अयोध्या में रामलला विराजमान : संतों का संघर्ष, संघशक्ति का सहयोग और मोदी जी के संकल्प से साकार हुआ सपना
July 25, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

अयोध्या में रामलला विराजमान : संतों का संघर्ष, संघशक्ति का सहयोग और मोदी जी के संकल्प से साकार हुआ सपना

रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह का लाइव प्रसारण देखने का विश्व कीर्तिमान बना।

by रमेश शर्मा
Jan 30, 2024, 10:05 am IST
in भारत, विश्लेषण

अंततः रामलला अयोध्या में अपने जन्मस्थान पर विराजमान हो गए। कितनी पीढ़ियां यह सुखद पल देखने का सपना संजोये संसार से विदा हो गईं, पर वर्तमान पीढ़ी को यह सौभाग्य मिला। संतों के निरंतर संघर्ष, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शक्ति का सहयोग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संकल्प की त्रिवेणी से यह परम् सौभाग्य का सपना सकार हो सका ।

22 जनवरी विश्व इतिहास के लिए एक अमर स्मृति बन गई है। यह कलिकाल की दीपावली का दिन था। रामलला के अपने जन्मस्थान पर विराजमान होने से केवल अयोध्या नगरी ही नहीं संवरी अपितु पूरे संसार ने उल्लास की नई अंगड़ाई ली है। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह का लाइव प्रसारण देखने का विश्व कीर्तिमान बना। इससे पहले दुनिया के किसी समारोह का लाइव प्रसारण इतना नहीं देखा गया जितना रामलला की प्राण प्रतिष्ठा आयोजन को देखा गया। नासा या इसरो के चन्द्र अभियान को लाइव देखने का आंकड़ा इतना नहीं था। भारत में ही विभिन्न नगरों में सजावट और स्वागत द्वार नहीं बने। पूरे विश्व से ऐसे समाचार आए। अमेरिका, लंदन, फ्रांस जर्मनी ही नहीं पाकिस्तान में भी आयोजन लाइव देखा गया ।

वह एक ऐसा क्षण था, ऐसा अवसर था जिसकी कल्पना कुछ वर्ष पहले तक किसी को नहीं थी। यह स्वप्न संकल्प की त्रिवेणी से साकार हुआ है। एक संतों का निरंतर संघर्ष और बलिदान, दूसरा  इस संघर्ष में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सहभागिता और तीसरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संकल्प। शक्ति की इसी त्रिवेणी से इस स्वप्न ने मानों आकार लिया

संतों का संघर्ष और बलिदान 

सबसे पहले संतों का संघर्ष और बलिदान है, जो न कभी रुका और न कभी थका। भारत पर हमलों और विध्वंस का दौर सातवीं से आरंभ हुआ था। तब हमलावरों का उदेश्य लूट और नारियों का अपहरण था। उनके निशाने पर राजमहल और देव स्थान रहे। रक्षा के लिए दोनों प्रकार की शक्तियां सामने आईं। राजशक्ति भी और संत शक्ति भी। जब स्थानीय राजशक्ति का क्षय हो गया तब धर्म स्थानों की रक्षा के लिए संतशक्ति ने ही संघर्ष किया और प्राणों का बलिदान दिया। संतों का यह संघर्ष देश के हर कोने में हुआ। अन्य स्थानों पर भले थोड़ा शिथिल हुआ हो पर अयोध्या में निरंतर रहा। पहले आक्रमणकारी सालार मसूद से लेकर जन्मस्थान की मुक्ति तक। बाबर के हमले के बाद की घटनाओं का विवरण तो बाबरनामे से लेकर लखनऊ गजेटियर तक लूटपाट, पुजारियों की हत्या मूर्तियां तोड़ने का विवरण भरा पड़ा है। जिन संतों, साधुओं और पुरोहितों के बलिदान के प्रसंग इतिहास में मिलते हैं उनमें सबसे पहला नाम महात्मा श्यामनंदजी महाराज का है। वे मंदिर के मुख्य पुजारी थे। जब भीटी के राजा महताब सिंह का सेना सहित बलिदान हो गया तब महात्मा श्यामनन्द जी के नेतृत्व में संत महात्माओं और जन सामान्य ने मोर्चा लिया और बलिदान हुए । दूसरा नाम पंडित देवीदीन पाण्डेय का है। वे अयोध्या के समीप सनेथू नामक ग्राम निवासी थे और जन्मस्थान मंदिर में भगवान राम की सेवा में। बाबर के हमले और मंदिर विध्वंस करने पर पं. देवीदीन पाण्डेय ने आसपास के संतों और क्षत्रिय समाज को एकत्रित किया और मंदिर में तैनात बाबर की सेना पर धावा बोला। यह युद्ध पं. देवीदीन पाण्डेय के नेतृत्व में ही लड़ा गया और बलिदान हुए। हुमायूं के समय स्वामी महेश्वरानंदजी ने सन्यासियों की एक सेना बनाई और रानी जयराज कुमारी हंसवर से सहयोग मांगा। इस संयुक्त युद्ध में स्वामी महेश्वरानंद और रानी जयराज कुमारी दोनों का बलिदान हुआ । नासिरुद्दीन हैदर के समय मकरही के राजा के नेतृत्व में भीती, हंसवर, मकरही, खजूरहट, दीयरा, अमेठी आदि के राजाओं के साथ वीर चिमटाधारी साधुओं की सेना भी साथ थी ।

युद्ध में शाही सेना को हारना पड़ा और जन्मभूमि पर पुन: हिन्दुओं का अधिकार हो गया, लेकिन कुछ दिनों के बाद विशाल शाही सेना ने पुन: जन्मभूमि पर अधिकार कर लिया और हजारों चिमटाधारी संतों का बलिदान हुआ। औरंगजेब के समय में समर्थ गुरु श्रीरामदासजी महाराज के शिष्य श्रीवैष्णवदासजी ने जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए 30 बार आक्रमण किए और संतों का बलिदान हुआ। 1853 में बाबा रामचरणदास जी ने जन्मस्थान मंदिर पर बनी मस्जिद के मौलवी आमिर अली को समझौते के लिए तैयार कर लिया था लेकिन 1857 की क्रान्ति में दोनों का बलिदान हुआ और मामला अटक गया था। अंग्रेजी राज में कानूनी लड़ाई का आरंभ भी संतों की ओर हुआ। 1858 में कलेक्टर को पहली रिपोर्ट, 1885 में पहला मुकदमा महंत रघुबर दास ने दायर किया था। 1934, 1938 और 1949 में भी संत समाज ही सामने आया और 1950 के बाद की अधिकांश याचिकाएं भी संतों की ओर से ही अदालत में पहुंची।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शक्ति की सहभागिता 

संतों द्वारा आरंभ किए गए जन्मस्थान पर प्रतिष्ठापना संघर्ष को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सहभागिता से निर्णायक गति मिली। पूरे देश की भावनाएं तो थीं पर उन भावनाओं को संगठित कर दिशा देने का काम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने किया। यूं तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के साथ ही संतों के अभियान का समर्थक रहा है फिर भी माना जाता है कि 1966 में आरंभ हुए गौरक्षा आंदोलन से गति तेज हुई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक गुरु गोलवलकर जी की गोरखपुर और काशी यात्रा में संतों ने उनके सामने अयोध्या का विषय रखा। चर्चा है कि 1961 में सुन्नी बक्फ बोर्ड की सक्रियता बढ़ने से संतों में चिंता बढ़ी और संतों ने संघ से सहयोग की अपेक्षा की। संघ के बारे में कहा जाता है कि वह अचानक कोई विषय नहीं उठाता। पहले विषय को समझता है, जन भावनाओं का अध्ययन करता है फिर आगे बढ़ने की तैयारी होती है। संभवतः भारत पाकिस्तान युद्ध, जेपी आंदोलन और फिर आपातकाल आदि के चलते कोई निर्णायक योजना न बन सकी।

माना जाता है कि आपातकाल के बाद संघ के तृतीय सरसंघचालक बाला साहब देवरस जी के समय इस विषय पर गंभीरता से विचार मंथन हुआ और 1984 से इस संघर्ष संघ की खुली सहभागिता देखी गई। चर्चा है कि तब देवरस जी ने संघ के प्रचारकों से बहुत स्पष्ट शब्दों में कमसेकम तीन दशक तक यह संघर्ष चलाने की तैयारी करने का संकेत किया था। इतनी मानसिक तैयारी के साथ संघ इस आंदोलन में खुलकर सामने आया, लेकिन संघ की यह भूमिका या सहभागिता श्रेय लेने की नहीं थी अपितु संतों को पूरी शक्ति से सहयोग करने की ही रही। इसकी झलक आठ अप्रैल 1984 को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित पहली धर्मसंसद में दिखती है। जिसमें संघ की भूमिका केवल सेवा प्रबंधन में थी। इस धर्म संसद में 76 मत एवं पंथ के कुल 558 धर्माचार्य और संत उपस्थित थे । जिसमें राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन हुआ। समिति के अध्यक्ष महंत अवैधनाथ, महामंत्री दाउदयाल खन्ना मुख्य महामंत्री तथा महंत नृत्य गोपाल दास, महंत रामंचद्र दास, ओंकार भावे, महेश नारायण सिंह और दिनेश त्यागी को महामंत्री घोषित हुए। समिति ने देश व्यापी जन जागरण अभियान चलाने का निर्णय लिया। विश्व हिंदू परिषद को इस आंदोलन के संचालन का दायित्व सौंपा गया। इसके बाद युवाओं को जोड़ने के लिए हिंदू युवा सम्मेलनों के आयोजन आरंभ हुए ।

इसी वर्ष युवाओं को जोड़ने के लिए बजरंग दल का गठन हुआ। विनय कटियार इसके प्रथम राष्ट्रीय संयोजक बने। बजरंग दल ने आठ अक्तूबर 1984 को अयोध्या से लखनऊ तक श्रीराम रथयात्रा का आयोजन किया जिसमें नारा लगा “बजरंग दल की है ललकार, ताला खोले यह सरकार”  इस पदयात्रा में हजारों की संख्या में साधु-संत, युवा चल पड़े और “आगे बढ़ो जोर से बोलो, जन्मभूमि का ताला खोलो”, “जबतक ताला नहीं खुलेगा, तब तक हिंदू चैन न लेगा” आदि नारे  भी लगे । विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल और रामजन्म भूमि मुक्ति अभियान समिति ने 1984 में तालों में बंद रामलला के बड़े-बड़े बैनर 40 ट्रकों पर लगाए और उन्‍हें पूरे उत्‍तर प्रदेश में यात्रा निकालकर सामाजिक जागरण किया । देशभर में राम शिलापूजन आरंभ हुआ जो देश के तीन लाख से ज्‍यादा गांवों और कस्‍बों तक पहुंचा । भारतीय जनता पार्टी ने 1989 से राममंदिर का मुद्दा अपने एजेंडे में लिया। यह माना जाता है कि संघ की सलाह पर ही भाजपा ने राम मंदिर को अपने एजेंडे में लिया होगा ।

जिस प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंधित संगठनों की सक्रियता से संतों के रामजन्मस्थान मुक्ति संघर्ष को गति मिली उसी प्रकार भारतीय जनता पार्टी के खुलकर सामने आने के बाद इस मुक्ति आंदोलन को गति मिली। इसके साथ कारसेवा आरंभ हुई और भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी जी ने रथ यात्रा भी आरंभ की । 1990 के गोलीकांड में बलिदान होने वाले कारसेवकों में अधिकांश राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयं सेवक थे और अंत में 6 दिसम्बर को विवादास्पद ढांचा गिर गया। संतों और संघ से संबंधित संगठनों के अतिरिक्त कोई अन्य संगठन यह बात खुलकर नहीं कह पाया कि वहां राममंदिर था और राममंदिर ही बनना चाहिए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संकल्प

अयोध्या में भगवान राम जन्मस्थान के गौरव की प्रतिष्ठापना यदि संतों के संघर्ष और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सक्रिय सहभागिता से हो सकी तो इसमें तीसरा महत्वपूर्ण आयाम है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संकल्प शक्ति। मोदी जी प्रधानमंत्री तो 2014 में बने पर वे लगभग तैंतीस वर्ष पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की रामजन्म मुक्ति संकल्प रथ यात्रा के समन्वयक थे। बिहार में रथयात्रा के रोके जाने के बाद मोदी जी मुरली मनोहर जोशी के साथ अयोध्या आए और संकल्प व्यक्त किया कि अब जन्मस्थान की मुक्ति के बाद ही अयोध्या आएंगे। मोदी जी ने प्रचार से दूर रहकर लगभग पूरे भारत की यात्रा की और जन जागरण किया। न्यायालयों के निर्णय तो इससे पहले भी आए थे लेकिन तब प्रत्येक सरकार ने उनके क्रियान्वयन में तुष्टीकरण का संतुलन बिठाने का प्रयास किया। यही नहीं ढांचा ढहने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री ने वहां पुनः मस्जिद बनाने की ही बात संसद में कही थी लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न्यायालय के निर्णय को यथारूप में ही क्रियान्वयन करने की दिशा में कदम बढ़ाया।

मोदी ने सबका साथ सबका विश्वास, सबका समन्वयक और सहमति की भावना के अनुरूप जन्मस्थान मंदिर निर्माण के प्रति पूरी दृढ़ता व्यक्त की, वे इस विषय पर सदैव चिंतित रहे। उन्होंने पिछले चार वर्षों में अयोध्या के विकास पर लगभग दो दर्जन बैठकें कीं। वस्तुतः मोदी जी अयोध्या में मंदिर के निर्माण के साथ उस स्थल के आध्यात्मिक केन्द्र बनाने के लिए प्रयत्नशील रहे जो उनकी ग्यारह दिनों की साधना तथा वहां अनुष्ठान से स्पष्ट है ।

जिस प्रकार प्रातःकालीन सूर्योदय के निमित्त हजारों पलों की आहूति होती है। उसी प्रकार लाखों संतों और भक्तों का बलिदान हुआ, जिस प्रकार ब्रह्म मुहूर्त प्रातःकालीन यात्रा के लिए मार्ग बनाता है उसी प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शक्ति ने पूरे देश में वातावरण बनाया और मानों ऊषाकाल अपनी विनती से भगवान सूर्यदेव को प्रकट करते हैं उसी प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संकल्प शक्ति से अंततः समस्त विश्व ने अपने जन्मस्थान पर रामलला विराजमान होते हुए देखा।

Topics: Shri RamBJPश्री रामmanasअयोध्या राम मंदिरबीजेपीAyodhya Ram Templeराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघअयोध्‍या धामRashtriya Swayamsevak SanghAyodhya Dhamप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीAyodhyaअयोध्याPrime Minister Narendra Modi
Share18TweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

इस वर्ष 4-15 मई तक बिहार में खेलो इंडिया यूथ गेम्स का आयोजन किया गया

खेलो भारत नीति 2025 : खेल बनेंगे विकास के इंजन

देश में नौकरशाही की आन्तरिक निरंकुशता शासन पर भारी ‘साहब’

महात्मा गांधी के हिंद सुराज की कल्पना को नेहरू ने म्यूजियम में डाला : दत्तात्रेय होसबाले जी

बिना जानकारी के विदेश नीति पर न बोलें मुख्यमंत्री भगवंत मान

न्यायपालिका : अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किसी भी व्यक्ति की भावनाओं के साथ खिलवाड़ सहन नहीं

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा मंजूर, पीएम मोदी ने कही ये बात

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

बॉम्बे हाई कोर्ट

दरगाह गिराने का आदेश वापस नहीं होगा, बॉम्बे HC बोला- यह जमीन हड़पने का मामला; जानें अवैध कब्जे की पूरी कहानी

PM Modi meeting UK PM Keir Starmer in London

India UK Trade Deal: भारत और ब्रिटेन ने समग्र आर्थिक एवं व्यापारिक समझौते पर किए हस्ताक्षर, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

भारतीय मजदूर संघ की एक रैली में जुटे कार्यकर्त्ता

भारतीय मजदूर संघ के 70 साल : भारत की आत्मा से जोड़ने वाली यात्रा

Punjab Drugs death

पंजाब: ड्रग्स के ओवरडोज से उजड़े घर, 2 युवकों की मौत, AAP सरकार का दावा हवा-हवाई

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उधमसिंह नगर जिले में मां के साथ मतदान किया।

उत्तराखंड: पंचायत चुनाव का पहला चरण, लगभग 62 प्रतिशत हुई वोटिंग, मां के साथ मतदान करने पहुंचे सीएम धामी

संत चिन्मय ब्रह्मचारी को बांग्लादेश में किया गया है गिरफ्तार

हिंदू संत चिन्मय ब्रह्मचारी को नहीं मिली जमानत, 8 महीने से हैं बांग्लादेश की जेल में

आरोपी मोहम्मद कासिम

मेरठ: हिंदू बताकर शिव मंदिर में बना पुजारी, असल में निकला मौलवी का बेटा मोहम्मद कासिम; हुआ गिरफ्तार

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटिश पीएम कीर स्टार्मर

India UK FTA: भारत-ब्रिटेन ने मुक्त व्यापार समझौते पर किए हस्ताक्षर, जानिये इस डील की बड़ी बातें

बांग्लादेश के पूर्व चीफ जस्टिस खैरुल हक।

बांग्लादेश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एबीएम खैरुल हक गिरफ्तार, शेख हसीना के थे करीबी

एक चार्जर से कई फोन चार्ज करना पड़ सकता है महंगा, जानिए इससे होने वाले नुकसान

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • जीवनशैली
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies