कतर के एक ट्रायल कोर्ट द्वारा पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारियों को सुनाई गई सजा में कमी उस उभरती हुई भू-राजनैतिक गतिशीलता का परिणाम है जिसमें भारत अब मुख्य किरदार में है। इसके परिणामस्वरूप समस्त देश अब राहत की सांस ले सकता है
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय कूटनीति ने एक और जीत दर्ज की है। कतर ने दहरा ग्लोबल मामले में 8 पूर्व नौसेना अधिकारियों की मौत की सजा को कम करने की घोषणा की है। यह घटनाक्रम वास्तव में उन लोगों के लिए करारा तमाचा है, जिन्होंने हमारे नौसेना अधिकारियों को कतर द्वारा मौत की सजा दिए जाने को सरकार का मजाक उड़ाने का अवसर बना लिया था।
वास्तव में भारतीय पूर्व सैनिकों को कतर में सुनाई गई सजा में कमी उस उभरती हुई भू-राजनीतिक गतिशीलता का परिणाम है, जिसमें भारत मुख्य भूमिका में है। कोई व्यक्ति या दल सरकार की किसी भी नीति से असहमत या असंतुष्ट हो सकता है, लेकिन कम से कम तीन क्षेत्र ऐसे हैं, जिन पर मोदी सरकार बहुत मजबूत है और यदि कोई उन क्षेत्रों में भी सरकार की आलोचना करता है, तो यह उसके लिए बहुत जोखिम भरा सौदा साबित हो सकता है। इनमें सर्वोपरि है- सीमा सुरक्षा का विषय।
ताजा घटनाक्रम के संदर्भ में, भारत और संयुक्त अरब अमीरात द्वारा फ्रांस से राफेल लड़ाकू जेट की खरीद, कतर के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इस रणनीतिक धुरी के साथ जुड़ने में कतर के गहरे हित जुड़े हैं, विशेषकर इस दृष्टि से कि वह अमेरिकी रक्षा प्रौद्योगिकी के विकल्प के रूप में थोड़े गहरे किस्म के रक्षा सहयोगियों की तलाश में काफी रुचि ले रहा है।
मोदी सरकार देश की सुरक्षा के प्रति जितनी चौकस है, उतनी तत्पर भारत की पिछली कोई भी सरकार संभवत: कभी नहीं रही। इसी प्रकार दूसरा क्षेत्र है- विदेशी संबंध या कूटनीति। स्वतंत्रता के बाद पहली बार भारत ने विश्व के लगभग हरेक देश के साथ अपने संबंधों को स्थापित और पुनर्जीवित किया है। इससे वैश्विक कूटनीति में भारत की स्थिति काफी सुदृढ़ हो चुकी है। तीसरा क्षेत्र है- सरकार की व्यापार नीतियां, जो राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों और विदेशी संबंधों के साथ गहरे तालमेल में हैं।
कथित जासूसी के आरोप में 8 पूर्व भारतीय नौसेना कर्मियों को कतर के एक ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई मौत की सजा को पलटने और उनकी बेगुनाही को स्थापित करने के लिए राजनयिक चैनलों और कानूनी माध्यमों से भारत सरकार और विशेष स्वयं प्रधानमंत्री और विदेश मंत्रालय द्वारा अथक प्रयास किए गए थे, जो अंतत: सफल रहे हैं। कतर में अपील अदालत ने मौत की सजा को 5 साल कैद में बदल दिया है, जिसके परिणामस्वरूप अब पूरा देश राहत की सांस ले सकता है।
अगले कदम में विशेष रूप से कूटनीतिक प्रयास शामिल हो सकता है, जिसमें 2015 में भारत और कतर द्वारा हस्ताक्षरित एक संधि का आह्वान शामिल है, जिसके तहत प्रत्येक देश के दोषी नागरिकों को अपने देश में अपनी सजा काटने की अनुमति दी जा सकती है। किसी भी स्थिति में हमारे पूर्व नौसेनाकर्मी अब उस मृत्युदंड से बच गए हैं, जो निश्चित रूप से चिंताजनक बात थी। वास्तव में भारतीय नौसेना कर्मियों की मौत की सजा सुनाए जाने की घटना ने अंतरराष्ट्रीय आक्रोश और चिंता पैदा कर दी थी।
इस घटनाक्रम को अगर गहराई से देखें, तो कतर और भारत के बीच बढ़ते व्यापारिक संबंध, विशेष रूप से तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) के क्षेत्र में, दोनों देशों के संबंधों की गहराई को स्पष्ट रेखांकित करते हैं। वित्तीय वर्ष 2021-2022 में द्विपक्षीय व्यापार बढ़कर 17.2 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया था। भारत कतर से जो कुछ भी कुल आयात करता है, उसमें आधे से अधिक हिस्सा एलएनजी का है। ऊर्जा वस्तुओं, विशेष रूप से एलएनजी के लिए कतर पर भारत की निर्भरता आधे से अधिक की है। भारत के प्राकृतिक गैस आयात में कतर की 54.0% की भारी-भरकम हिस्सेदारी है, जिसका मूल्य सबसे हाल के वित्तीय वर्ष में 8.32 बिलियन डॉलर है।
2015 में भारत और कतर द्वारा हस्ताक्षरित एक संधि का आह्वान शामिल है, जिसके तहत प्रत्येक देश के दोषी नागरिकों को अपने देश में अपनी सजा काटने की अनुमति दी जा सकती है। किसी भी स्थिति में हमारे पूर्व नौसेनाकर्मी अब उस मृत्युदंड से बच गए हैं, जो निश्चित रूप से चिंताजनक बात थी।
दूसरी ओर, अपने गैस आयात में विविधता लाने के भारत के उद्देश्यपूर्ण प्रयास भी ध्यान देने योग्य हैं। विशेष रूप से, हाल के वर्षों में मोजाम्बिक, नाइजीरिया, वेनेजुएला से भारतीय हाइड्रोकार्बन आयात में तेजी से वृद्धि हुई है। इसी के साथ यह भी देखा जाना चाहिए कि हाल ही में इंडियन आयल कॉरपोरेशन (आईओसी) और अबू धाबी गैस लिक्विफैक्शन कंपनी लिमिटेड के बीच दीर्घकालिक एलएनजी बिक्री और खरीद समझौते हुए हैं। इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि भारत अपनी ऊर्जा रणनीति में जानबूझकर बदलाव की ओर बढ़ रहा है।
दूसरी ओर रणनीतिक परिदृश्य लगातार बदल रहा है, जिसे भारी-भरकम रक्षा गठबंधनों और साझेदारियों के रूप में देखा जा सकता है। ताजा घटनाक्रम के संदर्भ में, भारत और संयुक्त अरब अमीरात द्वारा फ्रांस से राफेल लड़ाकू जेट की खरीद, कतर के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इस रणनीतिक धुरी के साथ जुड़ने में कतर के गहरे हित जुड़े हैं, विशेषकर इस दृष्टि से कि वह अमेरिकी रक्षा प्रौद्योगिकी के विकल्प के रूप में थोड़े गहरे किस्म के रक्षा सहयोगियों की तलाश में काफी रुचि ले रहा है।
विदेशी संबंध या कूटनीति। स्वतंत्रता के बाद पहली बार भारत ने विश्व के लगभग हरेक देश के साथ अपने संबंधों को स्थापित और पुनर्जीवित किया है। इससे वैश्विक कूटनीति में भारत की स्थिति काफी सुदृढ़ हो चुकी है। तीसरा क्षेत्र है- सरकार की व्यापार नीतियां, जो राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों और विदेशी संबंधों के साथ गहरे तालमेल में हैं।
इसके अलावा, भारत के कतर के साथ संबंध सिर्फ आयात तक सीमित नहीं हैं। कतर में और कतर के साथ भारत की भागीदारी रिफाइनिंग, तेल और गैस विपणन, बुनियादी ढांचे के विकास और कार्मिक प्रशिक्षण जैसे कई क्षेत्रों में है, जो द्विपक्षीय संबंधों की बहुआयामी प्रकृति को दर्शाती है। यह सारी चीजें गैस के आयात से परे हैं।
द्विपक्षीय आर्थिक और रणनीतिक संबंधों के अलावा, अन्य देशों के साथ संबंध भी क्षेत्रीय संबंधों को और द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित करते हैं। फिलिस्तीनी श्रमिकों के स्थान पर 1,00,000 भारतीय प्रवासियों को काम पर रखने की इस्राएल की इच्छा और इसके साथ ही इटली को अधिशेष श्रम निर्यात करने की भारत की योजना ने इस क्षेत्र में श्रम और भू-राजनीतिक हितों को व्यापक स्तर पर और नए सिरे से प्रभावित किया है।
8 पूर्व भारतीय नौसेना कर्मियों को दी गई सजा में कमी अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जटिल ताने-बाने में एक उल्लेखनीय घटनाक्रम है, जो आर्थिक हितों, रणनीतिक सहयोग, कानूनी बिन्दुओं और क्षेत्र को बदलने वाली परिवर्तनशील श्रम गतिशीलता के महत्व को रेखांकित करता है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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