लाला लाजपत राय की जयंती पर विशेष: जंगे आजादी को अंतरराष्ट्रीय पहचान देने वाला महान स्वतंत्रता सेनानी
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लाला लाजपत राय की जयंती पर विशेष: जंगे आजादी को अंतरराष्ट्रीय पहचान देने वाला महान स्वतंत्रता सेनानी

लाला लाजपत राय की गिनती मां भारती के महान रणबांकुरों में प्रमुखता से होती है। ‘पंजाब केसरी’ यानी पंजाब के शेर के नाम से विख्यात भारतमाता के इस वीर सपूत की आज 28 जनवरी 2024 को 159वीं जयंती है।

by पूनम नेगी
Jan 28, 2024, 10:23 am IST
in विश्लेषण
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लाला लाजपत राय की गिनती मां भारती के महान रणबांकुरों में प्रमुखता से होती है। ‘पंजाब केसरी’ यानी पंजाब के शेर के नाम से विख्यात भारतमाता के इस वीर सपूत की आज 28 जनवरी 2024 को 159वीं जयंती है। 28 जनवरी 1865 को पंजाब के मोगा जिला में एक खत्री परिवार में जन्मे लाला लाजपत राय का मानना था कि आजादी हाथ जोड़ने से नहीं मिलती, बल्कि इसके लिए प्राणपण से संघर्ष करना पड़ता है। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारतीय राष्ट्रवाद का झंडा बुलंद करने वाले लाला लाजपत राय जंगे आजादी के ऐसे निर्भीक सेनानी थे जो अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ शेर की तरह दहाड़ते थे और उनकी दहाड़ से बड़े-बड़े ब्रिटिश अफसरों की रूहें तक कांप जाती थीं। भारतमाता को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए उन्होंने बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चन्द्र पाल के साथ मिलकर ‘गरम दल’ का गठन किया था। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में ‘लाल-बाल और पाल’ की इस तिकड़ी की बंगाल के विभाजन की खिलाफत कितनी पुरजोर तरीके से की थी; इसे कहने की जरूरत नहीं है। लाला जी ने जलियांवालाबाग नरसंहार के खिलाफ पंजाब में विरोध प्रदर्शन और असहयोग आंदोलन का नेतृत्व किया। इस दौरान वो कई बार गिरफ्तार भी हुए थे।

ज्ञात हो कि भारत में औपनिवेशिक शासन के दौरान संवैधानिक सुधारों के तहत वर्ष 1928 में जब ब्रिटेन से ‘साइमन कमीशन’ को भारत में लागू किया गया तो उस कमीशन में एक भी भारतीय प्रतिनिधि को न देखकर देश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का गुस्सा भड़क उठा। 30 अक्टूबर 1928 को साइमन कमीशन जब लाहौर पहुंचा तो जनता के विरोध और आक्रोश को देखते हुए वहां धारा 144 लगा दी गयी। किन्तु साइमन कमीशन का विरोध जताने के लिए लाला लाजपत राय के नेतृत्व में आन्दोलनकारियों ने लाहौर रेलवे स्टेशन पर ही साइमन कमीशन का विरोध जताते हुए काले झंडे दिखाते हुए और ‘साइमन वापस जाओ’ के गगनभेदी नारे लगाये थे। इन नारों से नाराज होकर अंग्रेजी हुकूमत ने पुलिस को आन्दोलनकारियों पर लाठीचार्ज का आदेश दे दिया। इस दौरान अंग्रेज अफसर सार्जेंट सांडर्स ने लाला लाजपत राय की छाती और सिर पर लाठी से घातक प्रहार कर दिया किन्तु उन्होंने दहाड़ते हुए कहा, ‘’मेरे शरीर पर पड़ी लाठी की एक एक चोट अंग्रेजी साम्राज्य के ताबूत में कील ठोंकने का काम करेगी। भले ही गंभीर रूप से घायल पंजाब के इस शेर ने 17 नवंबर 1928 को दम तोड़ दिया किन्तु उनके के अंतिम शब्द अंततः सही साबित होकर रहे। लाला जी की मौत से पूरे देश में ब्रिटिशराज के खिलाफ आक्रोश गहराने लगा और भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु जैसे क्रांतिवीरों ने लाला जी की मौत का बदला लेने के लिए ब्रिटिश पुलिस अधिकारी सांडर्स को 17 दिसंबर 1928 को गोली से उड़ा दिया था।

लाला लाजपत राय की प्रारंभिक शिक्षा लुधियाना व अंबाला के मिशन स्कूल में हुई थी। इसके बाद उन्होंने 1880 में कानून की पढ़ाई के लिए लाहौर के सरकारी कॉलेज में दाखिला लिया था। 1886 में उनका परिवार   हिसार आ गया और उन्होंने वहीं अपनी वकालत शुरू कर दी। हिसार में लाला जी ने कांग्रेस की बैठकों में भी भाग लेना शुरू कर दिया और धीरे−धीरे कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता बन गये। 1897 और 1899 में जब देश के कई हिस्सों में अकाल पड़ा तो लाला जी राहत कार्यों में सबसे अग्रिम मोर्चे पर दिखाई दिये। जब अकाल पीड़ित लोग अपने घरों को छोड़कर लाहौर पहुंचे तो उनमें से बहुत से लोगों को लाला जी ने अपने घर में ठहराया। इसी तरह जब कांगड़ा में भूकंप ने जबरदस्त तबाही मचायी तो उस समय भी लाला जी राहत और बचाव कार्यों में सबसे आगे रहे। अंग्रेजों ने जब 1905 में बंगाल का विभाजन कर दिया तो लाला जी ने सुरेंद्र नाथ बनर्जी और विपिन चंद्र पाल जैसे आंदोलनकारियों से हाथ मिलाकर अंग्रेजों के इस फैसले की जमकर मुखालफत की और देशभर में स्वदेशी वस्तुएं अपनाने के लिए जोरदार अभियान चलाया।

लाला लाजपत राय को लिखने और भाषण देने का काफी शौक था। उन दिनों महात्मा गांधी का स्वदेशी आन्दोलन चरम पर था और लाला जी भी अपने स्तर पर इस स्वदेशी आंदोलन को धार देने में जुटे हुए थे। उसी दौरान पंजाब में विभिन्न राजनीतिक आंदोलनों में उनकी सक्रियता को देखते हुए अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें 1907 में बिना किसी ट्रायल के मांडले, बर्मा (वर्तमान म्यांमार) जेल भेज दिया किन्तु उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिलने के कारण तत्कालीन वायसराय लॉर्ड मिंटो को लाजपत राय को जेल से रिहा करना पड़ा। उसी दौरान उनकी मुलाकात आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती से हुई और उनके विचारों से उन्हें काफी गहराई तक प्रभावित किया। स्वामी जी की प्रेरणा से देश को ब्रिटिश राज के अत्याचारों से मुक्त कराने के लिए उन्होंने वकालत छोड़ दी और अपनी पूरी ताकत आजादी की लड़ाई में झोंक दी। इसी बीच, 1905 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कर्जन ने जब फूट डालो की नीति के तहत जब  बंगाल का विभाजन कर दिया तो लाजपत राय ने बिपिन चंद्र पाल और बाल गंगाधर तिलक के साथ मिलकर इस कदम का पुरजोर विरोध किया था। इसी दौरान लाजपत राय को अहसास हुआ कि यदि देशवासियों पर अंग्रेजों के अत्याचार को कम करना है, तो अपनी लड़ाई को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाना होगा। अपनी योजना को अमलीजमा पहनाने के लिए 1914 में वे ब्रिटेन और फिर 1917 में अमेरिका गये। 1917 से 1920 तक अमेरिका में रहकर उन्होंने न्यूयॉर्क में ‘इंडियन होम रूल लीग’ की स्थापना की। वहां उन्होंने पहले विश्वयुद्ध में अंग्रेजों की ओर से भारतीय सैनिकों के भाग लेने का भी विरोध किया। इस तरह लाला जी परदेस में रहकर भी अपने देश और देशवासियों के उत्थान के लिए सतत काम करते रहे। 20 फरवरी 1920 को जब वे भारत लौटे तो उस समय तक वह देशवासियों के लिए एक नायक बन चुके थे। लाला जी ने 1920 में कलकत्ता में कांग्रेस के एक विशेष सत्र में भाग लिया। वह गांधी जी द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ शुरू किए गए असहयोग आंदोलन में कूद पड़े जो सैद्धांतिक तौर पर रौलेट एक्ट के विरोध में चलाया जा रहा था। लाला लाजपत राय के नेतृत्व में यह आंदोलन पंजाब में जंगल में आग की तरह फैल गया और जल्द ही वह पंजाब का शेर या पंजाब केसरी जैसे नामों से पुकारे जाने लगे। लाला जी ने अपना सर्वोच्च बलिदान साइमन कमीशन के समय दिया।

स्वामी दयानंद सरस्वती के साथ जुड़कर लाला लाजपत राय ने पंजाब में आर्य समाज को स्थापित करने में बड़ी भूमिका निभाई। इतना ही नहीं शिक्षा के क्षेत्र में भी उनका बहुत बड़ा योगदान है ‘दयानंद एंग्लो वैदिक विद्यालय’ जिसे आज हम डीएवी के नाम से जानते हैं, इसे देश में एक नयी पहचान देने वाले भी लाल जी ही थे।

देश की आर्थिक मजबूती को दिया बल

आज देश में पंजाब नेशनल बैंक की तमाम शाखाएं जो हम देख रहे हैं वे लाला लाजपत राय जी की ही देन हैं। आजादी की लड़ाई में बड़ा योगदान देने के साथ ही लाला लाजपत राय ने देश को आर्थिक रूप से मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। लाला लाजपत राय ने 19 मई 1894 को लाहौर में पंजाब नेशनल बैंक की नींव रखी थी। आज के दौर में यह देश का दूसरा सबसे बड़ा सरकारी बैंक है। इस बैंक को एक स्वदेशी बैंक के तौर पर शुरू किया गया था और इसमें सिर्फ भारतीय जनता की पूंजी लगी थी। इस बैंक की शुरुआत सिर्फ 14 शेयरधारकों और सात निदेशकों से हुई थी। उस दौर में सिर्फ अंग्रेजों द्वारा संचालित बैंक ही होते थे और वे भारतीयों को बहुत अधिक ब्याज दर पर कर्ज देते थे। इसी को देखते हुए आर्य समाज के राय मूल राज ने लाजा लाजपत राय को स्वदेशी बैंक खोलने की सलाह दी थी। इसके बाद उन्होंने इस विचार के साथ अपने कुछ खास दोस्तों को एक चिठ्ठी लिखी और सभी इसके लिए राजी हो गए। फिर, तुरंत ही कागजी कार्रवाई शुरू हो गई और भारतीय कंपनी अधिनियम 1882 की धारा 6 के तहत दो लाख रुपए के साथ इस बैंक को शुरू कर दिया गया। इस बैंक को शुरू करने वालों में लाला लाजपत राय के अलावा पंजाब के उद्योगपति लाला हरकिशन लाल, ट्रिब्यून अखबार के संस्थापक दयाल सिंह मजीठिया, डीएवी कॉलेज के संस्थापक लाला लालचंद, पारसी व्यापारी ईसी जेसवाला और जाने-माने वकील बाबू काली प्रसूनो रॉय जैसे लोग शामिल थे। 12 अप्रैल 1895 को बैसाखी के एक दिन पहले बैंक को कारोबार के लिए पूरी तरह से खोल दिया गया था। बैंक में सबसे पहला खाता लाला लाजपत राय का ही खोला गया था।

Topics: Bipin Chandra PalGaram DalLal-Bal and PalpunjabLala Lajpat RaiIndian Freedom StruggleBharatmataLala Lajpat Rai 159th birth anniversaryGangadhar Tilak
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