जहां पावन अयोध्या नगरी है उस उत्तर प्रदेश के श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण को लेकर अत्यंत उत्साहित हैं। रामराज्य के आदर्शों पर चलते हुए वे न सिर्फ प्रदेश के चहुंमुखी विकास में लगे हैं, बल्कि अयोध्या को भी विश्वस्तरीय नगरी बनाने को प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने श्रीराम की समभाव वाली दृष्टि के आधार पर सबके विकास के लिए किए जा रहे प्रयासों की जानकारी दी। यहां प्रस्तुत हैं पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर से हुई उनकी बातचीत के प्रमुख अंश:-
आपने श्रीराम मंदिर को राष्ट्र मंदिर की संज्ञा दी है। इसके लिए जरूरी है कि शासन व्यवस्था से लेकर प्रजा तक लोग उन आदर्शों पर चलें जिन्हें भगवान राम ने स्थापित किया था। आपकी योजना क्या है?
मैं पाञ्चजन्य परिवार को हृदय से धन्यवाद देता हूं, जो पहले दिन से ही श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति अभियान का न केवल साक्षी रहा है बल्कि इस पूरे अभियान को प्रचंड तेज के साथ आगे बढ़ाने में जिसकी बहुत बड़ी भूमिका रही है। अब श्रीराम जन्मभूमि अभियान एक निर्णायक पड़ाव की ओर अग्रसर है। पूज्य संतों और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मार्गदर्शन में जो आन्दोलन चला वह पूर्ण रूप से सफल हुआ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी और गृह मंत्री अमित शाह जी के प्रयास से एक सकारात्मक माहौल बना।
अयोध्या के बारे में अनेक प्रश्न थे। लोग पूछते थे कि क्या अयोध्या में मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो पायेगा, तब जबकि देश में सर्वाधिक समय तक शासन करने वाला राजनीतिक दल रोड़े अटका रहा था? हर स्तर पर रोड़े अटकाने का प्रयास किया गया। हम देश की न्यायपालिका के आभारी हैं। न्यायपालिका ने 500 वर्ष पुराने विवाद का पटाक्षेप एक झटके में कर दिया। यह आस्था का सम्मान भी है। 500 वर्ष के विवाद का एक झटके में निपटारा करके, देश-दुनिया को एक सन्देश भी दे दिया। लोकतंत्र की ताकत का एहसास कराया। इससे अच्छा समाधान कुछ हो ही नहीं सकता था।
यह भगवान राम की कृपा है। हम आभारी हैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के जिन्होंने मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनवाया। ट्रस्ट में गैर राजनीतिक लोगों को स्थान दिया। 5 अगस्त, 2020 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अयोध्या पधारे और भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर का शुभारम्भ किया। उन्होंने श्रीराम मंदिर निर्माण को नए भारत के निर्माण से जोड़कर देखा है। इस परिकल्पना को साकार करने के लिए उन्होंने 6 वर्ष पहले ही प्रयास आरम्भ कर दिया था। मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि अयोध्या में भव्य मंदिर का निर्माण, नए भारत का ही एक स्वरूप है। उत्तर प्रदेश में श्रीराम जन्मभूमि है। यह हमारे लिए गौरव की बात है।
प्रभु श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है। मर्यादा है, तो पुरुषोत्तम है। यह भारतीय समाज की सोच रही है। मगर अभी स्वतंत्रता की बात करते-करते स्वच्छंदता की बात, किसी तरह का प्रतिबन्ध ना होने की बात, ऐसे गुट और व्यक्ति जो आजादी को अबाध मानते हैं, अधिकारों की बात तो करते हैं, मगर कर्तव्यों की बात करना नहीं चाहते, इस विमर्श को श्रीराम जी की कसौटी पर किस तरह देखते हैं?
राष्ट्र में सुशासन और राम मंदिर निर्माण के सूत्रों को क्या आप जुड़ा हुआ देखते हैं ?
प्रधानमंत्री मोदी जी ने श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण के शुभारम्भ के 6 वर्ष पहले ही उसकी नींव रख दी थी। मोदी जी ने शासन व्यवस्था के माध्यम से रामराज्य की नींव रखी। राम राज्य यही है कि व्यक्ति-व्यक्ति में भेद नहीं होगा। हम शासन की योजनाएं सबको देंगे। जाति, मत, मजहब, क्षेत्र और भाषा के आधार पर भेदभाव नहीं होगा। किसी की तुष्टि भी नहीं करेंगे। मकान देंगे तो सबको देंगे। शौचालय देंगे तो सबको देंगे। विद्युत कनेक्शन देंगे तो सबको देंगे, रसोई गैस देंगे तो सबको देंगे, आयुष्मान भारत का ‘कवर’ देंगे तो सबको देंगे। हमारे लिए भारत एक परिवार है। हम आदिदैविक, आदिभौतिक और आध्यात्मिक-तीनों प्रकार के तापों से मुक्ति दिलाएंगे। आज हम लोग उसी भाव के साथ आगे बढ़ रहे हैं।
देश के राजनीतिक धरातल पर बदलाव और श्रीराम जन्मभूमि से समाज के जुड़ाव की क्या व्याख्या करेंगे?
अयोध्या में भव्य मंदिर निर्माण के लिए 1528 से आन्दोलन चल रहा था। हर 15-20 वर्ष पर कोई ना कोई आन्दोलन होता था। मगर जो आधुनिक आन्दोलन चला वह 1983 के बाद शुरू हुआ। स्वतंत्रता के बाद चलने वाला यह सबसे बड़ा सांस्कृतिक आन्दोलन था। इस पूरे आन्दोलन में लोग एक बात पूछते थे कि आप मंदिर निर्माण कैसे करेंगे? कांग्रेस की सरकार ने 1989 में प्रस्ताव दिया था कि ‘आप मंदिर निर्माण कहीं भी कर लीजिये मगर जहां रामलला विराजमान हैं, वहां की बात मत करिए। वहां से 200 मीटर दूरी पर शिलान्यास करके मंदिर निर्माण कर लीजिये। हम आपको जमीन दे देते हैं। हम आपको पैसा दे देते हैं।’ मगर हमारे लिये सिर्फ मंदिर निर्माण का विषय नहीं था।
भव्य मंदिर का निर्माण, राम जन्मभूमि पर करना था। ऐसा मंदिर जो प्रभु श्रीराम के जीवन की मर्यादाओं के अनुरूप बन सके। इसके साथ ही यह भी ध्यान रखा जाना था कि मंदिर को हम सरकारी पैसे से नहीं बनायेंगे। इसके लिए हम समाज के अंतिम पायदान पर बैठे हुए व्यक्ति के पास जायेंगे। आज के दिन केंद्र सरकार या राज्य सरकार किसी एक व्यक्ति को बोल देगी, तो वह अपने आप ही मंदिर बना सकता है। मगर वह भाव नहीं आयेगा। हम देश के अन्दर 100 करोड़ हिन्दुओं की भावना के अनुरूप श्रीराम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करेंगे। इसमें सबका सहयोग होगा। यह सरकारी मंदिर नहीं होगा। यह भारत का प्रतिनिधित्व करने वाला मंदिर होगा। भारत के अन्दर क्या गरीब, क्या अमीर, क्या धर्माचार्य, क्या एक भिक्षाटन करने वाला संन्यासी, भगवान राम के लिए हरेक में एक-सा भाव है। हरेक की भंगिमाएं एक जैसी हैं। हम इन सब को समेटते हुए चलेंगे।
श्री रामजन्मभूमि अभियान के लिए सामाजिक चेतना के जागरण और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहभाग को कैसे देखते हैं?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा में हमेशा व्यक्ति निर्माण पर जोर दिया गया है, क्योंकि व्यक्ति, समाज के निर्माण की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। वह कड़ी जब आपस में जुड़ती है तब समाज का निर्माण होता है। समाज के निर्माण की जब एक मजबूत नींव खड़ी होती है, तब एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण होता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज दुनिया में बगैर किसी सरकारी सहयोग के जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलतापूर्वक कार्य कर रहा है।
‘रामचरितमानस की चौपाई-दैहिक दैविक भौतिक तापा, राम राज नहिं काहुहिं ब्यापा’ का संदर्भ दिया आपने। मगर पूर्वी उत्तर प्रदेश लम्बे समय से उपेक्षित रहा है। वहां उद्योग-धंधे ज्यादा नहीं हैं। विकास नहीं हुआ है। अब राम जी की नगरी, अयोध्या का विकास होगा। इस पूरे क्षेत्र के लिए आपकी क्या योजना है? क्या सामान्य लोगों के जीवन स्तर में सुधार होगा? जिस सुधार और सुविधा से वे लोग वंचित रहे हैं, क्या उसके लिए किसी दीर्घकालिक योजना पर काम हुआ है?
उत्तर प्रदेश एक बहुत ही समृद्धशाली प्रदेश है। उत्तर प्रदेश मानवता की भूमि है, मानवता की पहली नगरी है अयोध्या। मनु इस धरती के राजा हुए हैं। उनका जन्म अयोध्या में हुआ था। उनकी राजधानी अयोध्या थी। काशी दुनिया की प्राचीन नगरी है। प्रयागराज का तो दस हजार वर्ष का लिखित इतिहास है। इतनी प्राचीन नगरियां हमारे पास हैं। बौद्ध सर्किट से जुड़े हुए सर्वाधिक तीर्थ स्थल उत्तर प्रदेश में हैं। भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त करने के बाद अपना पहला उपदेश जहां दिया था वह सारनाथ उत्तर प्रदेश में है। उन्होंने सर्वाधिक चातुर्मास जहां व्यतीत किये थे, वह श्रावस्ती उत्तर प्रदेश में है। अनेक जैन तीर्थ उत्तर प्रदेश में हैं।
कौशाम्बी, कुशीनगर और कपिलवस्तु भी उतर प्रदेश में ही हैं। देश और दुनिया में वर्तमान समय में पेयजल का संकट है। उत्तर प्रदेश में पेयजल की प्रचुरता है। पेयजल का कोई संकट नहीं है। यह हमारे लिए अवसर है। हम पर्यटन के माध्यम से उत्तर प्रदेश को एक नई पहचान दिलाएंगे। पर्यटन का मतलब केवल पिकनिक नहीं है। यह रोजगार से भी जुड़ता है। अयोध्या, काशी और प्रयागराज के बारे में जो कार्ययोजना बनाई गई थी, अब वह साकार हो रही है। अपने प्राचीन और आध्यात्मिक कलेवर को बनाये रखते हुए भौतिक विकास की आधुनिकता यहां पर दिखाई दे, उसके लिए हम पूरी प्रतिबद्धता के साथ कार्य कर रहे हैं। इन प्राचीन नगरों को विश्वस्तरीय शहरों के रूप में जाना जाए, इसके लिए तेजी से प्रयास किया जा रहा है।
अयोध्या की दीपावली का जो क्रम 2017 में प्रारंभ हुआ, इस दीपोत्सव के विशेष आयोजन के पीछे कोई प्रायोजन!
2017 में लोगों के सामने बहुत सारी आशंकाएं थीं। मुझे याद है, दीपावली के अवसर पर प्रशासनिक अधिकारी शुभकामनाएं देने के लिए आना चाहते थे। मैंने कहा कि पिछले 15 वर्ष से जनजातीय लोगों के साथ मैं दीपवाली के कार्यक्रम में रहता हूं। फिर मुझे ध्यान आया कि दीपावली तो वास्तव में अयोध्या से जुड़ी हुई है। चौदह वर्ष के बाद जब भगवान राम का आगमन हुआ था, उसी की स्मृति में हम दीपावली मनाते हैं। जब मैंने पता किया कि अयोध्या में दीपावली कैसे मनाई जाती है तो मालूम हुआ कि वहां तो वीरानी है। बहुत उत्सुकता नहीं है। तब हम लोगों ने इसकी योजना बनाई। पहले वर्ष यह सोचा कि हम सभी को जोड़ेंगे। संतों को जोड़ेंगे, जन प्रतिनिधियों, भक्तों और सामान्य नागरिकों को जोड़ेंगे। समय कम था।
हमने 51,000 दीप प्रज्जवलित करने की बात कही। अयोध्या से क्या, पूरे प्रदेश से 51,000 दीप एकत्र करने पड़े थे। उसके बाद रामलीला का आयोजन और भगवान राम का पुष्पक विमान से आगमन, इस सब कड़ी को जोड़ा गया। 2017 में आयोजन हुआ। 2018 के आयोजन में दक्षिण कोरिया की प्रथम महिला नागरिक मुख्य अतिथि बनीं। 2019 में फिजी की उपप्रधानमंत्री इस कार्यक्रम की मुख्य अतिथि बनीं। कोविड-19 के कारण हम 2020 में किसी को नहीं बुला पाए, मगर फिर भी हम लोगों ने बहुत भव्य आयोजन कराए। इतने बड़े आयोजन को हम लोगों ने सफलतापूर्वक संपन्न किया। देश और दुनिया उसके साथ जुड़ी है। जनता ने बहुत सराहा। एक अच्छी शुरुआत रही है। अयोध्या में दीपोत्सव के कार्यक्रम ने अयोध्या को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान दिलाई। आज यह लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी है। लोगों ने इसमें पर्यटन की बहुत सारी संभावनाएं भी देखी हैं।
वनों, कंदराओं की बात हो, भील, केवट, शबरी की बात हो या फिर वानरों की, भगवान राम अपने जीवन में सबको साथ लेकर चले। वे एकता की बात करते हैं। लेकिन बहुत से लोग समाज और देश विभाजक रेखाओं की बात करते हैं, वे शैव की बात करेंगे, शाक्त की बात करेंगे, गोरक्ष पीठ की अलग बात करेंगे। रामानंदी सम्प्रद्राय की अलग बात करेंगे। ऐसे में राम जन्मभूमि आन्दोलन में आप अपने दादा गुरु द्वारा किये गए नेतृत्व और भारतीय समाज के साम्य-सामंजस्य को कैसे देखते हैं?
हम इस बात को ध्यान में रखें कि देव और दानव एक साथ धरती पर पैदा हुए हैं और एक साथ चले हैं। जो रचनात्मक भाव रखते हैं, वे देव हो गए। जो नकारात्मक और विध्वंसात्मक भाव रखते हैं वे दानव हो गए। जहां दैवीय भाव है उसने कभी विभाजन रेखा नहीं खींची। उसने जोड़ने का भाव रखा। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना की। अयोध्या में भगवान राम द्वारा स्थापित शिवालय आज भी मौजूद है। ये शैव और वैष्णव की बात ही कहां से आती है? गोरक्ष पीठ तो शैव परम्परा की पीठ है। 1949 से लगातार गोरक्ष पीठ मजबूती के साथ राम जन्मभूमि आन्दोलन के साथ जुड़ी रही है।
ब्रह्मलीन परम पूज्य दिग्विजयनाथ जी रहे हों या मेरे पूज्य गुरु जी अवैद्यनाथ जी महाराज रहे हों। उन्होंने इस आन्दोलन को अपना आन्दोलन मानकर इसमें सहभागिता की। वे बिना किसी परवाह के, बिना किसी लाग-लपेट के, बिना किसी दबाव के इसके साथ जुड़े रहे। उस कालखंड में भी उस आन्दोलन से जुड़कर उसका नेतृत्व कर रहे थे। यह वह भाव है जो रचनात्मक है। लेकिन जो विभाजन रेखा खींचते हैं वे अपनी उस दानवी बुद्धि का काम करते हैं, जिसने अपने अतीत कालखंड में समाज को विभाजित करने का काम किया था। पहले वे वैष्णव, शैव, शाक्त के आधार पर बांटते थे, आज जाति, मत और मजहब के नाम पर विभाजित करने का प्रयास करते हैं। विभाजन का प्रयास करना उनकी प्रवृत्ति है। वे हमेशा परास्त होते रहे हैं। वे उसी रूप में परास्त होते रहेंगे। हमारा काम जोड़ना है। हम जोड़ते रहेंगे। हम विजयी होते रहेंगे।
अयोध्या के आस-पास भगवान राम की कथा से जुड़े हुए कई स्थान हैं, जैसे नंदीग्राम जहां से श्रीराम के वनवास के समय भरत ने राजकाज चलाया। अयोध्या सर्किट कैसा होगा? दुनिया इसे कैसे देखेगी?
हम लोगों का प्रयास है कि पहले चरण में पंचकोसी परिक्रमा मार्ग के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र को ‘सोलर सिटी’ के रूप में वकसित करें। इस योजना पर कार्य चल रहा है। भगवान श्रीराम ने सूर्यवंश में अवतार लिया था, इसलिए हम लोग अयोध्या को ‘सोलर सिटी’ के रूप में विकसित करना चाहते हैं। हम ग्रीन एनर्जी का पूरा उपयोग करेंगे। हम लोगों ने राम जी की पैड़ी को एक नया स्वरूप दिया है। इस बार दीपावली के अवसर पर जो कार्यक्रम हुआ था, बहुत अच्छे ढंग से हमने इसको आगे बढ़ाया है। मंदिर निर्माण के बाद पर्यटकों और श्रद्धालुओं की संख्या में कई गुना वृद्धि होने वाली है। उसकी तैयारी हम अभी से कर रहे हैं। जर्जर और लटके हुए बिजली के तारों को हटाकर भूमिगत केबल बिछा दी गई है।
पुरानी अयोध्या में तो भूमिगत केबल का कार्य लगभग पूरा हो चुका है। शेष में कार्य युद्ध स्तर पर चल रहा है। इसी प्रकार से चौदह कोसी परिक्रमा मार्ग में पैदल चलने वाले लोगों को कोई परेशानी ना हो, उनको बुनियादी सुविधाएं मिल सकें, इसका इंतजाम किया जा रहा है। इसी तरह की सुविधाएं चौरासी कोसी परिक्रमा मार्ग में भी उपलब्ध कराई जाएंगी। नंदी ग्राम का आपने जो उल्लेख किया, जहां भगवान राम के इन्तजार में भरत जी ने चौदह वर्ष बिताये थे और वहां से शासन व्यवस्था का संचालन किया था, वहां की कार्ययोजना अलग से बन रही है। अयोध्या के घाटों के लिए भी अलग से हमारी कार्ययोजना बन रही है।
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