शीघ्र ही जनजातीय भाषा मुंडारी में हनुमान चालीसा प्रकाशित होने वाली है। महात्मा नारायण दास ग्रोवर शोध संस्थान, खूंटी द्वारा प्रकाशित होने वाली इस हनुमान चालीसा का मुंडारी में अनुवाद मानस—मर्मज्ञ छत्रपाल सिंह मुंडा ने किया है।
जनजातीय समाज सनातन संस्कृति का अभिन्न अंग है। आज भी इस समाज में ऐसे बहुत सारे लोग हैं, जिन्होंने अपने पूरे शरीर में राम नाम खुदवा रखा है। ये लोग खुलेआम यह भी कहते हैं कि वे राम और कृष्ण के वंशज हैं। इसके बावजूद ईसाई मिशनरियां यह दुष्प्रचार कर रही हैं कि जनजाति हिंदू नहीं हैं। इस दुष्प्रचार में फंस कर जरूर कुछ लोग ईसाई बन रहे हैं, लेकिन आज भी जनजाति समाज के अधिकांश लोग सनातनी हैं। इन सनातनियों के सहयोग और समर्पण से आज हनुमान चालीसा, रामायण, महाभारत, गीता आदि धर्मग्रंथों का अनुवाद मुंडारी, संथाली जैसी विभिन्न जनजातीय भाषाओं में हो रहा है। अभी हाल ही में हनुमान चालीसा का अनुवाद मुंडारी में हुआ है। इसके अनुवादकर्ता हैं खूंटी के रहने वाले मानस—मर्मज्ञ छत्रपाल सिंह मुंडा। इन्होंने पूरी हनुमान चालीसा का अनुवाद मुंडारी में बहुत ही सरल भाषा में किया है। प्रत्येक पृष्ठ पर मूल चौपाई के साथ मुंडारी में उसका अनुवाद है। इसकी विशेषता यह भी है कि हर पन्ने पर प्रसंग के अनुसार चित्र भी हैं। ये चित्र बहुत ही जीवंत और सुंदर हैं।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में उप निदेशक रहे छत्रपाल सिंह मुंडा ने बताया कि अयोध्या में श्रीराम मंदिर के उद्घाटन से पहले ही मुंडारी भाषा में प्रकाशित हुई हनुमान चालीसा की 50,000 प्रतियां छपवा कर जनजातीय समाज के बीच वितरित की जाएंगी।
छत्रपाल सिंह मुंडा ने रामायण का भी मुंडारी में अनुवाद किया है। उन्हें रामायण पढ़ने की प्रेरणा अपने बड़े चाचा स्वर्गीय मझिया मुंडा से मिली थी। छत्रपाल सिंह मुंडा ने बताया, ‘‘एक समय मेरे गांव में कुछ ही लोग थे, जो रामायण पढ़ पाते थे। उनमें से एक मेरे चाचा भी थे। वे रामजी के भक्त थे और नियमित रूप से लोगों को रामायण के प्रसंग सुनाया करते थे। जब भी समय मिलता, वे मुझे भी भगवान राम, माता सीता, भरत जी, लक्ष्मण जी, राजा दशरथ आदि के जीवन के बारे में बताते थे। इस कारण रामायण के प्रति मेरा लगाव बढ़ता गया। सच पूछिए तो रामायण के प्रसंगों ने ही मुझे जीवन के प्रति सचेत किया और आज जो कुछ कर रहा हूं या कर चुका हूं, उसमें रामायण की शिक्षा का बड़ा योगदान है।’’
आपको बता दें कि मुंडारी और संथाली झारखंड के जनजातीय समाज की दो प्रमुख भाषाएं हैं। इनमें से छत्रपाल सिंह मुंडा ने मुंडारी भाषा में रामायण और हनुमान चालीसा का अनुवाद पूर्ण कर लिया है और अब उसके मुद्रण की तैयारी की जा रही है। वहीं दूसरी ओर संथाली भाषा में भी रामायण, हनुमान चालीसा और महाभारत का अनुवाद किया जा रहा है। इस पुनीत कार्य के लिए जामताड़ा के रहने वाले रबिलाल हांसदा पिछले कई महीने से लगे हैं। लाल बहादुर संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में पढ़ने वाले रबिलाल हांसदा ने हनुमान चालीसा का अनुवाद काफी पहले ही पूर्ण कर लिया था और अब वे रामचरितमानस और महाभारत का अनुवाद कर रहे हैं।
रबिलाल को संस्कृत और अध्यात्म में गहरी रुचि है और जनजातियों को सनातन समाज का अभिन्न अंग मानते हैं। उन्होंने बताया कि संथाली भाषा ओलचिकी लिपि में लिखी गई है। इस लिपि की खोज पंडित रघुनाथ मुर्मू ने 1925 में की थी। उन्होंने बताया कि इस लिपि का संबंध प्रसिद्ध व्याकरणाचार्य पाणिनी की अष्टाध्यायी से है। इस कारण संथाली भाषा में संस्कृत के अनेक शब्द समाविष्ट हैं। रबिलाल के अनुसार जनजातीय समाज की जीवनशैली, उनकी पूजा—पद्धति और परंपरा में सनातन संस्कृति की छाप स्पष्ट दिखती है।
झारखंड सहित पूरे देशभर के जनजातीय समाज के बीच मुंडारी और संथाली भाषा में प्रकाशित रामायण, महाभारत और हनुमान चालीसा की चर्चा शुरू हो चुकी है। लोगों का मानना है कि जनजातीय भाषा में लिखी गई रामायण और महाभारत पढ़ने के बाद जनजातीय समाज के लोग किसी के बहकावे में नहीं आएंगे।
पिछले 37 वर्ष से एकल अभियान के द्वारा जनजातीय समाज के बीच जनजागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। इसके तहत जनजातीय समाज के लोग रामायण, महाभारत और भगवद्गीता सहित कई ग्रंथों का अध्ययन करते हैं और ग्रामीणों के बीच उनकी भाषा में ही उन तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं।
एकल अभियान के रांची भाग अध्यक्ष प्रमोद सिंह का मानना है कि मुंडारी और संथाली भाषा में रामायण, हनुमान चालीसा और महाभारत के आने से झारखंड सहित पूरे विश्व में हमारी संस्कृति परम वैभव को प्राप्त करेगी। जनजातीय समाज को सैकड़ों वर्षों से मिशनरी संस्थाएं बरगलाने का काम कर रही हैं, उस पर भी लगाम लगेगी।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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