पश्चिम बंगाल से तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता रद हो गई है। लोकसभा में निश्चित रूप से वह तृणमूल कांग्रेस के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे आईएनडीआई अलाइंस के लिए उपयोगी सांसद थीं। जैसे इस वर्ष 10 अगस्त को लोकसभा में उनका दिया भाषण सुनें। उस समय वह महिलाओं के दृष्टिकोण से मणिपुर का मुद्दा उठाने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन भाषण की शुरुआत में ही उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि वह राजस्थान, छत्तीसगढ़ या पश्चिम बंगाल में महिलाओं की स्थिति के बारे में जरा भी बात नहीं करेंगी। आखिर क्यों? क्योंकि पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ अथवा राजस्थान का अध्याय खुला, तो मणिपुर की घटना एक पासंग बनकर रह जाएगी। लिहाजा, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस ने मणिपुर की घटना को अपने राज्यों में महिलाओं पर हुए अत्याचारों को छिपाने की एक आड़ बना डाला।
महुआ मोइत्रा की उपयोगिता यहां साबित हुई। एक बार नहीं, अनेक बार महुआ मोइत्रा अपने संरक्षक और पालक दलों के लिए बहुत उपयोगी साबित हो चुकी हैं। उन्होंने भगवान शिव का उपहास किया, काली माता का उपहास किया, हिंदुत्व का अपमान करने का कोई मौका कभी नहीं चूका और उनसे जिम्मेदारी या समझदारी की उम्मीद करने की हिम्मत भी कोई नहीं कर सका। आखिर वह स्मार्ट, पार्टियों में सिगार और गिलास के साथ तस्वीरों में नजर आने वाली, फॉरेन रिटर्न, ग्लैमरस, गॉर्जियस, प्रोग्रेसिव, लिबरल, पॉपुलर, फेमिनिस्ट, सोशल डॉमिनेटिंग, वोकल, फैशनेबल आदि-इत्यादि थीं। जो काम उनकी पार्टी या उनके अलायंस वाली पार्टी खुद सामने आकर नहीं कर पाती थी, वह काम महुआ मोइत्रा करती थीं।
पहले कहा जाता था कि अगर आपका अपना दामन दागदार हो, तो आपको कभी ऊंची आवाज में बात नहीं करनी चाहिए। महुआ मोइत्रा ने इसके विपरीत सिद्ध करके दिखाया। वह महिलाओं का मामला उठाती थीं, क्योंकि (राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार) 2016 से 2020 के बीच पश्चिम बंगाल में 1 लाख 43 हजार से अधिक महिलाएं लापता हुईं। उस राज्य से, जहां हर शिकायत दर्ज करने की कोई गारंटी नहीं है और यह आंकड़ा देश में सर्वाधिक है।
अडाणी ही क्यों?
कुछ समय पहले पश्चिमी देश, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और कई अन्य तत्व अडाणी समूह के पीछे पड़े हुए थे। हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट इसका एक हथकंडा थी। हिंडनबर्ग रिसर्च ने 106 पृष्ठ की रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें आरोप लगाया गया कि अडाणी समूह स्टॉक हेरफेर और लेखांकन धोखाधड़ी में शामिल रहा है। अडाणी समूह के कामकाज में बंदरगाह, हवाईअड्डे, बिजली उत्पादन व ट्रांसमिशन, गैस वितरण सहित बहुत कुछ शामिल है। पिछले वर्ष जुलाई में अडाणी पोटर््स इकाई ने 4.1 बिलियन शेकेल ($1.26 बिलियन) की बोली लगाकर इस्राएल के हाइफा पोर्ट पर नियंत्रण का टेंडर हासिल किया। यह समूह पहले से ही चीन के सरकारी स्वामित्व वाले शंघाई इंटरनेशनल पोर्ट ग्रुप के साथ सीधे प्रतिस्पर्धा में है।
श्रीलंका का हम्बनटोटा बंदरगाह चीन के पास है, तो अडाणी ने दो वर्ष पहले 30 सितंबर को श्रीलंका में एक नया कंटेनर टर्मिनल बनाने के लिए 70 करोड़ अमेरिकी डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसमें अडाणी पोटर््स की 51 प्रतिशत हिस्सेदारी है। अडाणी श्रीलंका में पहला भारतीय बंदरगाह आपरेटर है। श्रीलंका के बंदरगाह उद्योग में इस सबसे बड़े विदेशी निवेश का भू-राजनीतिक महत्व है। नए प्रस्तावित भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा में जितने भी रिक्त स्थान हैं, उनकी पूर्ति में अडाणी समूह की भूमिका है या होने की पूरी गुंजाइश है। इससे चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बीआरआई के लिए चुनौती पैदा हो जाती है।
गंभीर संकट में महुआ
अब महुआ गंभीर संकट में हैं। उनके वकील रहे जय अनंत देहाद्राई ने बहुत सारे ‘कामकाजी’ विवरण सार्वजनिक कर दिए हैं। गोड्डा (झारखंड) से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने भी लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिख कर बहुत सारी बातें उजागर कर दी हैं। यह कि महुआ मोइत्रा ने संसद में कुछ ‘विशिष्ट’ प्रश्न पूछने का षड्यंत्र रचा, जो प्रश्न हीरानंदानी समूह को लाभ पहुंचाने वाले थे और इसके बदले उन्हें नकद और महंगे उपहार मिलते थे।
महुआ मोइत्रा के चुनाव प्रचार के लिए अप्रत्यक्ष रूप से 75 लाख रुपये और 2 करोड़ रुपये नकद देने की बात भी सामने आई है। यह जाहिर तौर पर सिर्फ सतह पर नजर आने वाली रकम है। कथित रूप से उपहार में दी गई वस्तुओं में शामिल हैं आईफोन, हीरे-पन्ने के गहने, हर्मीस व लुई वुइटन के स्कार्फ जैसी लक्जरी वस्तुएं, साल्वाटोर फेरागामो के लगभग 35 जोड़े जूते, महंगी फ्रांसीसी और इतालवी वाइन की दर्जनों बोतलें, दुबई से लक्जरी सौंदर्य प्रसाधनों के पैकेट, गुची के बैग और बलुर्टी से मगरमच्छ के चमड़े के बैग, भारतीय रुपये और ब्रिटिश पाउंड, दोनों में नकद रकम के पैकेट की नियमित डिलीवरी, महुआ मोइत्रा के आवास की हीरानंदानी समूह द्वारा व्यापक डिजाइनिंग और पुनर्निर्माण, जिसका भुगतान हीरानंदानी समूह द्वारा किया गया।
क्या है शपथ पत्र में
उनके द्वारा पूछे गए 60 में से 51 प्रश्न ऐसे थे, जो हीरानंदानी के लिए व्यक्तिगत और विशेष तौर पर उनके व्यवसाय से संबंधित थे। इसका विवरण शपथपत्र में दिया गया है। जय अनंत ने कहा है कि महुआ मोइत्रा ने उनके सामने (हीरानंदानी के दिए हुए) 20,000 ब्रिटिश पाउंड गिने। उनके प्रश्न इस तरह डिजाइन किए गए थे, जो अडाणी समूह व सरकार को निशाना तो बनाते ही थे, मंत्रियों से जो महत्वपूर्ण जानकारी मांगी जाती थी, वह हीरानंदानी के व्यवसायों के लिए होती थी। कुछ प्रश्न उस कानूनी मामले से संबंधित हैं, जिसका सामना हीरानंदानी को करना पड़ रहा है। ये विदेशों में उनके 6 करोड़ डॉलर से अधिक के अघोषित अघोषित ट्रस्टों से संबंधित है, जिसका पता राजस्व अधिकारियों ने लगाया है। शपथपत्र में उपहार में मिले आईफोन मॉडल के नाम व उन स्थानों तक के विवरण हैं, जहां बैठकें हुई थीं।
हीरानंदानी बने सरकारी गवाह
हीरानंदानी ने अपने हिस्से का बोझ भी जल्द ही उतार फेंका। इस ‘कैश फॉर क्वेरी’ घोटाले में हीरानंदानी समूह के सीईओ दर्शन हीरानंदानी सरकारी गवाह बन गए। उन्होंने महुआ को लाभ पहुंचाने व उनके आधिकारिक ईमेल पोर्टल पर लॉग इन करने की बात स्वीकार कर ली। उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि महुआ ने उन्हें ब्लैकमेल किया। हीरानंदानी ने शपथपत्र में कहा है कि महुआ मोइत्रा ने अडाणी को निशाना इसलिए बनाया ताकि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बना सकें।
अडाणी के खिलाफ सवाल पोस्ट करने के लिए उन्हें अपना यूजर आईडी और पासवर्ड भी दे दिया। हीरानंदानी ने यह आरोप भी लगाया है कि महुआ ने उन्हें कुछ चीजें करने के लिए मजबूर किया। अपने शपथपत्र में हीरानंदानी ने शार्दुल श्रॉफ और पल्लवी श्रॉफ का भी नाम लिया है। निशिकांत दुबे और जय अनंत देहाद्राई की गवाही भी हो चुकी है।
जय अनंत की शिकायत के बाद भी महुआ को संभवत: अपनी चिर-परिचित बदमिजाजी की शक्ति पर पूरा विश्वास था। उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर यह निर्देश देने की मांग की कि निशिकांत दुबे, जय अनंत, सोशल मीडिया मंचों और मीडिया घरानों पर लगाम लगाई जाए और उन्हें कोई भी फर्जी व अपमानजनक सामग्री पोस्ट करने, प्रसारित या प्रकाशित करने से स्थायी रूप से रोका जाए।
साथ ही, महुआ ने उच्च न्यायालय में निशिकांत दुबे के खिलाफ मानहानि का मुकदमा भी कर दिया। लेकिन जब जय अनंत ने अदालत को बताया कि महुआ के वकील गोपाल शंकरनारायण ने उन्हें कॉल करके मामला वापस लेने को कहा था, जिसकी कॉल रिकॉर्डिंग उनके पास है। ऐसे में जज ने कहा, ‘अगर ऐसा है तो शंकरनारायण इस मामले की पैरवी कैसे कर सकते हैं।’ इसके बाद शंकरनारायण ने अपने आप को इस मामले से अलग कर लिया। हालांकि मामला अभी भी अदालत के विचाराधीन है।
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