रामलला प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए नागालैंड के लोगों को भी बुलाया गया। जेलियांगरांग समाज से रामकुईवांग्बे न्यूमे (लोदी ग्राम), थुन्बुई जलियांग (न्जाओ ग्राम), अंगामी समाज से विश्वेमा निवासी योसे छाया और दिमासा समाज से विनीता जिग्दुंग (धनसिरीपार ग्राम) जैसे लोग अयोध्या गए भी।
अयोध्या के राम मंदिर के लिए नागालैंड के ईसाई समाज ने भी सहयोग किया। नागालैंड के मुख्यमंत्री नीफू रियो ने राम मंदिर के लिए 20,00,000 रु. का योगदान दिया है। वहीं उप-मुख्यमंत्री वाई पैटन ने 11,00,000 रु., उच्च तकनीकी शिक्षा मंत्री इम्ना एलांग लांगकुमर ने 11,00,000 रु., टी.आर. जेलियांग ने 5,00,000 रु. और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एम. चुबा आओ ने 25,000 रु. का सहयोग किया। इस प्रकार नागा हिंदू और नागा ईसाई बंधुओं ने 60,00,000 रु. का सहयोग किया।
2005 से पूर्व यह अकल्पनीय था, किंतु समय ने करवट ली, नागा समाज भी बदलने लगा। रामलला प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए नागालैंड के लोगों को भी बुलाया गया। जेलियांगरांग समाज से रामकुईवांग्बे न्यूमे (लोदी ग्राम), थुन्बुई जलियांग (न्जाओ ग्राम), अंगामी समाज से विश्वेमा निवासी योसे छाया और दिमासा समाज से विनीता जिग्दुंग (धनसिरीपार ग्राम) जैसे लोग अयोध्या गए भी।
नागालैंड में वनवासी कल्याण आश्रम और विवेकानंद केंद्र का कार्य जनवरी, 1976 में ही प्रारंभ हो गया था। सबके सम्मिलित प्रयासों से यहां के लाखों स्थानीय लोग संघ से जुड़ गए। इनमें हिंदू और ईसाई नागा भी हैं। कुकी, मिजो, खासी और जयंतिया समाजों में भी ऐसा ही कार्य हुआ। इसका राजनीतिक प्रभाव भी दिख रहा है।
प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम ने नागा समाज और दिमासा समाज को आपस में फिर से एक बार जोड़ दिया है। उल्लेखनीय है कि पहले भी इन समाजों के बीच संबंध रहे हैं, लेकिन वामपंथी इतिहासकारों ने इसे दबाने का प्रयास किया। अज्ञातवास की अवधि में माता कुंती के साथ पांचों पांडव नागा हिल्स पधारे थे। महाबली भीम ने हिडिम्बा नामक दिमासा बालिका से विवाह किया, जिनसे घटोत्कच पैदा हुए। घटोत्कच से बरबरीक, अंजनपर्वन और मेघवर्ण हुए। इन सबने महाभारत के युद्ध में भाग लिया था।
नागा कन्या उलूपी से अर्जुन ने विवाह किया, जिनसे इरावन पैदा हुए। कृष्ण भगवान के नाती अनिरुद्ध ने नागा बालिका ऊषा से विवाह किया, जिनसे मृगकेतन पैदा हुए। ऊषा के नाम पर नागालैंड के वोखा नगर का नाम पड़ा। यहां से आगे बढ़ कर जब पांडव बंधु मणिपुर पहुंचे तो अर्जुन ने चित्रांगदा नामक सुंदरी से विवाह किया, जिनसे बभ्रुवाहन पैदा हुए। ये सारी गाथाएं पुराने साहित्य और लोक कथाओं में वर्णित हैं, किंतु अंग्रेजों के शासनकाल में इन्हें लुप्त करने का प्रयास किया गया। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन ने इन्हें उजागर कर दिया और इनको गर्भनाल से जोड़ दिया।
यह संभव हुआ है उन हिंदुत्वनिष्ठ संगठनों के कारण, जिनके कार्यकर्ताओं ने दिन-रात पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में कार्य किया है और अभी भी कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि इन राज्यों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम, राष्ट्र सेविका समिति, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, विद्या भारती, विवेकानंद केंद्र आदि संगठनों के कार्य आपातकाल से पूर्व अथवा इसके खत्म होते ही प्रारंभ हो गए थे।
नागालैंड में वनवासी कल्याण आश्रम और विवेकानंद केंद्र का कार्य जनवरी, 1976 में ही प्रारंभ हो गया था। सबके सम्मिलित प्रयासों से यहां के लाखों स्थानीय लोग संघ से जुड़ गए। इनमें हिंदू और ईसाई नागा भी हैं। कुकी, मिजो, खासी और जयंतिया समाजों में भी ऐसा ही कार्य हुआ। इसका राजनीतिक प्रभाव भी दिख रहा है।
इस समय असम और मणिपुर में भाजपा सरकार और अन्य राज्यों में भाजपा समर्थित सरकारें हैं। मणिपुर की घटनाओं को छोड़ दें तो पूरे पूर्वोत्तर में शांति है। निष्कर्ष यह निकल रहा है कि मणिपुर की घटनाओं के पीछे चर्च और कांग्रेस है। कांग्रेस ने सदैव वहां के अलगाववादी तत्वों को हवा दी है। अब वहां की स्थिति बदल गई है।
(लेखक पूर्वोत्तर भारत में वर्षों तक सामाजिक कार्यकर्ता रहे हैं)
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