संघ की स्थापना के बाद 22 वर्ष स्वाधीनता संग्राम का काल था। इस दौरान संघ के स्वयंसेवक स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लेने के साथ ही संघ की शाखाओं का विस्तार कर समाज के भीतर ‘स्व’ की भावना को मजबूत कर रहे थे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 2025 में अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे करेगा। संघ की इस लंबी यात्रा में अनेक कठिनाइयों को पार करते हुए स्वयंसेवकों ने समूचे समाज के सहयोग से संघ कार्य का विस्तार किया है। संघ की स्थापना के बाद 22 वर्ष स्वाधीनता संग्राम का काल था। इस दौरान संघ के स्वयंसेवक स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लेने के साथ ही संघ की शाखाओं का विस्तार कर समाज के भीतर ‘स्व’ की भावना को मजबूत कर रहे थे। संघ की स्थापना के तत्काल बाद 1936 में डॉ. हेडगेवार की प्रेरणा से माननीय मावशी केलकर ने महिलाओं के बीच संघ की तर्ज पर काम करने के लिए राष्ट्र सेविका समिति की शुरुआत की। 1947 से पहले स्वयंसेवकों ने आजादी की शपथ ली थी और आजादी के बाद उनका लक्ष्य हिंदू राष्ट्र का सर्वांगीण उत्थान हो गया है।
स्वाभाविक रूप से, जब संघ का कार्य विस्तारित हो रहा था, तब स्वयंसेवक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हो रही घटनाओं और उन क्षेत्रों में किए जा सकने वाले सकारात्मक बदलावों के बारे में व्यापक चर्चा करते थे। डॉ. हेडगेवार के जीवनकाल में ही हम विभिन्न सामाजिक गतिविधियों में उनकी व्यापक भागीदारी और भारतीय दृष्टिकोण से आवश्यक संरचनाओं के निर्माण के लिए उनके विचारों को देख सकते हैं।
संघ की इसी विचार प्रक्रिया से प्रेरित होकर स्वयंसेवकों ने विभिन्न क्षेत्रों में नए संगठनों का ताना-बाना रचना शुरू किया। अगस्त 1947 के तुरंत बाद अलग-अलग स्थानीय नामों से छात्र संगठन शुरू किए गए और 1948 में पूरे देश में इसी नाम से यह काम शुरू किया गया। 9 जुलाई, 1949 को पहला संगठन ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद’ पंजीकृत हुआ और राष्ट्रव्यापी कार्य की विधिवत शुरुआत हुई।
शुरुआती दौर में विभिन्न क्षेत्रों में स्वयंसेवकों द्वारा अनेक संगठन प्रारम्भ किए गए। भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) का गठन श्रमिकों के कल्याण के लिए किया गया था। आज ऐसे 36 प्रमुख संगठन हैं। इसके अलावा, ऐसे अन्य संगठन भी हैं, जो कुछ प्रांतों तक ही सीमित हैं। ये संगठन मूल रूप से ‘राष्ट्र प्रथम’ के सिद्धांत पर काम कर रहे हैं और ऐसी संरचनाओं को विकसित करने का मूल उद्देश्य रखते हैं, जो भारतीय लोकाचार के अनुरूप हों और आम जनता के लिए सुलभ हों। व्यवस्था परिवर्तन का मुख्य कार्य इन संगठनों का दूरगामी लक्ष्य बन गया है। संघ मुख्य रूप से मूल्यों को विकसित करने और व्यक्ति निर्माण पर ध्यान केंद्रित करता है। शाखा इस कार्य के लिए प्राथमिक इकाई है। इस प्रक्रिया के माध्यम से तैयार किए गए कुछ कार्यकर्ता (स्वयंसेवक) राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए व्यक्ति निर्माण के संघ के कार्य में सीधे योगदान देते हैं, जबकि अन्य जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ते हैं और संघ-प्रेरित संगठनों के माध्यम से योगदान करते हैं।
आरंभिक दिनों में इन संगठनों में स्वयंसेवक भेजे जाते थे, लेकिन अब संगठनों की आवश्यकता के अनुसार स्वयंसेवक दिए जाते हैं और उनमें से कुछ स्वयं ही इन संगठनों में काम करने लगते हैं। जैसे-जैसे संगठनों का विस्तार होता है, कई नए गैर-स्वयंसेवक संगठनों के संपर्क में आते हैं और विभिन्न प्रमुख जिम्मेदारियों के साथ वहां काम करते हैं। ऐसे लोग भी धीरे-धीरे संघ के कार्य से परिचित होकर स्वयंसेवक बन जाते हैं। ऐसे नवागंतुकों के लिए विभिन्न स्थानों पर ‘संघ परिचय शिविर’ आयोजित किए जाते हैं। यह प्रक्रिया स्वस्थ समन्वय की भावना के साथ टीम और संगठन, दोनों को लगातार मजबूत कर रही है।
हालांकि अन्य संगठन स्वयंसेवकों द्वारा चलाए जाते हैं, जो संगठन अपने-अपने क्षेत्र में स्वायत्त हैं। उनकी निर्णय लेने की प्रक्रिया स्वतंत्र है और उन्हें समाज से बड़ी मान्यता मिली है। ये संगठन आवश्यकतानुसार समय-समय पर संघ से परामर्श तो करते ही हैं, स्वयं भी निर्णय लेते हैं और उसके लिए अपनी शक्ति भी लगा देते हैं। जैसे यह बात विश्व हिंदू परिषद पर लागू होती है, वैसे ही यह बात भाजपा पर भी लागू होती है। अत: इस प्रक्रिया से संघ पर आश्रित अल्प सक्रिय संगठनों के स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण सामाजिक संगठनों ने आकार लिया, जो निरंतर विकसित होकर व्यवस्था परिवर्तन की दिशा में कार्य कर रहे हैं। वे मजबूत, स्वतंत्र, स्वायत्त और आत्मनिर्भर हैं। इसके परिणामस्वरूप भविष्य की जरूरतों के आधार पर नए संगठन बनाने की जन्मजात क्षमता पैदा हुई है।
समन्वय प्रक्रिया
समन्वय की औपचारिक प्रक्रिया में प्रांतीय और अखिल भारतीय स्तर पर वार्षिक समन्वय बैठकें आयोजित करना शामिल है। इसके अलावा, समय-समय पर स्थानीय से लेकर केंद्रीय स्तर तक विभिन्न औपचारिक और अनौपचारिक बैठकें आयोजित की जाती हैं। इन बैठकों में संघ के प्रचारक और संगठनों के प्रमुख पदाधिकारी शामिल होते हैं।
हाल ही में 14-16 सितंबर, 2023 को पुणे में हुई अखिल भारतीय समन्वय बैठक में 36 संगठनों और संघ के 243 पदाधिकारियों ने भाग लिया। इन बैठकों का एजेंडा निर्णय लेना नहीं, बल्कि अनुभवों, उपलब्धियों, विचार और चल रहे प्रयासों को साझा करके दृष्टिकोण को व्यापक बनाना है। शिक्षकों एवं छात्रों की समस्याओं का समाधान करते हुए विद्यार्थी परिषद, विद्या भारती, शैक्षिक महासंघ आदि संगठन संघ प्रेरित शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय हैं और शिक्षा को भारतीय परिप्रेक्ष्य देने का सतत प्रयास कर रहे हैं।
पुणे समन्वय बैठक में हुई चर्चा के अनुसार, सामाजिक परिवर्तन की इच्छा से जन्मे ये सभी संगठन फिलहाल पांच प्रमुख विषयों पर जोर दे रहे हैं- जीवन मूल्यों पर आधारित पारिवारिक व्यवस्था का निर्माण, पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली का प्रसार, व्यक्तिगत-पारिवारिक-सामाजिक जीवन में समता-सद्भाव को अपनाना, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में ‘स्व’ की अभिव्यक्ति के साथ-साथ दैनिक जीवन में नागरिक कर्तव्यों का पालन। इस दौरान सभी संगठन अपने-अपने क्षेत्र में इस संबंध में पहल करेंगे।
स्वाभाविक रूप से, वे नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए भी लगातार काम कर रहे हैं। साथ ही, ऐसी बैठकों के जरिए आर्थिक, सामाजिक और वैचारिक मुद्दों पर आपसी सहमति बनाने की कोशिश की जाती है। ऐसे समय में जब कुछ विचारधाराएं विभिन्न समूहों को एक-दूसरे के साथ संघर्ष में उलझाए रखने के लिए काम करती थीं, इन संघ-प्रेरित संगठनों ने हिंदू जीवनशैली के आधार पर पारिवारिक बंधन की भावना के निर्माण पर काम किया। जहां बीएमएस श्रमिकों और मालिकों/प्रबंधन को एक परिवार की तरह जोड़ने का रास्ता खोजने की कोशिश कर रहा है, वहीं विद्यार्थी परिषद अकादमिक बिरादरी के बीच पारिवारिक भावना का निर्माण कर रही है। सेवा भारती जैसा संगठन समाज के सभी धर्मार्थ संगठनों के साथ समन्वय करता है और संगठन से अधिक समाज को महत्व देता है।
सभी संगठनों में महिलाओं की भागीदारी ऐसी हर बैठक में चर्चा का एक महत्वपूर्ण विषय होता है। इस उद्देश्य से पिछले कुछ वर्षों में ‘महिला समन्वय’ की एक अतिरिक्त विशेष प्रणाली स्थापित की गई है, जिसके तहत विभिन्न संगठनों में महिलाओं के नेतृत्व विकास और भागीदारी को एक विशेष लक्ष्य दिया गया है। ऐसी बैठक में अन्य संगठनों की तरह भाजपा कार्यकर्ता भी राजनीतिक स्थिति, अपने प्रयासों और सफलता की संभावना के बारे में अपनी समझ रखते हैं। बाहर से आए लोग ऐसी बैठकों का मौजूदा हालात के आधार पर विश्लेषण करने की कोशिश करते हैं, लेकिन ऐसी चर्चाएं संघ की समन्वय प्रक्रिया का नियमित हिस्सा हैं। ये एक समृद्ध अनुभव हैं, जो आपसी समझ विकसित करने में मदद करते हैं।
संगठनों से यह अपेक्षा उचित ही है कि सभी लोग टीम भावना से कार्य करें। सामूहिक निर्णय लेने, अपने विकास के लिए कार्यकर्ताओं की भागीदारी पर जोर देने, शुद्ध भावना से काम करने और जीवन के मूल्यों से समझौता किए बिना जन कल्याण करने की भावना पर जोर दिया जाता है। सभी संगठन जनहित के मुद्दों का अध्ययन करते हुए, रास्ता खोजते हुए, सहभागी दृष्टिकोण के साथ और जहां आवश्यक हो, संबंधित समूहों को मूल मुद्दों पर शिक्षित करते हुए व्यवस्थागत परिवर्तन के कार्य में सक्रिय हैं। ऐसा करते समय कभी-कभी कुछ मुद्दों पर मतभेद या कुछ मुद्दों पर भाजपा के नेतृत्व वाली सरकारों के नीतिगत निर्णय और संघ प्रेरित संगठनों की स्थिति पर तीखी असहमति सामने आ जाती है। ऐसी स्थिति में सौहार्दपूर्ण समाधानों को सुगम बनाया जाता है या असहमत होने पर सहमति जताते हुए आगे बढ़ने का निर्णय स्वीकार किया जाता है। विचारों में भिन्नता के कारण मन में दुराव नहीं होना चाहिए और इस संबंध में अपूरणीय कलह प्राथमिक दृष्टिकोण है।
पुणे समन्वय बैठक में हुई चर्चा के अनुसार, सामाजिक परिवर्तन की इच्छा से जन्मे ये सभी संगठन फिलहाल पांच प्रमुख विषयों पर जोर दे रहे हैं- जीवन मूल्यों पर आधारित पारिवारिक व्यवस्था का निर्माण, पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली का प्रसार, व्यक्तिगत-पारिवारिक-सामाजिक जीवन में समता-सद्भाव को अपनाना, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में ‘स्व’ की अभिव्यक्ति के साथ-साथ दैनिक जीवन में नागरिक कर्तव्यों का पालन। इस दौरान सभी संगठन अपने-अपने क्षेत्र में इस संबंध में पहल करेंगे।
संघ से प्रेरित ये सभी संगठन परिवार की भावना के साथ निरंतर समन्वय बनाकर आगे बढ़ रहे हैं। संघ सहित इन सभी संगठनों के दरवाजे सभी भारतवासियों की सेवा और स्वागत के लिए चौबीसों घंटे खुले हैं।
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