जॉर्डन के अम्मान में 14-20 अगस्त तक आयोजित 20 साल से कम आयु वर्ग की विश्व कुश्ती चैम्पियनशिप में भारतीय पहलवानों ने सर्वाधिक 10 पदक जीत कर इतिहास रचा। इनमें 7 पदक (3 स्वर्ण, 1 रजत व 3 कांस्य) महिला पहलवानों ने जीते हैं। अंतिम पंघाल दो बार अंडर-20 विश्व चैम्पियनशिप जीतने वाली पहली भारतीय पहलवान बन गई हैं। महिला पहलवानों के दमदार प्रदर्शन को देखते हुए ओलंपिक में इनसे पदक की उम्मीद बनी है। भारतीय कुश्ती टीम के मुख्य प्रशिक्षक और द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित महासिंह राव गर्व से कहते हैं कि देश में महिला पहलवानों की जो नई पौध प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने को सच करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। भारतीय महिला पहलवान टीम की सफलता पर प्रवीण सिन्हा ने महासिंह राव से बातचीत की। प्रस्तुत हैं उस वार्ता के मुख्य अंश-
भारतीय महिला पहलवानों ने जूनियर विश्व चैम्पियनशिप में सर्वाधिक 7 पदक जीतकर स्पर्धा अपने नाम की। आप इस सफलता के सूत्रधार रहे हैं। कैसा लग रहा है?
सबसे पहले भारतीय महिला पहलवानों पर विश्वास बनाए रखने व आशीर्वाद के लिए सभी खेल प्रेमियों का धन्यवाद। यह प्रतियोगिता भारतीय महिला कुश्ती जगत की दशा और दिशा बदलने वाली साबित होगी। हम 10 फ्रीस्टाइल पहलवानों का दल लेकर अम्मान गए थे। भारतीय कुश्ती जगत में जो विपरीत परिस्थितियां बनी हुई थीं, उसके बीच हमने पहलवानों को सिर्फ तैयारी पर ध्यान केंद्रित करने और हर पहलवान के लिए पदक जीतने का लक्ष्य रखा था। प्रशिक्षण शिविर में युवा पहलवानों ने जिस तरह से कड़ी मेहनत की, उससे भरोसा हो गया था कि टीम में शामिल सभी 10 पहलवान पदक जीतकर ही लौटेंगी। अंतत: 7 पहलवानों का पोडियम फिनिश करना यह साबित करने के लिए काफी है कि भविष्य की स्टार महिला पहलवानों ने दिग्गज देशों को कड़ी चुनौती देने के लिए कमर कस ली है।
भारत की शानदार सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली अंतिम पंघाल के बारे में आपकी क्या राय है?
अंतिम पंघाल युवा पहलवान है। उसके जैसी मेहनती और प्रतिभाशाली पहलवान विरले ही देखने को मिलती है। वह पूरे जी-जान से लड़ती है। शारीरिक दमखम के साथ उसमें जीत की भूख है, जो उसे विश्व की अन्य पहलवानों से अलग और विशेष बनाती है। कुश्ती एक शारीरिक दमखम वाला खेल है, लेकिन इसमें वही पहलवान आगे जाती है जिसमें तकनीकी और मानसिक तौर पर अपने प्रतिद्वंद्वियों को मात देने का माद्दा हो। अंतिम अपने नाम को सार्थक सिद्ध करते हुए कई बार कुश्ती रिंग में अचानक चाल बदलते हुए विपक्षी पर दांव लगाती है। भारतीय शैली के दांव-पेचों में माहिर होने के अलावा वह विदेशी पहलवानों को उन्हीं के दांव में फंसाकर बाजी मार लेती है। अगले माह होने वाले एशियाई खेलों को लेकर वह ऊहापोह में थी, लेकिन उसने एकाग्रता नहीं खोई। वह हर चुनौती का सामना करने के लिए तैयार रहती है और पदक जीतने के लिए अथक प्रयास करती है। यही वजह है कि जिस महिला विश्व चैम्पियनशिप में भारत को कभी पदकों के लिए तरसना पड़ता था, उसमें लगातार दो बार स्वर्ण जीतने वाली वह पहली भारतीय पहलवान बनी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ओलंपिक खेलों में शामिल होने से पहले हर खिलाड़ी से मिलकर उसे आशीर्वाद देते हैं। शायद ही किसी देश के प्रधानमंत्री ऐसा करते होंगे। यही नहीं, विश्व मंच पर खिलाड़ी सफलता हासिल करता है तो पहला ट्वीट प्रधानमंत्री का आता है, ऐसा पहले कब देखा था हमने? प्रतियोगिता की समाप्ति पर पदक विजेता या पदक से चूकने वाले हर खिलाड़ी को प्रधानमंत्री का बधाई देना और हौसला बढ़ाना खिलाड़ियों के मनोबल को सातवें आसमान पर पहुंचा देता है।
भारतीय महिला पहलवानों की जो एक नई पौध तैयार हो रही है, उससे आपको कितनी उम्मीद है?
अतिश्योक्ति न मानें, तो ये युवा महिला पहलवान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने को सच करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही हैं। सरकार से युवा पहलवानों को जो प्रेरणा और सुविधाएं मिल रही हैं, उसका पूरा लाभ उठाते हुए ये पहलवान खुद को शारीरिक और मानसिक तौर पर मजबूत बनाने के अलावा तकनीकी दृष्टि से भी खुद को निरंतर मजबूत करने में लगी रहती हैं। अंतिम पंघाल, सविता, प्रिया मलिक, अंतिम हुड्डा और प्रियांशी प्रजापति जैसी युवा पहलवानों में प्रतिभा के साथ-साथ जीत की जिजीविषा है, जो इन्हें संपूर्ण पहलवान बनाती है। इन जूनियर पहलवानों में देश की वरिष्ठ और विश्व स्तरीय पहलवानों को हराने की अद्भुत ललक है। इनकी इच्छाशक्ति इनकी सबसे बड़ी ताकत है। मेरा पूरा विश्वास है कि जिस तरह से ये पहलवान तैयारियों में जुटी हुई हैं और विश्व स्तर पर सफलताएं अर्जित कर रही हैं, अगले ओलंपिक में 3-4 महिला पहलवानों से आप पदक की उम्मीद कर सकते हैं। मैं यह दावा युवा महिला पहलवानों को प्रोत्साहित करने के लिए नहीं, बल्कि उनकी क्षमता के आधार पर कर रहा हूं। साक्षी मलिक और विनेश फोगाट ने भारतीय महिला पहलवानों की जिस स्वस्थ परंपरा की शुरुआत की है, जूनियर पहलवान उसे आगे बढ़ाने में पूरी तरह से सक्षम हैं।
अंडर-20 जूनियर विश्व चैम्पियनशिप में (बाएं से चौथी) अंतिम पंघाल (53 किग्रा), सविता मलिक (62 किग्रा) और प्रिया मलिक (73 किग्रा) ने स्वर्ण पदक जीतेआपने कहा कि जूनियर विश्व चैम्पियनशिप में भारतीय महिला पहलवानों की सफलता भारतीय कुश्ती जगत की दशा और दिशा बदलने वाली साबित हो सकती है। ऐसा कहने के पीछे क्या आधार है?
किसी भी देश में खेल की स्थिति का आकलन ओलंपिक खेलों में मिली सफलताओं से किया जाता है। भारत भी पिछले सात ओलंपिक खेलों में लगातार पदक जीतता आ रहा है। हमें सर्वाधिक व्यक्तिगत पदक कुश्ती में मिले हैं। इससे भारतीय पहलवानों में यह विश्वास जागा है कि ओलंपिक में पदक हमारी पहुंच से दूर नहीं है। इस विश्वास और खिलाड़ियों के जोश को बनाए रखने के लिए भारत सरकार ने उनके हित में जितनी योजनाएं बनाईं, उनसे देश में खेल के प्रति रुझान बढ़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ओलंपिक खेलों में शामिल होने से पहले हर खिलाड़ी से मिलकर उसे आशीर्वाद देते हैं। शायद ही किसी देश के प्रधानमंत्री ऐसा करते होंगे। यही नहीं, विश्व मंच पर खिलाड़ी सफलता हासिल करता है तो पहला ट्वीट प्रधानमंत्री का आता है, ऐसा पहले कब देखा था हमने? प्रतियोगिता की समाप्ति पर पदक विजेता या पदक से चूकने वाले हर खिलाड़ी को प्रधानमंत्री का बधाई देना और हौसला बढ़ाना खिलाड़ियों के मनोबल को सातवें आसमान पर पहुंचा देता है।
आज हर युवा खिलाड़ी देश के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने को आतुर दिखता है, क्योंकि उन्हें सरकार से प्रोत्साहन, सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा मिलने की पूरी गारंटी दिखती है। इसलिए यह तय है कि युवा महिला पहलवानों का बढ़ा हुआ मनोबल, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उनकी सफलता हासिल करने की गति व दर, सीनियर खिलाड़ियों को मात देने की क्षमता और भविष्य के लिए खुद को मजबूती से तैयार करने की इच्छाशक्ति महिला कुश्ती को एक नई दिशा और दशा देगी।
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