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बांस को माना घास— अंबर अग्रवाल

2017 में इसे पेड़ की श्रेणी से हटाकर घास माना गया और 2018 में राष्ट्रीय बांस मिशन शुरू किया गया तो इसने हजारों किसानों की किस्मत बदल दी।

by डॉ. क्षिप्रा माथुर
Jan 2, 2024, 07:48 am IST
in भारत, विश्लेषण, गोवा
सागर मंथन में ‘विकास : चाह और चुनौतियां’ विषय पर अपने विचार रखते हुए द्रुमि भट्ट और अंबर अग्रवाल

सागर मंथन में ‘विकास : चाह और चुनौतियां’ विषय पर अपने विचार रखते हुए द्रुमि भट्ट और अंबर अग्रवाल

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सागर मंथन में ‘विकास : चाह और चुनौतियां’ विषय पर बांस उद्यमी अंबर अग्रवाल और हरित ऊर्जा-तकनीक विशेषज्ञ/ सलाहकार द्रुमि भट्ट ने अपने विचार रखे। इन दोनों से संवाद किया वरिष्ठ पत्रकार डॉ. क्षिप्रा माथुर ने। प्रस्तुत है बातचीत का सारांश

भारत में लघु और मझौले उद्योगों के लिए अपार संभावनाएं हैं। एमएसएमई और उत्पादन क्षेत्र सरकार की उच्च प्राथमिकता में भी हैं। वाहन और मशीनों के पुर्जों, एयरक्राफ्ट और रक्षा क्षेत्र में काम आने वाले उपकरणों की मांग लगातार बढ़ रही है। बांस को ब्रिटिश काल से पेड़ माना जाता रहा और इस वजह से उसके औद्योगिक उपयोग में अड़चनें बनी रहीं।

2017 में इसे पेड़ की श्रेणी से हटाकर घास माना गया और 2018 में राष्ट्रीय बांस मिशन शुरू किया गया तो इसने हजारों किसानों की किस्मत बदल दी। आजीविका का बड़ा जरिया बन रहा बांस ज्यादा आक्सीजन छोड़ने, सामान्य मिट्टी-जमीन में आसानी से पनपने और भारी बारिश वाले इलाकों में तेजी से बढ़ने के कारण पर्यावरण के लिए भी अच्छा है।

भारत के कुल उत्पादन का 40 प्रतिशत बांस उत्पादन पूर्वोत्तर में होता है। इसकी 130 प्रजातियों में 34 असम में होती हैं इसलिए बांस का सबसे बड़ा केंद्र यही है। अब नीतियों का साथ मिलने से बांस को लकड़ी में बदलकर ढेरों उत्पाद बनाने से वैश्विक बाजार में भी इसकी अच्छी पूछ हो रही है।

नए उद्यमियों को तकनीक और गुणवत्ता में आगे रहना जरूरी है, क्योंकि उनके सामने चीन और पश्चिम की चुनौती है। जरूरी यह है कि युवा दिमाग को खुला रखें, मेहनत करें, समर्पण के साथ काम करते हुए धैर्य और काम में निरंतरता का साथ न छोड़ें।

समाधान वाला भारत — द्रुमि भट्ट

भारत सारे उतार-चढ़ाव के साथ लगातार आगे बढ़ रहा है। दुनिया की बदलती तस्वीर में सभी समस्याओं का समाधान सनातनी तौर तरीके से ही निकलेगा। 2030 तक भारत वैश्विक विकास को भी गति देने लगेगा। भारत की आबादी बड़ी ताकत है इसलिए जरूरी है कि युवाओं को कुशल बनाया जाए और सनातनी शिक्षा व्यवस्था के माध्यम से मूल्यों से जोड़े रखा जाए।

हमारी अपनी बढ़ती जरूरतें ही हमारी अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा हैं, अब पैसा भी आसानी से उपलब्ध है और वित्तीय समझ भी बढ़ रही है। शोध और विश्लेषणात्मक सहित उत्पादन जैसे विशेषज्ञता वाले क्षेत्रों में भी निवेश बढ़ने लगा है।

दुनिया की बदलती तस्वीर में सभी समस्याओं का समाधान सनातनी तौर तरीके से ही निकलेगा। 2030 तक भारत वैश्विक विकास को भी गति देने लगेगा। भारत की आबादी बड़ी ताकत है इसलिए जरूरी है कि युवाओं को कुशल बनाया जाए और सनातनी शिक्षा व्यवस्था के माध्यम से मूल्यों से जोड़े रखा जाए।

डिजिटल खाई भी कम हुई है। हिंदू विचारों को समाहित किए चक्रीय अर्थव्यवस्था और टिकाऊ विकास, हरित ऊर्जा की ओर तेजी से बढ़ने का संकेत हैं। सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। विकास अभी संतुलित नहीं है। आयात ज्यादा है, और वैश्विक कीमतों के उतार-चढ़ाव पर निर्भरता भी ज्यादा है।

नये स्टार्टअप खूब हैं, लेकिन असफल होने की दर भी तेज है। शहरों और गांवों के बीच की खाई को पाटने के लिए 50,000 गांवों तक पहुंच बनाकर वहां युवा उद्यमियों की पूरी फौज तैयार की गई है। जिन्हें कुछ सालों में सब आगे बढ़ता देखेंगे। मूल्य आधारित अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी के बीच सामंजस्य बनाए रखने की चुनौती को साधकर ही भारत के विश्वगुरु बनने का रास्ता तय होगा।

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