22 जनवरी 2024 एक अनोखा दिन रहा विश्व के इतिहास में ! पता नहीं पिछली कितनी सदियों पहले ऐसा दिन इतिहास – पुरुष ने देखा होगा ! बर्बरता की पराकाष्ठा में जब 1528 में बाबर ने अपने सेनापति मीर बाकी से तुड़वाया तब उसको भी पता नहीं होगा कि भारत की परंपरा, प्रकृति और संस्कृति को बदलने के लिए भारत के अधिष्ठान ऐसे भगवान राम के जन्म स्थान को तोड़कर जो एक ढांचा खड़ा कर दिया, 495 वर्ष के बाद उसी अधिष्ठान को भारत के लोगो ने फिर से प्रस्थापित कर गजवा ए हिंद के उसके सपने को चकनाचूर कर दिया I बाबर हिंदुओ को काफिर मानता था, इसलिए उसने बहुत अत्याचार हिंदुओं पर किए, उसने दो महत्वपूर्ण मंदिर तोड़ वहां मस्जिदें बनाई I पहले जब उसने पानीपत के पहले युद्ध में इब्राहिम लोधी को हराया तो उस विजय की निशानी के तौर पर वहां काबुली बाग मस्जिद बनाई I
राम जन्मभूमि को तोड़ वहां बाबरी ढांचा बनाया, उससे अगर बाबर की नीयत का पता नहीं चलता है तो एक और मंदिर जिसे तुड़वाकर बाबर ने मस्जिद बनवाई उसका इतिहास जानना चाहिए I बाबर ने संभलगढ़ में स्थित एक मंदिर तोड़ वहां भी मस्जिद बनाई। उस मंदिर का हिंदुओं के लिए कितना महत्व था यह बात सिर्फ इसी बात से स्पष्ट हो जाएगी कि, जो मंदिर तोड़ा गया वह भगवान कल्कि का मंदिर था। और हिंदुओ में यह मान्यता है कि भगवान जब कल्कि अवतार के रूप में अवतरित होंगे तो वह जगह वही होगी जहां संभलगढ़ में मंदिर था, जिसे तोड़कर बाबर ने मस्जिद बनाई। अर्थात बाबर भारत पर सिर्फ लूट करने के लिए शासन में नहीं आना चाहता था या फिर शासन करने के लिए भी शासन में नहीं आना चाहता था। उसका इरादा बहुत स्पष्ट था, भारत से भारतीयता, भारत से हिंदुत्व को समाप्त कर इस्लाम का परचम लहराना। बाबर के बाद हुमायू, अकबर, जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब इन सभी मुगलों के कार्यकाल का अध्ययन किया जाय तो यही बात सामने आती है कि सिर्फ शासन करना या लूट मचाना उनका ध्येय नहीं था, जैसे दुनियाभर में इस्लाम की आंधी ने बड़ी बड़ी सभ्यताओं को चंद दिनों में या चंद महीनों में उखाड़ फेंकना यह मंशा पूरे मुगलवंश की भारत वर्ष के बारे में रही है । राममंदिर को तोड़कर बाबर ने भारत की आत्मा बदलने का प्रयास किया था, अब जहां भव्य राममंदिर बन चुका है तब यह स्पष्ट हो चुका है कि भारत की आत्मा अमर है।
जैसे जैसे भारत में राममंदिर बनता गया, कुछ-कुछ जगह पर एक चर्चा चलती गई कि जब राममंदिर संपूर्ण हो जायेगा तब जैसे रोमन कैथोलिक समाज में वेटिकन का महत्व है और मुस्लिम समाज में मक्का का महत्व है वैसा ही हिंदुओं में राममंदिर का महत्व हो जाएगा। जब जब इस तरह की बातें सुनी जाती थी तब कहीं न कहीं एक प्रश्न सामने आ जाता था, क्या राममंदिर से हिंदू समाज को सिर्फ इतनी ही अपेक्षा हो सकती है..?
वेटिकन की स्थापना एक स्वतंत्र देश के रूप में इसलिए हुई ताकी पोप अपनी वैश्विक आधिकारिकता का उपयोग करने में सक्षम बने । यह बात ब्रिटानिका के “जियोग्राफी एवं ट्रैवल कंट्रीज ऑफ़ द वर्ल्ड “ में उपलब्ध है । और इसका एक प्रमाण 2019 के सामान्य चुनाव से पहले फिर एक बार ध्यान में आया, जब दिल्ली और गोवा के आर्कबिशप ने केंद्र की सरकार को बदलने के लिए उपवास, प्रार्थना और वोट करने के लिए पत्र जारी किया था । 1959 में भारत में अमरीका के राजदूत रहे डेनियल पैट्रिक मोहनियान ने केरल की तत्कालीन ई एम एस नामबुद्रीपाद की निर्वाचित हुई सरकार को अपदस्त करने में वेटिकन की भूमिका का खुलासा किया था । तब से लेकर 2019 के तक भारत में चुनावों को प्रभावित करने की वेटिकन की कोई न कोई भूमिका रही है । इतना ही नहीं वैश्विक राजनीति में लगभग पांच सदी से वेटिकन की स्थानिक लोगों की संस्कृति और आजीविका को खत्म करने के लिए “खोज का सिद्धांत” लाकर विश्व में अपना वर्चस्व बनाने का प्रयास किया और दुनिया में काफी हद तक अपने अपने देश के स्थानिक निवासियों को इसका नुकसान उठाना पड़ा । लगभग 2023 में वर्तमान पोप ने इस खोज के सिद्धांत के लिए माफी भी मांगनी पड़ी । खोज के सिद्धांत की भयानकता अगर समझनी है तो क्रिस्टोफर कोलंबस के बारे में जानना चाहिए, जब कोलंबस ने अमरीका की भूमि पर 1492 में पैर रखा तब लगभग 100 मिलियन लोग जो अमरीका के मूल निवासी थे वह रह रहे थे। लेकिन खोज के सिद्धांत जिसे वेटिकन में “डोक्टरिन ऑफ़ डिस्कवर” कहा जाता था, उस सिद्धांत में जो क्रिश्चन नहीं हैं, ऐसे लोगों को मानव नहीं माना जाता था अर्थात अमरीका की धरती पर रह रहे 100 मिलियन लोग मानव नहीं थे, कोलंबस की नजर में यह भूमि खाली थी, उन 100 मिलियन अमरीकियों के साथ क्या हुआ वह एक कलंकित इतिहास है।
सऊदी अरब की सरकार मक्का में गैर मुस्लिमों को प्रवेश नहीं देती और उसका कारण बताया जाता है कि किसी भी गैर मुसलमान के प्रवेश से मक्का नगरी अपवित्र हो जाएगी । दुनियाभर के मुसलमान मक्का की हज पर जाते हैं, दुनिया के मुसलमानों में से वहां उन लोगों को ही प्रवेश मिलता है जिनके पासपोर्ट पर उनके मुसलमान होने का ठप्पा हो। और सिर्फ यही वजह से पाकिस्तान में जो अहमदिया मुसलमान हैं वे पाकिस्तानी पासपोर्ट पर मक्का नहीं जा सकते क्योंकि पाकिस्तान उनको मुसलमान नहीं मानता ।
क्या अयोध्या और राममंदिर से कोई डॉक्टरीन ऑफ़ डिस्कवर निकल सकती है ? अयोध्या में आज भी अनेक मस्जिदें हैं जिसमे हर रोज आजान भी हो रही है क्या वहां अजान रोकने के लिए कोई आदेश दे सकता है ? क्या अयोध्या में गैरहिंदू के प्रवेश पर पाबंदी हो सकती है..? क्या अयोध्या से विश्व के अन्य देशों को तो छोड़ो भारत में किसी पंचायत के चुनाव को भी प्रभावित करने का प्रयास हो सकता है..? यह तमाम प्रश्नों का उत्तर नकारात्मक ही होगा , क्योंकि अयोध्या ना वेटिकन बन सकती है और ना ही मक्का । हमारे यहां धर्म और राज्य दोनों के प्रभावक्षेत्र ही अलग हैं, धर्म का प्रभाव आध्यात्म के आधार पर व्यक्ति की उन्नति के लिए है और राज्य सत्ता का प्रभाव प्रशासन के आधार पर व्यक्ति की आवश्यकताओं की पूर्तता के लिए है । दोनों में कोई द्वंद नहीं है पर हमारे यहां दोनों हमेशा अलग ही रहे हैं। शासन चलाते समय धर्म का आधार स्वाभाविक है पर धर्म के ऊपर शासन का प्रभाव हमें स्वीकार्य नहीं है। राम मंदिर और अयोध्या धर्म का प्रतीक है, इसलिए उसका प्रभाव भारत के लोगों की आध्यात्मिक उन्नति के लिए ही रहेगा। और अध्यात्म के आधार पर नवपल्लवित हुई भारतीय संस्कृति विश्व के अस्तित्व का आधार बनेगी । यही हमारी विश्व गुरु बनने की संकल्पना है और विश्व गुरु बनने का मार्ग अयोध्या से प्रशस्त हो चुका है।
टिप्पणियाँ