केरल में हमास के पूर्व अध्यक्ष द्वारा (वीडियो के माध्यम से) एक रैली को संबोधित करने की घटना से हैरान हैं, तो आप गलत हैं। भारत की सेक्युलर पार्टियां ही नहीं, वामपंथी-सेक्युलर अखबार भी इस्लामिस्टों की तरह हमास के लिए पलक-पावड़े बिछाए बैठे हैं।
यदि आप केरल में हमास के पूर्व अध्यक्ष द्वारा (वीडियो के माध्यम से) एक रैली को संबोधित करने की घटना से हैरान हैं, तो आप गलत हैं। भारत की सेक्युलर पार्टियां ही नहीं, वामपंथी-सेक्युलर अखबार भी इस्लामिस्टों की तरह हमास के लिए पलक-पावड़े बिछाए बैठे हैं। अंग्रेजी समाचार-पत्र ‘द हिंदू’ की पाक्षिक अंग्रेजी पत्रिका फ्रंटलाइन ने 27 अक्तूबर को हमास के नेता मूसा अबु मरजौक का एक साक्षात्कार प्रकाशित किया। मरजौक हमास के दोहा (कतर) स्थित अंतरराष्ट्रीय संबंध कार्यालय का प्रमुख है।
एक आतंकवादी क्या कह सकता है, इसकी तो कल्पना की जा सकती है, लेकिन फ्रंटलाइन ने आतंकवादी से जो प्रश्न पूछे, वह तरीका बेहद विस्मयकारी है। जैसे- पहला ही प्रश्न है, ‘‘हमास ने दुनिया की सबसे मजबूत सेनाओं में से एक पर हमला करके दुनिया को चौंका दिया। लेकिन जिस तरह से इस्राएल जवाबी कार्रवाई कर रहा है, जिस तरह से नागरिक और बच्चे मारे जा रहे हैं…।’’ सारा नैरेटिव खांचे में फिट करने के लिए साक्षात्कार देने वाले से ज्यादा उत्सुक साक्षात्कार लेने वाला प्रतीत होता है।
सारे प्रश्न हमास के प्रचार को अधिक से अधिक अवसर देने की दिशा में सजाए गए नजर आते हैं। इतना ही नहीं, जन चर्चा में जो हमास विरोधी तथ्य हैं, उन्हें खारिज करने का अवसर इस पत्रिका ने हमास के नेता को दिया। कुछ प्रश्न तो हमास के जयकारे लगाने वाले थे। जैसे- ‘‘इस बार आपको अरब देशों और अरब दुनिया के बाहर से अभूतपूर्व समर्थन और सहानुभूति प्राप्त है।’’ यह एक प्रश्न की पंक्ति है। ऐसे अवसर का इस्तेमाल मरजौक ने भारत को धमकाने के लिए भी किया, जिसे फ्रंटलाइन ने प्रकाशित किया है।
इस्राएल के राजदूत ने ‘द हिंदू’ पर यह आरोप भी लगाया कि उसने मरजौक की आतंकवादी गतिविधियों या उसका निजी इतिहास जानने की कोशिश भी नहीं की। उन्होंने लिखा कि ‘द हिंदू’ ने हमास के झूठ को प्रचारित करने का काम किया है। किसी भी प्रकार तथ्यों की जांच न करना, कोई प्रति प्रश्न न पूछना बेहद आश्चर्यजनक था।
इस प्रश्न के उत्तर में उसने कहा, ‘‘भारत सरकार की वर्तमान नीति इसके हितों के लिए नुकसानदेह है। भारत के अरब क्षेत्र में महत्वपूर्ण हित हैं और इस्राएल के साथ इसके संबंध इसे अरब लोगों के लिए एक शत्रुतापूर्ण देश के रूप में चिह्नित करेंगे। यह एक मनोवैज्ञानिक बाधा उत्पन्न करेगा, जो भारतीय हितों को नुकसान पहुंचाएगा।’’
यही नहीं, फ्रंटलाइन ने मरजौक का जो चित्र प्रकाशित किया है, उसके स्रोत के तौर पर लिखा है-‘विशेष व्यवस्था से प्राप्त।’ इस्राएल ने इस पर सख्त प्रतिक्रिया दी है। भारत, श्रीलंका और भूटान में इस्राएल के राजदूत नाओर गिलोन ने ‘द हिंदू’ मीडिया समूह के प्रधान संपादक सुरेश नामबाथ को लिखे एक खुले पत्र में कहा कि उनके प्रकाशन द्वारा ‘साक्षात्कार देने वाले का चयन घृणित करने वाला’ लगा। इस समूह ने आतंकवादी संगठन हमास-आईएसआईएस के एक ‘ज्ञात आतंकवादी’ का साक्षात्कार प्रकाशित किया।
हालांकि भारत में इस्राएली राजदूत ने स्वीकार किया कि प्रेस को विविध आवाजों को मंच प्रदान करने का अधिकार है। लकिन ‘द हिंदू’ समूह से प्रश्न किया कि क्या वह अजमल कसाब या ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकवादियों को उनके 26/11 मुंबई हमले और 9/11 वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और पेंटागन पर आतंकवादी हमले के पीछे के तर्क को समझाने के लिए मंच प्रदान करता?
इस्राएल के खिलाफ होने वाले आतंकवाद को इतना भारी भरकम भुगतान क्यों किया जाता है? मरजौक आतंकी संगठन हमास और आईएसआईएस के लिए फंड भी जुटाता है। उसकी निजी संपत्ति और फंड जुटाने का काम परस्पर जुड़ा हो सकता है या नहीं भी हो सकता है। लेकिन क्या इस बारे में प्रश्न नहीं किया जाना चाहिए था? हमास को जो भी फंड मिलता है, उसमें से वह फिलिस्तीनियों के विकास पर कितना खर्च करता है?
उन्होंने पत्र में यह भी रेखांकित किया कि ‘द हिंदू’ ने जिस मूसा अबु मरजौक को प्रचार का इतना अवसर दिया है, वह अपनी करतूतों के कारण अमेरिका में जेल की सजा काट चुका है। नाओर गिलोन ने लिखा है, ‘‘ऐसे मामलों में उचित कर्मठता प्रदर्शित करना, यह सुनिश्चित करना जिम्मेदार पत्रकारिता का कर्तव्य है कि उठाई गई आवाजें हिंसा और आतंक को बढ़ावा देने में योगदान न दें। सबसे बुरी बात है किसी आतंकवादी का घोषणापत्र प्रकाशित करना, आतंकवादियों के दावे वाले इन ‘छद्म तथ्यों’ के नाम पर अतिसंवेदनशील पाठकों को कट्टरपंथी बनाने और उन्हें अधिक हिंसक कार्रवाई करने के लिए सशक्त बनाने का वास्तविक जोखिम पैदा करता है।’’
इस्राएली राजदूत ने जिम्मेदार पत्रकारिता के महत्व पर भी प्रकाश डाला है। उन्होंने लिखा कि तथ्यों की सटीक जांच करने और झूठे बयानों पर कार्रवाई करने में विफल रहने से, खासकर जब मामला गंभीर परिणामों वाला हो, न केवल प्रकाशन की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचता है, बल्कि यह उन पीड़ितों के प्रति अनादर भी दर्शाता है, जो 7 अक्तूबर को हमास के आतंकवादियों द्वारा इस्राएल पर हमले में बेरहमी से मारे गए थे।
उन्होंने पत्र में एक अन्य महत्वपूर्ण पक्ष की ओर भी ध्यान आकर्षित करते हुए लिखा कि सोशल मीडिया पर फर्जी खबरें एक सामान्य बात है, लेकिन मुख्यधारा मीडिया में फर्जी खबरें छापने का नया प्रचलन अत्यंत पीड़ादायक है। मरजौक का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि वह न केवल एक घोषित आतंकवादी है, बल्कि ढाई अरब डॉलर की संपत्ति का मालिक भी है, जबकि उसके पास आय का कोई ज्ञात स्रोत नहीं है।
उन्होंने प्रश्न किया कि क्या किसी जिम्मेदार पत्रकार को यह प्रश्न नहीं पूछना चाहिए था या इसकी जांच नहीं करनी चाहिए थी? इस्राएल के खिलाफ होने वाले आतंकवाद को इतना भारी भरकम भुगतान क्यों किया जाता है? मरजौक आतंकी संगठन हमास और आईएसआईएस के लिए फंड भी जुटाता है। उसकी निजी संपत्ति और फंड जुटाने का काम परस्पर जुड़ा हो सकता है या नहीं भी हो सकता है। लेकिन क्या इस बारे में प्रश्न नहीं किया जाना चाहिए था? हमास को जो भी फंड मिलता है, उसमें से वह फिलिस्तीनियों के विकास पर कितना खर्च करता है? वह इस्राएल के विनाश पर कितना और अपनी जेब भरने में कितना धन खर्च करता है?
इस्राएल के राजदूत ने ‘द हिंदू’ पर यह आरोप भी लगाया कि उसने मरजौक की आतंकवादी गतिविधियों या उसका निजी इतिहास जानने की कोशिश भी नहीं की। उन्होंने लिखा कि ‘द हिंदू’ ने हमास के झूठ को प्रचारित करने का काम किया है। किसी भी प्रकार तथ्यों की जांच न करना, कोई प्रति प्रश्न न पूछना बेहद आश्चर्यजनक था।
साक्षात्कार करने वाले पत्रकार ने एक भी बार मरजौक को चुनौती देने की कोशिश नहीं की। 1806 शब्दों के साक्षात्कार में 100 से भी कम शब्द ऐसे होंगे, जिन्हें सफेद झूठ और इस्राएल को बदनाम करने के प्रयासों के अलावा और कुछ कहा जा सके।
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