भोलाराम कंपनी स्टील, पेपर, शिक्षा और हेल्थकेयर क्षेत्र में काम कर रही है। यह समूह डीपीएस आसनसोल और डीपीएस अमदाबाद का सफलतापूर्वक संचालन कर रहा है।
बिहार में 1990 के दशक के अराजक माहौल से त्रस्त होकर उद्यमी पलायन कर रहे थे। लेकिन कुछ ऐसे भी थे, जो खामोशी से काम कर रहे थे। उन्हीं में एक हैं अजय गोयनका। अजय गोयनका ने 1995 में 30 की उम्र में कंपनी बनाई और 1998 में पटना के दीघा में पहला स्टील प्लांट लगाया। उन्होंने 70 लाख रुपये में एक बीमार रोलिंग प्लांट खरीदा और एक वर्ष में ही उसे मुनाफे में ले आए।
इसके बाद अजय गोयनका ने इंडेक्स फर्निशिंग प्लांट और 2009 में अमेरिकी तकनीक आधारित इलेक्ट्रो फोर्ज ग्रेटिंग प्लांट लगाया, जो भारत का चौथा प्लांट था। इलेक्ट्रो फोर्ज ग्रेटिंग में बगैर वेल्डिंग किए स्टील का ढांचा बनाया जाता है। विकसित देशों में वेल्डिंग अवैध है। समुद्र के किनारे जी बेसिन में 20 मंजिला ढांचा बगैर वेल्डिंग के इसी तकनीक से खड़ा किया जाता है।
‘स्टेट बैंक ने जब मुझसे संपर्क किया तो मैं उस प्लांट को देखने गया। वहां परिसर में बड़ी-बड़ी झाड़ियां थीं। हमने कोरोना संकट झेलते हुए 2 वर्ष के भीतर इसे दौड़ा दिया। आज यह लाभ देने वाला प्लांट है और इससे 1,000 लोगों का भरण-पोषण हो रहा है।’’ – अजय गोयनका
यह प्लांट लगाने के बाद उन्हें बड़ी कम्पनियों से आर्डर मिलने लगे, जिनमें भेल, आईओसी, रिलायंस जैसी कंपनियां शामिल हैं। कभी भेल की जरूरत का 90 प्रतिशत आर्डर गोयनका की भोलाराम कंपनी ही पूरा करती थी। आज भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी इनके स्टील उत्पादों की धाक है। इन्होंने 2013 में आरा के कोईलवर में बड़ा पेपर मिल 21 करोड़ रुपये में खरीदा, जो दिसंबर 2012 से बंद था। 2013 के अंत में उन्होंने इसे शुरू किया और एक वर्ष के भीतर इसे पुनर्जीवित कर दिया।
इसी तरह, मुरादाबाद में बंद देश की 13वीं पेपर मिल खरीदी। अजय गोयनका बताते हैं, ‘‘स्टेट बैंक ने जब मुझसे संपर्क किया तो मैं उस प्लांट को देखने गया। वहां परिसर में बड़ी-बड़ी झाड़ियां थीं। हमने कोरोना संकट झेलते हुए 2 वर्ष के भीतर इसे दौड़ा दिया। आज यह लाभ देने वाला प्लांट है और इससे 1,000 लोगों का भरण-पोषण हो रहा है।’’ अजय गोयनका अपना प्लांट नहीं लगाते, बल्कि बीमार या बैंक द्वारा नीलाम किए जाने वाले प्लांट ही खरीदते हैं और फिर उसे अपने श्रम और कौशल से लाभकारी बनाते हैं।
इनके पिता सत्यनारायण गोयनका 1948 में राजस्थान के खेतड़ी से पटना आए थे और एक दुकान में 150 रुपये वेतन पर नौकरी शुरू की थी। इसी में से पैसे बचाकर 1954 में उन्होंने हार्डवेयर की दुकान खोली। बच्चों को यही सिखाया कि अपनी जरूरतों को कम रखो। इसे इतना भी न बढ़ाओ कि जरूरत का सामान भी बेचना पड़े। इसी मूल मंत्र पर चलते हुए अजय गोयनका ने 700 करोड़ रुपये का साम्राज्य खड़ा किया। उन्हें उम्मीद है कि 2 वर्ष के भीतर कंपनी का वार्षिक कारोबार 2000 करोड़ रुपये हो जाएगा।
भोलाराम कंपनी स्टील, पेपर, शिक्षा और हेल्थकेयर क्षेत्र में काम कर रही है। यह समूह डीपीएस आसनसोल और डीपीएस अमदाबाद का सफलतापूर्वक संचालन कर रहा है। 55 वर्षीय अजय गोयनका कमाई एक हिस्सा सामाजिक कार्यों में खर्च करते हैं। इसमें 200 बिस्तरों का धर्मार्थ अस्पताल, गोशालाओं को नियमित दान जैसे काम शामिल हैं।
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