी जाए, तो समाज सशक्त होता है।
बजट के खास 10 बिंदु
- पूंजीगत व्यय-परिव्यय वित्त वर्ष 2024—25 के लिए 11.1% बढ़कर हुआ 11.11 लाख करोड़ रुपए, इससे बुनियादी ढांचे को मिलेगा बढ़ावा तथा आर्थिक विकास को प्रोत्साहन
- वित्त वर्ष 2025 के लिए राजकोषीय घाटा जीडीपी का 5.1% तय हुआ, वित्त वर्ष 2026 तक इसे 4.5% से नीचे लाने का संकल्प
- विनिवेश लक्ष्य है 50,000 करोड़ रुपये, वित्त वर्ष 2024 के लिए इसे कम करके 30,000 करोड़ रुपये किया गया
- खाद्य सब्सिडी 1.97 लाख करोड़ रुपये से संशोधित होकर 2.12 लाख करोड़ रुपये हुई
- आयकर में 7 लाख रुपये तक की कर योग्य आय वाले व्यक्तियों के लिए धारा 87ए में छूट
- इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) के विनिर्माण और चार्जिंग के बुनियादी ढांचे को समर्थन, ईवी पारिस्थितिकी तंत्र के विस्तार एवं मजबूती के उपाय
- लगभग 40,000 रेल डिब्बों को किया जाएगा वंदे भारत मानकों के अनुसार उन्नत
- देश के विभिन्न क्षेत्रों में रेलवे नेटवर्क का विस्तार करने की योजना, संपर्क में सुधार लाने के मकसद से तीन नए रेलवे कॉरिडोर होंगे स्थापित
- आयुष्मान भारत का होगा विस्तार, सभी प्रमाणित सामाजिक स्वास्थ्य सक्रियता और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को किया जाएगा शामिल
- मातृ और शिशु देखभाल योजनाओं के एकीकरण से मिलेगी सुविधाजनक तथा प्रभावी स्वास्थ्य सेवा
बजट में है कि 40,000 सामान्य रेल डिब्बों को ‘वंदे भारत’ मानकों के अनुरूप बदला जाएगा। यह बहुत बड़ा कदम है। रेलवे में एक बदलाव आ रहा है। धीमे-धीमे रेलवे आधुनिकीकरण की तरफ बढ़ रहा है। अंतरिम बजट ने सरकार की पीठ थपथपायी यह बताकर कि देश में हवाई अड्डों की संख्या दोगुनी हो गई है और यह 149 पर पहुंच गई है। 517 नये हवाई मार्ग 1.3 करोड़ यात्रियों को उनके गंतव्य पर पहुंचा रहे हैं। देश की विमानन कंपनियों ने 1000 से ज्यादा नये विमानों के आर्डर दिए हैं। देश का विमानन क्षेत्र निश्चित तौर पर एक नई कहानी लिख रहा है। हवाई यात्राएं ज्यादा से ज्यादा लोगों की खरीद क्षमता के दायरे में आ रही हैं, यह सकारात्मक बात है।
कर रिटर्न प्रसंस्करण की औसत समय-सीमा 2013-14 में 93 दिन थी, यह घटकर 10 दिन रह गई है। तकनीक के मामले में इस सरकार का रिपोर्ट कार्ड जोरदार रहा है। कर प्रबंधन में तकनीक के इस्तेमाल से भ्रष्टाचार भी घटता है। अंतरिम बजट बताता है कि वर्ष 2014 में अर्थव्यवस्था में सुधार और प्रशासन प्रणाली को पटरी पर लाने की जिम्मेदारी थी। तब समय की जरूरत थी-निवेश आकर्षित करना, बहुप्रतीक्षित सुधारों के लिए समर्थन जुटाना, लोगों में उम्मीद जगाना। अब यह देखने का उचित समय है कि 2014 तक हम कहां थे और अब कहां हैं। इन पंक्तियों के लिखे जाने के वक्त सरकार द्वारा सदन के पटल पर रखे गए श्वेतपत्र पर गहन चर्चा जारी है। चर्चा सकारात्मक हो तो देश के विकास की राह पर तेजी से बढ़ाने के प्रयासों को गति मिलेंगी। लेकिन विपक्षी कांग्रेस देशहित के इस प्रयास को भी बाधित करने में जुटी है।
(लेखक- प्रसिद्ध अर्थ विश्लेषक)
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