30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने श्रीराम जन्मभूमि पर फैसला सुनाया था। इसके कुछ समय बाद पाञ्चजन्य ने अयोध्या आंदोलन के शिल्पकार रहे श्री अशोक सिंहल से बातचीत की थी, जो 7 नवंबर, 2010 के अंक में प्रकाशित हुई थी। उस बातचीत के संपादित अंशों को पुन: यहां प्रकाशित किया जा रहा है
भारत के लिए श्रीराम और श्रीराम जन्मभूमि का क्या महत्व है?
भगवान राम देश के कण-कण में विद्यमान हैं। गुरुग्रंथ साहिब में राम के बारे में स्पष्ट लिखा हुआ है, ‘‘एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट-घट में लेटा, एक राम का सगल पसारा, एक राम इन सबसे न्यारा।’’ वाह! क्या वर्णन है भगवान राम का गुरुग्रंथ साहिब में। भगवान राम सारे ब्रह्मांड में विद्यमान हैं। उन्हीं की छत्रछाया में सारा ब्रह्मांड चल रहा है। श्रीराम तो हर एक हृदय में विराजमान हैं। यह चित्र है राम का हमारे देश में। आततायियों द्वारा जिस दिन भगवान राम की जन्मभूमि का मंदिर तोड़ा गया, मानो हिन्दू समाज का पतन भी उसी दिन से शुरू हो गया। यदि तुम अपने इष्ट की रक्षा नहीं कर सकते हो तो तुम इस लायक नहीं हो कि इस दुनिया में रहो। इसलिए देश का पतन हो गया। भगवान राम तो उनके सहायक हैं, जो राम के सहायक हों, यानी राम के अनुयायी। आखिर किन कारणों से मंदिर टूटा, उन कारणों पर विचार करना चाहिए। हालांकि इसके लिए लोग संघर्ष करते रहे हैं। पहले संघर्ष में ही लाखों लोग मारे गए, राम जन्मभूमि के लिए बहुत कुर्बानी हुई है। यह कल्पना लोगों को नहीं है।
भारत में भगवान राम का स्थान तब से है, जब से हमारी संस्कृति और संस्कार हैं। भगवान राम ‘मनु’ के परिवार के हैं और उन्होंने जो आदर्श स्थापित किए, आज उन आदर्शों को ही देश जी रहा है। वरना राम जन्मभूमि पर फैसले पर 60 वर्ष लग जाएं और हम बाट जोहते रहें, इससे बढ़कर संिहष्णुता क्या हो सकती है? मैं समझता हूं कि यह मुकदमा थोड़े दिन में ही पूरा हो सकता था। इस मुकदमे में इतना समय लगने का कारण ही कोई नहीं था। फिर भी हिन्दू समाज ने धैर्य रखा। आखिर हिन्दू समाज के बर्दाश्त करने की भी एक क्षमता है। भगवान राम ने ही हमको इतना सहनशील बनाया है, लेकिन सहनशीलता का मतलब यह नहीं है कि हम कायर हैं। अन्याय को सहन नहीं करना यह बात भगवान राम ने अपने जीवन से हमको बताई।
मुझसे लोग कहते थे कि आपने श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन क्यों शुरू कर दिया, इसमें तो खून-खच्चर होगा, अपना आंदोलन वापस ले लो। मैंने कहा कि यदि भगवान राम के समय आप लोग रहे होते तो उनसे कहते कि सीता के लिए क्यों खून-खच्चर कर रहे हो, दूसरी सीता ले लो। आज जो कमजोर मानस के लोग हैं, वे ऐसा ही सोचते हैंं। उनमें शौर्य और वीर्य ही नहीं रह गया है। मगर हमारे देश के अंदर शौर्य और वीर्य खत्म हो गया है, ऐसा नहीं है। कोई ऐसा न सोचे कि हिन्दू कायर है। नेता कायर भले ही होंगे। पर हमारा समाज नहीं। राम जन्मभूमि आंदोलन ने इसे प्रकट किया है।
एक रामभक्त ने इस प्रकार का मुकदमा किया। यह न तो विहिप द्वारा हुआ है और न श्रीराम जन्मभूमि न्यास द्वारा। जिस समय श्रीराम जन्मभूमि का आंदोलन शुरू हुआ तब यह विषय भी आया कि जब हम कहते हैं कि राम जन्मभूमि हिन्दुओं को सुपुर्द करो, तो किसको सुपुर्द करो।
श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन को आप किस रूप में देखते हैं?
जिस रूप में भगवान की शक्ति प्रकट हुई, उस रूप में मैं इस आंदोलन को देखता हूं। जिस दिन निर्णय आना था, भगवान राम फिर से वहां जिस तरह प्रस्थापित हुए हैं, जरा उसका रूप देखिए सारे देश की दृष्टि वहां चली गई, यह है उनकी शक्ति। इस शक्ति को देश के लोग पहचानें। जितने गुण संसार में हैं, वे सारे के सारे गुण एक व्यक्ति में समाए हैं और वे हैं भगवान राम। आज भी हमारा समाज वे सारे गुण लेकर जी रहा है। हमारे देश के लोगों में विदेशी दुर्गुण तेजी से आ रहे हैं। भारतीयों के गुणों की रक्षा के लिए लाखों संत लगे हुए हैं।
हर संत इस काम में लगा हुआ है कि हमारे देश के भीतर राम ने जो आदर्श स्थापित किए, उनके जो गुण हैं, वे कैसे संजोकर रखे जा सकें। दिनरात इसी की कोशिश हो रही है इसलिए विदेशी शक्तियां भारत के इन आदर्शों को मिटाने में सफल नहीं हो पा रहीं और न हो सकेंगी। बल्कि राम के गुणों का प्रताप ऐसा है कि ये सब लोग पराजित हो जाएंगे। मैं श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन को इसी रूप में देखता हंू। भगवान राम जिस दिन भव्य मंदिर में प्रस्थापित हो जाएंगे, उस दिन से भारत का उत्थान शुरू हो जाएगा। इस तरह राम जन्मभूमि आंदोलन भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान का आधार बन गया है।
देश के बड़े-बड़े संत-महंत-आचार्य इसमें शामिल करो। तब रामजन्मभूमि न्यास का निर्माण हुआ, जिसमें बड़े-बड़े आचार्य शामिल किए गए और इसका संविधान बना है। इस न्यास को तीनों न्यायाधीशों ने अधिकृत माना है। इसी के माध्यम से धन संग्रह हुआ। इसी की देखरेख में पिछले 20 साल से अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए पत्थरों की गढ़ाई का काम चल रहा है।
मंदिर निर्माण की क्या योजना है?
हमारे देश में जो कानून है, उसके अनुसार वहां मालिकाना हक भगवान राम का है। भगवान राम वहां नाबालिग हैं और मुकदमा कोई बालिग ही लड़ सकता है, इसलिए उनकी तरफ से एक रामभक्त ने इस प्रकार का मुकदमा किया। यह न तो विहिप द्वारा हुआ है और न श्रीराम जन्मभूमि न्यास द्वारा। जिस समय श्रीराम जन्मभूमि का आंदोलन शुरू हुआ तब यह विषय भी आया कि जब हम कहते हैं कि राम जन्मभूमि हिन्दुओं को सुपुर्द करो, तो किसको सुपुर्द करो।
तब हम स्वामी रामानंदाचार्य के पास गए। तब वे वैष्णव सम्प्रदाय के तीनों अखाड़ों के प्रमुख थे। हमने उनसे कहा कि हम चाहते हैं कि आपकी सुपुर्दगी में श्रीराम जन्मभूमि हमको प्राप्त हो। उन्होंने कहा कि राम केवल रामानंद सम्प्रदाय के नहीं हैं। राम तो इस देश में सबके हैं, इस दृष्टि से सारे मानव समुदाय के हैं। इसलिए मैं अकेले यह दायित्व नहीं ले सकता।
उन्होंने कहा कि देश के बड़े-बड़े संत-महंत-आचार्य इसमें शामिल करो। तब रामजन्मभूमि न्यास का निर्माण हुआ, जिसमें बड़े-बड़े आचार्य शामिल किए गए और इसका संविधान बना है। इस न्यास को तीनों न्यायाधीशों ने अधिकृत माना है। इसी के माध्यम से धन संग्रह हुआ। इसी की देखरेख में पिछले 20 साल से अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए पत्थरों की गढ़ाई का काम चल रहा है।
जब मंदिर का निर्माण हमें करना था तो यह आवश्यक था कि पत्थर की गढ़ाई का काम शुरू हो, जन्मभूमि के चारों ओर की भूमि हमें मिले। जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के दिए 45 एकड़ भूमि हमने प्राप्त की। ये सारी व्यवस्थाएं न्यास ने ही की हैं। हालांकि न्यास उस वाद में नहीं है, जो न्यायालय में गया हुआ है, लेकिन निर्माण के लिए सारी व्यवस्थाएं करनी हैं।
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