‘हम अपना जीवन बदल लें, तो दुनिया में बदलाव आएगा,
श्री हरिहर आश्रम के मृत्युंजय मंडपम में ‘वैदिक सनातन धर्म में समष्टि कल्याण के सूत्र’ विषय पर आयोजित धर्मसभा में मुख्य अतिथि के तौर पर अपने उद्बोधन में पूज्य सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि समष्टि कल्याण की आवश्यकता है। उन्होंने समष्टि कल्याण के सूत्रों में पृथ्वी के रक्षण व संवर्द्धन, प्राकृतिक संसाधनों के विवेक पूर्ण उपभोग, सतत विकास की अवधारणा एवं दान-त्याग की प्रवृत्तियों जैसे कई सूत्रों पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि दुनिया के चिंतक हमसे कल्याण की अपेक्षा कर रहे हैं।
हमारे देश में उस कर्तव्य को पूरा करने की योग्यता निर्माण करने का प्रयास चल रहा है। हमारी समष्टि की कल्पना विशिष्ट है, क्योंकि हमारी सभी प्रार्थनाओं में सर्वे भवन्तु सुखिन: का भाव है। हमें भौतिक और आध्यात्मिक, दोनों सुख के लिए प्रयास करना है। दुनिया पहले समष्टि और कल्याण कल्पना की दृष्टि को ग्रहण करे। देश को चलाने वाले तंत्र के लोग प्रजा के पालन की बुद्धि रखें, न कि प्रजा पर शासन की। जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में कहा था- ‘मैं प्रधान सेवक हूं।’ अर्थ लोभ के कारण कुरीतियां बढ़ती हैं।
उन्होंने कहा कि व्यवहार और चरित्र में ज्ञान को उतारने पर ही व्यक्ति समाज के लिए आदर्श बन सकेगा। गीता के ज्ञान की विवेचना करते हुए उन्होंने कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन जैसे अन्य सूत्रों का रहस्योद्घाटन किया। आज हम विश्व कल्याण के साथ भय मुक्त विश्व की कामना करते हैं। सृष्टि का कल्याण केवल सनातन में है। हर बार सफलता मिलती है ऐसा नहीं है। धैर्य रखना पड़ेगा। उत्साह दिखाना पड़ेगा, इन दोनों का समन्वय दिखाना पड़ेगा और फल को भगवान पर छोड़ना पड़ेगा।
हमारे देश में उस कर्तव्य को पूरा करने की योग्यता निर्माण करने का प्रयास चल रहा है। हमारी समष्टि की कल्पना विशिष्ट है, क्योंकि हमारी सभी प्रार्थनाओं में सर्वे भवन्तु सुखिन: का भाव है। हमें भौतिक और आध्यात्मिक, दोनों सुख के लिए प्रयास करना है। दुनिया पहले समष्टि और कल्याण कल्पना की दृष्टि को ग्रहण करे। देश को चलाने वाले तंत्र के लोग प्रजा के पालन की बुद्धि रखें, न कि प्रजा पर शासन की। जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में कहा था- ‘मैं प्रधान सेवक हूं।’ अर्थ लोभ के कारण कुरीतियां बढ़ती हैं।
डॉ. हेडगेवार जी के सामने आज का फल नहीं निकला था। यह भगवान की योजना है, ऐसा मानकर जो लगातार कार्य करते हैं, वही सफल होते हैं। गीता के 16वें अध्याय के पहले तीन श्लोकों में जिस संपदा का वर्णन किया गया है, वही संपदा का गुण स्वयं में लाना होगा। आत्म परीक्षण करते हुए यदि सदा उसका स्मरण रखेंगे और दृढ़ निश्चय करेंगे कि मैं अपना जीवन बदलूंगा, तो युग का जीवन बदलेगा।
हमें अपने आचरण से आदर्श स्थापित करना है। भगवान राम इसलिए मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए, क्योंकि उन्होंने अपनी मर्यादाएं स्थापित कीं। वह इतनी प्रामाणिक है कि आज हजारों वर्ष बाद भी चली आ रही है। हमें ऐसी ही मर्यादा स्थापित करनी है। अकेला सनातन कल्याणकारी सनातन वर्ण का पालन करें, तो हमारा और दुनिया भी भला होगा। सबको अपना मान कर चलें, क्योंकि सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। हमारे मन में यह भाव होना चाहिए कि सबके सुख में हमारा सुख है।
आज हम विश्व कल्याण के साथ भय मुक्त विश्व की कामना करते हैं। सृष्टि का कल्याण केवल सनातन में है। हर बार सफलता मिलती है ऐसा नहीं है। धैर्य रखना पड़ेगा। उत्साह दिखाना पड़ेगा, इन दोनों का समन्वय दिखाना पड़ेगा और फल को भगवान पर छोड़ना पड़ेगा।डॉ. हेडगेवार जी के सामने आज का फल नहीं निकला था। यह भगवान की योजना है, ऐसा मानकर जो लगातार कार्य करते हैं, वही सफल होते हैं।
इस दुनिया में अनेक भाषाएं बोलने वाले और अनेक मत-मजहब को मानने वाले लोग हैं, लेकिन उनमें दूसरे धर्म को सहन करने की प्रवृत्ति नहीं है। प्रवृत्ति भी है, तो उसका आधार क्या है, यह मालूम नहीं है। दुनिया यदि श्रीमद्भागवत में बताए गए चार धर्मों सत्य, करुणा, शुचिता और तपस को आत्मसात कर ले, तो कलह-भेद नहीं रहेगा।
पर्यावरण की हानि नहीं होगी, क्योंकि मनुष्य अपने विचार से विकास करेगा। इस विचारधारा में बहुत सारे सूत्र और पर्वत जैसा असीम ज्ञान है। ज्ञान भाषण से नहीं आता है। अगर एक शब्द को भी आचरण में उतार लिया जाए, तो दुनिया में परिवर्तन आ सकता है। अगर हम अपना जीवन बदल लें, तो दुनिया में बदलाव आएगा और भारत फिर से विश्वगुरु बनेगा।
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