राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक जो कार्य कर सकते हैं, वह शायद और कोई नहीं कर सकता। दिलीप बड़ाइक नाम के एक स्वयंसेवक ने अपनी पत्नी के गहने उस दिव्यांग खिलाड़ी के लिए बेच दिए, जिसने पैसे के अभाव में मलेशिया जाने से मना कर दिया था।
अक्सर आप लोगों ने देखा होगा कि जब मुसीबत आती है तो अपने भी साथ छोड़ जाते हैं। ऐसी स्थिति में जब कोई पराया व्यक्ति आपका साथ दे तो वह सिर्फ आपका ही नहीं, बल्कि समाज के लिए भी एक मिसाल बन जाता है। झारखंड में गुमला जिले के जारी प्रखंड के रहने वाले दिलीप बड़ाइक की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। दिलीप ने अंसुता टोप्पो नाम की एक दिव्यांग खिलाड़ी की मदद ऐसे समय पर की जब उसे विदेश में जाकर खेलना था और उसके पास पैसे का घोर अभाव था। दिलीप ने अंसुता की मदद के लिए अपनी पत्नी के गहने बेच दिए। उसी पैसे से अंसुता मलेशिया गई और वहां उसने थ्रो बॉल चैंपियनशिप में भाग लिया। अंसुता ने भी लोगों को निराश नहीं किया और उसने वहां स्वर्ण पदक जीतकर भारत का नाम रोशन किया।
बता दें कि इसी वर्ष अगस्त के महीने में अंतरराष्ट्रीय थ्रो बॉल चैंपियनशिप का आयोजन मलेशिया में किया गया था। इसमें झारखंड की पांच महिला खिलाड़ी एवं एक पुरुष खिलाड़ी का चयन हुआ था। चयनित खिलाड़ियों में प्रतिमा तिर्की, अनीता तिर्की, महिमा उरांव, अंसुता टोप्पो, तारामणि लकड़ा और सनोज महतो शामिल थे। सभी चयनित खिलाड़ी दिव्यांग थे।
गुमला जिले के चैनपुर प्रखंड अंतर्गत छतरपुर गांव की रहने वाली है असुंता टोप्पो। अंसुता जब काफी छोटी थी तभी उसके पिता जेवियर टोप्पो और माता कटरीना टोप्पो की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई। इसके बावजूद अंसुता ने हार नहीं मानी। उसने दिव्यांगता पेंशन से अपना गुजारा करते हुए पीजी तक की पढ़ाई पूरी की। इसी दौरान उसका चयन मलेशिया जा रही टीम में हो गया। इसके बाद उसने आर्थिक मदद के लिए कई नेताओं, जिले के अधिकारियों और समाजसेवियों के चक्कर लगाए, लेकिन कहीं से उसे मदद नहीं मिली। इसके बाद उसने मलेशिया जाने से मना कर दिया। कुछ पत्रकारों को पता चला तो उन लोगों ने अंसुता की खबर प्रकाशित कर दी।
एक दिन अंसुता की खबर पर बेंदोरा के जिला परिषद सदस्य दिलीप बड़ाइक की नजर गई तो उन्होंने अंसुता से संपर्क किया। उसकी आर्थिक स्थिति के बारे में अवगत होने के बाद वे काफी दुखी हुए। उन्होंने भी कई जगह इस दिव्यांग बच्ची की मदद के लिए गुहार लगाई, लेकिन उन्हें भी सफलता नहीं मिली। इसके बाद उनकी पत्नी फुलमैत देवी आगे आईं। उन्होंने अपने पति दिलीप से कहा कि उनके पास कुछ गहने पड़े हैं, उन्हें बेचकर अंसुता की मदद की जा सकती है। यह सुनकर दिलीप ने चैन की सांस ली और अपनी पत्नी के गहने बेचकर 66,000 रुपये का चेक अंसुता को सौंपा। इसी पैसे से अंसुता मलेशिया गई और वह पदक के साथ भारत लौटी। दिलीप बड़ाइक के प्रति आभार जताते हुए अंसुता कहती है कि जब कहीं से मदद नहीं मिली, तब दिलीप जी एक दूत के रूप में सामने आए और उन्होंने मेरे सपने को पूरा किया। उन्हें हृदय से धन्यवाद।
आपको बता दें कि 51 वर्षीय दिलीप परमवीर चक्र अल्बर्ट एक्का के गांव जारी के रहने वाले हैं। इनकी पत्नी फुलमैत देवी जारी पंचायत की मुखिया हैं। दिलीप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक हैं। वे कहते हैं कि संघ की शाखा जाने से ही उनके अंदर सेवा की भावना आई और उसी भावना ने अंसुता की मदद के लिए प्रेरित किया। दिलीप बड़ाइक अपने सेवा कार्यों के लिए क्षेत्र में काफी प्रसिद्ध हैं। उनके इन कार्यों को देखते हुए ही इस वर्ष 28 अगस्त को रांची के बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में झारखंड के राज्यपाल सी पी राधाकृष्णन ने उन्हें सम्मानित भी किया है। अंसुता की मदद के लिए गुमला के उपायुक्त सुशांत गौरव ने भी प्रशस्ति पत्र देकर दिलीप को सम्मानित किया है।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
टिप्पणियाँ