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हाकिम ही मुलजिम, आआपा है ना

दिल्ली सरकार के एक अधिकारी पर दुष्कर्म का आरोप लगा। इस पर उस आम आदमी पार्टी ने राजनीति शुरू कर दी। यह राजनीतिक नाटक इस पार्टी के निहित अपराध का ही संकेत देता प्रतीत होता है

by पाञ्चजन्य ब्यूरो
Aug 31, 2023, 04:07 pm IST
in विश्लेषण, दिल्ली
दुष्कर्म का आरोपी प्रेमोदय खाका

दुष्कर्म का आरोपी प्रेमोदय खाका

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पिछले लगभग 10 वर्ष में दिल्ली सरकार के विज्ञापन बजट में 4,200 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। यह राशि 15 करोड़ से लगभग 500 करोड़ प्रति वर्ष तक पहुंच गई है। 2021-22 में केंद्र सरकार ने 280.28 करोड़ रुपए विज्ञापन पर खर्च किए, वहीं इसी अवधि में केजरीवाल सरकार ने 488.97 करोड़ रु. का विज्ञापन दिया।

अभी कुछ दिन पहले दिल्ली सरकार के महिला एवं बाल विभाग के सहायक निदेशक प्रेमोदय खाका पर आरोप लगा कि उसने अपने स्वर्गीय दोस्त की नाबालिग बच्ची को अपने घर में रखकर उसका शारीरिक शोषण किया। प्रेमोदय की पत्नी पर भी आरोप है कि उसने अपने पति के इस कुकर्म पर पर्दा डाला। उसकी पत्नी भी सरकारी अधिकारी है। आरोप लगने के बाद पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया है। अब जांच चल रही है। इस बीच ऐसी कई बातें सामने आ रही हैं, जिनसे पता चल रहा है कि प्रेमोदय आम आदमी पार्टी के नेताओं के संपर्क में था।

इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि वह दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत का निजी सचिव भी रह चुका है। लेकिन जैसे ही प्रेमोदय के कुकर्म की जानकारी बाहर हुई, वैसे ही आम आदमी पार्टी के नेता सक्रिय होकर दुष्प्रचार करने लगे और एक नए विमर्श को खड़ा करने का प्रयास किया। उसके नेता अपने इस अधिकारी के पापों के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराने लगे। वहीं दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल, जो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की चहेती हैं, ने तो पुलिस पर ही गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा, ‘‘दिल्ली में महिला एवं बाल विकास विभाग में उपनिदेशक के पद पर बैठे सरकारी अधिकारी पर बच्ची से यौन शोषण का गंभीर आरोप लगा है। पुलिस ने अभी तक उसको गिरफ्तार नहीं किया है। हम दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी कर रहे हैं। जिसका काम बेटियों की सुरक्षा करना था, वही भक्षक बन जाए तो लड़कियां कहां जाएं!’’

यानी आम आदमी पार्टी ने प्रेमोदय को लेकर उसी चाल और चरित्र का प्रदर्शन किया, जिसके लिए वह जानी जाती है। अपनी गलती को दूसरे पर चिपका देना ही उसका चरित्र है। इसलिए इस गंभीर मामले पर पर भी उसने सस्ती राजनीति की। खैर, अब जांच शुरू हो गई है। यह पता चला है कि नाबालिग लड़की अपने माता-पिता के साथ बराबर दिल्ली के एक चर्च में जाती थी। उसी चर्च में प्रेमोदय भी सपत्नीक जाता था। वहीं दोनोें परिवारों में जान-पहचान हुई और बाद में दोस्ती में बदल गई। प्रेमोदय नाबालिग लड़की की मां को अपनी बहन मानने लगा था। इस कारण दोनों परिवार और नजदीक हो गए। इसी बीच 2020 में लड़की के पिता का कोरोना के कारण निधन हो गया। इसके बाद प्रेमोदय ने वह किया, जिसकी कल्पना न तो लड़की को थी और न ही उसकी मां को।

‘‘दिल्ली में महिला एवं बाल विकास विभाग में उपनिदेशक के पद पर बैठे सरकारी अधिकारी पर बच्ची से यौन शोषण का गंभीर आरोप लगा है। पुलिस ने अभी तक उसको गिरफ्तार नहीं किया है। हम दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी कर रहे हैं। जिसका काम बेटियों की सुरक्षा करना था, वही भक्षक बन जाए तो लड़कियां कहां जाएं!’’ -स्वाति मालीवाल, महिला आयोग की अध्यक्ष 

उस परिवार के प्रति सहानुभूति दिखाते-दिखाते प्रेमोदय ने एक दिन अपनी मुंह बोली बहन यानी लड़की की मां से कहा कि लड़की को मेरे घर ही भेज दो। वहीं अन्य बच्चों के साथ रहकर पढ़ेगी। इससे वह धीरे-धीरे अपने पिता के सदमे से बाहर निकल जाएगी। मुंह बोले भाई की इस ‘सहानुभूति’ से लड़की की मां पिघल गई और उसने अक्तूबर, 2020 में सहर्ष अपनी बेटी को प्रेमोदय के घर भेज दिया। प्रेमोदय ने इसका पूरा लाभ उठाया और उसके साथ अनेक बार दुष्कर्म किया।

जब वह लड़की गर्भवती हो गई तो प्रेमोदय की पत्नी ने उसे गर्भपात करने की दवा दी। फरवरी, 2021 तक वह लड़की प्रेमोदय के घर रही। इसके बाद वह अपनी मां के पास लौट आई, लेकिन वह गुमशुम रहने लगी। लगभग सवा दो वर्ष वह इसी अवस्था में रही। उसकी दशा देखकर उसकी विधवा मां परेशान रहती थी। आखिर में पिछले दिनों उसकी मां ने उसे डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने जब उस लड़की से अनेक सवाल किए तब उसने अपने साथ हुई घटना को बताया। इसके बाद तो दिल्ली में हंगामा मच गया। पुलिस ने प्रेमोदय और उसकी पत्नी के विरुद्ध एफ.आई.आर. दर्ज कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया। अब देखना यह है कि अदालत इन दोनों पति-पत्नी को क्या सजा देती है?

आआपा की शरारत

अब आम आदमी पार्टी की एक और शरारत को देखिए। इन दिनों आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जगह-जगह कहते फिर रहे हैं कि केंद्र सरकार ने दिल्ली के लोगों के अधिकारों को छीन लिया है। दरअसल, पिछले दिनों केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक -2023 को पारित कर दिल्ली में अधिकारियों के पदस्थापन और स्थानांतरण के अधिकार उपराज्यपाल को दे दिए हैं। चूंकि दिल्ली केंद्रशासित राज्य है।

इसलिए ये अधिकार वर्षों से उपराज्यपाल के पास ही थे। लेकिन पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले की आड़ में दिल्ली सरकार कई मामलों में मनमानी करने लगी थी। उसकी मनमानी को रोकने के लिए पहले केंद्र सरकार ने 19 मई को एक अध्यादेश जारी किया और अब संसद के दोनों सदनों से मुहर लगवाकर उसे कानून बना दिया है। राज्यसभा में इस विधेयक पर चर्चा के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि पहले अध्यादेश और अब विधेयक लाने की जरूरत इसलिए पड़ी, ताकि 2,000 करोड़ रु. के शराब घोटाले से जुड़े अधिकारियों का स्थानांतरण करने से आम आदमी पार्टी को रोका जा सके।

‘अरविंद केजरीवाल का चरित्र और व्यक्तित्व विश्वास के लायक नहीं है।’
– संदीप दीक्षित,
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता

वास्तव में केजरीवाल को अच्छे से यह पता है कि राष्ट्रीय राजधानी होने के कारण उनको प्रशसानिक मामलों में सर्वाधिकार पाने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। इसके बावजूद वे इस मामले को लेकर राजनीति कर रहे हैं, आम आदमी को भ्रमित कर उनकी ‘सहानुभूति’ प्राप्त करना चाहते हैं। उनको लगता है कि इस कानून की आड़ में वे दिल्ली में भाजपा के विरुद्ध माहौल बनाने में सफल हो जाएंगे। हालांकि लोग उनके बारे में जानते हैं।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता संदीप दीक्षित ने कहा है, ‘‘अरविंद केजरीवाल का चरित्र और व्यक्तित्व विश्वास के लायक नहीं है।’’ इसके साथ ही दिल्ली का प्रबुद्ध वर्ग आरोप लगाता रहा है कि अरविंद केजरीवाल के आने से दिल्ली में विकास, व्यवस्था कम अराजकता और अपराध अधिक फैले हैं। चर्चा में बने रहने के चक्कर में वे लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर उल्टे-सीधे आरोप लगाते हैं। कई बार सदन में भी सड़कछाप भाषा का प्रयोग करने से भी बाज नहीं आते। उनकी इन हरकतों से राजनीति का स्तर बहुत गिरा है।

दिल्ली की पूरी प्रशासनिक व्यवस्था अपने हाथ में लेने को बेताब अरविंद केजरीवाल ने कोरोना काल में 31 मई, 2020 को कहा था कि दिल्ली के कर्मचारियों को वेतन देने के लिए भी पैसे नहीं हैं। कर्मचारियों के वेतन के लिए केंद्र सरकार 5,000 करोड़ रु. की तुरंत मदद दे। छल-कपट की हद देखिए कि अगस्त, 2020 में आरटीआई से खुलासा हुआ कि केजरीवाल सरकार पिछले 4 महीने में प्रतिदिन लगभग 40,00,000 रु. विज्ञापनों में खर्च करती है। मुख्यमंत्री बनने से पहले केजरीवाल ने कहा था कि वे न तो सरकारी बंगला लेंगे, न सुरक्षा और न ही गाड़ी। लेकिन वही केजरीवाल अपने सरकारी घर पर 55 करोड़ रु. खर्च करते हैं। लाखों रु. के पर्दे और शौचालय में रिमोट से चलने वाले कमोड लगवाते हैं।

आखिर सर्वोच्च न्यायालय ने फटकार लगाते हुए दो महीने के अंदर पैसे देने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति एस.के. कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि आम आदमी पार्टी सरकार पिछले तीन वर्ष में विज्ञापनों पर 1,000 करोड़ रु. खर्च कर सकती है, तो दिल्ली के विकास की अहम परियोजनाओं पर पैसों का विलाप क्यों?

दिल्ली के विकास का दावा करने वाले केजरीवाल रीजनल रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम (आर.आर.टी.एस.), जो दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान के लोगों को बेहतर आवागमन की सुविधा उपलब्ध कराने वाली है, को अपने हिस्से का 415 करोड़ रु. नहीं देना चाहते थे। आखिर सर्वोच्च न्यायालय ने फटकार लगाते हुए दो महीने के अंदर पैसे देने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति एस.के. कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि आम आदमी पार्टी सरकार पिछले तीन वर्ष में विज्ञापनों पर 1,000 करोड़ रु. खर्च कर सकती है, तो दिल्ली के विकास की अहम परियोजनाओं पर पैसों का विलाप क्यों?

पिछले लगभग 10 वर्ष में दिल्ली सरकार के विज्ञापन बजट में 4,200 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। यह राशि 15 करोड़ से लगभग 500 करोड़ प्रति वर्ष तक पहुंच गई है। 2021-22 में केंद्र सरकार ने 280.28 करोड़ रुपए विज्ञापन पर खर्च किए, वहीं इसी अवधि में केजरीवाल सरकार ने 488.97 करोड़ रु. का विज्ञापन दिया। अब यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि केजरीवाल कौन-सा सपना पूरा करना चाहते हैं।

Topics: अरविंद केजरीवालदिल्ली में महिला एवं बाल विकास विभागआआपा की शरारतसर्वोच्च न्यायालय
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