विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने भी पाञ्चजन्य के स्थापना दिवस कार्यक्रम को संबोधित किया। यहां प्रस्तुत हैं उनके भाषण के मुख्यांश-
महाभारत में एक प्रसंग है कि अज्ञातवास के दौरान युधिष्ठिर जहां रह रहे थे, किसी बात पर वहां के राजा को गुस्सा आया और उसने कुछ फेंककर युधिष्ठिर को मारा। इस कारण उनके माथे से खून निकलने लगा। द्रौपदी ने उस खून को अपने आंचल में समेट लिया। बाद में उन्होंने कहा कि ऐसे पुरुष के खून की एक बूंद भी अगर जमीन पर गिर जाती तो पता नहीं कितना बड़ा भूचाल आ जाता।
कुछ इसी तरह की घटना अयोध्या आंदोलन के दौरान अशोक सिंहल जी के साथ हुई। उनके सिर पर पत्थर लगना, खून बहना, बहते हुए खून का उनके कुर्ते तक आना, कुर्ते से धोती तक को लाल करना। अशोक जी मानो अज्ञात स्थिति की अवस्था में थे। उन्हें अपने कष्ट का पता भी नहीं था। उन्होंने अपने सिर को एक बार हाथ भी नहीं लगाया। शायद उनके मन में दो ही बातें होंगी- सरकार का अहंकार और सामने का वह ढांचा। अशोक जी के इस रक्त ने अयोध्या आंदोलन को क्रांति में बदल दिया।
ऐसे ही जहां पर कोठारी बंधुओं को गोली मारी गई, वहां पर एक राम माली था। वह आंसू गैस के गोलों को नाली में डाल रहा था। (पानी में जाने से ये गोले काम नहीं करते) उस राम माली को सामने से गोली मारी गई। वहीं पर अजय गुप्ता भी थे, जो इन सब हत्या के बीच में ‘श्री राम जय राम’ की धुन को टूटने नहीं दे रहे थे। उनको पीछे से गोली मारी गई। एक रामभक्त तो ऐसा था, जिसने मरने से पहले अपने रक्त से सड़क पर ‘जय श्रीराम’ लिखा।
उन दिनों मेरे जिम्मे था दिल्ली से कारसेवकों को अयोध्या भेजना और उसकी व्यवस्था करना। उन्हीं दिनों मैंने दिल्ली के चारों क्षेत्रों के प्रमुखों की एक बैठक बुलाई। उनमें से एक ने कहा कि मैं सेवानिवृत्त हो गया हूं, पैसा बहुत है, घर, गाड़ी एवं बच्चे सब अच्छी तरह से व्यवस्थित हो गए हैं। आगे उन्होंने कहा कि भाई साहब, रामजी के काम से जा रहा हूं। मैंने घर वालों से भी कहा है कि लौटकर आ गया तो ठीक है और यदि नहीं आया तो दुख मत मनाना।
1992 के बाद से अब तक कोई बड़ा दंगा नहीं हुआ है। बता दें कि किसी भी दंगे की शुरुआत हिंदुओं ने नहीं की है। हिंदू आत्मरक्षा के लिए खड़े होते हैं। आज हिंदुओं में आत्मविश्वास और स्वाभिमान बढ़ा है। राष्ट्रीयता, आत्मगौरव और अपने सांस्कृतिक मूल्यों की पुनस्स्थापना के लिए हिंदुओं में होड़ मची है।
1990 में अयोध्या जाने वालों को लखनऊ रेलवे स्टेशन पर रोक दिया जाता था। सड़क पर 40 फुट के गड्ढे खोदकर पानी भर दिया था। इसके बाद हजारों लोग पैदल ही अयोध्या के लिए चल पड़े। ये लोग लखनऊ से अयोध्या तक 135 किलोमीटर पैदल चले। नदी, नालों को पार किया। गन्ने के खेतों में पराली बिछाकर सोए। अंग्रेजों की शिक्षा और बाद में नेहरू की नीतियों ने हिंदुओं की एक ऐसी जमात खड़ी कर दी थी, जो हिंदुत्व से घृणा करती थी।
इस कारण हिंदू अपने को असुरक्षित महसूस करने लगे थे। लेकिन 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी ढांचे के ध्वंस के साथ ही हिंदू इस सोच से बाहर हो गए। वे सजग हो गए। यही कारण है कि 1992 के बाद से अब तक कोई बड़ा दंगा नहीं हुआ है। बता दें कि किसी भी दंगे की शुरुआत हिंदुओं ने नहीं की है। हिंदू आत्मरक्षा के लिए खड़े होते हैं। आज हिंदुओं में आत्मविश्वास और स्वाभिमान बढ़ा है। राष्ट्रीयता, आत्मगौरव और अपने सांस्कृतिक मूल्यों की पुनस्स्थापना के लिए हिंदुओं में होड़ मची है।
हिंदुओं का विश्व के प्रति दायित्व बढ़ गया है। हम सबका ध्यान रखेंगे, सबको रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, रोजगार उपलब्ध कराएंगे। सब संस्कारित होंगे। कोई दुखी नहीं होगा। भारत विश्वगुरु के पद पर फिर से विराजमान होने वाला है। साम्यवाद, समाजवाद, पूंजीवाद से शांति नहीं आने वाली है। शाश्वत शांति, आनंद और सुख का मार्ग भारत ही बता सकता है। अब वह समय आ गया है कि विश्व के प्रति भारत अपनी जिम्मेदारी को पूरा करे।
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