नई दिल्ली। भारतीय सेना ने 1962 युद्ध के दौरान पूर्वी लद्दाख के तीन गांवों में बिछाई गईं 175 बारूदी सुरंगों को 61 साल बाद निष्क्रिय कर दिया है। लेह के फोब्रांग, योर्गो और लुकुंग गांवों में लगाई गईं यह सुरंगें आम नागरिकों के लिए खतरा पैदा कर रही थीं, जिससे स्थानीय लोगों को नुकसान हो रहा था। दो माह पहले इन्हीं में से एक सुरंग के फट जाने से झारखंड के रहने वाले दो मजदूरों की मौत हुई थी। इस घटना की जांच के बाद तीनों गांवों की बारूदी सुरंगों को निष्क्रिय करने का फैसला लिया गया था।
केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में लेह जिले के लुकुंग में 16 अगस्त को आईटीबीपी शिविर की बाड़ के पास सीमेंट उतारने के दौरान एक मजदूर का पैर बारूदी सुरंग पर पड़ने से धमाका हो गया। इससे एक मजदूर गंभीर रूप से घायल हो गया और दो मजदूरों ने तांगत्से में अस्पताल ले जाते समय दम तोड़ दिया। इस विस्फोट में मारे गए दोनों मजदूर झारखंड के रहने वाले थे। इसके बाद तांगत्से पुलिस स्टेशन ने एफआईआर दर्ज करने के बाद मामले की जांच की गई।
इस बीच, लेह प्रशासन ने पूर्वी लद्दाख के लुकुंग गांव में उस क्षेत्र को साफ करने के लिए सेना की मदद मांगी, जहां बारूदी सुरंग के विस्फोट में दो मजदूर मारे गए थे। प्रशासन का मानना है कि क्षेत्र के गांव फोब्रांग, योर्गो और लुकुंग में 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान बिना विस्फोट वाले गोले लगाए गए थे। जांच से पता चला है कि चीन से युद्ध के समय ऐसी बारूदी सुरंगें स्वाभाविक रूप से नहीं फटीं, जो आम नागरिकों के लिए 61 साल बाद भी खतरा बनी हुई थीं। लुकुंग गांव पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास स्थित है, जहां बिना फटे गोले 1962 से यहां बिखरे हुए हैं।
प्रशासन के अनुसार गांव के दो स्थानों में से एक पर बाड़ लगा दी गई है जबकि दूसरा आवाजाही के लिए खुला रहता है। क्षेत्रीय लोगों ने इस मुद्दे को अभी तक इसलिए गंभीरता से नहीं लिया, क्योंकि यहां कुछ पशुओं अलावा कोई और जानमाल का नुकसान नहीं हुआ। अगस्त में दो मजदूरों की मौत होने के बाद जांच-पड़ताल होने पर लेह प्रशासन ने सेना के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की और बारूदी सुरंगों को निष्क्रिय करने का फैसला लिया गया। लेह प्रशासन के आग्रह पर सेना ने बारूदी सुरंगों को निष्क्रिय करने का अभियान शुरू किया, जो अब पूरा हो गया है।
(सौजन्य सिंडिकेट फीड)
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