मथुरा जनपद में स्थित बांके बिहारी जी के मंदिर की भूमि को सरकारी रिकॉर्ड में कब्रिस्तान के रूप में दर्ज कर दिया गया था। इस मामले को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में सुनवाई चल रही थी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि बांके बिहारी मंदिर की भूमि की इंट्री सरकारी साक्ष्य में गलत तरीके से की गई थी। मंदिर की भूमि को गलत तरीके से कब्रिस्तान की भूमि दर्शाया गया था, जबकि मथुरा की छाता तहसील के शाहपुर गांव का गाटा संख्या 1081 का भूखंड प्राचीन काल से ही बांके बिहारी महाराज के नाम से दर्ज था। उच्च न्यायालय ने गलत ढंग से की गई इस तरह की इंट्री को शून्य घोषित कर दिया है। मथुरा जनपद के छाता तहसील के उपजिलाधिकारी को एक माह के अन्दर भूमि के रिकॉर्ड को ठीक करने का आदेश दिया है।
बता दें कि ‘श्री बिहारी जी सेवा ट्रस्ट; मंदिर का संचालन करता है। ट्रस्ट की ओर से याचिका दाखिल की गई थी। ट्रस्ट की याचिका में कहा गया था कि बांके बिहारी मंदिर की जमीन को राजनीतिक कारण से कब्रिस्तान के तौर पर दर्ज कर दिया गया था। वर्ष 2004 में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। उस समय सपा के नेता भोला खान पठान ने तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को प्रार्थना पत्र दिया था। पत्र पर उस समय के मुख्य सचिव के आदेश पर मंदिर की जमीन को कब्रिस्तान की भूमि दिखा दिया गया था।
ट्रस्ट ने इस संबंध में कई बार शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। यह प्रकरण वक्फ बोर्ड में भी गया था। आठ सदस्यों की कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि मनमाने ढंग से इस जमीन को कब्रिस्तान के रूप में दर्ज किया गया है। इसके बाद ट्रस्ट की ओर से इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने याचिका दाखिल की थी।
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