साबरमती संवाद के सत्र ‘जी-20 और वी-20’ में भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला द्वारा व्यक्त विचार
पाञ्चजन्य वह शंख है, जिसकी ध्वनि से महाभारत में श्रीकृष्ण ने कौरवों में भय का संचालन किया। मुझे लगता है, जो यहां से ध्वनि पैदा होगी, उससे गाजा पट्टी से लेकर भारत तक, शत्रुओं में भय पैदा होगा। यह सनातन धर्म के पुनरुत्थान का समय है।
देश में जी-20 का आयोजन उस कालखंड में हुआ, जब भारत के विकास के पताका पूरी दुनिया में लहरा रही है। हमारी अर्थव्यवस्था 10वीं से तीसरी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। चंद्रयान-3 के माध्यम से चंद्रमा के दक्षिणी धु्रव पर पहुंचने वाला भारत पहला देश बना और वहां विज्ञान की पताका स्थापित की, जिसे प्रधानमंत्री जी ने ‘शिव शक्ति प्वांइट’ नाम दिया है। यह अलग बात है कि ‘शिव शक्ति प्वाइंट’ से कई लोगों के मन में हलचल पैदा हुई।
आज से 130 वर्ष पहले भगवा चोले में एक संन्यासी निकले थे, जिन्होंने अमेरिका में शिकागो की भूमि पर संदेश दिया था- माई ब्रदर्स, सिस्टरर्स ऑफ अमेरिका। यदि इस संदेश को आत्मसात किया जाता, तो 9/11 हमले से आतंक का संदेश दुनिया में गया, वह शायद नहीं होता। यह भी संयोग है कि 130 वर्ष बाद उसी ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के नारे के साथ भारत ने जी-20 का भव्य आयोजन किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोणार्क के कालचक्र के प्रतीक के सामने खड़े होकर मेहमानों का स्वागत किया।
आज पूरी दुनिया में सनातन का डंका बज रहा है, लेकिन देश के ही कुछ लोग इस पर चोट कर रहे हैं। हमास का समर्थन करने वाले वोट बैंक समूह हैं, जिन्होंने हमेशा आतंकवाद की पैरवी की है। ये वही हैं, जिन्होंने 26/11 हमले को ‘हिंदू आतंकवाद’ बताने का अपराध किया था। इन्हीं लोगों ने आतंकी अफजल के समर्थन में नारे लगाए थे।
जब दुनिया के एक हिस्से को लगता था कि धरती चपटी है, तब हमारे ऋषि-मुनि सूरज और चंद्रमा की गति व दूरी निर्धारित कर रहे थे। दूसरे, जी-20 में भारत मंडपम् के द्वार पर नटराज की जो मूर्ति लगाई गई, वह निर्माण और विनाश, दोनों का प्रतीक है। नटराज की चार भुजाएं हैं, जो अग्नि के चक्र से घिरी हुई हैं। ऊपर वाले दाएं हाथ में डमरू, जो आर्क के आकार का है, सृजन का प्रतीक है, जबकि नीचे अभय मुद्रा वाला हाथ बुराई से बचने की सीख देता है।
बाएं (ऊपर) हाथ में अग्नि तथा निचला हाथ ज्ञान का प्रतीक है। नटराज शिव का दायां पैर असुर (अज्ञानता का प्रतीक) को काबू करता है, जबकि उठा हुआ पैर मोक्ष का प्रतीक है। यह हमारी वैज्ञानिक विरासत है, जिससे मोदी जी ने दुनिया का परिचय कराया। जिस ब्रिटेन ने 200 वर्ष तक हमें गुलाम रखा, आज उसे पीछे छोड़कर हम दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बने। यही नहीं, आज उस देश के शासन प्रमुख ऋषि सुनक, जिनके नाम और नारेमें सनातन धर्म परिलक्षित होता है, यहां आकर ‘जय सियाराम’ का उद्घोष करते हैं।
आज पूरी दुनिया में सनातन का डंका बज रहा है, लेकिन देश के ही कुछ लोग इस पर चोट कर रहे हैं। हमास का समर्थन करने वाले वोट बैंक समूह हैं, जिन्होंने हमेशा आतंकवाद की पैरवी की है। ये वही हैं, जिन्होंने 26/11 हमले को ‘हिंदू आतंकवाद’ बताने का अपराध किया था। इन्हीं लोगों ने आतंकी अफजल के समर्थन में नारे लगाए थे।
आज सवाल फिलिस्तीन का नहीं है। सवाल यह है कि इस्राएल के मासूम बच्चों, महिलाओं और निहत्थे नागरिकों को जिस निर्ममता से मारा गया, उस पर नाप तोल कर या बचकर बात नहीं की जा सकती है। यह कहना पड़ेगा कि आप किसके साथ खड़े हैं- आतंकियों के साथ या आतंकवाद से पीड़ित लोगों के साथ। मुठ्ठी भर लोगों ने हमेशा जिहादियों का साथ दिया और आज भी आतंकवाद की पैरवी कर रहे हैं। सैद्धांतिक रूप से जिस पार्टी के दो-दो नेता आतंकवाद की बलि चढ़ गए, वह पार्टी आतंकवादियों के साथ खड़ी हो जाए, तो समझ लीजिए कि इनका राजनीतिक स्तर कितना नीच है।
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