कांग्रेस राज्य की कई विधानसभा सीटों पर अंतर्कलह और विरोध का सामना कर रही है। असंतोष के चलते कांग्रेस को कई सीटों पर अपने उम्मीदवार बदलने पड़ गए। एक तरफ कांग्रेस को पार्टी के भीतर अंतर्कलह और विरोध का सामना करना पड रहा है,
मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की घोषणा के साथ ही कांग्रेस राज्य की कई विधानसभा सीटों पर अंतर्कलह और विरोध का सामना कर रही है। असंतोष के चलते कांग्रेस को कई सीटों पर अपने उम्मीदवार बदलने पड़ गए। एक तरफ कांग्रेस को पार्टी के भीतर अंतर्कलह और विरोध का सामना करना पड रहा है, वहीं दूसरी तरफ इंडी गठबंधन में सीट बंटवारे के मुद्दे पर ऐसी रार मची कि गठबंधन की फूट सामने आ गई। समाजवादी पार्टी के बाद इंडी गठबंधन के एक और साथी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जनता दल यूनाइटेड ने भी मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी।
कुछ समय पहले कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर इंडी गठबंधन का गठन किया था। गठबंधन का उद्देश्य भाजपा के खिलाफ मिलकर चुनाव लड़ना है, लेकिन मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव ने ही इंडी गठबंधन की एकता की पोल खोल कर रख दी। लिहाजा कांग्रेस को मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में दो मोर्चों पर जूझना पड़ रहा है। यदि मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के इतिहास पर नजर डाली जाए तो सपा, बसपा जैसे क्षेत्रीय दलों की मौजूदगी कांग्रेस के लिए नुकसानदायक रही है। चुनाव आयोग ने 17 नवंबर को मतदान का दिन तय किया है, साथ ही मतों की गिनती 3 दिसंबर को की जाएगी।
‘मेरी समाजवादी पार्टी के नेताओं से बातचीत हुई थी। वे पिछले चुनाव में एक सीट जीते थे और दो पर दूसरे क्रमांक पर आए थे। वे छह सीटें मांग रहे थे, लेकिन हम उनके लिए चार सीटें छोड़ सकते थे। इसका प्रस्ताव बनाकर कांग्रेस नेतृत्व को दिया था, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश नेतृत्व को ही इसके बारे में निर्णय लेने को कहा। कमलनाथ जी पूरी ईमानदारी के साथ समझौता करना चाहते थे, लेकिन बात कहां बिगड़ी वह मुझे नहीं पता।’’
-दिग्विजय सिंह
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए खासा महत्वपूर्ण है। राज्य में लंबे समय से भाजपा सत्ता में है और कांग्रेस विपक्ष में। मध्य प्रदेश एक ऐसा राज्य है, जहां भाजपा और कांग्रेस के बीच अधिकांश सीटों पर सीधा मुकाबला होता आया है, लेकिन कुछ सीटें ऐसी हैं, जो चुनाव को त्रिकोणीय बना देती हैं। इसलिए भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला होता है। टिकट वितरण के बाद भाजपा में भी कई सीटों पर असंतोष उभरा, लेकिन भाजपा नेताओं ने स्थिति को संभाला है। संगठन स्तर पर भाजपा कांग्रेस से बेहतर स्थिति में रही है, लिहाजा उसे इस बार भी सत्ता में वापसी की उम्मीद है।
भाजपा 2003 से पहले कांग्रेस के शासन में मध्य प्रदेश की बदहाली को मुद्दा बना कर उसकी घेराबंदी में लगी है, वहीं भाजपा अपने शासन काल में हुए विकास को मुद्दा बना रही है। महिलाओं और लड़कियों के लिए शिवराज सरकार की योजनाओं के जरिए भाजपा मतदाताओं को लुभा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल ही में मध्य प्रदेश में हुई रैलियों और कार्यक्रमों ने भी भाजपा को नई ताकत दी है।
वैसे भाजपा ने विधानसभा चुनाव में दिग्गज नेताओं को उतारकर अपने प्रचार तंत्र को सक्रिय कर दिया है। उसने इन नेताओं के जरिए एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है। तीन केंद्रीय मंत्रियों और चार सांसदों को प्रत्याशी बनाकर भाजपा ने विभिन्न अंचलों में अपना गढ़ बचाने का बड़ा दांव खेला है। इन दिग्गजों को मैदान में उतार कर भाजपा जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण भी साध रही है। इनका खुद का और इतना अधिक असर है कि वे स्वयं जीतने के साथ आसपास की सीटों पर भी मददगार साबित हो सकते हैं। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते के साथ सांसद राकेश सिंह, गणेश सिंह, रीति पाठक और राव उदय प्रताप सिंह इस विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमा रहे हैं।
दूसरी तरफ कांग्रेस भी सरकार में आने के लिए पूरी कोशिश में लगी है, लेकिन उसके लिए सत्ता की राह उतनी आसान नहीं है जितनी कांग्रेस के रणनीतिकारों को लग रही है। मसलन, मध्य प्रदेश चुनाव में इंडी गठबंधन में आपसी लड़ाई देखने को मिल रही है। पहले समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के खिलाफ बागी तेवर दिखाए। फिर अब जेडीयू ने भी राज्य में कांग्रेस को झटका दे दिया है। उसने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है। इसलिए राज्य विधानसभा चुनाव में कुछ सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है।
मध्य प्रदेश में सपा, बसपा, आम आदमी पार्टी और एआईएमआईएम समेत कई क्षेत्रीय दल चुनाव लड़ रहे हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में इन क्षेत्रीय दलों की मौजूदगी के कारण भाजपा और कांग्रेस के बीच 30 सीटों पर कांटे की टक्कर हुई थी। इन सीटों पर उम्मीदवारों की हार-जीत महज 3,000 मत या उससे कम से हुई थी। 30 में से 15 सीटें कांग्रेस ने और 14 सीटें भाजपा ने जीती थीं। वहीं एक सीट बसपा के पास गई थी।
2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को जीत मिली थी। उस साल भी ऐसी 33 सीटें थीं जहां 3,000 से कम मतों से भाजपा और कांग्रेस उम्मीदवारों की जीत हुई थी। तब 33 में से 18 सीटें भाजपा, 12 सीटें कांग्रेस, दो बसपा और एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार की जीत हुई थी। यह परिणाम इस बात का प्रमाण है कि मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में छोटे दल बड़े दलों के लिए गंभीर चुनौती हैं।
बात यदि समाजवादी पार्टी की जाए तो उसकी राजनीतिक जमीन मध्य प्रदेश में भले कमजोर हो, लेकिन भाजपा और कांग्रेस के नजदीकी मुकाबले वाली कुछ सीटों पर उसकी सेंधमारी कांग्रेस के लिए भारी पड़ सकती है। 2018 के विधानसभा चुनाव में यह नजारा दिखा भी था। कांग्रेस महज 2 सीटों से विधानसभा में बहुमत से दूर रह गई थी। इसमें सपा की सेंधमारी की भी भूमिका थी। मसलन मैहर की सीट कांग्रेस महज 2,984 मतों से हारी थी। यहां सपा को 11,202 मत मिले थे। पारसवाड़ा, बालाघाट और गूढ़ सीट पर सपा दूसरे और कांग्रेस तीसरे क्रमांक पर थी। इसी तरह निवाड़ी में सपा दूसरे क्रमांक पर रही, जबकि कांग्रेस चौथे स्थान पर खिसक गई।
जाहिर तौर पर सपा की मौजूदगी से कांग्रेस को सीधा नुकसान हुआ। इसलिए जहां सपा और कांग्रेस एक-दूसरे के सामने हैं, वहां नुकसान की गुंजाइश बनी हुई है। मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड में 29 सीटें हैं। यह इलाका उत्तर प्रदेश से सटा हुआ है। यहां अधिकतर सीटों पर यादव मतदाता अहम भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा ग्वालियर और चंबल में भी यादव मतदाता ठीक-ठाक संख्या में हैं। हालांकि कांग्रेस व भाजपा दोनों में ही यादव चेहरे हैं जो इन दलों को अपनी बिरादरी का मत दिलाते रहते हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश में सपा का कोर वोटर मानी जाने वाली बिरादरी मध्य प्रदेश में कितना साथ खड़ी होगी, इस पर सबकी नजर है।
सपा और कांग्रेस में क्यों नहीं बनी बात, इस पर दिग्विजय सिंह के बयान को देखना होगा। दिग्विजय सिंह ने कहा, ‘‘मेरी समाजवादी पार्टी के नेताओं से बातचीत हुई थी। वे पिछले चुनाव में एक सीट जीते थे और दो पर दूसरे क्रमांक पर आए थे। वे छह सीटें मांग रहे थे, लेकिन हम उनके लिए चार सीटें छोड़ सकते थे। इसका प्रस्ताव बनाकर कांग्रेस नेतृत्व को दिया था, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश नेतृत्व को ही इसके बारे में निर्णय लेने को कहा। कमलनाथ जी पूरी ईमानदारी के साथ समझौता करना चाहते थे, लेकिन बात कहां बिगड़ी वह मुझे नहीं पता।’’ कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में तकरार के बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इंडी गठबंधन पर हमला बोला। उन्होंने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री मोदी जी की लोकप्रियता से घबराकर इंडी गठबंधन बना था, जो बनने से पहले ही टूट रहा है। इंडी गठबंधन ने मध्य प्रदेश में रैली तय की थी। कमलनाथ ने रद्द करवा दी। घुसने से भी मना कर दिया। यह अजीब गठबंधन है। दिल्ली में दोस्ती और राज्यों में कुश्ती ऐसा कहीं होता है क्या।’’
आम लोग भी यह मान रहे हैं कि मध्य प्रदेश में इंडी गठबंधन का कोई असर नहीं है। इसका लाभ सत्तारूढ़ भाजपा को मिलता दिख रहा है। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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