खाना खाने के लिए दो तरीके की व्यवस्था है। पहली, जमीन पर बैठ कर सामने चौकी पर थाली रखने की और दूसरी पारंपरिक मेज-कुर्सी की। बैठने पर हमारा स्वागत सबसे पहले मट्ठे के साथ किया गया, जिसकी ताजगी उमस भरी गर्मी को शांत करने के लिए काफी थी।
झांसी से जब आप ललितपुर की ओर जायेंगे तो तालबेहट में माताटीला बांध के पहले आपको सड़क के दाईं ओर एक भोजनालय मिलेगा ‘गौकृपा बुंदेली भोजनालय’। तस्वीर में दर्शाई गई थाली वहीं की है।
जब मैं यहां पहुंचा तो मुझे कोई खास उम्मीद नहीं थी, पर जब जूते-मोजे उतार कर अंदर गया, और गोबर से लीपे हुए कोमल फर्श पर अपने पैर रखे, तो थकान यूं ही उतरने लगी।
यहां खाना खाने के लिए दो तरीके की व्यवस्था है। पहली, जमीन पर बैठ कर सामने चौकी पर थाली रखने की और दूसरी पारंपरिक मेज-कुर्सी की। बैठने पर हमारा स्वागत सबसे पहले मट्ठे के साथ किया गया, जिसकी ताजगी उमस भरी गर्मी को शांत करने के लिए काफी थी।
फिर एक लड़के ने आकर जब पत्तल परोसा तो जी में और सुकून आया। और फिर एक-एक करके जब लहसुन, लाल मिर्च की चटनी, उड़द चने की दाल, कढ़ी, बाजरे की रोटी, चूल्हे की सिंकी हुई रोटी और बैंगन का बिना कल्हारा हुआ भर्ता, मट्ठे में डूबा हुआ बरा और साथ में बूरा शक्कर और चूरमे का लड्डू जब परोसा गया, तो मेरा सब्र जवाब दे गया।\
चमचमाते रेस्तरां से इतर मुझे यह छोटी सी जगह बेहद सुकून भरी लगी। जब कभी आप झांसी-ललितपुर हाईवे पर हों तो एक बार यहां जरूर जाएं। यहां का बड़ा खा कर आप भी वही कहेंगे जो मैंने पहली लाइन में लिखा है।
मैंने झट से इसकी एक तस्वीर अपने जेहन और कैमरे में कैद की और अपनी उंगलियों से एक-एक करके इनका स्वाद लेने लगा। पर अपनी जल्दबाजी पर मुझे तब गुस्सा आया, जब बाद में घी में डूबी हुई बाटी भी साथ मेंपरोसी गई।
हाथ खाने के रस में सराबोर हो चुके थे, सो मैंने फोटो खींचने को गैरजरूरी समझते हुए खाने का स्वाद लेना जारी रखा।
एक-एक चीज बेहतरीन स्वाद से भरी हुई। मैंने बाजरे की इतनी मुलायम रोटी आज तक नहीं खाई थी। चूल्हे पर सिंकी ऊपर से गहरे गुलाबी निशान लिए रोटी की तुलना तो की ही नहीं जा सकती है।
मेरा पसंदीदा बैंगन भर्ता ठीक वैसा ही बना था जैसे मेरे घर में बनता है। और लहसुन की मिर्च वाली तीखी चटनी पसीना बहा दे रही थी पर, स्वाद ग्रंथियों पर चटनी का स्वाद इतना बेहतरीन असर छोड़ रहा था कि बिना उसे खाए मन ही
नहीं माना।
खाने से पेट और मन भरने के बाद हम उठने ही वाले थे कि एक लड़का नई चीज ले कर आ गया। पूछने पर उसने बताया कि इसे गोरस कहते हैं। आप मोटा-मोटी इसे यूं समझिए जैसे किसी ने आपको दही में गुड़ मिला कर खिलाया हो। और ये चीज भी बेहद स्वादिष्ट।
बाद में जब बिल देने की बारी आई तो पता लगा कि इतने सारे भोजन का मूल्य 200 रुपये प्रति थाली है।
इस भोजनालय के मालिक ने बताया कि सुबह वह नाश्ते में महेरी (मट्ठे में पका हुआ ज्वार या चावल का मीठा व्यंजन) भी परोसते हैं।
चमचमाते रेस्तरां से इतर मुझे यह छोटी सी जगह बेहद सुकून भरी लगी। जब कभी आप झांसी-ललितपुर हाईवे पर हों तो एक बार यहां जरूर जाएं। यहां का बड़ा खा कर आप भी वही कहेंगे जो मैंने पहली लाइन में लिखा है।
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