चीन के विदेश मंत्रालय की ताजा प्रेस विज्ञप्ति बताती है कि मालदीव के हाल में राष्ट्रपति बने मोहम्मद मुइज्जू 8 से 12 तक चीन के दौरे पर रहेंगे। राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने वाले मुइज्जू को चीन परस्त कहा ही जाता है इसलिए अगर परंपरा के अनुसार, वे पहले भारत के दौरे पर नहीं आ रहे हैं तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। वैसे भी चुनाव जीतने के फौरन बाद वे तुर्किए हो आए हैं। लेकिन यहां यह भी ध्यान रहे कि उसे बाद संयुक्त अरब अमीरात में उनकी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भेंट हो चुकी है।
मालदीव में मुइज्जू के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही यह समझा जा रहा था कि अब वे अपने वादे के अनुसार, भारत से वैर निकालेंगे और पहले ही दिन भारतीय सैनिकों को मालदीव से रवाना कर देंगे। लेकिन अभी ऐसा हुआ नहीं है। वही मोहम्मद मुइज्जू अगर 8 से 12 जनवरी तक यानी पांच दिन के लिए चीन जा रहे हैं तो माना जा रहा है कि वे वहां कम्युनिस्ट नेताओं से भारत विरोध का पाठ पढ़ने वाले हैं।
चीन के विदेश मंत्रालय का इस तरफ ऐसा उत्साह है कि उनकी बीजिंग यात्रा से तीन दिन पहले ही उसने विज्ञप्ति जारी करके इसकी खबर दे दी। मुइज्जू को मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन का करीबी माना जाता है। जबकि उनसे पहले राष्ट्रपति पद पर बैठे इब्राहिम मोहम्मद सोलिह भारत के मित्र माने जाते थे जिन्हें हराकर मुइज्जू वहां नए राष्ट्रपति बने हैं।
सब जानते हैं कि टापू देश मालदीव के 2013 से 2018 तक राष्ट्रपति रहे यामीन भी चीन के पिछलग्गू नेता ही माने जाते थे, उन्हीं की सरपरस्ती में वर्तमान राष्ट्रपति मुइज्जू का राजनीतिक कैरियर परवान चढ़ा है। इसलिए विशेषज्ञों को उनके भारत से पहले चीन का दौरा करने को लेकर कोई हैरानी नहीं हुई है। चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने बताया है कि मुइज्जू को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने न्योता भेजा था जिसके तहत मालदीव के नए राष्ट्रपति का यह दौरा हो रहा है।
टापू देश मालदीव में इससे पहले सोलिह के राष्ट्रपति रहते उस देश ने भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों में नए आयाम छुए थे। इस निकटता की वजह से ही वहां के नेताओं का चीन से पहले भारत के दौरे पर आना एक परंपरा जैसा बन गया था। लेकिन मुइज्जू उस परंपरा से इतर हुए हैं।
मालदीव में भी चीन अपने पैसे के बूते वही चाल चल रहा है जो अन्य पिछड़े देशों के संदर्भ में वह चलता आ रहा है। और वह चाल है उस देश में विकास योजनाओं के नाम पर पैसा झोंकना। उसी लीक पर चलते हुए पिछले कुछ वक्त में चीन ने मालदीव में भी कुछ बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं में पैसा लगाया है और इस तरह उस देश पर अपना दबदबा बढ़ाने की कोशिश की है। यही वजह है कि मोहम्मद मुइज्जू राष्ट्रपति शी द्वारा परंपराओं को तोड़ने की चाल में आए हैं।
कॉप 28 के शिखर सम्मेलन के मौके पर संयुक्त अरब अमीरात गए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से राष्ट्रपति मुइज्जू ने शिष्टाचार भेंट की थी। मोदी और मुइज्जू की बातचीत में हालांकि दोनों ने आपसी संबंधों की प्रगति को लेकर बात की थी। इसी में आपसी हित के अनेक आयामों पर भी बात हुई थी। दोनों नेताओं ने आपसी रिश्तों को प्रगाढ़ रखने पर सहमति जताई थी।
वैसे यहां यह याद दिलाना उचित ही होगा कि कॉप 28 के शिखर सम्मेलन के मौके पर संयुक्त अरब अमीरात गए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से राष्ट्रपति मुइज्जू ने शिष्टाचार भेंट की थी। वैसे मुइज्जू चुनाव जीतने के फौरन बाद तुर्किए जा चुके हैं। उसके बाद ही वे संयुक्त अरब अमीरात गए थे। मोदी और मुइज्जू की बातचीत में हालांकि दोनों ने आपसी संबंधों की प्रगति को लेकर बात की थी। इसी में आपसी हित के अनेक आयामों पर भी बात हुई थी। दोनों नेताओं ने आपसी रिश्तों को प्रगाढ़ रखने पर सहमति जताई थी।
जैसा पहले बताया, मुइज्जू ने अपने चुनाव प्रचार को भारत विरोध का मौका बनाते हुए कहा था कि अगर वे जीते तो शपथ लेने के अगले ही दिन भारत के मालदीव में तैनात 77 सैन्यकर्मियों को वापस भेज देंगे। बाद में भी, जीत के जश्न के कार्यक्रम में उन्होंने अपनी वह बात दोहराई थी। ये वही मुइज्जू हैं जिन्होंने तत्कालीन यामीन सरकार में कैबिनेट मंत्री रहते हुए, चीन को अनेक परियोजनाएं सौंपी थीं और चीन हित के फैसले लिए थे। उनका और उनके सरपरस्त यामीन का भारत विरोधी रवैया उन्हें चीन की गोद में बिठाने की वजह माना जा रहा है।
चीन के कम्युनिस्ट नेता भी यही चाहते हैं कि भारत के पड़ोसी देश और वे छोटे देश जो भारत से नजदीकी रखते हैं, वहां वह भारत विरोधी माहौल पैदा करे और भारत के हितों को ठेस पहुंचाए। पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और अब मालदीव में उसकी यही चाल चल रही है। अपने पैसे के दम पर इन देशों को परियोजनाओं या कर्ज के बहाने वही अकूत पैसा देता है और उस देश की नीतियों को अपने पक्ष में मोड़ने का काम करता है।
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