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राम मंदिर का न्योता ठुकराना, आलोक कुमार को न पहचानने का नाटक, क्या है अखिलेश यादव की सियासी मजबूरी ?

अखिलेश यादव इंडी अलायंस के सदस्य हैं और गठबंधन के धर्म का पालन तो करना ही पड़ेगा।

by Kuldeep singh
Jan 10, 2024, 12:34 pm IST
in भारत, विश्लेषण
Akhilesh Yadav rejected Ram Temple inauguration Alok Kumar

अखिलेश यादव, समाजवादी पार्टी प्रमुख

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आखिरकार अखिलेश यादव ने पिता मुलायम सिंह यादव की राह पर चलते हुए हिन्दुओं को छोड़कर मुस्लिम प्रिय बनने का फैसला कर ही लिया। शायद इसीलिए जब विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार 22 जनवरी को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होने के लिए उन्हें निमंत्रण देने गए तो उन्होंने निमंत्रण लेने से साफ इनकार कर दिया। इतना ही नहीं सपा प्रमुख ने कहा कि ऐसे ही किसी ऐरे-गैरे से निमंत्रण नहीं ले सकते।

दरअसल, जब विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार उन्हें राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होने का निमंत्रण देने गए तो उन्होंने न सिर्फ इसे लेने से मना कर दिया। बल्कि, रिपोर्ट्स में तो यहां तक दावा किया जा रहा है कि आलोक कुमार और अखिलेश यादव के बीच तीखी बहस भी हुई। अखिलेश यादव ने कहा कि वो आलोक कुमार को नहीं जानते हैं। निमंत्रण वो देते हैं, जो एक-दूसरे को जानते हैं। मेरी उनसे कभी भी मुलाकात नहीं हुई। जिसका परिचय एक-दूसरे से होता है वही एक-दूसरे को व्यवहार देते हैं।

अखिलेश यादव की इस बयानबाजी के बाद आलोक कुमार ने अखिलेश यादव के पुराने बयान का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर बुलाया जाएगा तो वे आएंगे। इसीलिए उन्हें निमंत्रण भेजा गया था, लेकिन अब वो कह रहे हैं कि भगवान बुलाएंगे तो वो आएंगे। ऐसे में अगर अखिलेश यादव नहीं आते हैं, तो ये स्पष्ट हो जाएगा कि भगवान राम खुद नहीं चाहते हैं कि वो अयोध्या आएं।

अब अखिलेश यादव के इस तरह के बयान के अंदर छिपी सियासी गहराई को समझने का प्रयास करते हैं। सबसे पहले तो ये कि अखिलेश यादव कांग्रेस की अगुवाई वाले इंडि अलायंस के सदस्य हैं। इंडि अलायंस में सीपीआईएम भी है। वामपंथी सीताराम येचुरी और वृंदा करात पहले ही राम मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल होने से इनकार कर चुके हैं। दूसरी ओर कांग्रेस नेता राहुल गांधी और सोनिया गांधी को भी इसमें शामिल होने का निमंत्रण दिया दिया गया था। लेकिन वो भी मुस्लिम तुष्टिकरण के भंवर में फंसे हुए हैं। कांग्रेस को तो केरल का मुस्लिम संगठन पहले से ही चेता चुका है कि राम मंदिर के उद्घाटन समारोह में शामिल होने को लेकर। ऐसे में कांग्रेस के लिए ये स्थिति आगे कुंआ और पीछे खाईं वाली है।

अगर कांग्रेस राम मंदिर के उद्घाटन समारोह में शामिल हुए तो उनका कोर मुस्लिम वोट बैंक उनसे नाराज हो जाएगा, जबकि अगर नहीं शामिल होते हैं तो भाजपा उन्हें हिन्दू विरोधी साबित कर देगी। स्थिति कुछ ऐसी है कि कांग्रेस इस निमंत्रण को न तो निगल पा रही है और न ही उगल पा रही है। इतना ही नहीं जनेऊधारी मौसमी पंडित बनने वाले राहुल गांधी का पाखंड भी दांव पर लगा हुआ है। इधर बिहार में लालू के लाल तेजस्वी यादव पहले से ही उत्तर भारत के डीएमके बनने की कोशिशों में लगे हुए हैं। उनकी पार्टी आरजेडी लगातार राम विरोधी बयानबाजी कर रही है।

रही बात अखिलेश यादव की तो उनके हालात भी कुछ कांग्रेस जैसे ही हैं। पिता मुलायम सिंह ने राम मंदिर के लिए लड़ाई लड़ने वाले कारसेवकों पर गोलियां चलवाईं थी, जब जीते रहे मुस्लिम तुष्टिकरण करते रहे। अब उनके बाद बेटे अखिलेश ने पिता के विचारों को पूरी तरह से आत्मसात कर रखा है। वो भी तुष्टिकरण में जी जान से लगे हुए हैं। वो भले ही ये कह रहे हैं कि वो वीएचपी के अध्यक्ष आलोक कुमार को नहीं जानते हैं, लेकिन सत्य तो यही है कि वो राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होकर मुस्लिम वोटरों को नाराज नहीं करना चाहते हैं।

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