वैश्वीकरण के वर्तमान दौर में हिंदी विश्व स्तर पर एक प्रभावशाली भाषा बनकर उभर चुकी है। वर्ल्ड लैंग्वेज डाटाबेस के 22वें संस्करण ‘इथोनोलॉज’ में दुनियाभर में 20 सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में ‘हिंदी’ को तीसरे स्थान पर रखा गया है। इस सूची में पहला स्थान ‘अंग्रेजी’ का है जो दुनिया के 113.2 करोड़ लोगों की भाषा है। दूसरे स्थान पर चीन में बोली जाने वाली ‘मैंड्रेन’ भाषा है जिसे 111.7 करोड़ लोग बोलते हैं जबकि दुनिया भर में 61.5 करोड़ लोग हिंदी भाषा बोलते हैं। देश के जाने माने भाषाविद् डॉ. जयंती प्रसाद नौटियाल का कहना है कि सर्वाधिक सरल, सहज और सुगम भाषा होने के साथ हिंदी आज विश्व की संभवतः सबसे वैज्ञानिक भाषा है। विश्व स्तर पर हिंदी को लोकप्रिय बनाने में प्रवासी भारतीयों की भूमिका भी खासी सराहनीय है। फ़िजी, मॉरिशस, गुयाना, सूरीनाम और नेपाल जैसे देशों की जनता तो बड़ी संख्या में हिंदी बोलती ही है; बीते कुछ वर्षों में अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों में भी प्रवासी भारतीयों ने हिंदी को लोकप्रिय बनाया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विदेश दौरों में जिस तरह हिंदी में बात करते हैं, वह वाकई काबिलेतारीफ है।
हिंदी न सिर्फ हमारे पारम्परिक ज्ञान, प्राचीन सभ्यता और आधुनिक प्रगति के बीच का एक मजबूत सेतु है; अपितु भारत संघ की राजभाषा होने के साथ ही ग्यारह राज्यों और तीन संघ शासित क्षेत्रों की भी प्रमुख राजभाषा है। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा विश्व हिंदी सम्मेलन और अन्य अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों के माध्यम से हिंदी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बनाने का कार्य भी तेजी से किया जा रहा है। यही नहीं, राजभाषा हिंदी के विकास के लिए खासतौर से राजभाषा विभाग का गठन किया गया है। भारत सरकार का राजभाषा विभाग इस दिशा में प्रयासरत है कि केंद्र सरकार के अधीन कार्यालयों में अधिक से अधिक कार्य हिंदी में हो। देवनागरी लिपि के कारण हिंदी को इंटरनेट, सूचना प्रौद्योगिकी तथा जनसंचार के क्षेत्रों में बीते कुछ सालों में व्यापक लोकप्रियता मिली है।
बताते चलें कि लोगों को हिंदी सिखाने के मकसद से पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राजभाषा विभाग द्वारा तैयार किये गये ‘लीला’ (लर्निंग इंडियन लैंग्वेज विद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) नाम के जिस मोबाइल ऐप को लोकार्पण किया, उसकी लोकप्रियता लोगों के हिंदी प्रेम को जाहिर कर रही है। भारत सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा उठाए गए ऐसे कदमों के परिणामस्वरूप कंप्यूटर पर हिंदी में कार्य करना बीते कुछ सालों में सुविधाजनक हो गया है। बीते एक दशक में संचार माध्यमों और सोशल मीडिया में हिंदी का प्रयोग काफी तेजी से बढ़ा है। इस बाबत माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स का यह कथन वाकई काफी मायने रखता है कि जब बोलकर लिखने की तकनीक उन्नत हो जाएगी तो हिन्दी अपनी लिपि की श्रेष्ठता के कारण सर्वाधिक सफल होगी।
हम जानते हैं कि अब कई साफ्टवेयर और हार्डवेयर अंतर्निर्मित हिंदी यूनिकोड की सुविधा के साथ आ रहे हैं। जहां तक तकनीक में हिंदी के प्रयोग की बात है तो जैसे जैसे तकनीक विकसित होती जाएगी, देवनागरी लिपि के प्रयोग की स्पष्ट विधि भी निकाल ली जायेगी। भारत सरकार के राजभाषा विभाग ने सरल हिंदी शब्दावली तैयार की है ताकि तकनीकी ज्ञान से संबंधित साहित्य का सरल अनुवाद किया जा सके। ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकें बड़े पैमाने पर हिंदी में लिखी जा रही हैं। आज हिंदी भाषा में विज्ञान, आयुर्विज्ञान, अभियांत्रिकी आदि विषयों तथा शब्दकोशों एवं ज्ञानकोशों की बड़ी निधि तैयार हो चुकी है। यही नहीं, राजभाषा विभाग द्वारा राष्ट्रीय ज्ञान-विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन योजना के द्वारा हिंदी में ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकों के लेखन को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे देश दुनिया के विद्यार्थियों और हिंदी प्रेमियों को ज्ञान-विज्ञान संबंधी पुस्तकें हिंदी में उपलब्ध हो सकेंगी। सनद रहे कि यूनेस्को की सात भाषाओं में हिंदी को भी मान्यता हासिल है। संवाद और मौलिक सोच की भाषा के रूप में हिंदी की वैश्विक लोकप्रियता को देखते हुए आज पूरी दुनिया में 200 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा पढ़ाई जा रही है।
विश्वकवि रवीन्द्र नाथ टैगोर ने हिंदी के महत्व को अत्यन्त भावपूर्ण रूप में रूपायित करते हुए कहा था, “भारतीय भाषाएं नदियां हैं जबकि हिंदी महानदी।” यह भाषा विभिन्न भाषाओं के उपयोगी और प्रचलित शब्दों को अपने में समाहित कर सही मायनों में भारत की संपर्क भाषा होने की भूमिका निभा रही है। हिंदी आज विश्व में मनोरंजन की दुनिया में सबसे आगे है। अनेक मनोरंजक चैनलों के समेत दर्जनों न्यूज चैनल हिंदी भाषा में प्रसारित होते हैं।
14 सितंबर 1949 का दिन स्वतंत्र भारत के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण है। इसी दिन संविधान सभा ने हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था। इस निर्णय को महत्व देने के लिए और हिन्दी के उपयोग को प्रचलित करने के लिए साल 1953 के उपरांत हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। हिंदीविद् डॉ. जयन्ती प्रसाद नौटियाल की मानें तो नब्बे के दशक के उपरान्त जब उदारीकरण का दौर भारत में चला तो उस वक्त अनेक बुद्धिजीवियों का मत था कि ग्लोबेलाइज़ेशन से भारत का आर्थिक एवं सांस्कृतिक परिदृश्य आमूचूल परिवर्तित हो जाएगा। विदेशी पूंजीवाद से विदेशी संस्कृति हावी हो जाने से हमारा सांस्कृतिक ताना-बाना ध्वस्त हो जाएगा तथा अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ने से हमारी भारतीय भाषाएं खासतौर पर हिंदी फिर से खतरे में पड़ जाएगी। ऐसा ही चिंता 1980 के दशक में तब उपजी थी जब भारत में कम्प्यूटरों का आगमन हुआ था। उस दौर में कुछ अंग्रेजी मानसिकता के लोग भारतीय जनमानस को यह कहकर भ्रमित कर रहे थे कि अब बिना अंग्रेजी जाने भारतीयों का कोई भविष्य नहीं है; परन्तु गौरव का विषय है कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। जिस हिंदी को कुछ समय पहले तक तकनीक और रोजगार की भाषा मानने में हिचक हो रही थी, उन तमाम बाध्यताओं को सफलतापूर्वक पार कर यह भाषा अपने कदम आगे बढ़ाती जा रही है। तमाम मल्टीनेशनल कंपनियां अपना व्यापार बढ़ाने के लिए हिंदी को अपनाती जा रही हैं। व्यवसाय की दृष्टि से देखें तो बाजार बिकने वाली वस्तु की ताकत को देखता है। हिंदी भाषा में वह ताकत है। यही कारण है कि आज सर्वाधिक विज्ञापन भी हिंदी में आते हैं। इंटरनेट और सोशल मीडिया पर भी हिंदी का प्रभाव बढ़ रहा है। देश के आम आदमी की भाषा के रूप में हिंदी देश की एकता का सर्वाधिक मजबूत सूत्र है।
हमारे यहां अवधी, ब्रज, भोजपुरी, अंगिका, बजिका, मैथिली, बुंदेलखंडी, मालवी, मलयालम, कन्नड, उड़िया, हरियाणवी, कौरवी व राजस्थानी (जिसमें मेवाड़ी, डिंगल सहित हर आंचल की अलग बोली भी शामिल है) जैसी 1600 से अधिक भाषाएं और बोलियां हैं; इन सबके बीच हिंदी भारतवासियों के बीच भाषा-सेतु के रूप में कार्य करती है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे जैसे बोला जाता है वैसा ही लिखा भी जाता है। यानी हिंदी भाषा पूरी तरह से ध्वनि और उच्चारण आधारित भाषा है। यह खूबी विश्व की अन्य किसी भी भाषा में नहीं है। एक भाषा के रूप में हिंदी न सिर्फ भारत की पहचान है बल्कि यह हमारे जीवन मूल्यों, संस्कृति एवं संस्कारों की संवाहक, संप्रेषक और परिचायक भी है। हमारा स्वाभिमान व गरिमा भी हिंदी से गहराई से जुड़ा है।
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