पांच राज्यों में चुनाव की घोषणा होने से पहले तक छत्तीसगढ़ में भाजपा को कमजोर आंका जा रहा था। राष्ट्रीय मीडिया से लेकर स्थानीय पत्रकारों एवं राजनीतिक विश्लेषक तक परिणाम आने के पूर्व भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस की जीत का अनुमान लगा रहे थे
इस बार छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को ऐतिहासिक विजय मिली है। प्रदेश की कुल 90 में से 54 सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमाया, जबकि कांग्रेस 35 सीटों पर सिमट गई। पांच राज्यों में चुनाव की घोषणा होने से पहले तक छत्तीसगढ़ में भाजपा को कमजोर आंका जा रहा था। राष्ट्रीय मीडिया से लेकर स्थानीय पत्रकारों एवं राजनीतिक विश्लेषक तक परिणाम आने के पूर्व भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी की जीत का अनुमान लगा रहे थे। वहीं, एग्जिट पोल के परिणामों ने भी भाजपा की जीत को लेकर सवाल उठाए थे, परंतु मतगणना के दिन जैसे-जैसे दिन चढ़ा, अधिकांश विधानसभा क्षेत्रों में कमल खिलता गया। आखिरकार भाजपा ने बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया।
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भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ा
छत्तीसगढ़ को मुख्यत: तीन हिस्सों में विभाजित किया जाता है, उत्तर का सरगुजा क्षेत्र, मध्य का मैदानी हिस्सा और दक्षिण का बस्तर क्षेत्र। सरगुजा क्षेत्र में 14 विधानसभा सीटें हैं तथा दक्षिण के बस्तर संभाग में 12 विधानसभा सीटें हैं। इन दोनों क्षेत्रों की कुल 26 सीटों में से 22 सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल कर अजेय बढ़त बना ली। मैदानी क्षेत्रों के अंतर्गत रायपुर, बिलासपुर एवं दुर्ग संभाग की 64 सीटों में मुकाबला बराबरी का रहा। इन क्षेत्रों में भाजपा को आधी यानी 32 सीटें हासिल हुईं, जबकि कांग्रेस 31 सीटों पर जीतने में कामयाब रही और एक सीट पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के तुलेश्वर सिंह मरकाम सफल रहे। प्रतिशत की दृष्टि से देखें तो भाजपा के वोट प्रतिशत में जबरदस्त उछाल आया है। 2018 में 32.97 प्रतिशत वोट हासिल करने वाली भाजपा इस बार 46.27 प्रतिशत वोट हासिल करने में सफल रही। हालांकि कांग्रेस के वोट प्रतिशत में अधिक गिरावट नहीं आई है। 2018 में कांग्रेस को 43.04 प्रतिशत वोट मिले थे, जो इस बार घटकर 42.23 प्रतिशत हो गया। दोनों दलों में वोट का अंतर लगभग 4 प्रतिशत का है।
चुनाव परिणाम की सबसे खास बात यह रही कि छत्तीसगढ़ में अब चुनावी मुकाबला मात्र दो दलों के बीच रह गया है। पिछले चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी ने जोगी जनता कांग्रेस पार्टी बनाकर बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया था। इस गठबंधन ने लगभग 20 लाख वोट हासिल किए थे। इस बार जोगी कांग्रेस को मात्र 1.23 प्रतिशत वोट मिले और कोई सीट भी नहीं प्राप्त कर पाई। वहीं, छत्तीसगढ़ के अलग राज्य बनने के बाद हुए इस पांचवें चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का भी प्रदर्शन सबसे कमजोर रहा। बसपा को लगभग 2 प्रतिशत मत मिले और पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी। नोटा को भी मिलने वाले वोटों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। 2013 में नोटा को 4 लाख से अधिक वोट प्राप्त हुए थे, जो घटकर इस चुनाव में मात्र 1.97 लाख रह गए हैं। इस प्रकार तीसरे मोर्चे के वोट बैंक में भाजपा ने बड़ी सेंध लगाई है। इस वर्ष 12 लाख अधिक मतदाताओं में से अधिकांश हिस्सा भाजपा अपनी झोली में लेकर बहुमत का आंकड़ा पाने में सफल रही।
चुनाव में तीन मुद्दे हावी रहे
इस बार चुनाव से पहले मुख्य रूप से तीन मुद्दे हावी थे। पहला, उत्तर और दक्षिण के जनजातीय क्षेत्रों में ईसाई मिशनरियों द्वारा कराए जा रहे कन्वर्जन के कारण जनजातीय समाज में बेहद नाराजगी थी। दूसरा, मैदानी क्षेत्र में धान उत्पादन करने वाले किसानों को मिलने वाला अतिरिक्त मूल्य और तीसरा छत्तीसगढ़िया वाद को लेकर चल रही सरकार को मुख्य मुद्दा माना जा रहा था। भाजपा ने भी अपने घोषणा-पत्र में किसानों को धान की कीमत प्रति क्विंटल 3100 रुपये देने का वादा किया। वहीं, कांग्रेस ने धान का मूल्य 3200 रुपये प्रति क्विंटल करने के साथ किसानों का कर्ज माफ करने का दांव खेला।
इस तरह, दोनों दलों ने चुनाव में कृषि और कृषक को केंद्र में रखकर चुनाव प्रचार की शुरुआत की। इसके अलावा, भाजपा ने घोषणा-पत्र में महतारी वंदन योजना के नाम से सभी विवाहित महिलाओं को प्रतिमाह 1000 रुपये देने का वादा किया। कांग्रेस यह वादा नहीं कर पाई। भाजपा के रणनीतिकार यह मान रहे थे कि मैदानी क्षेत्रों में किसान कांग्रेस पार्टी के साथ खड़े हैं, इसलिए महतारी वंदन योजना को प्राथमिकता देते हुए विज्ञापन की शक्ल में एक आवेदन-पत्र प्रकाशित कराया गया। पार्टी के कार्यकर्ताओं ने गांव-गांव जाकर योजना के लिए आवेदन पत्र भरवाने का कार्य प्रारंभ कर दिया। इस रणनीति से भाजपा के पक्ष में महिलाओं का रुझान बढ़ा। इसे देखते हुए कांग्रेस ने भी 12 नवंबर (दीपावली के दिन) को महिलाओं को साल में 15,000 रुपये देने का वादा कर दिया। लेकिन उसे इस घोषणा से कोई लाभ नहीं मिला।
दरअसल, मैदानी क्षेत्र में कांटे का मुकाबला होने पीछे एक कारण यह रहा कि किसान परिवार हिस्सों में बंट गए थे। पुरुष कांग्रेस के साथ थे, जबकि महिलाएं भाजपा के साथ थीं। खास बात यह रही कि इस बार चुनाव में महिला मतदाताओं ने 50 से अधिक विधानसभा सीटों पर पुरुषों के मुकाबले अधिक मतदान किया, जो भाजपा की जीत का बड़ा कारण बना।
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भाजपा की रणनीति
ऐसा नहीं है कि भाजपा को जीत केवल घोषणा-पत्र के कारण मिली। वास्तव में पार्टी ने तीन चरणों में अपनी रणनीति बनाई थी। पहले चरण में भाजपा ने कांग्रेस राज में बीते 5 वर्ष के दौरान हुए बड़े घपलों, जिसमें कोयला घोटाला, शराब घोटाला, राशन घोटाला, सरकारी पदों पर भर्ती के लिए आयोजित लोक सेवा आयोग एवं व्यावसायिक परीक्षा मंडल की परीक्षाओं में बड़े पैमाने पर धांधली के कारण युवाओं में उपजे आक्रोश को प्रमुखता से उठाया। इसके बाद विकास के मुद्दे को उठाया। इसमें सड़क, बिजली, पानी और प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत गरीबों को पक्का मकान नहीं मिलने जैसे मुद्दे शामिल थे।
साथ ही, दूसरे चरण में 2003 से 2018 के बीच डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार द्वारा किए गए विकास कार्यों को तुलनात्मक दृष्टि से जनता के बीच पहुंचाने का प्रयास किया। इस प्रकार भाजपा आम जन तक यह बात पहुंचाने में सफल रही कि वह न केवल सुशासन दे सकती है, बल्कि राज्य के साथ लोगों को भी विकास के समान अवसर प्रदान करेगी और उनके लिए कल्याणकारी योजनाएं लागू करेगी। तीसरे चरण में पार्टी ने अपने घोषणा-पत्र को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गारंटी के रूप में लोगों के सामने प्रस्तुत किया। इन विषयों को प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री अमित शाह सहित पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने अपने चुनावी सभा में प्रमुखता से उठाया। इसके बाद चुनाव प्रचार धीरे-धीरे मोदी की गारंटी और भूपेश के भरोसे के इर्द-गिर्द सिमटता चला गया।
तुष्टीकरण के खिलाफ मतदान
इस चुनाव में जनजातीय क्षेत्रों में कन्वर्जन, मुस्लिम तुष्टीकरण, रोहिंग्या सहित बाहरी मुसलमानों को विभिन्न क्षेत्रों में बसाकर जनसांख्यिकीय असंतुलन पैदा करना, लव जिहाद, जमीन जिहाद जैसे मुद्दे बहुत प्रभावी रहे। धर्म नगरी कवर्धा में चैत्र नवरात्र के दौरान भगवा झंडा उतारकर फेंकने की घटना ने पूरे प्रदेश उद्वेलित कर दिया था। साजा विधानसभा क्षेत्र के बिरनपुर गांव में कट्टरपंथी मुसलमानों की भीड़ ने भुवनेश्वर साहू की हत्या कर दी थी। भिलाई में पाकिस्तान मुर्दाबाद का नारा लगाने पर एक सिख युवक की हत्या कर दी गई। इसके अलावा, पूरे प्रदेश में मुस्लिम तुष्टीकरण के कारण कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ी, जिससे सनातन विरोधियों के खिलाफ एक सहज वातावरण तैयार हो गया था।
विधानसभा चुनाव की कमान इस बार राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के हाथों में रही। प्रदेश के प्रभारी ओम प्रकाश माथुर, सह प्रभारी नितिन नवीन और केंद्रीय स्वास्थ्य व विधानसभा चुनाव के प्रभारी मनसुख मांडविया ने पूरे चुनाव की योजना से लेकर रणनीति बनाने और उसे हर विधानसभा क्षेत्र में उतारने का काम बखूबी किया। संगठन स्तर पर क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल, संगठन महामंत्री पवन साय ने संगठन में एकजुट रखने, असंतोष को साधने में पूरा जोर लगाया। इस तरह भाजपा ने यह चुनाव एक ईकाई के तौर पर चुनाव लड़ा और सफलता हासिल की।
भाजपा के प्रति महिलाओं का रुझान बिगड़ती कानून व्यवस्था के कारण भी बढ़ा। अवैध शराब की बेलगाम बिक्री ने उनके आक्रोश को और बढ़ा दिया। 2018 में कांग्रेस ने शराबबंदी का वादा किया था, लेकिन सत्ता में आने के बाद शराब की बिक्री बंद तो नहीं हुई, अलबत्ता इसकी ‘होम डिलीवरी’ शुरू कर दी। भाजपा के सामने बड़ी चुनौती उन 10 लाख 86 हजार मतदाताओं को जोड़ना था, जिन्होंने पिछली बार अजीत जोगी की पार्टी को वोट दिया था। जोगी के निधन के बाद जोगी जनता कांग्रेस कमजोर पड़ गई, जिससे यह अनुमान लगाना मुश्किल था कि उसके मतदाता किस ओर जाएंगे। सामान्य तौर पर यह अनुमान लगाया जा रहा था कि वे कांग्रेस को वोट देंगे। लेकिन कुशल रणनीति से भाजपा इन मतदाताओं में सेंध लगाने में सफल रही।
पिछले चुनाव की तुलना में भाजपा को इस बार 25 लाख से अधिक वोट ज्यादा मिले, जबकि कांग्रेस का वोट 5 लाख से कुछ अधिक बढ़ा है। भाजपा ने विकास से वंचित, कुशासन से प्रभावित शहरी क्षेत्रों में जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए 19 से 16 सीटों पर जीत दर्ज की है। इसी प्रकार, भाजपा ने जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित 29 सींटों में से 17, जबकि कांग्रेस ने 11 सीटों पर और एक सीट पर अन्य ने जीत दर्ज की। वहीं, अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर भाजपा बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाई। भाजपा के हिस्से में 10 में से केवल 3 सीटें आर्इं और शेष 7 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की।
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव की कमान इस बार राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के हाथों में रही। प्रदेश के प्रभारी ओम प्रकाश माथुर, सह प्रभारी नितिन नवीन और केंद्रीय स्वास्थ्य व विधानसभा चुनाव के प्रभारी मनसुख मांडविया ने पूरे चुनाव की योजना से लेकर रणनीति बनाने और उसे हर विधानसभा क्षेत्र में उतारने का काम बखूबी किया। संगठन स्तर पर क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल, संगठन महामंत्री पवन साय ने संगठन में एकजुट रखने, असंतोष को साधने में पूरा जोर लगाया। इस तरह भाजपा ने यह चुनाव एक ईकाई के तौर पर चुनाव लड़ा और सफलता हासिल की। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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