‘विश्व को भौतिक और आध्यात्मिक प्रगति की राह पर अग्रसर करेगा भारत’

हमारे वैज्ञानिकों ने लंबे परिश्रम के पश्चात वहां उतरने का पहला गौरव प्राप्त किया है, संपूर्ण देश के लिए ही नहीं, सारे विश्व की मानवता के लिए।

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भारत विश्व को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की प्रगति की राह पर अग्रसर करेगा, यह बात अब सत्य होने जा रही है। ज्ञान, विज्ञान के भी क्षेत्र में हम बढ़ेंगे, नील नभ के रूप के नव अर्थ भी हम कर सकेंगे।

अभी तक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर कोई नहीं उतरा था। हमारे वैज्ञानिकों ने लंबे परिश्रम के पश्चात वहां उतरने का पहला गौरव प्राप्त किया है, संपूर्ण देश के लिए ही नहीं, सारे विश्व की मानवता के लिए। भारत वसुधैव कुटुंबकम् की दृष्टि लेकर विश्व को शांति और समृद्धि प्रदान करने की दिशा में अग्रसर हुआ है।

भारत विश्व को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की प्रगति की राह पर अग्रसर करेगा, यह बात अब सत्य होने जा रही है। ज्ञान, विज्ञान के भी क्षेत्र में हम बढ़ेंगे, नील नभ के रूप के नव अर्थ भी हम कर सकेंगे। भोग के वातावरण में त्याग का संदेश देंगे, दासत्व के घन बादलों से सौख्य की वर्षा करेंगे।

स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव में वास्तविक अमृत वर्षा करने वाला यह क्षण हम सब लोगों ने अपनी आंखों से देखा है, इसलिए हम धन्य हैं। अब हम अपने कर्तव्य के लिए जागें और आगे बढ़ें, इसकी आवश्यकता है। आगे बढ़ने के लिए आवश्यक सामर्थ्य, आवश्यक कला-कौशल, आवश्यक दृष्टि, यह सब कुछ हमारे पास है। यह आज के इस प्रसंग ने सिद्ध कर दिया है। मैं फिर से एक बार सबका अभिनंदन करता हूं और हृदय से कहता हूं-भारत माता की जय।

आज हम सबके लिए आनंद का क्षण है। हमारे वैज्ञानिक कठोर परिश्रम से धन्यता का जो क्षण हमारे लिए खींच कर लाए हैं, उसके लिए हम उनके आभारी हैं। इसके लिए सारे वैज्ञानिकों का, उनको प्रोत्साहन देने वाले शासन-प्रशासन सबका हम धन्यवाद करते हैं। भारत विश्व को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की प्रगति की राह पर अग्रसर करेगा, यह बात अब सत्य होने जा रही है। ज्ञान, विज्ञान के भी क्षेत्र में हम बढ़ेंगे, नील नभ के रूप के नव अर्थ भी हम कर सकेंगे। भोग के वातावरण में त्याग का संदेश देंगे, दासत्व के घन बादलों से सौख्य की वर्षा करेंगे।

इस उद्देश्य को साकार करने के लिए सारे देश का आत्मविश्वास जाग गया है। स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव में वास्तविक अमृत वर्षा करने वाला यह क्षण हम सब लोगों ने अपनी आंखों से देखा है, इसलिए हम धन्य हैं। अब हम अपने कर्तव्य के लिए जागें और आगे बढ़ें, इसकी आवश्यकता है। आगे बढ़ने के लिए आवश्यक सामर्थ्य, आवश्यक कला-कौशल, आवश्यक दृष्टि, यह सब कुछ हमारे पास है। यह आज के इस प्रसंग ने सिद्ध कर दिया है। मैं फिर से एक बार सबका अभिनंदन करता हूं और हृदय से कहता हूं-भारत माता की जय।

– श्री मोहनराव भागवत, सरसंघचालक, रा.स्व.संघ

 

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