प्रमाण बता रहे हैं कि मंदिर तोड़कर उसी के मलबे से कथित ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई। इसलिए विश्व हिंदू परिषद मांग करती है कि वह स्थान हिंदुओं को सौंप दिया जाए
गत जनवरी को काशी की जिला अदालत ने ज्ञानवापी मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया। इस कारण विश्व के सभी हिंदुओं का हृदय आनंद से भर गया है। ज्ञानवापी ढांचे के तहखाने के दक्षिण भाग में मंदिर स्थित है। 1993 तक यानी आज से 31 वर्ष पहले तक उस मंदिर में भगवान की नियमित पूजा-अर्चना होती थी। 1993 में वहां बाड़ लगा दी गई, हिंदुओं का जाना-आना बंद कर दिया गया और अन्यायपूर्वक हिंदुओं को वहां उनके पूजा के अधिकार से वंचित कर दिया गया। उसको फिर से शुरू करने के लिए मुकदमा दायर किया गया।
कुछ समय पहले वादी की प्रार्थना पर न्यायालय ने वाराणसी के जिला मजिस्ट्रेट को उस जगह का ‘रिसीवर’ तय कर दिया और उसकी सुरक्षा-संभाल का दायित्व दिया। पर उस आदेश में पूजा-अर्चना के बारे में कुछ नहीं था। अत: वादी ने दोबारा न्यायालय में प्रार्थना पत्र लगाया। हमको बहुत प्रसन्नता है कि अदालत ने कहा कि वादी और काशी विश्वनाथ ट्रस्ट मिलकर एक पुजारी की नियुक्ति कर दें और पुजारी इस बात का ध्यान रखें कि वहां नियमित विधिपूर्वक पूजा-अर्चना सेवा होती रहे।
यह अवसर 31 वर्ष बाद मिला है। इतना समय क्यों लगा, यह सोचना होगा। हम इसमें भविष्य की भी आहट देखते हैं और इसलिए हमको उम्मीद है कि इस फैसले के बाद पूरे ज्ञानवापी परिसर के मुकदमे का फैसला भी जल्दी होगा। हम प्रमाणों और तर्क के आधार पर आश्वस्त हैं कि यह फैसला हिंदू समाज के पक्ष में ही आएगा।
ज्ञानवापी में जगह-जगह पर जो आकृतियां हैं उनमें देवी देवताओं के नाम हैं, हिंदुओं के प्रतीक चिन्ह हैं, ऐसे स्थान की प्रकृति मस्जिद की नहीं हो सकती। वह तो केवल मंदिर हो सकता है, न्यायालय ने हिंदू पक्ष को भूगर्भ (तहखाने) में भगवान का पूजन करने का आदेश दे दिया है। न्यायालय ने कहा था कि प्रशासन एक सप्ताह के अंदर पूजा की व्यवस्था करे, लेकिन प्रशासन ने उसी रात पूजा की व्यवस्था कर दी। अब वहां नियमित पूजा हो रही है। यह हिंदू समाज के लिए शुभ है। आशा है आने वाले दिनों में यह शुभता और प्रगाढ़ होगी।
विश्व हिंदू परिषद (विहिप) का मानना है कि काशी में मूल स्थान पर काशी विश्वेश्वर भगवान और मथुरा के जन्मस्थान पर श्रीकृष्ण को विराजमान होना चाहिए। ये हमारे विशेष महत्व के स्थान हैं। हिंदू समाज को हम विश्वास दिलाते हैं कि इन दोनों मुकदमों में हमें विजय प्राप्त होगी। फिर भी विहिप ने यह स्पष्ट किया है कि इन दोनों मंदिरों के लिए जो भी प्रयत्न होगा, वह संविधान के दायरे में रहकर ही होगा।
1991 के धर्मस्थल कानून की धारा 4 के बारे में बहुत लोगों को पता नहीं है। यह सच है कि ज्ञानवापी और मथुरा की ईदगाह में 15 अगस्त, 1947 को नमाज पढ़ी जाती थी, लेकिन इन दोनों स्थानों की प्रकृति इस बात से तय होगी कि उस स्थान पर क्या-क्या है और ये दोनों स्थान कैसे बने हैं। इसलिए जब वजूखाने में शिवलिंग प्राप्त हुआ, तो हमने कहा कि देखो, यह तो प्रकृति मंदिर की है, ‘मस्जिद’ में तो शिवलिंग नहीं होता।
अब मालूम पड़ा है कि मंदिर की जो दक्षिणी दीवार है, वह तोड़ी भी नहीं गयी थी, बल्कि उसी दीवार के ऊपर ‘मस्जिद’ बना दी गई थी। ‘मस्जिद’ के निर्माण में मंदिर के मलबे का उपयोग किया गया था। उस मलबे में मूर्तियां, शंख चक्र, पद्म, गदा आदि थे। ज्ञानवापी में जगह-जगह पर जो आकृतियां हैं उनमें देवी देवताओं के नाम हैं, हिंदुओं के प्रतीक चिन्ह हैं, ऐसे स्थान की प्रकृति मस्जिद की नहीं हो सकती।
वह तो केवल मंदिर हो सकता है, और अब बात एक कदम आगे बढ़ गई है। न्यायालय ने हिंदू पक्ष को भूगर्भ (तहखाने) में भगवान का पूजन करने का आदेश दे दिया है। न्यायालय ने कहा था कि प्रशासन एक सप्ताह के अंदर पूजा की व्यवस्था करे, लेकिन प्रशासन ने उसी रात पूजा की व्यवस्था कर दी। अब वहां नियमित पूजा हो रही है। यह हिंदू समाज के लिए शुभ है। आशा है आने वाले दिनों में यह शुभता और प्रगाढ़ होगी।
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