आज भारत की गूंज पूरे विश्व में सुनाई देती है। इसके पीछे क्या कारण है, यह जानने के लिए सागर मंथन में एक सत्र का विषय रखा गया था-‘शक्ति भारत की।’ इस सत्र में केंद्रीय सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग राज्यमंत्री जनरल वी.के. सिंह से वरिष्ठ पत्रकार अनुराग पुनेठा ने बात की। उस संवाद को यहां लेख के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है-
अभी कुछ ही समय पहले उत्तराखंड में बन रही एक सुरंग में कुछ श्रमिक फंस गए थे। जब तक श्रमिकों को निकाल नहीं लिया गया, तब तक यह घटना पूरी दुनिया में चर्चा में रही। ये श्रमिक कैसे निकाले गए, उसे जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि यह सुरंग बनाई क्यों जा रही है। किसी भी सुरंग को बनाने का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि रास्ता थोड़ा छोटा हो जाए। बन रही सुरंग की कुल लंबाई लगभग 4.5 किलोमीटर है। लगभग 22 किलोमीटर रास्ते को कम करने के लिए इसका निर्माण किया जा रहा है। इसके लिए पहले भू-सर्वेक्षण किया गया, उसके हिसाब से कुछ क्षेत्र संवेदनशील थे।
आमतौर पर सुरंग का निर्माण दोनों तरफ से किया जाता है। एक तरफ से काम लगभग पूरा हो चुका है और दूसरी तरफ से काम चल रहा था। जिस तरफ काम पूरा हो गया है, उसे कुछ तकनीकी कारणों से पक्का नहीं किया गया है। खुदाई करने के बाद उसमें लोहे के स्तंभ लगाए जाते हैं, ताकि वह छत की तरह बना रहे और बाद में उसे पक्का कर दिया जाता है। जो संवेदनशील नहीं था उसको पक्का कर दिया गया था।
इस संवेदनशील क्षेत्र को छोड़ दिया गया था और उसको पक्का नहीं किया गया था, परंतु वहां पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। हर तरह की जांच के बाद इसे पक्का करने का निर्णय लिया गया। इसके लिए जब सफाई वगैरह करने लगे, तब मिट्टी गिरने लगी। सफाई में लगी गाड़ी आधी दब गई और देखते-देखते 41 श्रमिक सुरंग में बंद हो गए। अच्छी बात यह थी कि ये लोग जिस क्षेत्र में फंसे थे उसका लगभग दो किलोमीटर तक पक्कीकरण हो चुका था। मिट्टी गिरने के बावजूद वहां पर पानी का पाइप ठीक था। बिजली भी काम कर रही थी।
दुनिया में अपना लोहा मनवाने के लिए विदेश नीति की बड़ी भूमिका रहती है। मोदी जी राष्ट्रनेता के रूप में जो संबंध बनाते हैं, वे बहुत मायने रखते हैं। आज दुनिया के लगभग सभी देशों से भारत के रिश्ते अच्छे हैं, यह कभी किसी ने नहीं सोचा होगा। जब किसी देश के अंदर आत्मविश्वास होता है, तब उसकी बात सभी सुनते हैं। आज यही हो रहा है।
इस तरह की घटनाओं में सबसे पहले गिरी हुई मिट्टी को निकालने की कोशिश की जाती है, ताकि फंसे हुए लोगों को बाहर लाया जा सके, लेकिन जैसे ही मिट्टी निकालने की कोशिश की जाती थी तो ऊपर से मलबा गिरने लगता। इसलिए पहले दिन निकालने की कोशिश असफल रही। फिर उत्तराखंड के सिंचाई विभाग से एक आर्गन पाइप लिया गया और उसको सुरंग में डालने का काम शुरू किया गया, लेकिन पत्थर मिलने से वह कोशिश विफल हो गई। ऐसे में स्वाभाविक रूप से चिंता बढ़ गई। फिर ढूंढ मची कि इससे शक्तिशाली आर्गन पाइप कहां पर है। पता चला कि नजफगढ़ (दिल्ली) में एक अमेरिकी आर्गन पाइप है, जिसकी मोटर की क्षमता 750 हार्स पॉवर है। इस मशीन को वायुसेना की मदद से लाया गया। मशीन ठीक तरह से काम भी करने लगी।
इसे देखते हुए आस जगी कि 12 घंटे के अंदर सही जगह पर पहुंच जाएंगे। लगभग 57 मीटर तक मलबा था। उस रात एक बड़े पत्थर के मिलने के कारण मशीन को रोकना पड़ा। पत्थर इतना बड़ा था कि उसको तोड़ने में काफी परेशानी हुई। फिर चौथे दिन लोहे की एक बड़ी रॉड आर्गन मशीन में फंस गई। मशीन ने काम करना बंद कर दिया। इस पाइप को काटने के लिए दूसरी मशीन लाने का फैसला लिया गया। पता चला कि दूसरी मशीन इंदौर में है, उसे तुरंत मंगाया गया। काम भी शुरू कर दिया गया। साथ ही यह भी फैसला लिया गया कि इसके साथ-साथ दूसरी चीजें भी शुरू होनी चाहिए। इनमें एक थी कि सुरंग के ऊपर से छेद करके रास्ता बनाया जाए। फिर एक दूसरा छेद भी किया जाए, जिसके सहारे उन लोगों तक खाना पहुंचाया जा सके।
ऐसे ही चार-पांच विकल्पों को लेकर फिर से काम शुरू करवाया गया। सबसे बड़ी बात यह है कि मोदी सरकार में किसी भी साधन को कहीं से भी लाने में कोई समस्या नहीं हुई। जिस चीज की जरूरत पड़ी, वह जल्दी से जल्दी मिल गई। सभी तरह के अनुभवी लोग भी मिले। इंटरनेशनल टनलिंग आर्गनाइजेशन के प्रमुख अपनी टीम के साथ आए। सेना के अभियंताओं के साथ ही ‘रैट माइनर्स’ को बुलाया गया, ताकि अन्य विकल्पों पर भी काम चलता रहे। लेकिन नई मशीन भी लगभग 50 मीटर जाने के बाद पहली वाली से भी खराब तरीके से लोहे में फंस गई। अब फैसला लिया गया कि आदमी भेजकर फंसी हुई चीज को काटते हुए आगे बढ़ा जाए।
इसके लिए डीआरडीओ से प्लाज्मा, लेजर, मैग्मा कटर मंगवाया गया। इन सभी चीजों से भी सफलता नहीं मिली। फिर बाद में मिट्टी खोदने वालों को लगाया गया। वे लोग थोड़ा मलबा हटाते थे, फिर मशीन से पाइप को धकेला जाता था। लगभग 8 मीटर धकेलने के बाद पाइप सही जगह पर पहुंचा और फिर हम सभी श्रमिकों को निकाल पाए। इस बीच कोशिश यही रही कि जो अंदर फंसे हैं वे लोग हतोत्साहित न हों। इसके लिए उन लोगों को खाने के साथ सभी जरूरी चीजें उपलब्ध कराई गईं। यह एक कठिन कार्य था, लेकिन सरकार के सभी विभागों ने आपसी समन्वय के साथ कार्य किया और आज वे श्रमिक हमारे साथ हैं।
2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने निर्णय लिया कि 192 देशों में प्रतिनिधिमंडल भेजे जाएंगे और उनका नेतृत्व कोई एक मंत्री करेगा। इस काम को करने में तीन साल लग गए। इन तीन साल में ऐसे-ऐसे देशों में भी भारतीय प्रतिनिधिमंडल गए, जो यह कभी सोचते नहीं थे कि भारत से कभी कोई प्रतिनिधिमंडल उनके यहां आएगा। इससे भारत की छवि अच्छी हुई, हमारे मित्रों की संख्या बढ़ी। इससे भारत के प्रति देशों का भरोसा कायम हुआ। यह भरोसा दिखाई भी देता है।
शांति से लाए गए अपने लोग
इससे पहले भारत विदेश में फंसे अपने लोगों को भी बड़ी कुशलता से वापस लाया था। यहां मैं यमन संकट की बात करना चाहूंगा। यमन के आपरेशन में अलग तरह की कठिनाइयां थीं। शुरुआत में पता चला कि वहां लगभग 3,000 भारतीय फंसे हैं। वहां जाने के बाद पता चला कि संपर्क की सारी चीजें ठप हैं। कोई वाहन भी नहीं मिल रहा था। बमबारी के कारण हवाईअड्डा भी क्षतिग्रस्त था। फिर भी बचाव कार्य शुरू किया गया। पहले दिन तीन एयरक्रॉफ्ट लेकर गए थे, फिर रोजाना दो लेकर जाते थे।
एक जहाज में 180 लोग आते थे। इसके साथ ही उनके खाने-पीने की व्यवस्था करनी पड़ती थी। वहां छह गुट आपस में लड़ रहे थे। कौन किसके साथ लड़ रहा है, यह पता नहीं था। ऐसे में अपने लोगों को निकालना आसान नहीं था। पहले दिन सना में रुके और दूसरे दिन सबको संगठित किया। शाम को एक हूती कमांडर ने कहा कि आप कल यहां पर नहीं रुकिएगा। इसके बाद हम लोग वहां से जहाज के साथ ही निकल गए। रोजाना भारत से ही आना-जाना होता था।
मोदी की गारंटी दरअसल, 2014 में जब मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार आई तब उन्होेंने भारत के सभी नागरिकों को एक गारंटी दी थी कि दुनिया में कहीं भी संकट में फंसेंगे तो हम आपको निकाल लाएंगे। इसकी शुरुआत आपरेशन राहत से हुई थी। उसके बाद इस तरह के अनेक बचाव कार्य हुए। जहां भी हमारे लोग संकट में आए, वहां बचाव कार्य शुरू कर उन्हें निकाला गया। इसका पूरा श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को है। इसके पीछे ठोस कारण है।
इस समय 193 देश संयुक्त राष्ट्र के सदस्य हैं। इसमें भारत भी शामिल है। अमूमन 2014 से पहले भारत से जो भी सरकारी प्रतिनिधिमंडल विभिन्न देशों में जाते थे, उनमें से अधिकांश अमेरिका, कनाडा और दक्षिण एशिया के एक-दो देश ही जाते थे। 2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने निर्णय लिया कि 192 देशों में प्रतिनिधिमंडल भेजे जाएंगे और उनका नेतृत्व कोई एक मंत्री करेगा। इस काम को करने में तीन साल लग गए। इन तीन साल में ऐसे-ऐसे देशों में भी भारतीय प्रतिनिधिमंडल गए, जो यह कभी सोचते नहीं थे कि भारत से कभी कोई प्रतिनिधिमंडल उनके यहां आएगा। इससे भारत की छवि अच्छी हुई, हमारे मित्रों की संख्या बढ़ी। इससे भारत के प्रति देशों का भरोसा कायम हुआ। यह भरोसा दिखाई भी देता है।
इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस में न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी को न्यायाधीश बनाना आसान नहीं था। केवल तीन महीने का समय बचा था। न्यायमूर्ति भंडारी के लिए तीन महीने तक जबरदस्त मेहनत की गई। अलग-अलग देशों के लोगों से बात की गई। न्यायमूर्ति भंडारी का आखिरी सामना यूके के एक न्यायाधीश के साथ था। यूके राष्टÑ संघ का स्थायी सदस्य है। इसके बावजूद बाकी देशों ने आम सभा के लिए वोट की मांग की और यूके से यह भी कहा, आप अपने उम्मीदवार को हटा लें, नहीं तो हम लोग आपके विरोध में मतदान करेंगे। ऐसा ही हुआ और इसके बाद न्यायमूर्ति भंडारी न्यायाधीश चुन लिए गए।
जब किसी देश का मुखिया दिन-रात काम करता है तो साथ वाले भी उतना ही काम करने की चेष्टा करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी दिन-रात देश के लिए काम कर रहे हैं। तभी असंभव कार्य भी संभव होने लगा है। दुनिया में अपना लोहा मनवाने के लिए विदेश नीति की बड़ी भूमिका रहती है। मोदी जी राष्ट्रनेता के रूप में जो संबंध बनाते हैं, वे बहुत मायने रखते हैं। आज दुनिया के लगभग सभी देशों से भारत के रिश्ते अच्छे हैं, यह कभी किसी ने नहीं सोचा होगा। जब किसी देश के अंदर आत्मविश्वास होता है, तब उसकी बात सभी सुनते हैं। आज यही हो रहा है।
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