हैरानी की बात है कि अमेरिका में 60 प्रतिशत मुसलमानों का मानना है कि हमास ने इस्राएल में जो बर्बर हमला किया था, वह सही था। वहां हुए एक सर्वे ने मुसलमानों की सोच से पर्दा हटा दिया है। यह वही इस्लामी सोच है जिसके साथ सेकुलर और मानवाधिकारवादी आंख मूंदकर खड़े हो जाते हैं और उन बर्बर सोच वालों के सुर में सुर मिलाने लगते हैं। वे यह नहीं सोचते कि इससे सिर्फ कट्टर इस्लामवादियों के हिंसक एजेंडे को ही मदद मिलती है।
अमेरिका के 60 प्रतिशत मुसलमान अगर हमास के इस्राएल अचानक बोले गए बर्बरतापूर्ण हमले का सही ठहराते हैं तो समझा जा सकता है कि जिस समुकट्टरपंथी दाय या इलाके में वे रहते हैं, वहां वे कैसा माहौल बनाते होंगे। यहां यह भी ध्यान रखना होगा कि इस्राएल पर 7 अक्तूबर के आतंकी हमले के बाद जब इस्राएल ने हमास की कमर तोड़नी शुरू की तो ये कट्टरपंथी अमेरिका के कई शहरों में सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन करके यहूदी विरोध और जिहाद के नारे लगाने लगे थे।
इस्लामी उम्मा के जैसे इशारे पर मुस्लिम देश ही नहीं बल्कि अमेरिका सहित अनेक पश्चिमी देशों में कट्टर मजहबियों ने फिलिस्तीन के समर्थन में सड़कें जाम करनी शुरू कर दी थीं। इस्लामी उम्मा विश्व में इस्लामवादियों को एक आवाज में उग्रता के साथ उठ खड़े होने की घुट्टी ही पिलाता आया है।
दुनिया 7 अक्तूबर को हमास द्वारा अचानक इस्राएल के कई शहरों में बोले गए हमले से हैरान रह गई थी, जिसमें अनेक मासूम बुजुर्गों, महिलाओं, बच्चों को उनके परिवारों के सामने मार डाला गया, भून डाला गया और नन्हे बच्चों तक को बंधक बना लिया गया। लेकिन इसी हमले के पक्ष में अमेरिका के 60 प्रतिशत मुसलमान खड़े दिख रहे हैं। ये और इनके साथ खड़े सेकुलर तत्व हमास द्वारा बंधक बनाए गए लोगों के पोस्टर तक लगे रहना गवारा नहीं कर रहे, उन्हें फाड़ रहे हैं। इसे अगर इन इस्लामवादियों की पाशविकता नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे?
एक तरफ इस सोच के मुसलमान और उनके सेकुलर साथी ‘फिलिस्तीन और गाजा के लोगों के मानवाधिकारों’ की दुहाई देते हैं तो दूसरी तरफ उन महिलाओं और बच्चों के फोटो लगे पोस्टर फाड़ रहे हैं जिनके प्रति सभ्य समाज आहत है।
दरअसल इस्राएल द्वारा हमास पर चल रही सैन्य कार्रवाई को लेकर अमेरिकी मुसलमानों की सोच को लेकर सिगनल नामक संस्था ने एक सर्वे किया था। 16—18 अक्तूबर को हुए इस सर्वे के अंतर्गत लगभग 2000 लोगों से प्रश्न पूछे गए थे। लेकिन इस सर्वे के नतीजे से खुद सर्वे करने वाले हैरान रह गए जब उन्होंने पाया कि अमेरिका में रहने वाले मुसलमानों में 60 प्रतिशत ऐसे हैं जो हमास के बर्बर कृत्यों को सही ठहराते हैं!
अमेरिकी मुसलमानों की सोच इस हद तक नकारात्मक और हिंसक है कि उन्हें राष्ट्रपति बाइडन से बढ़कर हमास का सरगना इस्माइल हानियेह और उस जैसे दूसरे इस्लामी नेता ज्यादा पसंद हैं। हैरानी की बात है कि अमेरिका में सिर्फ 31.9 प्रतिशत मुसलमान ऐसे हैं जिन्हें राष्ट्रपति बाइडन पसंद आते हैं, जबकि 44 प्रतिशत मुसलमान फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास के पाले में खड़े पाए गए हैं।
उदाहरण के लिए, अमेरिकी मुस्लिम कांग्रेस से जुड़ी रशीदा तालिब भी हमास की बर्बरता के पक्ष में खड़ी मिली है। वह कहती है कि इस्राएल के नस्लवादी देश के विरुद्ध हमास ने जो किया वह सही ही था। ऐसे जिम्मेदारी वाले पदों पर बैठे मुस्लिम ही हैं जो जनता में एक नफरत की भावना फैलाने में सफल हो जाते हैं। ऐसे मुस्लिमों ने अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन पर जबरदस्त दबाव बनाया हुआ है कि इस्राएल को युद्ध बंद करने को कहें।
इस सर्वे में अमेरिकी मुसलमानों की सोच इस हद तक नकारात्मक और हिंसक है कि उन्हें राष्ट्रपति बाइडन से बढ़कर हमास का सरगना इस्माइल हानियेह और उस जैसे दूसरे इस्लामी नेता ज्यादा पसंद हैं। हैरानी की बात है कि अमेरिका में सिर्फ 31.9 प्रतिशत मुसलमान ऐसे हैं जिन्हें राष्ट्रपति बाइडन पसंद आते हैं, जबकि 44 प्रतिशत मुसलमान फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास के पाले में खड़े पाए गए हैं।
पएक और बात इस सर्वे में सामने आई है और वह यह है कि हमास के बर्बर हमले के संदर्भ में अमेरिकी मुस्लिम उस देश के राजनीतिक दलों के प्रति भरोसे में एक बदलाव हुआ है। मुस्लिम रिपब्लिकन पार्टी के बजाय डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ खिसके हैं। रिपब्लिकन पार्टी को 25.2 प्रतिशत मुसलमानों ने अपनी पसंद बताया है जबकि डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ 31.1 प्रतिशत का रुख दिखा है।
इसी सर्वे में एक प्रश्न नीतिगत और समस्या के हल को लेकर पूछा गया था। इस पर जवाब देने वालों का आंकड़ा भी दिलचस्प साबित हुआ है। जवाब देने वाले 46.8 प्रतिश मुसलमानों ने इस्राएल को गाजा से हमास का खात्मा करने की सलाह दी तो गाजा से खात्मा करने के लिए इजरायल को वहाँ हमले करने का सुझाव देते हैं। वहीं 75.8 प्रतिश कहते हैं कि इस्राएली बंधकों को रिहा करने की जहां तक बात है तो इस्राएल तथा हमास आपस में इस बारे में बात करें।
यहां यह भी ध्यान देने योग्य है कि गत सप्ताह अमेरिका की संसद ने उस रशीदा तालिब को सेंसर करने के लिए मतदान किया था जिसने फिलिस्तीन के पक्ष आवाज उठाई थी। रशीदा मूलत: फिलीस्तीनी-अमेरिकी है। कहने के बावजूद, तालिब ने फिलिस्तीन और हमास के पक्ष में आवाज उठाने पर माफी नहीं मांगी थी।
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