मर्यादा, कर्तव्य पालन, स्नेह और करुणा के प्रतीक हैं श्रीराम, सभी के हृदय में सजे अयोध्या : डॉ मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 98 वें स्थापना दिवस और विजयादशमी के अवसर पर नागपुर के ऐतिहासिक रेशिम बाग मैदान में समारोह आयोजित हुआ।

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Sudhir Kumar Pandey

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 98 वें स्थापना दिवस और विजयादशमी के अवसर पर नागपुर के ऐतिहासिक रेशिम बाग मैदान में समारोह आयोजित हुआ। इस अवसर पर सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत जी ने मुख्य उद्बोधन दिया। उन्होंने अयोध्या में बन रहे भगवान राम के मंदिर की भी चर्चा की। सरसंघचालक जी ने कहा कि श्रीराम अपने देश के आचरण की मर्यादा के प्रतीक हैं, कर्तव्य पालन के प्रतीक हैं, स्नेह व करुणा के प्रतीक हैं । अपने-अपने स्थान पर ही ऐसा वातावरण बने । राम मंदिर में श्रीरामलला के प्रवेश से प्रत्येक हृदय में अपने मन के राम को जागृत करते हुए मन की अयोध्या सजे व सर्वत्र स्नेह, पुरुषार्थ तथा सद्भावना का वातावरण उत्पन्न हो ऐसे, अनेक स्थानों पर परन्तु छोटे छोटे आयोजन करने चाहिए ।

श्री मोहन भागवत जी ने कहा कि संपूर्ण राष्ट्र के पुरुषार्थ का उद्गम उस राष्ट्र का वैश्विक प्रयोजन सिद्ध करनेवाले राष्ट्रीय आदर्श होते हैं । इसलिए हमारे संविधान की मूल प्रति के एक पृष्ठ पर जिनका चित्र अंकित है ऐसे धर्म के मूर्तिमान प्रतीक श्रीराम के बालक रूप का मंदिर अयोध्याजी में बन रहा है। आनेवाली 22 जनवरी को मंदिर के गर्भगृह में श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी यह घोषणा हो चुकी है । व्यवस्थागत कठिनाइयों के तथा सुरक्षाओं की सावधानियों के चलते उस पावन अवसर पर अयोध्या में बहुत मर्यादित संख्या ही उपस्थित रह सकेगी । श्रीराम अपने देश के आचरण की मर्यादा के प्रतीक हैं, कर्तव्य पालन के प्रतीक हैं, स्नेह व करुणा के प्रतीक हैं । अपने-अपने स्थान पर ही ऐसा वातावरण बने । राम मंदिर में श्रीरामलला के प्रवेश से प्रत्येक ह्रदय में अपने मन के राम को जागृत करते हुए मन की अयोध्या सजे व सर्वत्र स्नेह, पुरुषार्थ तथा सद्भावना का वातावरण उत्पन्न हो ऐसे, अनेक स्थानों पर परन्तु छोटे छोटे आयोजन करने चाहिए ।

सरसंघचालक जी ने कहा कि दानवता पर मानवता की पूर्ण विजय के शक्ति पर्व के नाते प्रतिवर्ष हम विजयादशमी का उत्सव मनाते हैं । इस वर्ष यह पर्व हमारे लिए गौरव, हर्षोल्लास तथा उत्साह बढ़ानेवाली घटनाएँ लेकर आया है । बीते वर्षभर हमारा देश जी-20 नामक प्रमुख राष्ट्रों की परिषद का यजमान रहा । वर्षभर सदस्य राष्ट्रों के राष्ट्रप्रमुख, मंत्रीगण, प्रशासक तथा मनीषियों के अनेक कार्यक्रम भारत में अनेक स्थानों पर सम्पन्न हुए । भारतीयों के आत्मीय आतिथ्य का अनुभव, भारत का गौरवशाली अतीत तथा वर्तमान की उमंगभरी उड़ान सभी देशों के सहभागियों को प्रभावित कर गई । अफ्रीकी यूनियन को सदस्य के नाते स्वीकृत कराने में तथा पहले ही दिन परिषद का घोषणा प्रस्ताव सर्व सहमति से पारित करने में भारत की प्रामाणिक सद्भावना तथा राजनयिक कुशलता का अनुभव सबने पाया । भारत के विशिष्ट विचार व दृष्टि के कारण संपूर्ण विश्व के चिंतन में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की दिशा जुड़ गई । जी -20 का अर्थकेन्द्रित विचार अब मानव केन्द्रित हो गया । भारत को विश्व के मंच पर एक प्रमुख राष्ट्र के नाते दृढ़तापूर्वक स्थापित करने का अभिनंदनीय कार्य इस प्रसंग के माध्यम से हमारे नेतृत्व ने किया है।

एशियाई खेलों की चर्चा

डॉ भागवत ने कहा कि इस बार हमारे देश के खिलाड़ियों ने एशियाई खेलों में पहली बार 100 से अधिक – 107 पदक (28 सुवर्ण, 38 रौप्य तथा 41 कांस्य) जीतकर हम सब का उतसाह वर्धन किया है । उनका हम अभिनन्दन करते है । उभरते भारत की शक्ति, बुद्धि तथा युक्ति की झलक चंद्रयान के प्रसंग में भी विश्व ने देखी । हमारे वैज्ञानिकों के शास्त्रज्ञान व तन्त्र कुशलता के साथ नेतृत्व की इच्छाशक्ति जुड़ गई । चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अंतरिक्ष युग के इतिहास में पहली बार भारत का विक्रम लैंडर उतरा । समस्त भारतीयों का गौरव व आत्मविश्वास बढ़ानेवाला यह कार्य सम्पन्न करनेवाले वैज्ञानिक तथा उनको बल देनेवाला नेतृत्व संपूर्ण देश में अभिनंदित हो रहा है।

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