अपने-अपने लक्ष्य, अपनी-अपनी जिद
July 11, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम सम्पादकीय

अपने-अपने लक्ष्य, अपनी-अपनी जिद

बुर्के के लिए पढ़ाई छोड़ने वाली युवतियों के लिए आंखें खोलने का समय है। उन्हें भारत की इन महिला वैज्ञानिकों से प्रेरणा लेनी चाहिए, जो आने वाली पीढ़ियों की भी प्रेरणा हैं

by हितेश शंकर
Aug 29, 2023, 02:35 pm IST
in सम्पादकीय
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

चंद्रयान-3 की सफलता में ही नहीं, बल्कि उसकी अवधारणा से लेकर उसके विनिर्माण तक में सैकड़ों महिला वैज्ञानिक, इंजीनियर और विशेषज्ञ शामिल थीं। जब दुनिया टीवी और मोबाइल की स्क्रीन पर चंद्रयान के चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अवतरण का सीधा प्रसारण देख रही थी

आप उस दृश्य को याद कीजिए, जिसे हम सभी ने अपने-अपने टीवी या मोबाइल की स्क्रीन पर देखा है। चंद्रयान-3 की सफलता में ही नहीं, बल्कि उसकी अवधारणा से लेकर उसके विनिर्माण तक में सैकड़ों महिला वैज्ञानिक, इंजीनियर और विशेषज्ञ शामिल थीं। जब दुनिया टीवी और मोबाइल की स्क्रीन पर चंद्रयान के चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अवतरण का सीधा प्रसारण देख रही थी, तो बेंगलुरु में इसरो के केंद्र में इन दर्जनों शीर्ष महिला वैज्ञानिकों को भी देखा जा सकता था। ये शीर्ष महिला वैज्ञानिक बेंगलुरु की नारी शक्ति का एक प्रतिबिंब थीं। अत्यंत ऊर्जावान, मेधावी महिला वैज्ञानिकों का वह समूह, जो अपनी आस्था को छिपाने या उस पर लज्जित होने के फैशन में पड़े बिना, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव तक अपने देश का ध्वज पहुंचाने के महान लक्ष्य के प्रति समर्पित थीं। ऐसी सरलता, सहजता, जैसे वे हमारे ही पड़ोस में रहने वाली हों, हम में से ही कोई हों।

पाकिस्तान के एक नागरिक ने पाकिस्तानी मीडिया में प्रकाशित चंद्रयान-3 से संबंधित समाचार पर अपनी टिप्पणी में कहा, ‘यह हमारे लिए एक लम्हा-ए-फिक्रिया है कि हम कहां जा रहे हैं।’ ठीक है, उसकी बात समझी जा सकती है। भारत से ही अलग हुआ वह इलाका 76 वर्ष बाद आज बिजली-पानी ही नहीं, आटे और इंसानियत के लिए भी तरस रहा है।

लेकिन क्या हमें पाकिस्तान की ओर देखने की भी आवश्यकता है? आप बेंगलुरु के ही एक अन्य दृश्य को याद कीजिए। यह दृश्य भी बेंगलुरु की ही नारी शक्ति का एक दूसरा बिम्ब था। जब स्कूलों में पढ़ने वाली या उनसे थोड़ी बड़ी छात्राओं के एक वर्ग ने यह जिद ठानी थी कि अगर उन्हें बुर्का पहनकर स्कूल-कॉलेज आने की अनुमति नहीं दी जाती है, तो वे पढ़ाई छोड़ देना बेहतर समझेंगी। यह नारी शक्ति भी अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित थी, खुद को काले तंबुओं के अंधेरे में सदा के लिए कैद रखने के अपने आदिम अधिकार के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, समय के साथ चलने का प्रतिरोध करने के लक्ष्य के लिए, बेहद लड़ाकू-झगड़ालू अंदाज को अभिव्यक्त करने के लक्ष्य के लिए, भारत के नियमों-कानूनों और एकरूपता को अस्वीकार करने के लक्ष्य के लिए, हंगामा करने के अधिकार पर जोर देने के लक्ष्य के लिए पूरी तरह समर्पित।

हम नहीं कहते, नहीं कहना चाहते और स्थितियों की पूरी तरह अनदेखी करके भी इस बात पर ध्यान नहीं देना चाहते कि पाकिस्तान या पाकिस्तान जैसी स्थितियां भारत के अंदर भी पनप रही हैं, लेकिन वास्तव में लम्हा-ए-फिक्र हमारे लिए भी है अथवा होना चाहिए। आखिर हम जान-बूझकर अंधकूप में कैसे कूद सकते हैं? आखिर अराजकता, तर्कहीनता और तार्किकता के विरोध के लिए जिद कैसे की जा सकती है? यह किसी मान्यता या आस्था को मानने अथवा न मानने का प्रश्न नहीं है। यह एक राष्ट्र और एक समाज के चरित्र का प्रश्न है। हमें पीछे जाना है या आगे जाना है?

हमें एक राष्ट्र के तौर पर एक साथ बढ़ना है, या भिन्न पहचान के नाम पर राष्ट्र की प्रगति में अड़ंगे लगाना है? इसमें संदेह नहीं कि राजनीति ने इन महिलाओं को मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया है, उस राजनीति का साथ देने वाले मीडिया ने उन्हें किसी विवाद में जीत प्राप्त करने वाली नायिका के तौर पर पेश किया है, उन्हें छिटपुट पुरस्कार देकर महिमामंडित करने वालों ने ज्यादा से ज्यादा भीड़ अपने पक्ष में करने के लिए लालसाएं पैदा करने का काम किया है।

कोई संदेह नहीं कि उन्हें जीवनोपरांत कुछ स्थितियों का वादा करने वालों ने उन्हें प्रगतिशील विचारों से बलपूर्वक दूर रखा है। जिस पाकिस्तानी नागरिक की प्रतिक्रिया का ऊपर उल्लेख किया गया है, उसकी व्यथा समझने लायक है। लेकिन वह सिर्फ पाकिस्तान के नागरिकों के लिए विचारणीय नहीं है, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए विचारणीय है जो पाकिस्तान जैसी परिस्थितियों को पैदा करने की दिशा में बढ़ना चाहता है।

हमें एक राष्ट्र के तौर पर एक साथ बढ़ना है, या भिन्न पहचान के नाम पर राष्ट्र की प्रगति में अड़ंगे लगाना है? इसमें संदेह नहीं कि राजनीति ने इन महिलाओं को मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया है, उस राजनीति का साथ देने वाले मीडिया ने उन्हें किसी विवाद में जीत प्राप्त करने वाली नायिका के तौर पर पेश किया है

ऐसे लोगों को भारत के विभाजन के दौर के इतिहास से जरूर सबक लेना चाहिए। इतिहास यह है कि जिसने तराना ए मिल्ली लिखा और जिसे पाकिस्तान के विचार का जिसको प्रतिपादक माना गया, जब आग फैल गई तो वही व्यक्ति मोहम्मद अली जिन्ना को पत्र लिखकर कहता है कि हमें (अविभाजित) भारत के उन्हें इलाकों के बारे में भूल जाना चाहिए जहां मुसलमान अल्पसंख्यक हैं। इसका अर्थ यही हुआ कि बात मुसलमानों की नहीं, बल्कि राजनीतिक सत्ता की थी।

जहां सत्ता मिले वहां इस्लाम जिंदाबाद और जहां न मिले वहां के लोग अपनी-अपनी राह देखें! जो व्यक्ति अगली ईद पाकिस्तान में नाम का गीत लिखता है, वह खुद पाकिस्तान जाने से इनकार कर देता है। लेकिन उसकी बातों में आए लोगों के जीवन को तब तक वह तबाह कर चुका होता है। ये लोग अपनी बातों के भावनात्मक जाल में फंसा कर अनगिनत लोगों को ऐसी समस्याओं के भंवर में छोड़ गए, जहां से बाहर निकलना उनके लिए आज संभव नहीं रह गया है। यह बुर्के के लिए पढ़ाई छोड़ने वाली युवतियों के लिए आंखें खोलने का समय है। उन्हें भारत की इन महिला वैज्ञानिकों से प्रेरणा लेनी चाहिए, जो आने वाली पीढ़ियों की भी प्रेरणा हैं।

@hiteshshankar

Topics: progress of nationनारी शक्तिinspiration from women scientistswomen powerचंद्रयान-3Chandrayaan-3महिला वैज्ञानिक बेंगलुरुचंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवराष्ट्र की प्रगतिमहिला वैज्ञानिकों से प्रेरणाwomen scientists bangaloresouth pole of moon
Share17TweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

शौर्य में भी साथ बेटियां

Operation sindoor

भारतीय राजनेताओं में सामरिक और कूटनीतिक संस्कृति विकसित करने का समय

Dehradun Sindoor Shakti Yatra

देहरादून में नारी शक्ति द्वारा ‘सिंदूर शौर्य शक्ति तिरंगा यात्रा’ का भव्य आयोजन

Operation Sindoor : एक चुटकी सिंदूर की कीमत…

“पहाड़ों में पलायन नहीं, अब संभावना है” : रिवर्स पलायन से उत्तराखंड की मिलेगी नई उड़ान, सीएम धामी ने किए बड़े ऐलान

रामनवमी पर पहली बार राममय हुआ संभल : शोभायात्रा में नारी शक्ति ने दिखाया कमाल, भगवा ध्वज ने भी बदला माहौल

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Uttarakhand Kanwar Yatra-2025

Kanwar Yatra-2025: उत्तराखंड पुलिस की व्यापक तैयारियां, हरिद्वार में 7,000 जवान तैनात

Marathi Language Dispute

Marathi Language Dispute: ‘मराठी मानुष’ के हित में नहीं है हिंदी विरोध की निकृष्ट राजनीति

‘पाञ्चजन्य’ ने 2022 में ही कर दिया था मौलाना छांगुर के मंसूबों का खुलासा

Europe Migrant crisis:

Europe Migrant crisis: ब्रिटेन-फ्रांस के बीच ‘वन इन, वन आउट’ डील, जानिए क्या होगा असर?

अर्थ जगत: कर्ज न बने मर्ज, लोन के दलदल में न फंस जाये आप; पढ़िये ये जरूरी लेख

जर्मनी में स्विमिंग पूल्स में महिलाओं और बच्चियों के साथ आप्रवासियों का दुर्व्यवहार : अब बाहरी लोगों पर लगी रोक

सेना में जासूसी और साइबर खतरे : कितना सुरक्षित है भारत..?

उत्तराखंड में ऑपरेशन कालनेमि शुरू : सीएम धामी ने कहा- ‘फर्जी छद्मी साधु भेष धारियों को करें बेनकाब’

जगदीप धनखड़, उपराष्ट्रपति

इस्लामिक आक्रमण और ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को नुकसान पहुंचाया : उपराष्ट्रपति धनखड़

Uttarakhand Illegal Madarsa

बिना पंजीकरण के नहीं चलेंगे मदरसे : उत्तराखंड हाईकोर्ट ने दिए निर्देश

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies