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अंतरराष्ट्रीय सहयोग : साझी समृद्धि का मार्ग

अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारा भारत और रूस के बीच एक प्रमुख व्यापारिक मार्ग है। यह रूस व यूरोपीय देशों को ईरान और कैस्पियन सागर के जरिए भारत और फारस की खाड़ी से जोड़ेगा। अभी इसमें 13 देश शामिल हैं। सिंगापुर भी इस महत्वपूर्ण गलियारे में रुचि ले रहा है

by मानव अग्रवाल
Jul 17, 2024, 06:30 pm IST
in भारत
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अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारा (आईएनएसटीसी) लगभग ढाई दशक बाद सक्रिय हो गया है। वर्ष 2000 में भारत, ईरान और रूस के बीच इसे विकसित करने के लिए सहमति बनी थी। इसका उद्देश्य स्वेज नहर मार्ग के विकल्प के रूप में एक ऐसा मार्ग विकसित करना है, जिससे ईरान के रास्ते भारत से रूस तक समय पर कम लागत में कुशल तरीके से माल को भेजा जा सके। लेकिन भू-राजनीति और प्रशासनिक उलझनों के कारण यह परियोजना लगभग ठप पड़ गई थी। इसमें कुल 13 देश शामिल हैं। भारत, ईरान और रूस के अलावा 10 अन्य देश अजरबैजान, आर्मेनिया, बेलारूस, बुल्गारिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ओमान, ताजिकिस्तान, तुर्किये और यूक्रेन इससे जुड़े हैं। भारत ने 2025 तक 5 खरब डॉलर की दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए वह अपना निर्यात बढ़ा कर एक खरब डॉलर करना चाहता है, जिसमें आईएनएसटीसी बड़ी भूमिका निभाएगा।

विशेषताएं एवं फायदे

आईएनएसटीसी भारत और रूस के बीच एक प्रमुख व्यापारिक गलियारा है, जो ईरान के रास्ते मुंबई और सेंट पीटर्सबर्ग को जोड़ता है। दूसरे शब्दों में चाबहार बंदरगाह दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य एशिया के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है। यह गलियारा रूस और यूरोपीय देशों को ईरान और कैस्पियन सागर के जरिए भारत और फारस की खाड़ी से जोड़ेगा। भविष्य में इसे आर्कटिक के उत्तरी समुद्री मार्ग और चाबहार बंदरगाह से जोड़ने की योजना है।

इस 7,200 किलोमीटर लंबे बहुद्देशीय परिवहन गलियारे में भूमि, समुद्री और हवाई मार्ग शामिल हैं, जो उत्पादन केंद्रों, शहरी समूहों और अंतरराष्ट्रीय प्रवेश मार्गों को जोड़ते हैं। आईएनएसटीसी का लक्ष्य विश्वसनीय बुनियादी ढांचा, लॉजिस्टिक्स और वितरण नेटवर्क की सहायता से सदस्य देशों को करीब लाना और माल की आवाजाही को अधिक सुगम बनाना है। इससे भारत में जवाहरलाल नेहरू और कांडला बंदरगाहों से ईरान के बंदर अब्बास बंदरगाह तक माल को आसानी से भेजा जा सकेगा, जो बाकू (अजरबैजान) से उत्तर की ओर रेल और सड़क मार्ग से मॉस्को और सेंट पीटर्सबर्ग के साथ-साथ यूरोप तक जाएगा।

इस गलियारे से भारत को कई लाभ होंगे। पहला, यह स्वेज नहर का विकल्प होगा। इससे भारत और रूस के बीच नौवहन समय अभी की तुलना में 30 दिन कम हो जाएगा और 40 फीट वाले कंटेनर के परिवहन की लागत भी 10,000 डॉलर से घटकर लगभग आधी यानी 5,000 डॉलर रह जाएगी। दूसरा, 1947 के विभाजन के दौरान ईरान और अफगानिस्तान जैसे मध्य एशियाई बाजारों के लिए जो रास्ते बंद हो गए थे, उन्हें यह गलियारा फिर से खोल देगा। इससे वाणिज्यिक लागत भी बहुत घट जाएगी। तीसरा, यह गलियारा मेक इन इंडिया और उत्पादकता से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजनाओं के साथ-साथ परिवहन और शिपिंग जैसे अन्य क्षेत्रों के माध्यम से विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहन देकर भारतीय अर्थव्यवस्था की क्षमता को उभारेगा।

वैकल्पिक व्यापार मार्ग

आईएनएसटीसी में मुख्यत: तीन मार्ग शामिल हैं-
1. पश्चिमी-ईरान (अस्तारा), अजरबैजान (बाकू) और रूस के साथ पश्चिमी तट तक भारतीय बंदरगाह
2. मध्य-भारत से बंदर अब्बास, नौशहर, अमीराबाद और कैस्पियन सागर के किनारे स्थित बंदर-ए-अंजली तक
3. पूर्वी-भारत और रूस से ईरान होते हुए कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान तक।

मई 2016 में भारत ने ईरान के साथ एक समझौता किया था, जिसका उद्देश्य चाबहार बंदरगाह को एक महत्वपूर्ण मार्ग के तौर पर विकसित करना था ताकि वह पश्चिम मध्य एशिया के बाजारों में पहुंच बना सके। भारत पहले ही इस परियोजना में 2.1 अरब डॉलर का निवेश कर चुका है। इसमें चाबहार के लिए 50 करोड़ डॉलर, जबकि जाहेदान, दक्षिणी व पूर्वी ईरान के बीच रेलवे नेटवर्क , मध्य अफगानिस्तान में हाजीगाक लौह तथा इस्पात खनन परियोजना के लिए 1.6 अरब डॉलर शामिल हैं। इस वर्ष 13 मई को भारत और ईरान के बीच जो समझौता हुआ, उसके तहत भारत 10 वर्ष के लिए चाबहार बंदरगाह का प्रबंधन करेगा, जिसे और 10 वर्ष बढ़ाया जा सकता है। इससे भारत-रूस-ईरान ऊर्जा गलियारे की संभावना भी खुलेगी।

दरअसल, भारत आईएनएसटीसी के तहत चाबहार को ‘ट्रांजिट हब’ में बदल कर स्वतंत्र राष्ट्रमंडल देशों (सीआईएस) तक पहुंच बनाना चाहता है। 2023 में रूस और ईरान ने आईएनएसटीसी के हिस्से के रूप में ईरानी रेलवे लाइन (रश्त-अस्तारा रेलवे) बिछाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसे गलियारे में एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में देखा जा रहा है, जिसका उद्देश्य भारत, ईरान, रूस, अजरबैजान और अन्य देशों को रेलवे और समुद्र के माध्यम से जोड़ना है। इसके बारे में रूस का कहना है कि यह ऐसा मार्ग है, जो प्रमुख वैश्विक व्यापार मार्ग के रूप में स्वेज नहर को टक्कर दे सकता है।

महत्वपूर्ण बात यह है कि आईएनएसटीसी चीन की वन बेल्ट वन रोड परियोजनाओं का एक बेहतरीन विकल्प भी बनेगा। मलाक्का जलडमरूमध्य से चीन का लगभग दो तिहाई व्यापार होता है। इसलिए मलाक्का जलडमरूमध्य में भारत की स्थिति को मजबूत करना रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इससे भारत को अपने सहयोगियों के बीच व्यापार बुनियादी ढांचे और वाणिज्यिक संबंधों के विकास में रणनीतिक लाभ मिलेगा। 2021 में रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने गलियारे के विकास पर चर्चा के लिए भारत का दौरा किया था। वहीं अभी हाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस का दो दिवसीय दौरा किया।

भू-राजनीतिक महत्व

इस गलियारे के विकास के पीछे पारंपरिक विचार मुंबई बंदरगाह को ईरान में बंदर अब्बास बंदरगाह और बाकू (अजरबैजान) से होते हुए रूस में अस्तरखान तक जोड़कर व्यापार को प्रोत्साहित करना था। लेकिन अजरबैजान ने बाकू का बंदरगाह के रूप में उपयोग करने से इनकार कर दिया था, जिससे माल ढुलाई कैस्पियन सागर के माध्यम से होने लगी, जो महंगा पड़ रही थी। अजरबैजान पारंपरिक रूप से पाकिस्तान का करीबी है। वह कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन भी कर चुका है। दरअसल, अजरबैजान, पाकिस्तान और तुर्किये के साथ मिलकर भूमध्य सागर में एक नया मोर्चा बना रहा है। इन्हीं कारणों से आईएनएसटीसी के पूर्ण कार्यान्वयन में अजरबैजान सुस्त रहा। उसने अंतत: 2022 से भारत-रूस के बीच व्यापार बढ़ाने में सहयोग शुरू किया है। उधर, आर्मेनिया भी आईएनएसटीसी की एक शाखा विकसित करना चाहता है। कजाकिस्तान-तुर्कमेनिस्तान मार्ग आईएनएसटीसी की एक और शाखा है, जबकि दूसरी शाखा ईरान-कैस्पियन सागर मार्ग है।

22 अप्रैल, 2024 को रूस ने अजरबैजान को आईएनएसटीसी परियोजना को आगे बढ़ाने में सक्रिय योगदान देने के लिए प्रेरित किया। मॉस्को में अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव के साथ संयुक्त बैठक में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने कहा था, ‘‘हम सभी इच्छुक देशों को इस परियोजना में भाग लेने के लिए आमंत्रित करते हैं।’’ उन्होंने अलीयेव से दक्षिण काकेशस में यूरेशियाई राज्यों को प्रशांत तक पहुंच प्रदान करने में रूस की भूमिका का संकेत देते हुए कहा था कि यह उत्तरी समुद्री मार्ग को फारस की खाड़ी से जोड़ता है। यह मार्ग यूरेशियाई और वैश्विक दक्षिण देशों के त्वरित आर्थिक और सामाजिक विकास के उद्देश्यों के लिए बनाया जा रहा है। बैकाल अमूर मुख्यमार्ग (बीएएम) और ट्रांस-साइबेरियन रेलवे के उन्नयन के बाद रूस के साझेदार एशिया-प्रशांत बाजारों तक पहुंच सकते हैं।

अब सिंगापुर भी आईएनएसटीसी में रुचि दिखा रहा है। वह कजाकिस्तान के साथ व्यापार और पारगमन गलियारे की संभावना तलाश रहा है, जिसे चाबहार बंदरगाह से यूरेशिया तक विकसित किया जा सके। इस पर बातचीत के लिए हाल ही में कजाकिस्तान के राष्ट्रपति ने सिंगापुर का दौरा किया। इससे पूर्व मई 2023 में सिंगापुर के तत्कालीन राष्ट्रपति कजाकिस्तान गए थे। दोनों पक्षों में गलियारा बनाने पर सहमति भी बनी थी, जो यूरेशिया को दक्षिण पूर्व एशियाई बाजार से जोड़ेगा। सिंगापुर ने 2019 में यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (ईएईयू)के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर हस्ताक्षर किए थे। अब एक और उभरती अर्थव्यवस्था और भारत के करीबी रणनीतिक साझेदार वियतनाम भी ईएईयू के साथ एक एफटीए में शामिल हुआ है।

बाधाएं भी कम नहीं

नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र को लेकर आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच संघर्ष और भारत द्वारा आर्मेनिया को हथियारों की बिक्री के चलते इस परियोजना में व्यवधान आया। हालांकि आर्मेनिया ने ईरान से आर्मेनिया, जॉर्जिया और रूस तक सड़क मार्ग से माल पहुंचाने के लिए एक विकल्प का प्रस्ताव दिया था। अब रूस द्वारा अजरबैजान को गलियारे के विकास में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए कहना इस परियोजना की सफलता में सभी देशों की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है। दूसरे, रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है। चावल जैसी महत्वपूर्ण वस्तुओं के लिए वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के बाधित होने से इनकी और तेल की कीमतों में वृद्धि हुई, जिससे महंगाई बढ़ी है।
इसके अलावा, अमेरिका और यूरोप द्वारा रूस पर 5,000 से अधिक प्रतिबंध लगाने के कारण उसके साथ व्यापार करना लगभग असंभव हो गया।

अमेरिका ने रूस को स्विफ्ट बैंकिंग प्रणाली से भी बाहर कर दिया और उसके 300 अरब डॉलर से अधिक के अमेरिकी डॉलर भंडार को जब्त कर भारत और अन्य देशों को विनिमय की पेट्रो-डॉलर प्रणाली से इतर दूसरा तंत्र अपनाने के लिए मजबूर किया। लिहाजा, रुपया-रूबल समझौते जैसी प्रत्यक्ष मुद्रा-विनिमय व्यवस्था को व्यवहार्य बनाने के लिए इन देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। इसलिए भारत के पश्चिमी तट से आईएनएसटीसी और पूर्वी तट से मल्लाका जलडमरूमध्य से गुजरने वाले व्लादिवोस्तोक-चेन्नई व्यापार चैनल जैसी परियोजनाएं विकसित की जा रही हैं। इन परियोजनाओं के कारण स्वेज नहर से शिपिंग परिवहन को दूर कर दिया, क्योेंकि इस मार्ग से परिवहन के लिए यूरोपीय कंपनियों से बीमा खरीदना पड़ता है। इससे माल ढुलाई की प्रक्रिया लंबी, समय लेने वाली और महंगी हो जाती है। हाल के वर्षों में स्वेज नहर मार्ग में भीड़भाड़ भी बहुत बढ़ गई। 2021 में तो यह पूरी तरह बाधित हो गया, जिससे व्यापार और वाणिज्य को अरबों डॉलर का नुकसान हुआ।

हमास ने 7 अक्तूबर,2023 को इस्राएल पर हमला किया, तो जवाब में इस्राएल ने भी हमले शुरू किए। उधर, इस्राएल के हमलों के विरोध में लाल सागर में हूती विद्रोहियों ने यूरोपीय, अमेरिकी और भारतीय जहाजों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। इन कारणों से दीर्घकालिक टिकाऊ व्यापार और परिवहन के लिए यह मार्ग सुरक्षित नहीं रह गया है। भारत इन चैनलों का लाभ उठाकर न केवल इन अनिश्चितताओं को दूर कर सकता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अपने उत्पादों का निर्यात बढ़ाने के साथ कम लागत पर आयात भी कर सकता है।

रूस ने 14 जून, 2022 को अस्तरखान से ईरान-मुंबई बंदरगाह तक एक परीक्षण कार्गो भेजने के साथ बंदरगाह का संचालन शुरू किया, जिसमें मात्र 24 दिन लगे। यानी ट्रांस-ईरानी रेल मार्ग पूरा होने के बाद इसमें और कटौती होने की उम्मीद है। कुल मिलाकर इस परियोजना से भारत और रूस जैसे साझेदारों और विकासशील देशों को फायदा होगा, क्योंकि बीआरआई ने कई निम्न और मध्यम आय वाले देशों को लगभग दिवालियापन के कगार पर पहुंचा दिया है। हाल ही में रूस ने पहली बार इस गलियारे से भारत में कोयला ले जाने वाली दो ट्रेनें भेजी थीं। इसने रूस के सेंट पीटर्सबर्ग से ईरान के बंदर अब्बास बंदरगाह होते हुए मुंबई तक 7,200 किमी से अधिक की यात्रा की।

बहरहाल, आईएनएसटीसी ऊपरी तौर पर भले ही एक सामान्य व्यापार मार्ग दिखे, लेकिन एक के बाद एक भू-राजनीतिक घटनाओं ने इसे और महत्वपूर्ण बना दिया है। इस परियोजना के जरिए भारत ने अपने विभिन्न गठबंधनों और हितों को संतुलित करने के प्रयास में बहुत बड़ा दांव लगाया है।

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