वीर कोठारी बंधु 
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वीर कोठारी बंधु 

श्रीराम जन्म स्थान पर रामलला के मंदिर का पुनर्निर्माण करने के आंदोलन के अपराध के कारण 2 नवंबर, 1990 को शहीद हुए 23 वर्ष के राम कुमार कोठारी और 20 वर्ष के शरद कोठारी कल तक हमारे स्नेह भाजन थे, आज वे श्रद्धाभाजन हो गए थे।

by विष्णुकान्त शास्त्री
Jan 22, 2024, 06:13 pm IST
in भारत, उत्तर प्रदेश
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23 वर्ष के राम कुमार कोठारी और 20 वर्ष के शरद कोठारी को अयोध्या में 2 नवंबर, 1990 को गोली मार दी गई थी। उनकी वीरता की कहानी आज भी सुनाई जाती है

बढ़ जाता है मान वीर का 
रण में बलि होने से।
मूल्यवती होती सोने की 
भस्म यथा सोने से।

आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री
पूर्व राज्यपाल

सुभद्रा कुमारी चौहान की इन मार्मिक पंक्तियों का अर्थ सचमुच उपलब्ध कर पाया 5 नवंबर, 1990 को, जब कलकत्ते के विख्यात समाजसेवी सर्वश्री अभिमन्यु भवालका, पी.डी. चितलांगिया, जुगल किशोर जैथलिया आदि के साथ मैं अमर शहीद कोठारी बंधुओं के माता-पिता से मिलने गया। मुलायम सिंह यादव के दानवी अत्याचारों का ‘शांतिपूर्ण प्रतिवाद’ करते हुए अयोध्या की पावन भूमि में श्रीराम जन्म स्थान पर रामलला के मंदिर का पुनर्निर्माण करने के आंदोलन के अपराध के कारण 2 नवंबर, 1990 को शहीद हुए 23 वर्ष के राम कुमार कोठारी और 20 वर्ष के शरद कोठारी कल तक हमारे स्नेह भाजन थे, आज वे श्रद्धाभाजन हो गए थे।

‘‘वे दोनों मेरी आज्ञा लेकर ही गए थे और कहकर गए थे कि चाहे जो हो पीठ दिखाकर नहीं लौटेंगे।’’
‘‘श्रीराम जन्मस्थान पर मंदिर अवश्य बनना चाहिए।’’ – हीरालाल कोठारी

पूरा परिवार संघ-परिवार है। शरद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक शाखा का मुख्य शिक्षक था और रामकुमार एक मंडल  का कार्यवाह। पिता, माता और बहन भी उसकी विविध संस्थाओं की गतिविधियों में भाग लेते रहे हैं। मकान के दरवाजे पर और प्राय: सभी कमरों के द्वारों पर
डॉ. हेडगेवार की तस्वीर और ‘गर्व से कहो, हम हिंदू हैं’ के स्टिकर लगे हुए थे।

बाली की टेढ़ी-मेढ़ी गलियों को पार कर जब हम लोग कोठारी-परिवार के घर पहुंचे तो देखा शोकार्त्त कार्यकर्ताओं का एक बड़ा दल उस मकान के बाहर खड़ा है। कोठारी परिवार का छोटा सा फ्लैट शोक-संवेदना समादर व्यक्त करने वाले स्त्री-पुरुषों से भरा हुआ था। जिस कमरे में कोठारी बंधुओं के पिता-पितामह बैठे थे, उसमें तिल रखने की जगह नहीं थी। हम लोगों को देखकर कुछ कार्यकर्ता बाहर आ गए। हमलोग जाकर उनके सामने बैठ तो गए किंतु कोई कुछ बोल नहीं पाया काफी देर तक! अज्ञेय जी ने ठीक ही लिखा है, ‘‘शब्द यह सही है कि सब व्यर्थ है, पर इसलिए कि शब्दातीत कुछ अर्थ हैं।’’

सबसे पहले कोठारी बंधुओं के पिता श्री हीरालाल कोठारी ही बोले, ‘‘वे दोनों मेरी आज्ञा लेकर ही गए थे और कहकर गए थे कि चाहे जो हो पीठ दिखाकर नहीं लौटेंगे।’’ वृद्ध दादा आंखें पोंछ रहे थे किंतु 50 के करीब के पिता अविचलित थे। पत्रकारों ने जब उनसे युवा पुत्रों के बलिदान पर उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही तो उन्होंने कहा, ‘‘श्रीराम जन्मस्थान पर मंदिर अवश्य बनना चाहिए।’’ यह पूरा परिवार संघ-परिवार है। शरद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक शाखा का मुख्य शिक्षक था और रामकुमार एक मंडल  का कार्यवाह। पिता, माता और बहन भी उसकी विविध संस्थाओं की गतिविधियों में भाग लेते रहे हैं। मकान के दरवाजे पर और प्राय: सभी कमरों के द्वारों पर डॉ. हेडगेवार की तस्वीर और ‘गर्व से कहो, हम हिंदू हैं’ के स्टिकर लगे हुए थे।

अर्जुन को उपदेश देते हुए महाभारत के सूत्रधार श्रीकृष्ण का बड़ा चित्र गलियारे को अलंकृत किए हुए था। इसी वातावरण में पलने-बढ़ने के कारण कोठारी बंधुओं में निर्भीक आत्मोत्सर्ग करने की क्षमता विकसित हुई थी। पत्रकारों के प्रश्न के उत्तर में बहन ने अकंपित स्वर में कहा था, ‘‘मेरे सिर्फ दो भाई थे। यदि दो भाई और होते और वे श्रीराम मंदिर के लिए न्योछावर हो जाते तो मैं अपने को और धन्य मानती।’’ बहन की इस निष्ठा के आगे सबके सिर अपने आप झुक गए। मां जरूर रो रही थीं, किन्तु उनके पवित्र आंसुओं में किसी एक परिवार की नहीं, पूरे देश की व्यथा भरी हुई थी।

(पाञ्चजन्य,18 नवंबर, 1990)

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