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‘अंतिम सांसें गिन रहा आतंकवाद’

पिछले दिनों राजौरी-पुंछ इलाके में पाकिस्तान ने जान-बूझकर इस तरह की कोशिश की। हालांकि, हम सेना के साथ ‘आपरेशन आल आउट’ के माध्यम से आतंकवाद को समाप्त करने की योजना बना रहे हैं,

by हितेश शंकर
Jan 25, 2024, 08:21 pm IST
in भारत, जम्‍मू एवं कश्‍मीर, साक्षात्कार
मनोज सिन्हा (मध्य) से बातचीत करते (बाएं से) हितेश शंकर और प्रफुल्ल केतकर

मनोज सिन्हा (मध्य) से बातचीत करते (बाएं से) हितेश शंकर और प्रफुल्ल केतकर

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पाञ्चजन्य के स्थापना दिवस कार्यक्रम में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर और आर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने बातचीत की। प्रस्तुत हैं उसके प्रमुख अंश-

जम्मू-कश्मीर का उपराज्यपाल बने आपको तीन वर्ष हो गए हैं। आप वहां मौजूद भारत विरोधी तत्वों के समूह को कितना कमजोर कर पाए हैं?
ऐसे तत्वों पर कड़ा प्रहार हुआ है और इसका ढांचा भी चरमरा गया है। हां, उनकी जड़ों को उखाड़ने का काम अभी बाकी है। इस काम को कई स्तर पर करने के प्रयास चल रहे हैं। पहले के मुकाबले भ्रष्टाचार और आतंकवाद की घटनाओं में काफी कमी आई है।

हाल में ही जम्मू-कश्मीर में कुछ ऐसी घटनाएं हुई हैं, जो लक्षित हिंसा लगती हैं। कुछ विदेशी सैलानी भी हिंसा का शिकार हुए हैं। आप इन मामलों को कैसे देखते हैं?
पहली बात यह कि जम्मू-कश्मीर में बाहर से आने वाले किसी भी पर्यटक के साथ कोई घटना नहीं हुई। वहां अल्पसंख्यक समुदाय (हिंदू) के कुछ नौकरी-पेशा लोगों पर हमला हुआ और उन्हें निशाना बनाया गया। वे लोग ऐसा जान-बूझकर करते हैं, ताकि इसकी चर्चा पूरी दुनिया में हो और उन्हें यह स्थापित करने में सहायता मिले कि जम्मू-कश्मीर में अभी भी हालात सामान्य नहीं हुए हैं। पिछले दिनों राजौरी-पुंछ इलाके में पाकिस्तान ने जान-बूझकर इस तरह की कोशिश की। हालांकि, हम सेना के साथ ‘आपरेशन आल आउट’ के माध्यम से आतंकवाद को समाप्त करने की योजना बना रहे हैं, पर मैं इसे सार्वजनिक नहीं कर सकता। इसका असर आने वाले छह महीने में दिखेगा। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है।

हमने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल के चेहरे पर मुस्कान कभी नहीं देखी है। हंसते हुए मनोज जी का चेहरा देखे बहुत समय हो गया है। ऐसा क्यों?
मैं जो काम कर रहा हूं उसमें हंसी की गुंजाइश थोड़ी कम है। पर मैं खूब हंसता हूं। हां, मैं फोटो खिंचवाने के लिए नहीं हंसता।

आपने कहा था कि आतंकवाद की लड़ाई में पूर्व सैनिकों को जोड़ा जाएगा। क्या उस दिशा में कोई प्रक्रिया या खाका आपने तैयार किया है?
कल ही पूर्व सैनिक दिवस था। इस अवसर पर जम्मू स्थित राजभवन में एक कार्यक्रम हुआ, जिसमें पूर्व सैनिक आए थे। हमने जो ‘विलेज डिफेंस कमेटी’ बनाई है, उसमें पूर्व सैनिकों को ही प्राथमिकता के आधार पर रखने की कोशिश की है। हम उन्हें हथियारों का लाइसेंस भी दे रहे हैं। इसमें सेना के सेवानिवृत्त जवान भी शामिल हैं। प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में चलने वाली सरकार शांति खरीदने में विश्वास नहीं रखती, बल्कि शांति को स्थाई बनाने में विश्वास रखती है।

हाल में ही संपन्न ‘वाइब्रेंट गुजरात’ में आपने निवेशकों को जम्मू-कश्मीर आने का न्योता दिया है। जब राज्य में भय का वातावरण हो और हर बार राजनीतिक रूप से प्रश्न किया जाता हो कि यहां की जनसांख्यिकी बदलने का प्रयास किया जा रहा है, ऐसे में पर्यटक और निवेशक कैसे आएंगे?
मैं 10 दिन पहले श्रीनगर में था। मुझसे कुछ बच्चे मिलने आए, जिनमें लड़कियां भी थीं। उन्होंने मुझे धन्यवाद दिया। मैंने पूछा, किस बात के लिए? उनका कहना था कि सर, हमने 3 साल में ही स्नातक कर लिया। यह पहले 5 से 6 साल में पूरा होता था। दुकानें बंद रहती थीं, यातायात ठप रहता था। अब यह इतिहास की बात हो गई है। इससे आम आदमी में आत्मविश्वास आया है। पर्यटक और निवेशक खूब आ रहे हैं। भय का वातावरण रहता तो ये लोग क्यों आते? जम्मू-कश्मीर में विदेशी पर्यटकों की संख्या में 350 गुना वृद्धि हुई है।

जम्मू-कश्मीर में बाहर से आने वाले किसी भी पर्यटक के साथ कोई घटना नहीं हुई। वहां अल्पसंख्यक समुदाय (हिंदू) के कुछ नौकरी-पेशा लोगों पर हमला हुआ और उन्हें निशाना बनाया गया। वे लोग ऐसा जान-बूझकर करते हैं, ताकि इसकी चर्चा पूरी दुनिया में हो कि जम्मू-कश्मीर में अभी भी हालात सामान्य नहीं हुए हैं। हम सेना के साथ ‘आपरेशन आल आउट’ के माध्यम से आतंकवाद को समाप्त करने की योजना बना रहे हैं, पर मैं इसे सार्वजनिक नहीं कर सकता। इसका असर आने वाले छह महीने में दिखेगा। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है।

जमीन का आवंटन जम्मू-कश्मीर में एक बड़ा मुद्दा है। बाहरी आदमी को आने से रोका जाता है और भीतरी आदमी पैसा लगाएगा नहीं। इस दुविधा से आप कैसे निबटेंगे?
देखिए, कोई दुविधा नहीं है। कृषि योग्य भूमि वही ले सकता है, जो जम्मू-कश्मीर का निवासी हो। हां, यदि आप कृषि भूमि लेकर होटल बनाना चाहते हैं या फिर उद्योग लगाना चाहते हैं, तो उस भूमि के ‘उपयोग में बदलाव’ करने के लिए आवेदन दे सकते हैं। इसके स्वीकृत होने पर आप अपनी इच्छानुसार काम कर सकते हैं। हाल में ही जम्मू-कश्मीर में यूएई की कंपनी इमाद ग्रुप ने भारी निवेश किया है। राज्य में 1.5 लाख करोड़ रुपए के हाईवे और सड़क निर्माण के काम चल रहे हैं।

अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद किस तरह के बदलाव आए हैं?
मैं मानता हूं कि अनुच्छेद 370 और 35-ए के हटने से मोटे तौर पर एक करोड़ 30 लाख लोगों को फायदा हुआ है। इनमें आधी महिलाएं हैं, क्योंकि अगर वे दूसरे राज्यों में शादी करती थीं तो उनके सारे अधिकार खत्म हो जाते थे। यानी 50 प्रतिशत आबादी को तो एक झटके में ही लाभ हुआ। इसके अलावा, कश्मीरी हिंदुओं की भागीदारी भी विधानसभा में होगी। 34 साल से एक बड़ी आबादी मोहर्रम का जुलूस नहीं निकाल पा रही थी। अब ऐसा नहीं होता। लोग जुलूस निकालते हैं।

जम्मू-कश्मीर में परिसीमन आयोग एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन रहा है। प्रशासनिक स्तर पर यह आप लोगों के लिए कितना चुनौती भरा काम था?
निश्चित रूप से परिसीमन का काम बड़ा पेचीदा था। राजनीतिक टिप्पणियां एक अलग बात है। परिसीमन आयोग की अध्यक्ष रंजना देसाई बड़ी मेहनत से इस प्रक्रिया को पूरा कर रही हैं। जिन्हें अब तक मतदान का अधिकार नहीं था, उन्हें वह अधिकार दिया जा रहा है। इस प्रक्रिया के तहत सामाजिक रूप से वंचित लोगों को भी मुख्यधारा में शामिल किया जाएगा।

जम्मू-कश्मीर में पिछले कुछ वर्षों से लगातार पारिवारिक पार्टियों का कब्जा रहा है। इसके कारण नीचे तक प्रतिनिधित्व नहीं पहुंचता था। ऐसे में जिला परिषद के चुनाव विकास की राह कैसे प्रशस्त करेंगे?
इससे पहले भी जिला परिषद के प्रतिनिधियों ने विकास के कार्यों को अच्छे तरीके से अंजाम दिया है। इन्होंने ही कोष जुटाया। साथ ही प्रशासन ने भी पैसा उपलब्ध कराया। इससे विकास के काम करने में मदद मिली। अब तिरंगा जम्मू-कश्मीर के गांवों में भी लहराता है। लोगों को गुणवत्तापूर्ण जीवन मिल रहा है।

जम्मू-कश्मीर में रोजगार और शिक्षा को लेकर कितना काम हुआ है? कहा जाता रहा है कि वहां रोजगार और शिक्षा के अवसर नहीं हैंइसीलिए आतंकवाद है!
देखिए, यह कुतर्क के अलावा और कुछ नहीं है। जम्मू- कश्मीर से ज्यादा गरीबी छत्तीसगढ़ और झारखंड के कुछ इलाकों में है। वहां आतंकवाद तो नहीं है। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि जम्मू-कश्मीर में बेरोजगारी दर बाकी राज्यों की तुलना में कम हुई है। वहां बड़ी संख्या में सरकारी नौकरियां दी गई हैं। हम स्वरोजगार पर भी ध्यान दे रहे हैं। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत 10 लाख रुपए का ऋण आसानी से मिल जाता है। इसके लिए हम जम्मू-कश्मीर में ‘बैक टू विलेज’ कार्यक्रम चला रहे हैं। हमारा निर्यात पहले की तुलना में दुगुना हो गया है। हम सुनियोजित तरीके से पर्यटन और कृषि के क्षेत्र में भी आगे बढ़ रहे हैं।

जम्मू-कश्मीर में सांस्कृतिक पहचान वाली जगहों के नाम को बदलने का एक कुचक्र चला। आप इसको रोकने, मंदिरों के जीर्णोद्धार के लिए किस तरह से प्रयास कर रहे हैं?
जम्मू-कश्मीर में अब बहुत ही धूमधाम से दीपावली और दशहरा भी मनाया जा रहा है। केवल मंदिर नहीं, चर्च और गुरुद्वारा भी हमने बनाया है। यह सच है कि वहां एक से एक मंदिर हैं जिनसे पूरे देश को प्रकाशमय किया जा सकता है। यह काम बहुत ही सुनियोजित तरीके से चल रहा है। यह काम निरंतर चलता रहेगा और राज्य की सांस्कृतिक पहचान को एक नई दिशा मिलेगी।

Topics: Abolition of Article 370जम्मू-कश्मीरJammu and Kashmirजम्मू कश्मीर में आतंकवादी रैंकों में भर्तीTerrorism in Jammu And Kashmirआपरेशन आल आउटभारत विरोधी तत्वअनुच्छेद 370 की समाप्तिOperation All OutAnti-India elements
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