सूडान में गृहयुद्ध छिड़ा हुआ है और ऐसा हाहाकार मचा है कि संभवतया देश ही समाप्ति की कगार पर है। यह जंग वहां पर सूडान आर्मी चीफ अब्देल फताह अल-बुरहान के समर्थक एवं लड़ाकों तथा पैरामिलिट्री रैपिड सपोर्ट फोर्सेस के कमांडर मोहम्मद हमदान दाग्लो के वफादारों के बीच हो रही है। सूडान की रैपिड सपोर्ट फोर्सेज एक अरबी वर्चस्व वाला पैरामिलिट्री ग्रुप है।
इस लड़ाई में नस्ली हत्याएं हो रही हैं और स्थानीय समुदाय के लोगों को भगाया जा रहा है। बीबीसी पर 1 अगस्त 2023 को ही यह रिपोर्ट आई थी कि कैसे अर्द्धसैनिक लड़ाके स्थानीय अफ्रीकी मासालिट समुदाय की एक महिला के साथ बलात्कार में संलग्न थे। इसमें एक महिला ने फोन लाइन पर बताया था कि “”वे बहुत क्रूर थे। उन्होंने बारी-बारी से उस पेड़ के नीचे मेरे साथ बलात्कार किया, जहाँ मैं आग जलाने के लिए लकड़ी इकट्ठा करने गई थी,” बलात्कार पीड़िता कुलसुम (बदला हुआ नाम) ने बताया था कि उनके बलात्कारियों ने यह कहते हुए शहर छोड़ने के लिए कहा था कि यह ‘अरबी लोगों’ का शहर है। इसमें एक और महिला ने बताया था कि कैसे आरएसएफ के लड़ाकों ने उसके साथ बलात्कार किया था।
अब जो रिपोर्ट सामने आई है, उसमें भी यही निकलकर आ रहा है कि कैसे स्थानीय महिलाओं की देह पर लड़ाई लड़ी जा रही है। रायटर्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट इस ओर इशारा कर रही है कि कैसे एथनिक अफ्रीकी मासालिट समुदाय की युवतियां पश्चिमी दारफुर में एल जेनेइना पर आरएसएफ अर्द्धसैनिक बल एवं अरब सैन्य बालों द्वारा बन्दूक की नोकों पर यौन हिंसा का शिकार हो रही हैं। रायटर्स ने 11 महिलाओं के साक्षात्कार किए हैं, जो इस हिंसा का शिकार हुई हैं। एक 24 वर्ष की महिला का बलात्कार उसके घर पर ही उसकी माँ के सामने कर दिया गया। एक 19 वर्ष की युवती का अपहरण चार लोगों ने किया और फिर तीन दिनों तक उसके साथ बलात्कार किया गया। एक 28 वर्षीय महिला कार्यकर्ता को उसके घर पर ही कुछ लोगों ने पकड़ लिया और फिर अकेले घर में उसके साथ बलात्कार किया। इनमें से 9 महिलाओं ने यह माना कि इनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया है और सभी 11 महिलाओं का कहना था कि उनके साथ बन्दूक की नोक पर बलात्कार किया गया।
अफ्रीकी मासालिट जाति इस शहर में बहुमत वाला समुदाय था। मगर अप्रैल से जून के मध्य तक इन्हें आरएसएफ और उसके साथियों ने निशाना बनाया और उन्हें उस शहर से पलायन करना पड़ा। उनके साथ नस्लीय हिंसा हुई या फिर कहें उनके प्रति एक जीनोसाइडल माहौल बनाया गया। जीनोसाइड में महिलाओं को विशेष रूप से निशाना बनाया जाता है और वह भी उनकी उस पहचान के कारण जिसके चलते उनका सफाया हो रहा है। मासालिट एक ऐसा समुदाय है, जिनकी त्वचा का रंग गहरा है। इन्हें इनके ही शहर से निकाल दिया गया, जैसा कि बीबीसी ने अगस्त में बताया था कि महिला ने कहा था कि उन्हें इस कारण पलायन करना पड़ा था क्योंकि आरएसएफ के अनुसार वह शहर “अरब लोगों” का था।
इस हिंसा से जीवित बचे लोगों का कहना था कि नागरिकों को उनके घरों में मार डाला गया, सड़कों पर कत्ल किया गया और नदी में भी! उन्हें बंदूकधारियों ने उठा लिया, ऑटोमेटिक हथियारों से उन्हें मारा गया, तलवारों से काट दिया गया और घरों में जिंदा जला दिया गया था। हिंसा से बची एक पंद्रह वर्षीय बच्ची ने बताया कि कैसे उसके माता-पिता को मारा गया और उसके एवं उसकी सहेली के साथ आरएसएफ के पांच लड़ाकों ने बलात्कार किया और फिर उसकी दोस्त को मार डाला। जिन ग्यारह महिलाओं का साक्षात्कार लिया गया उनमें से सभी ने बताया कि जिन लोगों ने उनके साथ बलात्कार किया उन्होंने या तो आरएसएफ सैन्य वर्दी पहनी थी, या आम तौर पर अरब लड़ाकों द्वारा पहने जाने वाले वस्त्र और पगड़ी पहनी थी।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इन में से आठ महिलाओं ने कहा कि उनकी नस्लीय पहचान को विशेष रूप से हमलावरों ने उठाया। उन्होंने कहा कि उन आदमियों ने उनकी मासालिट पहचान का उल्लेख किया, या मासालिट और अन्य गहरे रंग वाले गैर-अरबों के लिए नस्लीय अपशब्दों का इस्तेमाल किया। हनान इदरीस, जो 22 वर्ष की हैं, उन्होंने बताया कि वह और उनकी बहन अपनी चतुराई से इन हमलों से बच गईं। इदरीस ने कहा कि वह 2 नवम्बर को उनका बलात्कार करने जा रहे थे। तो इन्होंने कहा कि उनके मासिक आए हैं और बहन एचआईवी से पीड़ित है।
वहीं अरब नस्ल के नेता अमीर मसार असील ने इन सभी का खंडन करते हुए कहा कि यह सब बकवास है क्योंकि अरब के नस्लीय रिवाज के अनुसार अरब लोग मासालिट नस्ल के लोगों के साथ यौन सम्बन्ध नहीं बना सकते हैं। उन्होंने रायटर्स को दिए गए एक साक्षात्कार में कहा कि जब उनके साथ शारीरिक सम्बन्ध नहीं बना सकते हैं तो सामूहिक बलात्कार कैसे कर सकते हैं?
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार अप्रैल से हुई इस लड़ाई में दस हजार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और 6 मिलियन से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं। अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं इस यौन हिंसा के विषय में आंकड़े दे रही हैं। ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट के अनुसार इस साल की शुरुआत में एल जेनाइन हिंसा के दौरान कई दर्जन महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया था और ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें उनकी मासालिट नस्लीय पहचान के कारण निशाना बनाया गया था। संयुक्त राष्ट्र ने नवंबर में कहा था कि पूरे सूडान में उसे कम से कम 105 पीड़ितों के साथ यौन हिंसा की रिपोर्ट मिली है। हेग में अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) ने जुलाई में कहा था कि वह दारफुर में शत्रुता की जांच कर रहा है, जिसमें हत्याओं, बलात्कारों और बच्चों के खिलाफ अपराधों की रिपोर्टें शामिल हैं।
अब प्रश्न यह भी उठता है कि इन हजारों लोगों की हत्याओं या फिर इन अफ्रीकी मासालिट महिलाओं के साथ हो रही यौन हिंसा पर अंतर्राष्ट्रीय विमर्श क्यों मौन है? वह तमाम एक्टिविस्ट जो फिलिस्तीन की महिलाओं के लिए लड़ रहे हैं, वह फिलिस्तीन में कथित रूप से महिलाओं के साथ हो रहे बलात्कार पर शोर मचा रहे हैं, वह लोग सूडान में आरएसएफ के हाथों पीड़ित हो रही इन अफ्रीकी महिलाओं पर मौन क्यों हैं? जबकि यह हिंसा इस पैमाने पर है कि संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि सूडान का युद्ध पूरे देश को समाप्त कर सकता है और यह हिंसा इसलिए भी हैरान करने वाली है कि सूडान जैसा देश जहां पर 97% आबादी मुस्लिम है वहां पर महिलाएं अरब मूल वाली सेना आरएसएफ के हाथों प्रताड़ित हो रही है और यह प्रताड़ना इस सीमा तक है कि इससे पीड़ित महिलाओं ने हमलावरों से यह तक गुहार लगाई कि “मौत ही उनके लिए दया है!”
इस सीमा तक प्रताड़ित हो रही महिलाओं पर न भारत की महिला एक्टिविस्ट लिख रही हैं, न ही कथित प्रगतिशील लेखक और न ही गाजा पर आंसू बहाने वाले कथित सेक्युलर!
क्या त्वचा का गहरा रंग इस सीमा तक गहरा होता है कि उनके दर्द भी उसमें छिप जाते हैं और कथित सभ्य एवं प्रगतिशील विमर्श उन्हें देख नहीं पाता? क्या गहरे रंग वालों की पीड़ा उनके रंग के कारण नेपथ्य में अँधेरे में धकेल दी जाती है? कम से कम हालिया घटनाओं से तो यही दिख रहा है कि भारत का कथित प्रगतिशील समाज उन लोगों को निम्न दृष्टि से देखता है जिनकी त्वचा का रंग गहरा होता है। वह गोरी चमड़ी के प्रति आसक्त है, वह कथित कुलीनता की परिभाषा के प्रति गुलामी की सीमा तक झुका हुआ है!
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