मालदीव में ताजा आम चुनावों में जो उम्मीदवार राष्ट्रपति पद पर जीते हैं, वे चीन नजदीकी माने जाते हैं। चुनाव से पहले विशेषज्ञों में यह बात बड़ी बहस का विषय बनी थी कि हिन्द महासागर के इस देश में अगर चीन समर्थक राष्ट्रपति बनता है तो भारत के लिए इसके क्या मायने होंगे। रणनीतिक रूप से अहम हिन्दू महासागर का यह क्षेत्र क्या अमेरिका और भारत के भविष्य के कार्यक्रमों में आड़े आएगा या लोकतांत्रिक रीत से चलेगा? लेकिन चीन के घोर समर्थक मोहम्मद मुइज्जू के अब मालदीव का नया राष्ट्रपति बनने के बाद, बीजिंग का खुश होना स्वाभाविक ही है।
जैसा पहले बताया, मोहम्मद मुइज्जू राष्ट्रपति चुन लिए गए हैं इसलिए विशेषज्ञों को यह समझने में कोई देर नहीं लगेगी कि हिंद महासागर पर अब चीन खुलकर अपनी धमक दिखाने की जुर्रत करेगा और जैसा उसका स्वभाव है उसे देखते हुए सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ना भी अस्वाभिवक बात नहीं है। हालांकि नए राष्ट्रपति मोहम्मद के नजदीकी का कहना है कि भारत चिंता न करे, मुइज्जू सरकार किसी तरह का वैरभाव लेकर काम नहीं करेगी। लेकिन मोहम्मद मुइज्जू के पिछले रिकार्ड को देखते हुए कहा जा सकता है कि वह हर वह काम बिना दो बार सोचे कर देते हैं जो चीन चाहता है। संभवत: इसी परिप्रेक्ष्य में मुइज्जू के सलाहकार ने यह भी कहा कि हिंद महासागर की सुरक्षा को लेकर कोई आशंका न पाली जाए।
परंपरागत तौर पर मालदीव में जो राष्ट्रपति बनता है वह सबसे पहले भारत की यात्रा पर ही जाता है। शरीफ के अनुसार, मुइज्जू भी इस परंपरा को आगे बढ़ाना चाहेंगे। लेकिन यह तो वक्त ही बताएगा कि मुइज्जू क्षेत्रीय शांति के लिए भारत का हाथ थामेंगे या चीन की चालों के हस्तक बनकर रह जाएंगे।
मालदीव, हिंद महासागर पर मौजूद वह देश जो रणनीतिक तौर पर भारत के लिए काफी अहमियत रखता है। इस देश में हाल ही में चुनाव हुए हैं और अब यहां पर कमान मोहम्मद मुइज्जू के हाथ में है। चीन के समर्थक मुहज्जू देश के नए राष्ट्रपति हैं और उनके सत्ता में आते ही भारत के रणनीतिक विशेषज्ञों की चिंताएं भी बढ़ गई हैं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने सहज स्वभाव के अनुसार, एक ट्वीट करके मुइज्जू को मालदीव का राष्ट्रपति बनने पर शुभकामनाएं दी हैं।
अपने ट्वीट में मोदी ने यह भी कहा है कि ‘भारत सरकार वक्त की कसौटी पर परखे भारत-मालदीव रिश्तों को और मजबूत करते हुए हिंद महासागर क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है।’ लेकिन मालदीव में मुइज्जू के कुर्सी पर रहते यह भरोसा करना भारत के लिए कठिन ही है कि वहां बीजिंग की दखल नहीं रहेगी या उसकी तैयार की हुई नीतियों के हिसाब से ही मुइज्जू अपनी सरकार चलाएंगे।
मालदीव में इस चुनाव के परिणाम गत शनिवार तक साफ होते गए थे। मतगणना के अंतिम दौर में मुइज्जू ने 54 प्रतिशत वोट पाए थे। इस तरह उन्होंने कुछ निष्पक्ष और चीन के प्रभाव से दूर रहने वाले मोहम्मद सोलिह को हरा दिया। सोलिह को 46 प्रतिशत मत ही मिले। हैरानी की बात है कि इस बार चुनावों उस देश के 86 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं ने मत डाले थे।
मुइज्जू के नए सलाहकार भारत को चाहे जितना भरोसा दिलाएं, लेकिन हिन्द महासागर की सुरक्षा सभी संबंधित पक्षों के लिए अब पहले से ज्यादा चिंताजनक विषय होगी। हालांकि श्रीलंका तथा जापान में मालदीव के राजदूत रहे सेकुलर सोच वाले मोहिम्मद शरीफ का कहना है कि भारत के लिए मालदीव चिंता का विषय नहीं रहना चाहिए। मोहम्मद शरीफ मोहम्मद मुइज्जू की तारीफ करते हैं लेकिन चीन के उन पर हमेशा दिखे दबदबे का जिक्र नहीं करते। इससे लगता है उनका भी अपना एक एजेंडा है। शरीफ भारत के साथ निवर्तमान राष्ट्रपति सोलिह के नजदीकी बढ़ाने के प्रयासों के विरोधी रहे हैं। सोलिह भारत की तरफ झुकाव वाले नेता रहे हैं, लेकिन मुइज्जू उनसे ठीक उलट, चीन के प्रभाव में रहे हैं।
जिस प्रकार पूर्व राष्ट्रपति, पीपीएम नेता अब्दुल्ला यामीन हमेशा चीन के पाले में खड़े दिखे हैं उसी प्रकार मुइज्जू पर चीन के संकेतों पर ही चले हैं। 2013 में बनी यामीन सरकार में जब वे मंत्री थे तब उन्होंने अरबों रु. की परियोजनाएं चीनी कंपनियों को बिना किसी खास जांच—पड़ताल के सौंप दी थीं। उन्हें बीजिंग के साथ मजबूती से जुड़ा हुआ माना जाता था। तब यामीन सरकार के पांच साल के राज में मालदीव और भारत के संबंध खराब ही रहे।
पूर्व राजदूत शरीफ यह भी कहते हैं कि मालदीव भी चाहता है कि हिंद महासागर सुरक्षित हो। इसके लिए मुइज्जू भी भारत से मिलकर काम करना चाहेंगे। लेकिन शरीफ ने यह नहीं बताया कि मुइज्जू चीन की इस क्षेत्र पर थानेदारी की चाल को चलने देंगे कि नहीं। हालांकि सब जानते हैं कि 45 साल के मुइज्जू जहां तक होगा, इस चाल के आड़े नहीं आएंगे।
परंपरागत तौर पर मालदीव में जो राष्ट्रपति बनता है वह सबसे पहले भारत की यात्रा पर ही जाता है। शरीफ के अनुसार, मुइज्जू भी इस परंपरा को आगे बढ़ाना चाहेंगे। लेकिन यह तो वक्त ही बताएगा कि मुइज्जू क्षेत्रीय शांति के लिए भारत का हाथ थामेंगे या चीन की चालों के हस्तक बनकर रह जाएंगे।
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