कौरव पांडव के बीच हुए महाभारत युद्ध के पीछे कई कारण थे। यह धर्म और अधर्म के बीच युद्ध था। दुर्योधन, पांडवों को राज्य नहीं देना चाहता था। कई दिनों तक विवाद चला और जब इसका कोई हल नहीं निकला तो भगवान श्रीकृष्ण पांडवों की तरफ से शांतिदूत बनकर हस्तिनापुर गए। उन्होंने कौरवों से कहा कि वे पांडवों को केवल 5 गांव ही दे दें, ताकि वे अपना जीवनयापन कर सकें।
श्रीकृष्ण के इस निवेदन पर दुर्योधन ने गुस्से में आकर कहा कि वह पांडवों को 5 गांव तो क्या सुई की नोक के बराबर भी जमीन नहीं देगा। जिसके बाद उसने बोला कि अब फैसला केवल रणभूमि में ही होगा तो चलिए बताते हैं कि वे पांच गांव कौन से थे और आज कैसे हैं ?
पहला गांव श्रीपत है जिसे इन्द्रप्रस्थ भी कहा जाता है जो आज दिल्ली के रूप में भी जानी जाती है। इसे पांडवों की राजधानी भी माना गया है। दूसरा गांव बागपत है। जिसे महाभारत काल में व्याघ्रप्रस्थ कहा जाता था। व्याघ्रप्रस्थ का मतलब बाघों के रहने की जगह। यहां सैकड़ों साल पहले से बाघ पाए जाते रहे हैं। वर्तमान में यह जगह उत्तरप्रदेश का एक जिला है। बागपत ही वह स्थान है, जहां कौरवों ने लाक्षागृह बनवाकर उसमें पांडवों को जलाने की साजिश की थी।
तीसरा गांव श्रीकृष्ण ने सोनीपत मांगा था। सोनीपत को पहले स्वर्णप्रस्थ कहा जाता था। बाद में यह सोनप्रस्थ होकर सोनीपत के रूप में जाना जाने लगा। स्वर्णपथ का अर्थ सोने का शहर होता है। यह हरियाणा का वर्तमान में एक जिला है। चौथा गांव जो श्रीकृषण ने मांग था वो पानीपत है। पानीपत को पांडुप्रस्थ भी कहा जाता था। भारतीय इतिहास में यह जगह बहुत महत्वपूर्ण मानी गई है, क्योंकि यहां 3 बड़ी लड़ाइयां लड़ी गईं थी। इसी पानीपत से लगभग 70 किलोमीटर दूर कुरुक्षेत्र है, जहां महाभारत की भीषण लड़ाई हुई थी। पानीपत को बुनकरों का शहर भी कहा जाता हैं। पांचवां गांव तिलपत है। तिलपत को पहले तिलप्रस्थ कहा जाता था। यह हरियाणा के फरीदाबाद जिले का एक कस्बा है जो यमुना नदी के किनारे बसा है।
बहरहाल, दुर्योधन ने भगवान श्रीकृष्ण का प्रस्ताव ठुकरा दिया, इसके बाद भयंकर युद्ध हुआ और कुरुक्षेत्र की भूमि से धर्म की पुर्नस्थापना हुई।
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