सामाजिक सेवा संगठन संत ईश्वर फाउंडेशन, राष्ट्रीय सेवा भारती और अशोक सिंहल फाउंडेशन द्वारा 2 अक्तूबर को हुए संत ईश्वर सम्मान समारोह में समाज कल्याण में लगीं 18 विभूतियों को सम्मानित किया गया।
देश के प्रमुख सामाजिक सेवा संगठन संत ईश्वर फाउंडेशन, राष्ट्रीय सेवा भारती और अशोक सिंहल फाउंडेशन द्वारा 2 अक्तूबर को हुए संत ईश्वर सम्मान समारोह में समाज कल्याण में लगीं 18 विभूतियों को सम्मानित किया गया। इस समारोह में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को विशेष सम्मान प्रदान किया गया। दिल्ली में आयोजित इस समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर रा.स्व.संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी मंडल के सदस्य श्री सुरेश भैय्याजी जोशी, स्वामी चिदानंद सरस्वती, केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला उपस्थित थे।
संत ईश्वर फाउंडेशन की राष्ट्रीय महासचिव वृंदा खन्ना ने बताया कि संत ईश्वर सम्मान मुख्यत: चार क्षेत्रों में दिया जाता है। इनमें जनजातीय, ग्रामीण, महिला एवं बाल विकास तथा पर्यावरण, साहित्य, शिक्षा, स्वास्थ्य और शोध आदि क्षेत्रों में विशेष योगदान शामिल है। इसके अलावा 4 विशिष्ट सेवा सम्मान एवं 12 सेवा सम्मान भी प्रदान किए जाते हैं। विशेष सेवा सम्मान में शॉल, 5 लाख रुपये, विशिष्ट सेवा सम्मान में शॉल व एक लाख रुपये तथा सेवा सम्मान में शॉल, नकद, ट्रॉफी, प्रमाण-पत्र तथा प्रतीक मुद्रा सहित प्रत्येक वर्ष 32 लाख रुपये की राशि प्रदान की जाती है। संत ईश्वर फाउंडेशन की स्थापना 2002 में हुई थी, जबकि संत ईश्वर सम्मान की शुरूआत 8 वर्ष पहले की गई। तब से लेकर अब तक देश के 30 राज्यों के 118 सेवा साधकों को सम्मानित किया जा चुका है। छह सेवा साधकों को भारत सरकार की ओर से पद्म सम्मान भी मिल चुका है। संस्थान ने सबसे पहले पानीपत में एक स्कूल खोला था, जिसमें कचरा बीनने वाले बच्चों को पढ़ाया जाता था। इस संस्था के दो प्रकल्प जम्मू में भी हैं।
अपने अशीवर्चन में स्वामी चिदानंद जी ने सम्मान पाने वालों को बधाई देते हुए कहा कि सेवा हमारी संस्कृति है।
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि वे संत ईश्वर फाउंडेशन से बहुत पहले से जुड़े हुए हैं। सेवा साधकों से उन्होंने बहुत कुछ सीखा है। उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि संस्कारों को आधुनिकता के साथ जोड़कर एक मिश्रण तैयार करके इस संस्था ने हमें एक मॉडल दिया है। इस संस्थान का समाज कार्य अनुकरणीय है। छानबीन कर ऐसी विभूतियों को सम्मानित किया जा रहा है, जिससे लोगों को लगे कि समाज में ऐसे लोग भी हैं, जिनसे समाज चल रहा है। हमारे यहां लोग अभाव में भी स्पर्धा करने की हिम्मत रखते हैं, उसका जीता जागता उदाहरण है चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अनुकूल वातावरण प्रदान करने के कारण ही यह संभव हो सका है। जब हम चंद्रयान से जुड़े सभी वैज्ञानिकों को पुरस्कार देते हैं, तो उसके साथ नए युग के निर्माण का उत्सव भी मनाते हैं। भौगोलिक चुनौतियों पर भी हमें अपनी श्रेष्ठता प्रदर्शित करनी होगी। अक्सर हम देखते हैं कि किसी परिवार में ज्यादा धनराशि आ जाए, वह घर में झगड़े का कारण भी बन जाती है। लेकिन यह संस्थान ऐसा आदर्श परिवार है, जिसने सामूहिक तौर पर खैराती लाल खन्ना जी की प्रेरणा को आगे बढ़ाते हुए अतिरिक्त राशि को समाज के उत्थान में लगाने का निर्णय लिया। इस संस्था द्वारा चलाई जाने वाली पाठशालाएं आधुनिक हैं, जो आने वाले समय में समाज को प्रेरणा देने का काम करेंगी।
इस अवसर पर अपने संबोधन में श्री भैय्या जी जोशी ने कहा कि पहले लोग सम्मान के लिए काम करते थे। प्रसन्नता इस बात की है कि बीच के कालखंड में जो विकृतियां आई थीं, उनमें अब धीरे-धीरे परिवर्तन आ रहा है। अब एक व्यवस्था बनी है, जिसमें समाज से लोगों को चुन-चुनकर पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण और भारत रत्न जैसे सम्मान दिए जा रहे हैं। ईश्वर संत पुरस्कार पाने वाले लोग नि:स्वार्थ भाव से सेवा कार्यों में लगे हुए हैं। उनमें यह भाव नहीं था कि उन्हें इस तरह का पुरस्कार मिलेगा। हमारे प्राचीन ग्रंथों में सेवा को धर्म माना गया है- सेवा परमो धर्म:। जब धर्म के रूप में कोई काम होता है, तो पुण्य के फलों की आकांक्षा नहीं होती।
कर्तव्य और सेवा को धर्म मानने का भाव भारत के रक्त में है। सेवा के लिए धन और साधन की आवश्यकता नहीं होती। धन और साधन के बिना भी मन की शक्ति के बल पर अपनी ऊर्जा लगाकर सेवा करने वाला समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग आसपास दिखाई देता है। हमारे यहां कई स्थानों पर पक्षियों के लिए दाना डालने की परंपरा है। कुछ लोग सोचते हैं कि रोज पता नहीं कितना अनाज बर्बाद होता होगा।
अनुमान लगाएं तो देशभर में सैकड़ों कुंतल अनाज पक्षियों को डाला जाता होगा। दरअसल, इस देश की मिट्टी में उपजने वाली फसलों पर केवल हमारा ही अधिकार नहीं है, इन पर पशु-पक्षियों का भी उतना ही अधिकार है। लोग इसी भाव से पक्षियों को दाना डालते हैं। दरवाजे पर आई हुई गोमाता को रोटी देना किसी ने नहीं सिखाया। दरवाजे पर भिक्षा मांगने आने वाले को भी खाली हाथ नहीं लौटाया जाता, क्योंकि हमारे मन में अतिथि देवो भव का भाव है। हमारे यहां नर सेवा को नारायण सेवा कहा जाता है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी ने तो इसके लिए दरिद्रनारायण शब्द गढ़ा था। यानी दरिद्र व्यक्ति भी नारायण है।
इस सूत्र को मन में रखकर आसपास ह्यईश्वरह्ण को देखना और उसकी सेवा करना ही पूजा माना गया है। धर्म को हम सेवा की दृष्टि से देखते आए हैं। उन्होंने आगे कहा कि समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग, जिसे हम जनजाति या अन्य नाम से बुलाते हैं, आज भी वंचित है। जाति वर्ग के कारण भी समाज का बहुत बड़ा वर्ग शिक्षा, आर्थिक साधनों से दूर रहा। इसलिए उनके लिए कई योजनाएं और सेवा कार्यचल रहे हैं। लेकिन सेवा का दायरा सीमित हो गया है, जैसे- बीमार को दवाइयां, बेरोजगार को रोजगार और अशिक्षित को शिक्षा उपलब्ध कराना। हमारे मनीषियों ने कहा है कि श्रेष्ठ यह है कि व्यक्ति के अंदर जो श्रेष्ठत्व है, जो किसी कारण दबा हुआ है, उसे उभारा जाए।
इस तरह का श्रेष्ठ भाव अंत:करण में रखकर सेवा कार्य में जुटे लोगों को ही ईश्वर संत पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। यहां करने वाले भी ईश्वर हैं और जिनके लिए वे कर रहे हैं, वे भी ईश्वर हैं। बिना अपेक्षा किए जो कार्य किया जाता है, वही सेवा है। यही भारत का मूल स्वभाव है। ईश्वर का ऋण हमें ही चुकाना है। इसलिए ईश्वर द्वारा प्रदत्त ऊर्जा, साधन का उपयोग हम समाज के लिए करें, इसी को ऋण मुक्ति का मार्ग बताया गया है। सेवा से प्रतिष्ठा है, परंतु प्रतिष्ठा के लिए सेवा नहीं है। सेवा का सम्मान है, सम्मान के लिए सेवा नहीं है।
भैय्याजी ने लोगों से इस प्रकार की सेवा का हिस्सा बनने का आह्वान करते हुए कहा कि हमें केवल व्यक्ति के उत्थान के ही नहीं, बल्कि उसके अंदर श्रेष्ठत्व जगाने, उसके भीतर अच्छे जीवन की आकांक्षा जगाने के प्रयास करने होंगे। इस भाव से चलने वाले सेवा कार्य समाज की गरिमा को बढ़ाते हैं।
लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिड़ला ने कहा, ह्यह्यमुझे बहुत प्रसन्नता है कि गत 21 वर्ष से यह संस्था लगातार समाज के अभावग्रस्त, वंचितों के जीवन को बदलने के लिए काम कर रही है। परिवार और समाज से ही संस्कार मिलते हैं। इस संस्था का उद्देश्य समाज में पिछड़े, वनवासी क्षेत्र में काम करने वाले लोगों का उत्थान करना है। यह संस्था समाज के अंतिम पंक्ति में बैठे वनवासी, जनजातीय लोगों को शिक्षा और संस्कार देकर उनकी कुशलता को उभार कर उन्हें समाज के समकक्ष खड़ा करने का प्रयास करती है। इसके लिए उन्हें दीया बनाना, राखी बनाना जैसे हुनर सिखाए जाते हैं, ताकि वे आर्थिक रूप से सक्षम बनें। नए परिदृश्य में भारत ने दिखा दिया है कि विज्ञान व तकनीक के क्षेत्र में वह दुनिया का नेतृत्व करेगा। यह सामूहिक प्रयासों से ही संभव हो सकता है। सब कुछ सरकार करेगी, ऐसा नहीं सोचना चाहिए। देश की 140 करोड़ जनता के जीवन को बदलना है, तो ऐसी संस्थाओं को काम करना पड़ेगा। इसलिए केवल पुरस्कार देना इनका उद्देश्य नहीं है, बल्कि इन संस्थाओं से समाज के लोगों को भी प्रेरणा मिलती है।
संत ईश्वर सम्मान 2023 का विशेष सम्मान भारतमाता के भाल को चंद्रमा की ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाले इसरो के वैज्ञानिकों को दिया गया।
जनजाति क्षेत्र में संत ईश्वर विशिष्ट सेवा सम्मान जशपुर की संस्था रूरल एजुकेशन एंड डेवेलपमेंट सोसाइटी को दिया गया।
दादर नगर हवेली एवं दमन दीव के दशरथ झिपर को संत ईश्वर सेवा सम्मान दिया गया।
केरल के के. गोविन्दन को धुनर्विद्या को संरक्षित करने के लिए सम्मानित किया गया।
दीमापुर में कछारी जनजातीय महिला संगठन की संस्थापिका व अध्यक्षा बिनिता जिगडुंग को भी सम्मानित किया गया।
जलना (महाराष्टÑ) के सुनील अर्जुन राव शिंदे को किसानों के लिए नए उपकरण बनाने के लिए सम्मानित किया गया।
पश्चिम बंगाल में कार्य कर रही पातालचंडी कल्याण समिति को तालाबों के पुनरोद्धार के लिए सम्मानित किया।
सामाजिक समरसता के लिए राजस्थान के रामचरण लोधा को पुरस्कृत किया गया।
जल संरक्षण के लिए उज्जैन के गोपाल डोंडिया को सम्मानित किया गया।
शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए जोधपुर की भानुप्रिया भट्ट का सम्मान किया गया।
पारधी समाज के बच्चों का जीवन संवारने के लिए भोपाल की अर्चना शर्मा का सम्मान हुआ।
अमरोहा (उ.प्र.) में बालिकाओं को शिक्षा देने वाली आचार्या डॉ. सुमेधा का भी सम्मान हुआ।
कुष्ठ रोगी बालिकाओं के लिए कार्य करने वाले बिलासपुर के ह्यतेजस्विनी सेवा प्रतिष्ठानह्ण को भी सम्मान मिला।
बिहार में उपेक्षित बच्चों की शिक्षा के लिए कार्य करने वाले सुमित कुमार भी सम्मानित हुए।
गुरुग्राम में वरिष्ठ नागरिकों और मानसिक रूप से दिव्यांग लोगों की देखभाल करने वाली संस्था ह्यद अर्थ सेवियर्स फाउंडेशनह्ण को पुरस्कृत किया गया।
प्रतापगढ़ (उ. प्र.) में वृक्षारोपण को बढ़ावा देने वाले सुंदरम तिवारी को भी इस वर्ष सम्मानित किया गया।
किसानों की आय में वृद्धि करने वाले कोटा के पवन कुमार हुए सम्मानित।
95 साल की एथलीट दादी भगवानी देवी डागर को भी सम्मानित किया गया। दिल्ली के नजफगढ़ की एथलीट दादी भगवानी देवी डागर ने पौलेंड में आयोजित नौंवी वर्ल्ड मास्टर्स एथलीट इंडोर चैंपियनशिप 2023 में तीन गोल्ड जीत कर भारत की झोली में डाले हैं।
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