रवांई जौनपुर में एक माह बाद मनाई जाती है दीपावाली जमुना टोंस किनारे बसा है जौनसार बावर
July 20, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत उत्तराखंड

रवांई जौनपुर में एक माह बाद मनाई जाती है दीपावाली जमुना टोंस किनारे बसा है जौनसार बावर

नसार नाम जमुना नदी तथा बावर नाम पावर नदी के नाम से पड़ा। इतिहासकारों का मानना ​​है कि जौनसार बावर का इतिहास जमुना के इतिहास जितना ही पुराना है

by दिनेश मानसेरा
Nov 19, 2023, 01:19 pm IST
in उत्तराखंड
Uttarakhand News, Dehradun News, Diwali celebrated after one month in jaunsar Bawar, Dehradun latest News, Uttarakhand latest News

प्रतिकात्मक

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

उत्तराखंड राज्य में देहरादून जिले का उत्तर-पश्चिम क्षेत्र जौनसार बावर के नाम से जाना जाता है। जौनसार नाम जमुना नदी तथा बावर नाम पावर नदी के नाम से पड़ा। इतिहासकारों का मानना ​​है कि जौनसार बावर का इतिहास जमुना के इतिहास जितना ही पुराना है। जमुना और पावर (टोस) दो नदियों के बीच स्थित जौनसार बावर का भौगोलिक क्षेत्रफल 1002 वर्ग किलोमीटर है। शासकीय दृष्टि से एक विधानसभा, दो ब्लॉक और तीन तहसीलों में यह क्षेत्र विभक्त है, जबकि ग्राम इकाई के अनुसार करीब 358 छोटे बड़े गांव, 39 खते (पट्टियां) और 80 के आसपास खाघ (चार-पांच गांवों का समूह) के रूप में इस क्षेत्र की पहचान है।

यह क्षेत्र अपनी अनूठी सांस्कृतिक परंपराओं, रीति-रिवाजों, रहन-सहन और खान-पान के कारण देश-दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाए हुए है। यहां त्योहार मनाने की अपनी अनूठी परंपरा है। अतीत काल में यह क्षेत्र अत्यंत वैभव संपन्न रहा होगा जिसका प्रमाण जौनसार बावर के प्रवेश द्वार कालसी में चक्रवर्ती सम्राट अशोक के शिलालेख लगवाने से प्रमाणित होता है, जो ईसा से लगभग 250 वर्ष पूर्व स्थापित किया गया था। इसी वैभव के कारण यहां हर महीने कोई न कोई त्योहार होता है और हर त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। जिसमें दिवाली का त्यौहार एक विशेष स्थान रखता है।

जब संपूर्ण देश में कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को दीपावली मनाई जाती है वहीं ठीक इसके एक माह पश्चात मांगसीर (मार्गशीर्ष) माह की अमावस्या को जौनसार बावर के अधिकांश गांव में दीपावली का त्यौहार 4-5 दिनों तक धूमधाम से मनाया जाता है। इसके पीछे जहां लोगों की मान्यता है कि जब भगवान श्री रामचंद्र जी लंका विजय प्राप्त करके अयोध्या लोटे तो संपूर्ण देश को इसका समाचार समय से मिल गया था परन्तु यह क्षेत्र दूरस्थ होने के कारण यहां एक माह बाद यह समाचार मिला। तब उन्होंने एक माह बाद इस दीपावली को मनाना प्रारंभ किया। परंतु यह तथ्य तार्किक नहीं है जब अन्य त्यौहार देश और दुनिया के साथ मनाए जाते हैं तो दिवाली क्यों नहीं? वास्तव में देखा जाए तो दीपावली का त्यौहार इसलिए एक माह बाद मनाया गया क्योंकि उस दौरान खेती, किसानी, बागवानी के अत्यधिक कार्य होते हैं इसलिए इस त्यौहार को एक माह बाद मनाया जाता है ताकि त्योहार मनाने में कोई व्यवधान उत्पन्न न हो। इतना ही नहीं जौनसार बावर के साथ-साथ जौनपुर रवांई एवं हिमाचल तथा गढ़वाल के अन्य हिस्सों में भी मुख्य दीपावली के 11 दिन बाद ईगास बग्वाल पर्व तथा इस प्रकार के अन्य कार्यक्रम भी होते हैं।

जब संपूर्ण देशभर में दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है उसी दिन से जौनसार बावर के गांवों के छोटे-छोटे बच्चे 15 दिनों तक गांव के निकट बने एक स्थान पर संध्या समय एकत्रित होते हैं और घास फूस और रस्सी से बंधे (होलडे) भैलो, जलाकर खेलते हैं, जो पूरे कृष्ण पक्ष में खेले जाते हैं। 15 दिन बाद पूर्णिमा के शुक्ल पक्ष में आगामी 15 दिनों तक यह होलडे खेलना बंद हो जाते हैं और फिर मार्गशीर्ष के अमावस्या की रात से जौनसार बावर की दीपावली प्रारंभ हो जाती है।

अमावस्या की रात

संध्या समय गांव के नवयुवक एकत्रित होते हैं और गांव के आसपास के जंगल में जाकर मोटी-मोटी लकड़ियां जलाने के लिए गांव के सामूहिक आंगन में एकत्रित करते हैं। जो सबसे बड़ी लकड़ी होती है उसको हौड़ कहते हैं, जिसे ढोल-बाजे सहित रस्सियों में बांधकर लाया जाता है और फिर 4 -5 दिनों तक गांव के सामूहिक आंगन में यह लकड़ियां जलती रहती है। इसके बाद लोग दिन में और शाम के समय सांस्कृतिक नृत्य और गीत गाते रहते हैं। क्योंकि पर्वतीय क्षेत्र में अक्टूबर एवं नवंबर के माह में ठंड होती है संभवतः इसलिए लकड़ी जलाने की यह परंपरा प्रारंभ की गई होगी।

अमावस्या की रात लोग दीपावली पर आधारित लोक परंपराओं के गीत गाते हैं तथा दलित बंधु देव स्तुति के लिए बुधियाट नामक गीत व गोलाकार में सामूहिक नृत्य प्रस्तुत करते हैं। जो देव मंदिर से प्रारंभ होकर गांव के सामूहिक आंगन तक होता है। इसके पश्चात अर्धरात्रि में सभी युवा दीपावली के मुख्य दिन के लिए देवदार की लकड़ी से बने हुए ओंदिये तैयार करते हैं जिसे दीपावली के प्रातः कमर में रस्सी बांधकर उस पर आग जलाकर खेला जाता हैं। यह एक प्रकार का साहसिक खेल है।

दीवाली का बराज

जौनसार बावर में दीपावली के बराज का विशेष महत्व है। अमावस्या की रात के बाद यह महत्वपूर्ण दिन है, इसी दिन को दिवाली कहते हैं। प्रातःकाल सभी लोग गांव के आंगन में एकत्रित होते हैं। सभी पुरुष सदस्य हाथ में भीमल की लकड़ी से बने हुए होलडे लाते हैं जो गांव के आंगन में ही जलाए जाते हैं। खास बात यह है कि यह होलडे परिवार में जितने पुरुष सदस्य होंगे उतने ही बनाए जाते हैं। उसके पश्चात दीपावली पर आधारित गीत, सामूहिक रूप से नृत्य किया जाता है। तत्पश्चात सभी लोग गांव के निकट बने हुए एक स्थान पर एकत्रित होते हैं जहां घास फूस आदि से बने हुए (डीमसे) को जलाया जाता है। जिस प्रकार से दशहरे में सामूहिक रूप से रावण के पुतले को जलाया जाता है ठीक उसी प्रकार दीपावली के दिन जौनसार बावर के अधिकांश गांव में डिमसे को जलाया जाता है। जबकि दशहरे के अवसर पर जौनसार बावर में रावण के पुतले को जलाने की परंपरा नहीं मिलती है।

बिरुडी एक आकर्षक कार्यक्रम

बिरुडी दीपावली का एक आकर्षक परम्परा है। जिसमें गांव के वरिष्ठ लोग सामूहिक आंगन के एक कोने में बैठकर प्रत्येक परिवार से लाए अखरोट एकत्रित करते हैं। जिस परिवार में पुत्र अथवा पुत्री का जन्म होता है वह परिवार अधिक संख्या में अखरोट देते हैं। उसके पश्चात दिन में पहले मातृशक्ति जिसमें लड़कियां और सभी महिलाएं सामूहिक आंगन में अपने पारंपरिक वेशभूषा में सज धज कर पहुंचती हैं, उन्हें आंगन में सम्मानपूर्वक बिठाया जाता है और एक ऊंचे स्थान से दो पुरुष (बिरुडी)अखरोट फेंकते हैं इस दौरान गांव के बाजगी ढोल, दमाऊ व रणसिंघा बजाते हैं। हर्षोल्लास के साथ सभी महिलाएं अखरोट उठाती है। किसी के भाग्य में अधिक अखरोट पड़ते हैं तो किसी के भाग्य में कम। यह कार्यक्रम शांतिपूर्वक संपन्न होता है। इसके पश्चात यही बिरुडी परम्परा पुरुष, युवा, वृद्ध एवं बच्चों के साथ भी निभाई जाती है। खास बात यह है कि जो वृद्ध महिला अथवा पुरुष या अखरोट फेंकने वाले लोग और ढोल बजाने वाले बाजगी जो बिरुडी कार्यक्रम में व्यवस्थाओं के कारण सम्मिलित नहीं हो पाते उन्हें एक निश्चित संख्या में कुछ अखरोट भेंट स्वरूप बाद में दिए जाते हैं।

इसके पश्चात महिला पुरुष सभी लोग गांव के मंदिर में एकत्रित होते हैं और वहां भी व्यक्तिश: अपने श्रद्धा अनुसार देवता को बिरुडी के रूप में कुछ अखरोट भेंट करते हैं जिसे गांव के लोग आनंद और हर्षोल्लास के साथ उठाते हैं। संध्या समय सभी पुरुष प्रत्येक परिवार में जाकर घर में बनाए गए पकवान का सेवन करते हैं और रात के समय फिर नृत्य आदि करते हैं।

दिवाली में अखरोट और चिवड़ा का विशेश महत्व

जौनसार बावर, जौनपुर रवांई एवं हिमाचल के कुछ हिस्सों में पर्वतीय दीपावली, बूढ़ी दीपावली या पुरानी दीपावली के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है। दीवाली में एक दूसरों के घरों में महिला पुरुषों का आना-जाना होता है। इस दौरान उनको विशेष रूप से खाने के लिए अखरोट और चिवड़ा दिया जाता है। जिसे लोग खाते-खाते अपने जेब में भी रखते हैं और एक दूसरे के घरों की ओर आवागमन करते हैं। चिवड़ा दीपावली के 10 -12 दिन पहले बनाई जाती है। एक बड़े बर्तन में धान को भिगोने के लिए रख देते हैं और 5 दिन बाद धान से पानी निचोड़कर उसे कढ़ाई में भूना जाता है और फिर ओखली में डालकर उसे कुटा जाता है। चावल के दाने जब चपटे हो जाते हैं उसे ही चिवड़ा कहते हैं। अखरोट , चिवड़ा, भंजीरा आदि खाने में बड़ा स्वादिष्ट लगता है। जब भी मायके से कोई लड़की अपने ससुराल के लिए विदा होती है, तब उन्हें भी चिवड़ा और अखरोट भेंट किए जाते हैं। दीपावली में चिवड़ा और अखरोट का विशेष महत्व है।

दिवाली में काठ के हाथी का नृत्य
अतीत काल में ग्रामीण क्षेत्रों में मनोरंजन के साधन कम हुआ करते थे इसलिए कई महीनो बाद आने वाले त्योहारों को बड़े मौज मस्ती के साथ मनाए जाते थे। जौनसार बावर क्षेत्र में दीवाली के त्यौहार को भी इसी रूप में मनाया जाता था। दीवाली के तीसरे दिन गांव में काठ का हाथी बनाया जाता है जिसे लोग अपने कंधे पर उठाकर नचाते हैं। हाथी के ऊपर गांव का मुखिया बैठता है जो दोनों हाथों में तलवार लेकर नृत्य करता है। परंतु हाथी बनाने की परंपरा भी प्रत्येक गांव में नहीं है। कुछ गांवों में हिरण बनाने की भी परम्परा है। जब भी हिरण व हाथी पर गांव का मुखिया, स्याणा अथवा गांव का कोई सम्मानित व्यक्ति बैठता है तो बनाये गये काठ के हाथी का विधिवत पूजन किया जाता है। यहां पर गौर करने वाली बात यह है कि हाथी के ऊपर राजा के रूप में दोनों हाथों में तलवार लेकर नृत्य करना यह परंपरा कहीं ना कहीं स्वयं को राज सत्ता की ओर जोड़ती है।
दिवाली के विदाई का अंतिम दिन

चार-पांच दिनों तक चलने वाली दिवाली का अंतिम दिन भी धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। गांव के सभी युवा और युवतियां सामूहिक आंगन में एकत्रित होते हैं और फिर गांव के चारों ओर एक चक्कर लगाते हैं जिसमें पारंपरिक दीपावली के गीत गाए जाते हैं। रात्रि भोजन करने से पहले और रात्रि भोजन करने के बाद देर तक लोकगीत व सामूहिक नृत्य सामूहिक आंगन में किए जाते हैं जिसमें स्त्री पुरुष, ऊंच नीच और जात-पात का कोई भेदभाव नहीं होता है। सभी सामूहिक रूप से पंक्तिबद्ध होकर नृत्य करते हैं। इस उम्मीद के साथ दीपावली का पर्व संपन्न होता है कि एक वर्ष बाद पुनः सब एकत्रित होकर इस त्यौहार को मनाएंगे। उपरोक्त में दीपावली के विभिन्न दिन होने वाले कार्यक्रम प्रत्येक क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग होते हैं। जिसमे नृत्य एवं पौराणिक सास्कृतिक कार्यक्रम अपने गांव की परंपरा एवं रीति-रिवाज के अनुसार मनाएं जाते हैं। इस लेख में एक विशेष क्षेत्र अथवा गांव में मनाए जाने वाली दीपावली के कार्यक्रमों का उल्लेख किया गया है।

घटता जा रहा है पारंपरिक दीवाली का महत्व

विशेष कर जौनसार बावर में समय के साथ-साथ पुरानी दीवाली का महत्त्व कम हो रहा है। कुछ गांव में नई दिवाली मानना भी प्रारंभ हो गई है जबकि जिस खत अथवा पट्टी में ऊपर वाले चालदा महासू महाराज प्रवास पर होंगे उस खत में भी नई दिवाली अर्थात वास्तविक दीवाली मनाई जाती है। जौनसार बाबर की परंपरागत दीपावली अर्थात पुरानी दीपावली का महत्व काम हो रहा है जिसके अनेक कारण है।

जब देश व दुनिया में दीपावली मनाई जाती है उसी समय सरकारी कर्मचारियों की भी छुट्टी होती है जबकि पुरानी दीवाली के समय उन्हें अधिकृत दीपावली के नाम की छुट्टी नहीं मिलती है, इसलिए वह त्यौहार मनाने गांव नहीं आ पाते। दूसरा कारण गांव के आंगन में होने वाले लोक संस्कृति पर आधारित कार्यक्रम भी अब कम हो गए हैं क्योंकि दीवाली के मौके पर अनेक स्थानों पर खेलकूद प्रतियोगिताओं के आयोजन का प्रचलन बढ़ गया है। गांव के युवा अपने गांव को छोड़ उन स्थानों पर चले जाते हैं जिसके कारण दीपावाली के समय गांव में सूनापन रहता है। तीसरा कारण वर्तमान युग सूचना तकनीकी का युग है। हर व्यक्ति के हाथ में मोबाइल है, हर घर में टीवी है, इसलिए अब युवा पीढ़ी सामूहिक कार्यक्रमों से बचते हुए व्यक्तिगत रूप से अपने मनोरंजन के साधनो को ही अधिक तवज्जो देते हैं। जिसके कारण त्योहारों का महत्व कम होता जा रहा है।

परंतु दिवाली के अलावा अन्य त्योहार सम्पूर्ण जौनसार बावर, जौनपुर रवाईं एवं हिमाचल के कुछ हिस्सों में अपना एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। आज भी बड़ी संख्या में सरकारी सेवा एवं अपना व्यवसाय करने वाले लोग जो बाहर रहते हैं वह इन त्योहारों में गांव आते हैं और हर्षोल्लास के साथ विभिन्न त्यौहारों को मना कर फिर वापस अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान करते हैं। त्योहार हमारी परंपराओं एवं संस्कृति का एक हिस्सा है इन्हें हर रूप से मनाया जाना चाहिए, क्योंकि इन त्यौहारों के कारण ही जीवन में उत्साह और उमंग बना रहता हैं।

 

सहयोग: भारत चौहान

Topics: uttarakhand newsDehradun NewsUttarakhand Latest NewsDiwali celebrated after one month in jaunsar BawarDehradun latest News
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

CM Dhami

मदरसों में छात्रवृत्ति को लेकर फिर हुई गड़बड़ी, सीएम धामी ने दिए जांच के आदेश

Operation Kalanemi : साधु वेश में लगातार पकड़े जा रहे बांग्लादेशी, पाञ्चजन्य की मुहिम का बड़ा असर

उत्तराखंड : सीएम धामी ने की केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री से मुलाकात, जल विद्युत परियोजनाओं के क्रियान्वयन का किया अनुरोध

उत्तराखंड : PM मोदी से मिले सीएम धामी, उत्तराखंड के लिए मांगी सहायता

आरोपी

उत्तराखंड: 125 क्विंटल विस्फोटक बरामद, हिमाचल ले जाया जा रहा था, जांच शुरू

उत्तराखंड: रामनगर रेलवे की जमीन पर बनी अवैध मजार ध्वस्त, चला बुलडोजर

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

छत्रपति शिवाजी महाराज के दुर्ग: स्वाभिमान और स्वराज्य की अमर निशानी

महाराष्ट्र के जलगांव में हुई विश्व हिंदू परिषद की बैठक।

विश्व हिंदू परिषद की बैठक: कन्वर्जन और हिंदू समाज की चुनौतियों पर गहन चर्चा

चंदन मिश्रा हत्याकांड का बंगाल कनेक्शन, पुरुलिया जेल में बंद शेरू ने रची थी साजिश

मिज़ोरम सरकार करेगी म्यांमार-बांग्लादेश शरणार्थियों के बायोमेट्रिक्स रिकॉर्ड, जुलाई से प्रक्रिया शुरू

जगदीप धनखड़, उपराष्ट्रपति

‘कोचिंग सेंटर का न हो बाजारीकरण, गुरुकुल प्रणाली में करें विश्वास’, उपराष्ट्रपति ने युवाओं से की खास अपील

अवैध रूप से इस्लामिक कन्वर्जन करने वाले गिरफ्तार

ISIS स्टाइल में कर रहे थे इस्लामिक कन्वर्जन, पीएफआई और पाकिस्तानी आतंकी संगठन से भी कनेक्शन

छांगुर कन्वर्जन केस : ATS ने बलरामपुर से दो और आरोपी किए गिरफ्तार

पंजाब में AAP विधायक अनमोल गगन मान ने दिया इस्तीफा, कभी 5 मिनट में MSP देने का किया था ऐलान

धरने से जन्मी AAP को सताने लगे धरने : MLA से प्रश्न करने जा रहे 5 किसानों को भेजा जेल

उत्तराखंड निवेश उत्सव 2025 : पारदर्शिता, तीव्रता और दूरदर्शिता के साथ काम कर ही है धामी सरकार – अमित शाह

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • जीवनशैली
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies