इंसानी इंटेलिजेंस अलग चीज है, मशीनी अलग

कंप्यूटर में इंटेलिजेंस नहीं है क्योंकि उनके पास न तो इंसान जैसी इंद्रियां हैं, न हमारे जैसा दिमाग है और न ही चेतना या समझ है

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बालेन्दु शर्मा दाधीच

निर्जीवों में इंटेलिजेंस नहीं हो सकती। मशीन केवल प्रॉसेस कर सकती है और उसके आधार पर परिणाम दे सकती है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक आभासी चीज है जो बहुत सारे दूसरे पहलुओं और माध्यमों पर निर्भर है

मशीनों या कंप्यूटर में इंटेलिजेंस नहीं है क्योंकि उनके पास न तो इंसान जैसी इंद्रियां हैं, न हमारे जैसा दिमाग है और न ही चेतना या समझ है। फिर भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक हकीकत है तो इसलिए कि इंटेलिजेंस के मायने इंसानों और मशीनों के लिए अलग-अलग हैं। एक ही परिणाम देने में इस्तेमाल होने वाली प्रॉसेस अलग-अलग हो सकती है। डेटा की प्रॉसेसिंग अलग-अलग ढंग से हो सकती है।

70 को 28 से गुणा करने के लिए कोई व्यक्ति पहाड़ों का प्रयोग कर सकता है, कोई पेन और कागज का तो कोई कैलकुलेटर का। कोई सर्च इंजन के जरिए परिणाम पा सकता है तो कोई माइक्रोसॉफ्ट एक्सेल का सहारा ले सकता है। यही काम करने के लिए वैदिक गणित का प्रयोग कर सकते हैं तो अबेकस का भी। इन सभी माध्यमों को आजमाने के बाद नतीजा 1960 ही आता है लेकिन प्रक्रिया सबमें अलग-अलग थी।

इसी तरह इंसान कुछ ‘सुनता’ है तो वह अलग प्रक्रिया अपनाता है। कान से ग्रहण की गई सूचना को उसकी समझ या चेतना मस्तिष्क के जरिए प्रॉसेस करती है। जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को स्पीच टू टेक्स्ट करने के लिए कोई आडियो दिया जाता है तो वह पहले से मिले हुए प्रशिक्षण (ट्रेनिंग) का इस्तेमाल करके इस आडियो को पहचानने की कोशिश करती है। उसके डेटासेट्स में करोड़ों-अरबों आडियो मौजूद होंगे जिनके पैटर्न को प्रॉसेस करते हुए वह प्रशिक्षित हो चुकी होगी और परिणाम देने में सक्षम हो चुकी होगी। जितना बड़ा डेटा सेट उसके पास होगा, स्पीच टू टेक्स्ट के परिणाम उतने ही सटीक होंगे।

चीजों का अर्थ समझे बिना भी उनको अर्थ कैसे दिए जा सकते हैं, इसे एक मानवीय उदाहरण से समझते हैं। हमारी जीवन प्रक्रिया के दौरान जीवन के कुछ बुनियादी सिद्धांत हमारे दिमाग में सहेज लिये गए हैं। क्या अच्छा है, क्या बुरा, इसे हमने अपने अनुभवों से सीख लिया है और बहुत सारे अनुभव हमारी चेतना का हिस्सा हैं। उचित या अनुचित, सुंदर या कुरूप, छोटा या बड़ा, महान या नीच, साधारण या विशेष और इसी तरह के बहुत सारे निष्कर्ष-युग्म हमारे दिमाग में हमेशा के लिए स्टोर कर दिए गए हैं।

अगर आप आधी नींद में हैं, तब भी अगर आपसे कोई पूछे कि कश्मीर कैसा है तो आप तुरंत कह देंगे- सुंदर। अध्यापक ने बच्चों की पिटाई करके अच्छा किया या बुरा, आप झट से कहेंगे- बुरा। हम ऐसी घटनाओं को तुरंत इन शब्द-युग्मों के साथ जोड़ लेते हैं क्योंकि हमारी याद्दाश्त, अनुभव और समझ मिल-जुलकर झट से यह परिणाम देने में सक्षम हैं- बिना ज्यादा सोचे हुए। मशीन भी अपने तरीकों से इस प्रक्रिया की नकल कर सकती है।

हमारी जीवन प्रक्रिया के दौरान जीवन के कुछ बुनियादी सिद्धांत हमारे दिमाग में सहेज लिये गए हैं। क्या अच्छा है, क्या बुरा, इसे हमने अपने अनुभवों से सीख लिया है और बहुत सारे अनुभव हमारी चेतना का हिस्सा हैं। उचित या अनुचित, सुंदर या कुरूप, छोटा या बड़ा, महान या नीच, साधारण या विशेष और इसी तरह के बहुत सारे निष्कर्ष-युग्म हमारे दिमाग में हमेशा के लिए स्टोर कर दिए गए हैं।

मशीन देख नहीं सकती लेकर फिर भी अपने डेटासेट्स और ट्रेनिंग के आधार पर चित्रों आदि की पहचान बता देती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह वास्तव में उनको पहचानती है या उनका अर्थ समझती है।

एक उदाहरण देखिए- Ax2B=17 है और 3AxB=19 है तो कंप्यूटर A और B का मूल्य बता देगा। लेकिन वह जानता नहीं है कि उसने जो किया, उसका मतलब क्या है। इन अंकों का अर्थ क्या है। हां, परिणाम देने में वह फिर भी सक्षम है। जाहिर है, मशीन के पास इंटेलिजेंस नहीं है। फिर भी वह ऐसा बर्ताव कर सकती है जैसे उसके पास इंटेलिजेंस है क्योंकि हमने ऐसे कृत्रिम तरीके ईजाद कर लिये हैं जो इस तरह का आभास पैदा कर सकते हैं।

मशीन के पास इंटेलिजेंस होती तो फिर वह डेटा तक पहुंच न होने पर भी और कंप्यूटर को बंद करने के बाद सक्षम बनी रहती। निर्जीवों में इंटेलिजेंस नहीं हो सकती और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक आभासी चीज है जो बहुत सारे दूसरे पहलुओं और माध्यमों पर निर्भर है।
(लेखक माइक्रोसॉफ्ट एशिया में डेवलपर मार्केटिंग के प्रमुख हैं)

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