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नीदरलैंड्स: गीर्ट विल्डर्स की जीत से क्यों घबराए मुसलमान?

गीर्ट की पार्टी पीवीवी ने देश के ताजा चुनावों में सबसे अधिक सीटें जीती हैं। माना जा रहा है कि जल्दी ही वे प्रधानमंत्री बनेंगे। गीर्ट राजनीति में आने के बाद से ही कट्टर इस्लाम के विरुद्ध मत व्यक्त करते आ रहे हैं

by WEB DESK
Dec 6, 2023, 04:30 pm IST
in विश्व
गीर्ट विल्डर्स

गीर्ट विल्डर्स

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नीदरलैंड्स का नाम आजकल कट्टर मजहबियों के मन को कसैला कर रहा है। गीर्ट विल्डर्स और उनकी पार्टी का उस देश में चुनाव में सबसे अव्वल आना कट्टर इस्लामवादियों के गले नहीं उतर रहा है। कारण? गीर्ट भी अपनी जगह कट्टर इस्लाम विरोधी माने जाते हैं। वे इस्लामवादियों की कट्टर सोच के विरुद्ध माने जाते हैं। यह भाव उन्होंने चुनावी प्रचार के दौरान खुलकर जताया था, कट्टर सोच के विरुद्ध अनेक बयान भी दिए थे।

गीट कट्टर इस्लामवादी सोच के इस कदर विरोधी हैं कि खुलकर कहा कि कुर्सी संभालने पर हिजाब जैसी चीज नहीं चलने दी जाएगी, इस पर पूर्णत: रोक लगा दी जाएगी। इतना ही नहीं, देश में बड़े ओहदों पर जो मुस्लिम बैठे हुए हैं, उनको लेकर भी गीर्ट के तीखे बयान सुनने में आते रहे हैं।

आज नीदरलैंड्स के मुसलमानों में तबसे खलबली बढ़ गई है जब से उनकी पार्टी, पार्टी फॉर फ्रीडम (पीवीवी) ने वहां हाल के चुनावों में जीत हासिल की है। विशेष रूप से कट्टर सोच वाले मुसलमान तो घोर संदेह और घबराहट के साए में दिखते हैं। उनकी पार्टी को वे ​’इस्लाम विरोधी’ मानते हैं और गीर्ट इसी पार्टी के अगुआ हैं।

नीदरलैंड्स में इस्लाम विरोधी मार्च (फाइल चित्र)

नीदरलैंड के कट्टर इस्लामवादियों में ऐसी घबराहट है कि आम मुस्लिम ही नहीं, महापौर पद पर बैठे मुस्लिम अफसर भी संशय में हैं कि आगे क्या होगा। कट्टर ‘दक्षिणपंथी’ नेता के मजहबी सोच के विरुद्ध तीखे बयानों के बारे में अर्नहेम शहर के महापौर अहमद मार्कोच बखूबी जानते हैं इसलिए समझ नहीं पा रहे हैं कि उनका इस पद पर क्या भविष्य होगा।

डच चुनाव परिणामों पर उस देश में ही नहीं, दुनिया में एक चर्चा छिड़ी हुई है। एक बड़ा वर्ग है जो कट्टर मजहबी सोच और उसके दुष्परिणामों को देखते हुए गीर्ट के जीतने को सकारात्मकता में देख रहा है तो एक सेकुलर वर्ग ऐसा भी है जो डेनमार्क, जर्मनी, फ्रांस, यू.के. जैसे देशों में मजहबी उन्मादियों के उपद्रवों के बावजूद, उनके प्रति सेकुलर सहानुभूति रखता है और गीर्ट की जीत काे मुसलमानों के लिए दुखदायी मानता है।

वहां चुनाव के नतीजे आने के बाद वे उसे आसानी से पचा नहीं पाए थे। उन्होंने तो यहां तक सोच लिया कि शायद अब वे इस पद पर क्या, इस देश में शायद टिक नहीं पाएंगे। अहमद के परिवार ने अलग तनाव पाला हुआ है। महापौर पद पर बैठे अहमद के दिमाग में यदि इतना तनाव है तो सोचिए, एक आम मुसलमान, विशेषकर जो कट्टर सोच रखता है, उसका क्या हाल होगा!

यूरोप के इस्लामीकरण को रोकने का आह्वान (फाइल चित्र)

यही वजह है कि डच चुनाव परिणामों पर उस देश में ही नहीं, दुनिया में एक चर्चा छिड़ी हुई है। एक बड़ा वर्ग है जो कट्टर मजहबी सोच और उसके दुष्परिणामों को देखते हुए गीर्ट के जीतने को सकारात्मकता में देख रहा है तो एक सेकुलर वर्ग ऐसा भी है जो डेनमार्क, जर्मनी, फ्रांस, यू.के. जैसे देशों में मजहबी उन्मादियों के उपद्रवों के बावजूद, उनके प्रति सेकुलर सहानुभूति रखता है और गीर्ट की जीत काे मुसलमानों के लिए दुखदायी मानता है।

यू.के. का प्रसिद्ध अखबार द गार्जियन लिखता है कि पूर्वी नीदरलैंड्स के अर्नहेम शहर के महापौर के अनुसार, उनके लिए गीर्ट की अगुआई में सरकार का बनना हिला देने वाला है। उनका तो दिल ही बैठा जा रहा है। गार्जियन के हिसाब से ये ‘काफी चिंता की बात’ है। महापौर यह सोचकर घबराए हुए हैं कि उनके परिवार को देश से बेदखल होना पड़ सकता है।

अहमद लेबर पार्टी से आते हैं और साल 2017 से अर्नहेम शहर के महापौर हैं। वे 10 साल के थे जब मोरक्को से इस देश में आए थे। गीर्ट ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान एक मुस्लिम, अहमद मार्कोच के इस बड़े पद पर होने को भी एक मुद्दा बनाया था। इसलिए अहमद को इस बात का खटका है कि गीर्ट विल्डर्स कुर्सी पर बैठे नहीं कि उनकी कुर्सी गई।

हालांकि नीदरलैंड्स एक सहिष्णु देश के तौर पर जाना जाता है, जहां फिलहाल नागरिकों में विभिन्न देशों से आए लोग बसे हैं, इसलिए द गार्जियन को चिंता है कि गीर्ट की ऐसी नीति देश में सामुदायिक माहौल को बिगाड़ सकती है। मुस्लिम समुदाय और सरकार के मध्य संपर्क सेतु के तौर पर काम कर रहे मोहसिन को लगता है कि चुनावों के नतीजे इस देश के मुस्लिमों को हैरान कर गए हैं, क्योंकि उन्हें गीर्ट और उनकी पार्टी की जीत की अपेक्षा नहीं थी।

गीर्ट की पार्टी पीवीवी ने देश के ताजा चुनावों में सबसे अधिक सीटें जीती हैं। माना जा रहा है कि जल्दी ही विल्डर्स प्रधानमंत्री बनेंगे, जो राजनीति में आने के बाद से ही कट्टर इस्लाम के विरुद्ध मत व्यक्त करते आ रहे हैं। वे यही कहते रहे हैं कि इस देश में सभी मस्जिदों को बंद कर देना चाहिए, मुसलमानों की मजहबी किताब कुरान पर पाबंदी लग जानी चाहिए।

चुनाव जीतने के बाद, उन्होंने कथित तौर पर यह भी कहा कि नीदरलैंड्स से सभी मुसलमानों को निकल जाना चाहिए और वे नहीं चाहते कि कुरान की एक भी प्रति उनके देश में रहे। यूरोप के कई देशों ने जिस प्रकार मध्य एशियाई इस्लामी देशों से आने वाले शरणार्थियों के लिए अपने दरवाजे खोले हैं, गीर्ट इसके विरोधी रहे हैं। वे नहीं चाहते कि नीदरलैंड्स में इस तरह के शरणार्थी आकर मजहबी उपद्रव फैलाएं।

Topics: dutchnetherlandsइस्लामीfanaticsनीदरलैंड्स#muslimgeert#islampvvकुरानमजहबमुसलमानcommunal
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