अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन की इस्राएल यात्रा को लेकर तरह तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। इस्राएल हमास के साथ ‘निर्णायक युद्ध’ में उतरा हुआ है और अमेरिका ने उसे इसमें पूरा समर्थन देने का वायदा किया है। पश्चिम के अधिकांश देश इस्राएल के पाले में दिखते हैं जबकि मुस्लिम ब्रदरहुड के नाम पर अधिकांश देश फिलिस्तीन और हमास के साथ अपना समर्थन दिखाने में बढ़—चढ़कर उग्र घोषणाएं कर रहे हैं। इन हालात में कल बाइडन इस्राएल पहुंच रहे हैं।
इसमें संदेह नहीं है कि बाइडन ने हमास की बर्बरता और इस्राएल पर उसके अचानक बोले हमले के लिए आक्रोश जताया है। इतना ही नहीं, अमेरिका ने इस्राएल को नैतिक और सामरिक, दोनों प्रकार का समर्थन देने की घोषणा की है। हमास को इस्राएल और अमेरिका आतंकवादी संगठन घोषित कर चुके हैं। इस्राएल के प्रधानमंत्री नेत्यनाहू ने तो हमास को जड़—मूल से समाप्त करने की कसमें खा ली हैं। ऐसे में बाइडन और नेत्यनाहू के बीच आगामी वार्ता को लेकर रक्षा विशेषज्ञ अपने अपने अंदाजे लगा रहे हैं। अधिकांश का मानना है कि इस्राएल—हमास संघर्ष मध्य पूर्व के देशों तक न पहुंचे, अमेरिका का सबसे ज्यादा चिंता इसी बात की है।
तो क्या बाइडन इस संबंध में कोई रणनीति तैयार कर रहे हैं जिस पर नेत्यनाहू से बात होने वाली है? यहूदी और इस्लामवादी ताकतों के बीच छिड़े इस संघर्ष में अमेरिका की वैश्विक रणनीति क्या होगी? अपने इस इस्राएल के दौरे में बाइडन क्या विश्व को कोई महत्वपूर्ण संकेत देना चाहते हैं? मध्य पूर्व के देशों पर अमेरिका की पकड़ को लेकर क्या वे उन देशों से कोई आह्वान करना चाहते हैं?
एक तरफ रूस यूक्रेन पर लगातार हमले बोल रहा है तो दूसरी तरफ अरब जगत हमास के साथ मिलकर पश्चिमी देशों के लिए सिरदर्द बनने की तैयारी दिखा रहा है। यूक्रेन में चल रहे संघर्ष के थमने की कहीं कोई भनक नहीं मिल रही है। इस बीच इस्राएल का हमास को सबक सिखाने के लिए युद्ध आरम्भ करना वैश्विक चुनौतियां पेश कर रहा है। आज लगभग ग्यारह दिन हो चुके हैं इस्राएल को आतंकवादी संगठन हमास पर भीषण हमला बोले। अभी तक इस संघर्ष में इस्राएल के 1,400 नागरिकों की जान जा चुकी है। तो दूसरी तरफ लगभग 2,778 फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं।
अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद ने बताया है कि बाइडन इस दौरे में शाह अब्दुल्ला द्वितीय, मिस्र के राष्ट्रपति अब्दल फतेह अल-सिसी तथा फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास से मिलने जॉर्डन जाएंगे। उल्लेखनीय है कि अभी पिछले दिनों विदेश मंत्री ब्लिंकन खुद महमूद अब्बास से मिलकर आए हैं। हालांकि बाइडन ने भी पिछले दिनों मिस्र के राष्ट्रपति अब्दल फतेह अल-सिसी, इराक के प्रधानमंत्री मोहम्मद शिया अल-सुदानी तथा जर्मनी के चांसलर ओलोफ स्कोल्ज से फोन पर लंबी वार्ता की थी।
बाइडन के इस दौरे के बारे में अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने बताया कि बाइडन के इस दौरे को लेकर कई तरह की चर्चा सुनने में आ रही है। अंदाजे लगाए जा रहे हैं कि बाइडन अपनी इस यात्रा में यह सुनिश्चित करेंगे कि मध्य पूर्व तक इस युद्ध की लपट न पहुंचे।
जहां बाइडन विश्व को संकेत देना चाहेंगे कि उनका देश अमेरिका हर प्रकार से इस्राएल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है। वहीं वे इस्राएल को इस संदर्भ में और क्या अपेक्षाएं हैं, इस पर भी बात करेंगे। वैसे बाइडन अमेरिकी संसद से यूक्रेन तथा इस्राएल को आर्थिक मदद देने के लिए दो अरब डॉलर से ज्यादा की अतिरिक्त सहायता राशि की मांग कर चुके हैं।
अपनी इस यात्रा में अमेरिकी राष्ट्रपति इस्राएल ही नहीं जाएंगे, वे उसके बाद जॉर्डन भी जाएंगे। अमेरिका इस प्रयास में रहेगा कि वह इस्राएल के साथ तो रहे लेकिन इसके चलते उसके खाड़ी देशों के साथ भी रिश्ते न बिगड़ें।
एंटनी ब्लिंकन ने कल कहा है कि इस्राएल के सैन्य कमांडर बाइडन को युद्ध से जुड़े विभिन्न आयाम बताने वाले हैं, इसमें रणनीति भी शामिल है। उधर अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद ने बताया है कि बाइडन इस दौरे में शाह अब्दुल्ला द्वितीय, मिस्र के राष्ट्रपति अब्दल फतेह अल-सिसी तथा फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास से मिलने जॉर्डन जाएंगे। उल्लेखनीय है कि अभी पिछले दिनों विदेश मंत्री ब्लिंकन खुद महमूद अब्बास से मिलकर आए हैं। हालांकि बाइडन ने भी पिछले दिनों मिस्र के राष्ट्रपति अब्दल फतेह अल-सिसी, इराक के प्रधानमंत्री मोहम्मद शिया अल-सुदानी तथा जर्मनी के चांसलर ओलोफ स्कोल्ज से फोन पर लंबी वार्ता की थी।
दरअसल व्हाइट हाउस को सबसे ज्यादा चिंता ईरान को लेकर है। अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि ईरान को बहुत हद तक जानकारी थी कि हमास इस्राएल पर किसी हमले की तैयारी में था। लेकिन अमेरिकी अधिकारी अपने इस दावे को पुष्ट करने वाला कोई भी ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर पाए हैं। सब जानते हैं कि शिया बहुल ईरान इस इस्राएल—हमास संघर्ष में फिलिस्तीन तथा हमास के पाले में खड़ा है।
मुस्लिम देश ईरान कहता है कि फिलिस्तीन को पूरा हक है कि अपनी रक्षा के लिए जिहाद में उतरे। वैसे, अभी तक ईरान ने पक्के तौर पर यह संकेत नहीं दिया है कि युद्ध में उसने आतंकवादी संगठन हमास को किसी प्रकार की प्रत्यक्ष मदद की है। उधर हिज्बुल्ला जैसा ईरान समर्थित उग्र इस्लामी संगठन भी अमेरिका को तीखे तेवर दिखाने से बाज नहीं आ रहा है। इसीलिए बाइडन और नेत्यनाहू, दोनों चेतावनी दे चुके हैं कि अगर ईरान और हिज्बुल्ला ने आतंकवादी संगठन हमास का साथ दिया तो इसके गंभीर नतीजे होंगे।
टिप्पणियाँ